22-01-2011, 03:36 PM | #31 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
आज लोग राजनीति मे क्यों जाना चाहते है? - सीधा सा जवाब मिलेगा पावर और पैसा। आज राजनीति के कैसे लोग है? - 99% असामाजिक तत्व और निकम्मे लोग(जिनसे कोई कार्य नहीं हो सकता है)। अब ऐसे लोग राजनीति मे रहेंगे तो आप खुद ही कलपना कर लीजिये कि क्या होगा? हमारे केन्द्रीय मंत्री मण्डल मे तीन-तीन अर्थशास्त्री है और देखिये देश का हाल क्या हो रहा है। देश कि अर्थव्यस्था हमारे दिये टैक्स के ऊपर चलती है - मगर सारा पैसा स्विस बैंक मे जमा हो रहा है। कृषि प्रधान देश मे जब कोई किसान आत्महत्या करता है तो वहा भी वोट बैंक कि ओछी राजनीति होती है। और भी लंबी लिस्ट है...... इसका सीधा सा कारण है - हम सोये हुये है। सोये हुये मे हमारे हाथ मे टीवी का रिमोट है - जिस पर 12 महीने क्रिकेट, सिनेमा, कॉमेडी शो, नृत्य और गीत का महसंग्राम, धमाकेदार सेरियल्स आदि है। चौक-चौराहो पर हालात के ऊपर हमारी लाजवाब धमाकेदार टिप्पणी है। घरेलू जिम्मेदारिया है। - ये सब हमे सोये से उठने नहीं दे रही है। अब इन परिस्थियों मे कसाब नाम का "छुछुंदर" अगर मुंबई पर हमला कर देता है तो क्या बिगड़ गया, जो मै सूत्र बनाकर यहा बखेड़ा खड़ा कर रहा हूँ। उन दिनो कम से तीन दिनो तक यह अमूमन सभी चैनलो पर "ब्रेकिंग न्यूज" के रूप मे मुझे सोये से उठने नहीं दिया। रिमोट नामक "जन्तु" को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। फिर भी आत्मा कुछ और "सनसनी" के लिए तरसती रही। अब भी हर दिन किसी ना किसी चैनल के लिए कसाब एक सनसनी बनकर चैनल कि टीआरपी बढ़ा रहा है - क्या उनका धंधा बंद करना ठीक होगा। कसाब कैसे उर्दू अनुवादक कि मांग करता है? कसाब कैसे कैमरे पर थूकता है? कसाब कैसे कोर्ट रूम जज के सामने हसता रहता है? आदि... आदि... इत्यादि.... ये सब चलता ही रहेगा और एक दिन..... एक और कांधार जैसा कोई कांड होगा और कसाब... हेहेहेहे समझ गए ना.... । फिर विपक्ष के लिए एक और मुद्दा.... सोचो इसके लिए हम कितने जिम्मेदार है? अरे अब तो नींद से जागो। Last edited by arvind; 22-01-2011 at 03:42 PM. |
22-01-2011, 04:08 PM | #32 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
@arvind और एक दिन..... एक और कांधार जैसा कोई कांड होगा और कसाब... हेहेहेहे समझ गए ना.... ।
फिर विपक्ष के लिए एक और मुद्दा.... और शायद इसीलिये कसाब को पाला जा रहा है । दुकानेँ दोनोँ की चलेँगी चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। या यूँ कहेँ कि हमारे नेतागण इतने दूरदर्शी हैँ कि आने वाली समस्या का निदान अपनी होशियारी से अभी से किये बैठे हैँ । कसाब जिन्दा रहेगा मुद्दे बने रहेँगे । आज भी और कल भी।
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22-01-2011, 04:18 PM | #33 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
@amit अभी हाल ही में अयोध्या पे फैसला हुआ उसके बाद कहीं कोई प्रतिक्रिया दिखी? इस पीढ़ी का यह सीधा सन्देश है की उसे मंदिर या मस्जिद नहीं कोलेज चाहिए, कंपनी चाहिए, प्रोफेशनल कोर्स चाहिए |
सहमत ।
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22-01-2011, 04:26 PM | #34 | |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
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22-01-2011, 06:11 PM | #35 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
पूर्णता सहमति के साथ कहना चाहूँगा ...की आज इस देश में शायद गांधी तो मिल जायेंगे ...पर उनके पीछे की वो हज़ारो की भीड़ नहीं !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
23-01-2011, 08:27 AM | #36 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
@amitफ्रेंच क्रांति में इन्हें बुर्जुआ वर्ग कहा गया और इस समय ये भारत में भी बन रहा है .......
और वो सनसनी की तलाश मेँ रिमोट नाम के जन्तु को पीट पीटकर अधमरा कर रहा है और तिस पर भी मन नहीँ भरा तो सूत्र बनाकर बखेड़ा खड़ा करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ रहा है । पता नहीँ सोये हुये को जगाने के लिये या ........ ?
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23-01-2011, 12:06 PM | #37 | |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
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और कार्य का अर्थ फोरम नहीं इससे बहुत वृहद् स्तर पर किये गए प्रयास हैं | |
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23-01-2011, 12:17 PM | #38 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
सभी सभ्रान्तों से मेरा एक छोटा सा अग्रिम अनुरोध है की चर्चा/वाद-विवाद को फोरम पर केन्द्रित ना होने दें, उससे हम गोल गोल चक्कर में घूमने लगेंगे और मैं मानसिक समागम में कुतर्कों से बचना चाहता हूँ |
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23-01-2011, 05:40 PM | #39 | |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
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मुझे व्यवसायिक होने में कोई बुराई नजर नहीं आती, ये तो अच्छा है की लोग इसे व्यवसाय के रूप में लें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ सकें/ व्यवसाय का सीधा और सरल मतलब है की आपको जिस कार्य के एवज में मूल्य मिल रहा है उसके प्रति आपकी ईमानदारी और समर्पण/ पर यहाँ तो जिसके हाथ में पॉवर है उसका बस एक ही कार्य और मकसद होता है/ अपने पॉवर का चाहे जैसे भी हो सही या गलत इस्तमाल करके कम से कम समय में अधिक से अधिक धन उपार्जन/ लोगों के दिमाग में बस एक ही बात है की देश का तो कुछ हो नहीं सकता कम से कम अपना तो भला कर लो/
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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25-01-2011, 09:38 AM | #40 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
जितने लोग, उतनी बात... परंतु विडम्बना यह है कि आज देश की लचर व्यवस्था ही है की कसाब जैसे आतंकवादियो के हौसले बुलंद है, वो सरकारी मेहमान बनकर करोड़ो खर्च करवा रहे है। हम न्याय-अन्याय, मानवाधिकार, संविधान, धारा, कोर्ट, वकील इत्यादि के चक्कर मे ही लगे हुये है। जबकि उस घटना के हजारो गवाह है। एक भुक्तभोगी लड़की, जो की 26/11 के हादसे मे अपना एक पैर गवा चुकी है, कोर्ट मे कसाब को पहचान भी चुकी है। फिर भी.... क्या संदेश जा रहा है देश के जनता के बीच और देश के दुश्मनों के बीच।
"छुछुंदर" खुले आम कह रहे है की हम तो तुम्हें ऐसे ही मारेंगे, देखते है तुम मेरा क्या बिगाड़ लेते हो। अब इस चर्चा को यही विराम देते है। हमारा अगला विषय है - क्या देश मे महंगाई सरकार प्रायोजित है या कोई और प्रकृतिक या कृत्रिम वजह। |
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