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![]() चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘कोई बात नहीं। अजूबी ने यह ज़रूर बता दिया है- होली की दावत कहाँ दी जा रही है और वह कहाँ मिलेगी।’’ महागुप्तचर का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। उसी समय ‘राजरथ-वन’ के टाइमकीपर ने एक बार शंख बजाकर प्रस्थान में एक घण्टा विलम्ब होने की चेतावनी दी। शंख की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने कहा- ‘‘हमारे प्रस्थान में एक घण्टा विलम्ब हो चुका है। यह लीजिए- दो चित्र और इसकी सत्यता की जाँच करिए। अभी थोड़ी देर पहले दो कबूतर आकर ये चित्र छत पर गिरा गए थे। आपको इस कार्य के लिए बुलाने ही वाला था- आप खुद आ गए। इसकी रिपोर्ट हमें तत्काल चाहिए।’’
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महागुप्तचर ने कहा- ‘‘अब तो बहुत देर हो चुकी है, महामहिम। होली के कारण सारे गुप्तचर छुट्टी पर चल रहे हैं।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘तो क्या हुआ? द्रविड़ देश के गुप्तचरों की सहायता ली जाए।’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘द्रविड़ देश के गुप्तचर कर्नाटक के गुप्तचरों के साथ हैदराबादी बिरयानी खाने के लिए हैदराबाद गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘हैदराबाद निजाम के गुप्तचर तो इस समय अवश्य उपलब्ध होंगे? उनकी सहायता ली जाए।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। हैदराबाद निजाम के गुप्तचर पाव-भाजी खाने के लिए मुम्बई गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘और मुम्बई के गुप्तचर इस समय क्या कर रहे हैं?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘मुम्बई के गुप्तचर स्पेशल मसाला-डोसा खाने के लिए कन्याकुमारी गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने पूछा- ‘‘और केरल के गुप्तचर?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘केरल के गुप्तचर होली की गुझिया खाने के लिए दिल्ली गए हुए हैं।’’ चाणक्य ने सिर पकड़कर कहा- ‘‘पेटू हैं सब के सब! तो इस समय सभी गुप्तचर कुछ न कुछ खाने-पीने के लिए इधर-उधर गए हुए है।’’ उसी समय ‘राजरथ-वन’ के टाइमकीपर ने दो बार शंख बजाकर प्रस्थान में दो घण्टा विलम्ब होने की चेतावनी दी। शंख की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने कहा- ‘‘हमारे प्रस्थान में दो घण्टे का विलम्ब हो चुका है। मौर्य देश के तांत्रिकों को तुरन्त बुलाया जाए। अब वही अपनी तांत्रिक शक्ति से पता लगाकर बताएँगे- चित्रों की सत्यता क्या है?’’
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महागुप्तचर के आदेश पर मौर्य देश के राजकीय तांत्रिक गुग्गुल महाराज और याह्या बाबा चाणक्य से सामने हाजि़र हुए। तांत्रिक शक्ति में गुग्गुल महाराज याह्या बाबा से बहुत बड़े थे। चाणक्य ने गुग्गुल महाराज को वक्र दृष्टि से घूरते हुए कहा- ‘‘पिछले वर्ष आपने विद्योत्तमा के बारे में उल्टी-सीधी सूचनाएँ देकर चाणक्य को अच्छी तरह से वाट लगा दिया था। इस बार इन चित्रों की सत्यता परखकर बताइए। ध्यान से- इस बार कोई गड़बड़ी न होने पाए।’’
गुग्गुल महाराज ने चित्रों को देखकर अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए बताया- ‘‘मुझे तो कहीं पर कुछ गड़बड़ी नज़र आ रही है।’’ चाणक्य ने याह्या बाबा की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। याह्या बाबा ने भी गुग्गुल महाराज की बात की पुष्टि करते हुए कहा- ‘‘कुछ तो ज़रूर गलत लग रहा है।’’ चाणक्य ने अपना सन्देह व्यक्त करते हुए कहा- ‘‘आप दोनों कहीं कुछ गलती तो नहीं कर रहे?’’
