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Old 05-07-2011, 04:09 PM   #31
arvind
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

क्या कोई नॉन ग्रेजुएट व्यक्ति नासा का सदस्य हो सकता है। आप कहेंगे, असंभव। लेकिन, सच्चाई है कि नासा कि परामर्श कमेटी के एक सदस्य ऐसे भी रहे हैं, जो बीए पास नहीं थे। तब नासा का नाम नाका (नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एरोनाटिक्स ) था। उनका नाम ओरविल राइट था। उनके भाई विलबर राइट थे। दोनों ग्रेजुएट नहीं थे। साइकिल मिस्त्री थे। पक्षियों की तरह उड़ना मानव जाति कि सबसे पुरानी इच्छा रहा था, जिसे दोनों ने पूरा किया। पहला मोटरयुक्त वायुयान बनाया। दोनों गरीबी में पले थे। पिता पादरी थे। मां के असमय मौत के बाद दीदी ने देखभाल की। वे बराबर हवाई जहाज बनाने के सपने बुना करते। लोग मज़ाक उड़ाते। दोनों ने ग्लाइडर इन्स्टीच्यूट से संपर्क किया और कई ग्लाइडर बनाये। अंततः 1903 में उन्होने पहली बार मोटरयुक्त वायुयान उड़ा कर दुनिया के सबसे पुराने सपने को पूरा कर दिया। अमेरिकी सरकार ने एक संगठन को तब 50 हजार डॉलर प्रयोग के लिए दिये थे, पर उसके वैज्ञानिक असफल रहे। राइट ब्रदर्स के पास धन भी नहीं था, पर उनके पास संकल्पशक्ति थी। कुछ नया करने का जोश था। आज ऐसे युवा भी हैं, जो अपनी किस्मत को कोसने मे समय जाया करते हैं। कहेंगे कि उन्हे उनके माँ - बाप ने नहीं पढ़ाया। वे भौतिक सुखों को पाना चाहते हैं, पर हमेशा अतीत में जीते हैं । यह विरोधाभास उन्हे निराशा में ले जाता है। अवसाद घेरने लगता है। ऐसे युवा – युवती राइट ब्रदर्स से बहुत कुछ सीख सकते हैं। मानव जीवन बहुत कीमती हैं इसे निराशा में न जलाएं। जलाएं नये सपनों के दिये, जिससे प्रकाशित होगी दुनिया।
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Old 05-07-2011, 04:16 PM   #32
arvind
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

डिप्रेशन मनोवैज्ञानिक ‘ब्लैक होल ‘ कि तरह है, जिसमें इसका शिकार युवा अपनी खुशियां उड़ेलता जाता है, लेकिन बदले मे उदासी के सिवा कुछ नहीं मिलता। कपड़ों, नयी बाइक के लिए कई युवा घर में जिद करते हैं, नहीं मिलने पर अवसाद के शिकार हो जाते हैं। कई बार वे आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं। ऐसे युवा क्लोनिंग के जनक मारियो कपेकी के बारे में जरूर जानें। जन्म से पहले मां – पिता में अलगाव हो चुका था। मां फासिस्ट विरोधी राजनीतिक कार्यो के कारण जेल चली गयीं। बचपन फुटपाथ पर आवारा बच्चों के साथ बीता। भूख लगने पर होटलों से खाना चुराने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। अनाथालय में रहें। कुपोषण के कारण मरने – मरने को थे कि किसी ने अस्पताल पहुंचा दिया। नौ साल कि उम्र में अमेरिका पहुंचे। तब तक अक्षर ज्ञान नहीं था। यहां पढ़ाई सुरू हुई। कॉलेज में वे सोचने लगे कि "मैं समाज को क्या दे सकता हूं" पहले राजनीति विज्ञान, फिर केमेस्ट्री व फिजिक्स पढ़ा। उन्हे लगा, वे सौ साल पुरानी बाते पढ़ रहे हैं। तब बायलोजी कि तरफ मुड़े। लंबे शोध के बाद वे जिन कोशिकाओं में मनमाफिक बदलाव करने में सफल रहे। मानव में होने वाली बीमारियों से ग्रसित सैकड़ो चूहे विकसित किये गये हैं। इनमें न्यूरो रोग से पीड़ित चूहे भी हैं। अब लाइलाज बीमारियों का इलाज संभव होगा। उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। अपनी गरीबी को कभी डिप्रेशन का कारण नहीं बनने दें। दिन भर में आधी रोटी खाकर व एक कप चाय पीकर नोबेल पानेवाले कपेकी कहते हैं, कोई कमजोर नहीं होता। बस खुद को आगे बढ़ाएं।