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गुग्गुल महाराज ने कुपित होकर अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करके दीवार पर पूरे मैसूर और बंगलौर का नक्शा बनाते हुए कहा- ‘‘आप स्वयं देख लीजिए।’’
चाणक्य ने नक्शा देखते हुए कहा- ‘‘आप मैसूर नहीं, सिर्फ़ बंगलौर का नक्शा दिखाइए। इस समय अजूबी मैसूर महाराजा के साथ बंगलौर में ही है।’’ गुग्गुल महाराज ने अपनी तांत्रिक शक्तियों के प्रयोग से दीवार पर बंगलौर का नक्शा बना दिया। चाणक्य ने कहा- ‘‘नक्शे को और थोड़ा बड़ा करके दिखाइए।’’ गुग्गुल महाराज ने नक्शे को और बड़ा कर दिया। चाणक्य ने कहा- ‘‘और थोड़ा बड़ा करिए।’’ गुग्गुल महाराज ने अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए कहा- ’’बस, अब इससे अधिक बड़ा नहीं हो सकता। मैसूर के राजकीय तांत्रिकों ने अपनी शक्ति के प्रयोग से हमारी शक्ति के प्रयोग की सीमा तय कर दी है। नहीं तो हम अजूबी के सिर के बाल तक गिनकर आपको अभी बता देते।’’ दीवार पर बने बंगलौर का नक्शा देखकर चाणक्य को लगा कि गुग्गुल महाराज की बात गलत नहीं थी। मालव देश की राज ज्योतिषी ज्वालामुखी ने भी इस प्रकरण पर कोई अधिकृत भविष्यवाणी जारी नहीं की थी। यही नहीं, जब-तब विद्योत्तमा और अजूबी से छिपाकर गुप्त सूचनाएँ भेजने वाली ज्वालामुखी ने इस बार कोई गुप्त सूचना भी नहीं भेजी थी। अतः सब कुछ संदेहास्पद लग रहा था।
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उसी समय संदेश-पत्र के साथ एक कबूतर आकर महागुप्तचर के कंधे पर बैठ गया। महागुप्तचर ने संदेश पढ़ते हुए कहा- ‘‘मैसूर के गुप्तचर ने होली की छुट्टी पर जाने से पहले अपना अन्तिम सन्देश भेजा है।’’
चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘क्या लिखा है संदेश में?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘अजूबी को तमिलनाडु के होसूर के आसपास के क्षेत्र में कुत्ते और बिल्लियों के साथ टहलता हुआ देखा गया। इस घटना के कुछ देर बार अजूबी के दोस्तों ने ‘दिल के अरमां आँसुओं में बह गए’ कहकर अजूबी का मज़ाक़ उड़ाया।’’ चाणक्य ने कुपित होते हुए कहा- ‘‘अजूबी के दोस्तों का यह कृत्य एक निंदनीय घटना है। सम्पूर्ण प्रकरण में गलती हमारी नहीं, अजूबी की ही है। फिर भी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुत्ते और बिल्लियों के साथ अजूबी का टहलना एक अच्छा शकुन है...’’ उसी समय ‘राजरथ-वन’ के टाइमकीपर ने तीन बार शंख बजाकर प्रस्थान में तीन घण्टा विलम्ब होने की चेतावनी दी। चाणक्य ने शंख की आवाज़ सुनकर कहा- ‘‘घटनाओं की जाँच-पड़ताल समय पर पूरी न होने के कारण हमारे प्रस्थान में तीन घण्टा विलम्ब हो चुका है जिसके कारण होली पर समय से पहुँचना सम्भव नहीं। इसलिए मैसूर-यात्रा के कार्यक्रम को अस्थाई रूप से पोस्ट्पोन किया जाता है। ब्रेन वाश पुस्तक भी अभी तक कायदे से पूरी नहीं हो सकी है। ब्रेन वाश ठीक से न लिखी गई तो इतिहास में चाणक्य का मुँह काला हो जाएगा। सभी कहेंगे- चाणक्य ने अजूबी के साथ अन्याय किया।’’
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महागुप्तचर ने पूछा- ‘‘महामहिम कब तक के लिए मैसूर-यात्रा के कार्यक्रम को पोस्ट्पोन कर रहे हैं?’’