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Old 05-07-2011, 04:21 PM   #33
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

मिस्टर बिन का चेहरा देखते ही दुनिया भर के बच्चे हंस पड़ते हैं। बड़े भी मुस्कुराये बिना नहीं रह पाते। स्कूल कॉलेज में भी उन्हें देख कर लोग हंस पड़ते थे, लेकिन तब लोगों कि हंसी, हंसी उड़ाने के लिए होती थी। स्कूल में उन्हें सभी बेवकूफ समझते। मास्टर कहते, बंद करो अपनी मूर्खता। मां – पिता, भइब- बहनों व दोस्तों की हमेसा घुड़की सुनते, लेकिन वे कभी कान नहीं देते। उनका असली नाम रोवान एटकिसन है। स्कूल में वे बहुत साधारण छात्र थे। मास्टर पढ़ाते और वे अपनी दुनिया में में खोये रहते। अचानक मास्टर पढ़ाई के बारे में पूछ बैठते। रोवान जवाब नहीं दे पाते। उनका चेहरा देख कर पूरा क्लास हंस पड़ता। दोस्त उन्हे एलियन कहते। अजीब हरकतों करनेवाला। वे बहुत भोले थे। कोई कहता की तुम्हारी पीठ पर चूना लगा है, तो वे कपड़े उतार कर साफ करते। फिर आईने के सामने जा देखते। उनके साथ ऐसी घटनाएं दिन में दस- दस बार होतीं। ऑक्सफोर्ड में भी वे मजाक के पात्र थे। यहां उनके एक दोस्त ने थियेटर ज्वाइन करने की सलाह दी। उन्होने एक्टिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी, पर शानदार एक्टिंग की। यह उनका स्वाभाविक गुण था। फिर तो उन्हें फिल्में मिलने लगीं। फिल्म के कारण ही उनका नाम मिस्टर बिन पड़ा। आज उनके प्रशंसकों की संख्या लाखों में है। उनके नाम पर कई देशों में क्लब है। आजकल कई परीक्षाओं के रिजल्ट आ रहे हैं। रिजल्ट खराब होने पर कोई मजाक उड़ाये, तो आप निराश न हों। किसी पर नाराज न हों। आपमें भी बहुत क्षमता है। अभी आपने अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल ही नहीं किया है। मेहनत करें, आप भी सफल होंगे।
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Old 07-07-2011, 04:35 PM   #34
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

हम अपने आसपास देखते हैं कि किसी को कम नंबर आया या किसी को मनचाहा रोजगार न मिला, तो लोग मदद करने के बजाय कमेंट करने लगते हैं। एक असफलता पर फालतू, निकम्मा व न जाने क्या – क्या कह देते हैं। क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे चर्चित कार्टून कैरेक्टर मिकी माउस फालतू कागज पर ही बना था। जिन्हे बेकार कहा गया, वे खुद को कदापि बेकार न समझें। वाल्टर डिज्नी को बार – बार ये शब्द सुनने को मिले, लेकिन उन्होने कभी खुद को बेकार नहीं समझा। पढ़ाई में मन नहीं लगता था। स्कूल छोड़ दिया। अखबार बेचे। सेना में जाने कि कोशिश की, पर उम्र कम होने के कारण भर्ती नहीं हो सके। एक साल तक एंबुलेंस चलाया। इस बीच वे कार्टून बनाया करते। आर्ट प्रतियोगिता जीती व स्कोलरशिप पाया। फिल्म-एनीमेशन कंपनी न्यूमैन लाफ बनायी, पर यह फेल हो गयी। हॉलीवुड में लंबा संघर्ष किया। यहां उन्होने नया कैरेक्टर बनाया। इसकी सैकड़ों कड़ियां बनायीं, पर उनके अपने फाइनेंसर ने ही उनके साथ धोखा किया। कैरेक्टर का अधिकार चुरा लिया। सारे एनिमेटर्स भी ले लिये। डिज्नी महज एक सूटकेस लेकर हॉलीवुड गये थे। एक सूटकेस लेकर ही हॉलीवुड से लौट रहे थे। ट्रेन में रद्दी कागज उठा कर यो ही रेखाएं खींचने लगे। अचानक वह आकृति बन गयी, उसका नाम मिकी माउस रखा। इसके बाद फिर से उनके सितारे चमक उठे। आज उनके 10 करोड़ फेसबुक समर्थक हैं। उन्हें अमेरिका का सर्वोच्च सम्मान मिला। उन पर ऑस्कर व अन्य पुरस्कारों कि बारिश हुई। आप भी कभी उदास न हो। बस प्रयास जारी रखें। आपके भीतर का भी हीरा भी एक दिन चमक उठेगा।
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Old 07-07-2011, 04:41 PM   #35
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

यह जान कर बहुतों को आश्चर्य होगा की दुनियाँ के सबसे तेज धावक यूसेन बोल्ट को 2012 ओलिंपिक में देखने के लिए दस लाख लोगों ने आवेदन दिया है। सबको टिकट चाहिए। सबको टिकट दिये जाएं, तो स्टेडियम को 25 बार बुक करना पड़ेगा। उनकी लोकप्रियता उस समय चरम पर पहुंची, जब उन्होने बिंजिंग ओलिंपिक में 90 हजार दर्शकों को चमत्कृत करते हुए आठ दिनों में तीन वर्ल्ड रेकॉर्ड तोड़ दिये। सौ, दो सौ व चार गुना सौ मीटर में गोल्ड मेडल लिये। उन्हे एक बादल से दूसरे बादल तक पहुंचनेवाली बिजली कहा जाता है। क्या बोल्ट कभी फेल नहीं हुए। कई बार फेल हुए। 2004 ओलिंपिक में वे पहले राउंड में ही बाहर हो गये। 2005 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में वे आठवे नंबर पर रहे। सबसे पीछे। फिसड्डी। इसके बाद क्या वे निराशा में डूब गये। क्या हार मान ली? नहीं, हार नहीं मानी। गलतियों को सुधारा व तीन साल बाद फिसड्डी से फास्टेस्ट बन गये। किसी परीक्षा में सबसे पीछे रह जाना भी न अपराध है और न पाप। इसका मतलब यह नहीं कि आज जो पीछे है, वह हमेशा पीछे ही रहेगा। विज्ञान के अनुसार हर चीज गतिमान है। हमारे भीतर कि ऊर्जा भी। बस इसे सही दिशा देनी हैं। खुद के प्रति ईमानदार हो व संकल्प लें कि अपनी गलतियों को सुधारेंगे। दुखी होणे व गलत कदम उठाने के बजाय उन कारणो को दूर करें, तो आप भी सबसे अलग अपना मुकाम बना सकते हैं। इसमें आपका लाभ तो है ही, निराशा मे जी रहे दूसरे लोगो का भी भला है। आप दूसरे निराश लोगों को अपनी कहानी बता कर उन्हे प्रेरित कर सकेंगे।
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Old 07-07-2011, 04:47 PM   #36
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जीवन कि छोटी–छोटी परेशानियों से परेशान–हाल यूवा बार–बार सोचता है कि उसके जितना दुखी कोई नहीं हैं। इस दुष्चक्र से वह कभी निकल नहीं पायेगा। वह निराशा कि पटरी पर जितना दौड़ता है, अंधेरा और घना होता जाता है। ऐसे युवा अपने आसपास देखें, तो पायेंगे कि दूसरों के दुख या उलझन उनसे बड़े हैं। विश्वास न हो, तो हैरी पॉटर कि लेखिका जेके रोलिंग से पूछ लीजिए। रोलिंग, जिन्हे लोग जो कहते हैं, कि जीवन में थोड़ा–सा झांकते ही आपकी आंखे फटी रह जायेंगी। आपके दुख से हजार गुना अधिक दुख, पर जिनके दिमाग मे आत्महत्या कि बात कभी नहीं आयी। पति से तलाक के बाद बेटी जेसिका के साथ इंगलैंड आयी। उसके भीतर लेखन व बेटी की देखभाल को लेकर भरी द्वंद चलता। आमतौर से उसके पास कागज खरीदने को पैसे नहीं होते थे। वह दिन भर कैफे में बैठती। बेटी सो जाती,तो फेकें हुए नैपकिनों पर लिखतीं। कई बार कलम नहीं होती। वह ग्राहकों से पेन मांग कर लिखना जारी रखती। लिखने के बाद उसे छ्पाना आसान काम नहीं था। कई पब्लिशरों ने हैरी पॉटर को छापने से इनकार कर दिया, पर जब किताब छपी, तो दुनिया में छा गयी। 60 भाषाओं में 32 करोड़ प्रतियां बिक चुकी। सात में से पांच पर फिल्में बन चुकी हैं। दो दर्जन से अधिक पुरस्कार मिलें। 2007 में वह एंटरटेनमेंट की दुनिया की मलिका बन गयी। दुनिया की दूसरी सबसे अमीर। करीब 30 अरब रुपयों की मालकिन। हमारे पास एक ही हथियार है – प्रेम पर आधारित है। दुखों–उलझनों को चीर कर आप भी आगे निकालें। एक नयी दुनिया आपके सामने होगी।