उसी समय मौर्य देश के सेनापति ने आकर कहा- ‘‘मौर्य हाइकमान की जय हो! राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन के अध्यक्ष आपसे मिलना चाहते हैं।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘आने दो।’’ राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन के अध्यक्ष ने अन्दर आते हुए कहा- ‘‘चाणक्य की जय हो! हम सच बोलने वालों पर बहुत बड़ा संकट आने वाला है। आप ही हमें इस संकट से बचा सकते हैं।’’ चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘संकट? कैसा संकट?’’ राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन के अध्यक्ष ने बताया- ‘‘हम सच बोलने वाले एक अप्रैल को चाहे जितना सच बोलें, हमें झूठा ही समझा जाता है। कुछ ऐसा उपाय कीजिए- हमें हमेशा सच्चा ही समझा जाए।’’ चाणक्य ने सोचते हुए कहा- ‘‘ठीक है- एक अप्रैल को हम अजूबी से भेंट करने के लिए मैसूर जा रहे हैं। जो चाणक्य की इस बात को झूठ समझेगा, वह खुद महामूर्ख कहलाएगा। हमारे इस सत्य के कारण एक अप्रैल पर लगा दाग़ हमेशा के लिए मिट जाएगा!’’ चाणक्य की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र एण्ड युधिष्ठिर फ़ैन्स एसोसिऐशन का अध्यक्ष चाणक्य की जय जयकार करता हुआ वहाँ से चला गया। चाणक्य ने महागुप्तचर से कहा- ‘‘चलिए, बड़ा अच्छा हुआ- मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम पोस्ट्पोन हो गया, क्योंकि विद्योत्तमा ने अपने राजकीय राजपत्र में होली खेलने के नए नियमों की घोषणा की है। मौर्य देश के वैज्ञानिक विद्योत्तमा द्वारा जारी नियमों की जाँच-पड़ताल कर रहे हैं। जब तक वैज्ञानिकों की फ़ाइनल रिपोर्ट नहीं आ जाती, होली खेलना किसी हालत में बुद्धिमानी न होगी।’’ महागुप्तचर ने पूछा- ‘‘घोड़ों के खाने के लिए आई विदेशी घास का क्या किया जाए?’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘विदेशी घास की गर्म-गर्म पकौड़ी बनाकर मौर्य देश की ग़रीब जनता को मुफ़्त में बाँटा जाए। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की चारों ओर जय जयकार होगी।’’ महागुप्तचर ने चाणक्य के दिमाग़ का लोहा मान गया। चाणक्य के मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम एक अप्रैल तक स्थगित होने की सूचना जारी होते ही बाहर शोक संगीत बजने लगा और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ज़ोर-ज़ोर से अपनी छाती पीटने लगे। मैसूर से ब्रेन वाश शैम्पू का बहुत बड़ा आर्डर मिलने में विलम्ब जो हो रहा था!
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अर्धरात्रि के उपरान्त रात के सन्नाटे को चीरती हुई महागुप्तचर के रथ में लगे साइरन और घोड़ों के सरपट दौड़ने की मिश्रित आवाज़ सुनकर गहरी नींद में सोते हुए चाणक्य की नींद भंग हो गई। प्रतिक्षण निकट आती हुई आवाज़ सुनकर चाणक्य समझ गए कि महागुप्तचर उनसे ही मिलने आ रहे हैं। कुछ देर बाद महागुप्तचर ने अन्दर आते हुए कहा- ‘‘मौर्य हाइकमान चाणक्य की जय हो! अर्धरात्रि के उपरान्त आने के लिए क्षमा करें। हमारे गुप्तचर विभाग को एक अति आवश्यक सूचना प्राप्त हुई है। आपसे बताना बहुत ज़रूरी था। इसीलिए भागा-भागा आया हूँ।’’
चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘हुआ क्या? आपने हमारी नींद खराब कर दी।’’ महागुप्तचर ने कहा- ‘‘महामहिम, सूचना मालव देश से प्राप्त हुई है।’’ मालव देश का नाम सुनकर चाणक्य की नींद उड़नछू हो गई। चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से महागुप्तचर की ओर देखा। महागुप्तचर ने बताया- ‘‘आपके मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम स्थगित होने की अधिसूचना जारी होते ही विद्योत्तमा ने राज ज्योतिषी ज्वालामुखी के साथ एक आपातकालीन बैठक की और रात्रि बारह बजे के उपरान्त एक राजकीय विज्ञप्ति जारी की।’’ चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘क्या कहा गया है राजकीय विज्ञप्ति में?’’ महागुप्तचर ने बताया- ‘‘राजकीय विज्ञप्ति में कहा गया है- अजूबी मेरे लिए भूतपूर्व सेनापति और सहेली ही नहीं, मेरी छोटी बहन के समान है और मैसूर में रो-रोकर उसका बुरा हाल है।’’ चाणक्य ने कहा- ‘‘मतलब अजूबी के रोने का इल्ज़ाम विद्योत्तमा हम पर लगा रही है? हमने अजूबी को होली की शुभकामनाएँ समय पर भेज दी हैं, किन्तु आज तक अजूबी का कोई उत्तर नहीं आया। लगता है- बहुत नाराज़ चल रही है। यह अत्यधिक चिन्ताजनक बात है, क्योंकि हमने सिर्फ़ पचीस दिनों के लिए मैसूर-यात्रा का कार्यक्रम स्थगित किया है, रद्द नहीं किया।’’ महागुप्तचर ने आगे कहा- ''राहत के तौर पर महामन्त्री राजसूर्य ने आँसू पोछने के लिए एक लाख रूमाल से लदा रथ मैसूर भेजने की घोषणा की है।'' चाणक्य ने भड़ककर कहा- ''ख़बरदार जो अगर किसी ने बिना हमसे पूछे अजूबी को रूमाल भेजने की कोशिश की। रूमाल देखकर अजूबी और नाराज़ हो जाएगी।'' उसी समय मौर्य देश के सैनिक बड़े—बड़े जल—रथ लेकर साइरन बजाते हुए भागने लगे तो चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा— ''राजमहल में आग लग गई क्या?'' महागुप्तचर ने कहा— ''इस बारे में अभी तक हमारे पास कोई सूचना नहीं है, महामहिम। क्षमा करें।'' उसी समय मौर्य सेनापति ने अन्दर आते हुए कहा— ''महामहिम की जय हो! हमने मैसूर से प्राप्त अजूबी के एक गुप्त सन्देश को डिकोड करने में सफलता प्राप्त कर ली है। अजूबी ने अपने गुप्त संदेश में कहा है कि मैसूर के चर्च में लगी आग में वह फॅंस गई है। मौर्य महामन्त्री राजसूर्य के आदेशानुसार मौर्य देश के सैनिक आग बुझाने के लिए जल—रथ लेकर मैसूर रवाना हो रहे हैं।'' कहते हुए मौर्य सेनापति ने सोचा कि त्वरित कार्यवाही करने के लिए चाणक्य की शाबासी मिलेगी, किन्तु चाणक्य ने आगबबूला होते हुए कहा— ''कितनी बार कहा— बिना मुझसे पूछे अजूबी और विद्योत्तमा के मामले में टॉंग न फॅंसाइए। मगर आप लोग मानते ही नहीं।'' मौर्य सेनापति ने दॉंत निकालते हुए कहा— ''आप ही ने तो कहा था— आपातकालीन स्थिति में त्वरित कार्यवाही करने के बाद ही आपको सूचना दी जाए।'' चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा— ''आप लोग मूर्ख नहीं, महामूर्ख हैं। चर्च में आग नहीं लगी है। एक बार मैंने अजूबी से कहा था— चर्च में तुम बहुत किलिंग और डैशिंग लग रही थीं। उसी के जवाब में अजूबी ने गुप्त सन्देश भेजा है, जिसका मतलब है— तुमने किलिंग और डैशिंग कहकर मुझे प्रज्ज्वलित कर दिया है।'' महागुप्तचर और सेनापति मूर्खों की तरह अपना मुॅंह बनाने लगे।
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चाणक्य ने मुस्कुराते हुए रहस्योद्घाटन करते हुए कहा- 'हमें पता है- मालव देश के लिए कौन जासूसी कर रहा है और हमारी खबरें विद्योत्तमा और अजूबी तक कैसे पहुँचती हैं। महामंत्री राजसूर्य कुत्ता है। मुझे तो तभी से महामंत्री राजसूर्य पर शक होने लगा था जब वह राजमहल छोड़कर विद्योत्तमा, अजूबी और हमारे बीच होनेवाली बातें सुनने के लिए 'चाणक्य-निवास' में कुत्ते की तरह सूँघता फिरता था। उस समय तो मेरा शक़ और गहरा गया था जब महामंत्री राजसूर्य विद्योतमा के सम्मान में अपना राजमुकुट उतारकर बेशर्मों की तरह सिर झुकाकर खड़ा था। ऐसा करके महामंत्री राजसूर्य ने मौर्य देश के साथ गद्दारी है। महामंत्री राजसूर्य का सिर कलम करके मौर्य सम्राट के समक्ष पेश किया जाए।'