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Old 07-07-2011, 04:53 PM   #37
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अर्जेंटीनी फुटबॉल खिलाड़ी मेसी ने कुछ दिनो पहले ही बार्सिलोना को फिर यूरोप का ताज पहनाया। उन्हे इस साल वेतन के रूप में लगभग 200 करोड़ रुपये मिलेंगे। क्रिकेट में भले ही शतकों की संख्या गिनने का चलन ज्यादा हो, पर फुटबॉल में महान होने का दर्जा जादुई गोल ही दिलाते हैं| 1986 में मैराडोना के वंडर गोल के बाद उनसे पूछा गया था – आप किस ग्रह से आये हैं? 21 साल बाद स्पेनिश कप के दौरान यही सवाल मेसी से भी पूछा गया| उनके माँ बाप सफाई कर्मी थे| मेसी बचपन में ठिगने थे | डॉक्टरों ने कह दिया कि वे चार फुट सात इंच से ज्यादा लंबे नहीं हो सकते| इलाज के लिए हर महीने 40 हजार रुपये चाहिए| मेसी ने हार नहीं मानी| बारसिलोना के अधिकारी से बात की| अधिकारी ने उनका खेल देखा व इलाज का सारा खर्चा देने को तैयार हो गये। मेसी रोज दोनों पैरों में इंजेक्शन लेते| चार साल तक| उन्होने खुद पर कभी निराशा को हावी नहीं होने दिया| वहीं, निराशा में डूबे कई युवाओं की चिंतन–प्रक्रिया एकांगी हो जाती है| वे सोचते हैं, उनमें दुख से लड़ने की क्षमता नहीं बची हैं, जबकि सच्चाई यह होती है कि उन्होने खुद को अब तक ठीक से पहचाना ही नहीं| बस अपने दुख को ही पहचाना है| एक पुरानी कहावत है – दुख बांटने से घटता है| अगर निराश युवा अपना उलझन छिपाने के बजाय मेसी कि तरह डॉक्टर से मिलें या दोस्तों से बात करें, तो वे पायेंगे कि उनके सामने आगे बढ़ने के कई रास्ते हैं| अपार शक्ति है| सुंदर संभावनाएं हैं|
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Old 07-07-2011, 05:18 PM   #38
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E= mc2 से साइंस का हर छात्र परिचित है, पर ऐसे छात्र भी कम नंबर आने, पारिवारिक या किसी अन्य कारण से निराशा में डूबने–उतराने लगते हैं, तो आश्चर्य होता है। किसी युवा के आगे बढ़ने के उतने ही चांस हैं, जितनी आइंस्टीन के सापेक्षता के इस सिद्धांत में अपार संभावनाएं हैं। इसमें इ एनर्जी, एम मास व सी प्रकाश का आवेग है। अगर अपने सपनों को एम मानें व इसे प्रकाश के आवेग से दौड़ाएँ, तो जो एनर्जी मिलेगी, उसकी कल्पना भी अकल्पनीय होगी। आप हजार–लाख साल आगे होंगे। निराशा में आत्मघाती बातें सोचनेवाले अपने भीतर की इस रहस्यमयी व सतरंगी ताकत को समझने, उसे जमाने के सामने लाने और पूरी दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने की रोचक यात्रा से खुद को वंचित कर लेते हैं । कार निर्माण की दुनिया में मास प्रॉडक्शन के विचार को व्यवहार में उतार कर फोर्ड ने अपने विचारो को बस थोड़ा ही आवेग दिया था, लेकिन एनर्जी का जो रूप सामने आया, वह सबके सामने है। वे किसान परिवार में जनमे, एक कंपनी में अप्रेंटिशशिप की और कार बनाने का सोचने लगे। दो कंपनियां बनायीं, पर फेल हो गयीं। फिर हल्की, मजबूत व आसानी से रिपेयर हो सकनेवाली कार बनाते ही कमाल हो गया। मांग की तुलना में वे कार नहीं बना पा रहे थे। फिर उन्होने दुनिया को पहली बार असेंबली लाइन से परिचित कराया। उन्हें फादर ऑफ असेंबली लाइन कहा जाता है। इसे बिहार से अधिक झारखंड व पशिचम बंगाल के लोग अच्छी तरह जानते हैं। इसके बाद क्रांति हो गयी। केवल 22 साल बाद वे रोज 25 हजार कारें बनाने लगे। 1940 से 1960 के बीच उनकी एसेंबली लाइन के कांसेप्ट ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी। आपके भीतर भी छोटा फोर्ड हो सकता है।