चाणक्य का आदेश सुनकर महागुप्तचर का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। उसी समय मालव देश से आए गुप्तचर ने आकर कहा- 'मौर्य महामहिम चाणक्य की जय हो! विद्योत्तमा ने अपने भेजे गए एक गुप्त सन्देश में कहा है- मालव देश के राजमहल के चौकीदार की पोस्ट खाली है। चाणक्य आने को बोले तो एक-दो हज़ार स्वर्णमुद्राएँ दे दूँगी महीने में।' मौका देखकर महागुप्तचर ने चाणक्य को विद्योत्तमा के खिलाफ भड़काते हुए कहा- 'यह तो आपका घोर अपमान है, महामहिम। विद्योत्तमा को सबक सिखाने के लिए हमें कुछ करना चाहिए।' चाणक्य ने कहा- 'ठीक है। सेनापति से कहो- युद्ध की तैयारी करे। हम मालव देश की ईंट से ईंट बजा देंगे।' महागुप्तचर खुश होकर चला गया। ×××××× मालव देश पर हमले की बात फैलते ही मालव देश में हड़कम्प मच गया, किन्तु विद्योत्तमा ने मुस्कुराते हुए कहा- 'बहुत दिनों से बोरियत लग रही थी। चाणक्य ने अपनी महाबुद्धि के प्रयोग से कितना मनोरंजक कार्यक्रम बनाया है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच दनादन ईंटे चलेंगे।' मैसूर महाराजा की सेनापति अजूबी को जब पता चला कि मनोरंजक युद्ध होने वाला है तो वह मैसूर महाराजा से अपने सिर के बालों में भयंकर दर्द का बहाना बनाकर छुट्टी लेकर मालव देश आ गई। विद्योत्तमा ने गर्व से बताया- 'लड़ाई के लिए पाँच लाख दफ्ती की ईंटे बनकर एकदम तैयार हैं। वजन के लिए हमने अन्दर मेवे का लड्डू भरा है।' अजूबी ने मुँह बनाकर कहा- 'कागज के ईंटों से लड़ने के लिए इतना खर्च करके दफ्ती का ईंटा बनवाने की क्या जरूरत थी? तुम देख लेना- मौर्य देश की सेनाएँ कागज की ईंट लेकर लड़ने के लिए आएँगी और अन्दर पंजीरी और बताशा भरा होगा।'
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चाणक्य के आदेश पर भिखारिन विद्यावती के भेष में आई मालव देश की महारानी विद्योत्तमा को मौर्य महल में ठहरा दिया गया। विद्यावती की कविताएँ सुनने के लिए चाणक्य, मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त, महागुप्तचर वक्रदृष्टि और महामंत्री राजसूर्य के साथ राजमहल के अन्य पदाधिकारी मौर्य महल पहुँच जाते और विद्यावती टूटी-फूटी संस्कृत में अपनी कविताएँ सुनाती। सेनापति प्रचण्ड एक सौ आठ तोपों के साथ मौर्य महल के बाहर मुस्तैदी से खड़े रहते, क्योंकि विद्यावती की हर कविता पर एक सौ आठ तोपों की सलामी देने का आदेश चाणक्य ने जारी किया था। यही नहीं, विद्यावती का उत्साहवर्धन करने के लिए हर कविता के बाद मधुर संगीत बजाकर नाच-गाना करने वाले कलाकार अन्दर तैयार खड़े रहते। जैसे ही विद्यावती अपनी कविता सुनाकर समाप्त करती, संगीतकार जोर-शोर से अपने-अपने वाद्य-यन्त्र बजाने लगते और कलाकार तरह-तरह के नृत्य करने लगते। विद्यावती की हर कविता पर विद्यावती को मौर्य देश की ओर से एक राजकीय सम्मान दिया जाता, क्योंकि चाणक्य को डर था कि अँग्रेज़ी साहित्य में साल में दस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान लाने वाली विद्यावती का मन सम्मान के बिना मौर्य देश में न लगा और वह मौर्य देश छोड़कर मालव देश वापस चली गई और मालवदेश में अँग्रेज़ी में कविताएँ सुनाने लग गई तो फिर विद्यावती का दर्शन करना टेढ़ी खीर होगा। विद्योत्तमा को दिए जाने वाले सम्मानों का नामकरण करने के लिए चाणक्य ने एक समिति गठित कर दी थी जिसका काम ही नए-नए सम्मानों का नाम खोजना था। देखते-देखते जब विद्यावती ने कविताएँ सुना-सुनाकर सारे सम्मान बटोर लिए और सम्मान का नामकरण करने में दिक्कत पेश आने लगी तो चाणक्य ने बीत गए और आने वाले तूफ़ानों के नाम पर सम्मान का नाम रखने का सुझाव दिया। देखते-देखते विद्यावती ने हुदहुद सम्मान, कैटरीना सम्मान करके सारे 'तूफ़ानी सम्मान' बटोर लिए तो तूफ़ानों के नाम भी कम पड़ने लगे, क्योंकि रोज़ एक नई कविता आ जाती थी, किन्तु तूफ़ान न आता था!!!