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Old 07-07-2011, 05:24 PM   #39
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दुनिया के बड़े नेताओं में अब्राहम लिंकन जितना दुख शायद ही किसी ने झेला हो। बचपन में ही पहले भाई, फिर माँ का देहांत। चाची ने पाला। फिर वे भी महामारी की शिकार हो गयीं। बाद में बहन की मौत। खुद उनके चार बच्चों में केवल एक युवा हो पाया। इतनी मौत देखने के बाद किसी पर कैसा असर होगा, समझा जा सकता है। वे उदास रहते थे। कई बार नदी के किनारे अकेले बैठे रहते। उन्होने कई कविताएं ऐसी लिखीं, जिसमें घोर उदासी दिखती है। ऐसी ही एक कविता को कई इतिहासकार सूसाइडल नोट करार देते हैं। कई बार उनके दोस्त रात में साथ सोते की कहीं वे आत्महत्या न कर लें। इतने दुखी लिंकन आखिर अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रपति कैसे बन गये। पूरे अमेरिका को कैसे एक सूत्र में बांधा । गुलामों की मुक्ति के नायक कैसे बने। और सबसे बढ़ कर दुनिया में जीने के अधिकार, स्वतंत्रता व भाईचारे के झंडाबरदार कैसे बने। लिंकन ने अपने दुखो का मुकाबला सामाजिक जिम्मेवारियों के लिए खुद को समर्पित करके किया। हमेशा काम की पूजा की। राष्ट्र की चुनौतियों के मुकाबले के लिए खुद को तैयार किया। जब एक तरफ करोड़ों राष्ट्रवासियों के जीवन में खुशियां भरने का सवाल हो, तो अपना बड़ा–से–बड़ा दुख भी पंख के समान लगेगा। आप युवा हैं और अपने दुखों से परेशान हैं, तो एक बार अपने समाज या राष्ट्र की चिंता करके देखें। आपका पहाड़–सा दुख क्षण भर में राई–सा हल्का लगने लगेगा। लिंकन की तरह समाज के दुखों का खात्मा करने के लिए कदम बढ़ाइए। आपकी उदासी छू–मंतर हो जायेगी ।
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Old 07-07-2011, 05:33 PM   #40
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

वालमार्ट के संस्थापक सैम वाल्टन। दुनियां के सबसे बड़े खुदरा विक्रेता। आज बाजार में डिस्काउंट व ऑफर की धूम है। दो शर्ट लेने पर एक फ्री। बड़े–बड़े मॉल खुल रहे हैं। 66 साल पहले इसकी शुरुआत अमेरिकी वाल्टन ने ही की थी। उनकी दुकाने डिस्काउंट सिटी कहलाती थीं। वे दुनिया के सबसे अमीर लोगों मे एक थे। आज भारत सहित 15 देशों में वालमार्ट चेन के 8500 स्टोर हैं। वाल्टन का सपना 2015 तक भारत के कुल खुदरा व्यापार की 35 फीसदी पर कब्जे का था। कहते थे, खुदरा व्यापार में आप उतना पाते हैं, जितना आपने सोचा नहीं था। बस आपमे ग्राहकों की बात सुनने व उनकी जरूरतों को समझने की सलाहियत होनी चाहिए। कर्मचारी नियुक्ति का उनका सिद्धांत था कि ऐसे कर्मचारी को नौकरी दो, जिसमे तुम्हें मालिक की गद्दी से बेदखल करने की क्षमता हो। उनका जन्म 1918 में तब हुआ, जब आर्थिक मंदी का दौर था। उनका परिवार एक शहर से दूसरे शहर में रोजी–रोटी के लिए भटकता। वाल्टन गाय दुहते। घर–घर दूध पहुंचाते। कई साल अखबार बेचें। पढ़ाई में साधारण थे। उन्हे कई लोग बेकार समझते। ‘जीरो’ कहते। वही ‘जीरो’, हीरो बन गये। जीरो यानी शून्य के बारे में ऋषियों–मुनियों ने काफी कुछ कहा है। बौद्ध धर्म में शून्यता की चर्चा है। शून्यता का मतलब ‘कुछ नहीं’ नहीं होता। शून्यता का मतलब सीमाहीन होने से है। आप 1000, 10,000 कुछ भी कहें, वह सीमित है, पर शून्यता असीमित। इसीलिए खुद को ‘जीरो’ मान कर कभी निराश न हो। हताशा में गलत राह पर न जायें। आपमें अपार क्षमता है।वाल्टन से भी अधिक।
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