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विद्यावती की एक आदत बहुत ख़राब थी। मौर्य महल में रहते-रहते वह बिना किसी को बताए अचानक गायब हो जाती और कुछ दिन बाद फिर वापस आ जाती, किन्तु यह बात मौर्य देश में सिर्फ़ चाणक्य को पता थी कि विद्यावती गायब होकर मालव देश चली जाती है। महागुप्तचर वक्रदृष्टि की शक की सुई बहुत दिनों से विद्यावती की ओर लहरा रही थी और वह जब तब विद्यावती के शरीर को सूँघकर यह पता लगाने की कोशिश करता रहता कि विद्यावती कौन सा इत्र लगाती है, क्योंकि उसे पता था कि किस देश की महारानी कौन सा इत्र लगाती है। किन्तु विद्योत्तमा अति चतुर और नटखट थी। अपनी पहिचान छिपाने के लिए वह इत्र की जगह अपने शरीर पर गोबर मलकर नहाती और महागुप्तचर वक्रदृष्टि हर बार गोबर की खुशबू सूँघकर निराश हो जाता। अन्ततः चाणक्य को महागुप्तचर वक्रदृष्टि से कहना ही पड़ा- 'महागुप्तचर, विद्यावती चाणक्य की मेहमान है और चाणक्य की मेहमान की जासूसी करना कोई अच्छी बात नहीं।'
महागुप्तचर ने कहा- 'महामहिम की जान को कोई खतरा न हो, इसलिए जासूसी करनी पड़ती है। मुझे तो यह महिला किसी देश की जासूस लगती है!' चाणक्य ने पूछा- 'यह आप क्यों कह रहे हैं- विद्यावती से मेरी जान को खतरा है?' महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा- 'मेरा नाम वक्रदृष्टि है। बहुत ही वक्र दृष्टि है मेरी। मेरी नज़रों से कुछ छिप नहीं सकता। विद्यावती अपने पास हर समय एक खंजर रखती है और मौर्य देश के नियमानुसार बिना लाइसेन्स खंजर रखना ज़ुर्म है।' चाणक्य ने सफाई देते हुए कहा- 'खंजर तो वह अपना शरीर खुजलाने के लिए रखती है। आप बिल्कुल चिन्ता न करिए।' महागुप्तचर ने कहा- 'पहली बार सुन रहा हूँ। खंजर से कोई शरीर खुजलाता है क्या?' चाणक्य ने सफाई देते हुए कहा- 'मोटी खाल होगी, गैंडे जैसी। बेचारी कब तक नाखून से खुजलाएगी? खुजलाते-खुजलाते थक जाती होगी, इसीलिए खंजर रखने लगी होगी।' महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चिन्तित स्वर में कहा- 'फिर भी आपको सतर्क रहने की आवश्यकता है। वह अपने पास खंजर रखती है और आप बिना किसी सुरक्षा के अकेले मिलने चले जाते हैं।' चाणक्य ने कुपित स्वर में कहा- 'हुज्जत न करिए, महागुप्तचर। खतरा सिर्फ़ मेरी जान को है न? आज आदेश किए दे रहा हूँ। कान खोलकर सुन लीजिए- मौर्य देश में विद्यावती पर न तो किसी प्रकार का कोई मुकदमा चलाया जा सकता है और न ही उसे गिरफ्तार किया जा सकता है चाहे वह चाणक्य को ही न खंजर घोंप दे। समझे आप? जाइए, मौर्य देश के संविधान के सातवें भाग के छठवें अध्याय के सातवें अनुच्छेद, पृष्ठ संख्या अट्ठासी पर लिखे कानून की धारा नौ सौ पचीस में छियालिसवाँ संशोधन करके आइए और आते समय विद्यावती के नाम से तोप का लाइसेन्स बनाकर उसके साथ एक छोटी तोप लेकर आइए। अच्छा नहीं लगता- इतनी बड़ी कवियित्री के पास छोटी सी तोप भी न हो!' चाणक्य का आदेश सुनकर महागुप्तचर का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया और वह चाणक्य का आदेश रटता हुआ चला गया- 'मौर्य देश के संविधान के सातवें भाग के छठवें अध्याय के सातवें अनुच्छेद....'
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