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Old 24-09-2011, 06:33 PM   #31
Gaurav Soni
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Default Re: हिंदी का पहला उपन्यास

इस समय मुहल्*ले और बिरादरी की लौडियें दो घड़ी को इसके पास आ बैठा करे थीं। किसी को मोजे बुनना बतलाती, और किसी को लिखना-पढ़ना सिखलाती और आप भी अपना काम किये जाती।
जब कभी इस काम से मन उछटता तो अपनी पोथी में से सहेलियों और भनेलियों को कहानियॉं सुना-सुना कर कभी रुलाती और कभी हँसाती। और जब कभी ज्ञान-चर्चा छेड़ देती तो भगवत गीता के श्*लोक पढ़-पढ़ कर ऐसे सुन्*दर अर्थ करती कि सुनकर सब मोहित और चकित हो जातीं और जिस दिन एकादशी, जन्*माष्*टमी, रामनौमी वा और कोई तिथि-पर्वी होती और सीना पिरोना न होता तो उस दिन तुलसीदास और सूरदास के भजन गाती और विष्*णुपद सुनाती कि सब प्रसन्*न हो जातीं।
रात को जब सब व्*यालू कर चुकते यह अपने चौबारे में चली जाती और रात को दस बजे तक जहॉं-तहॉं की बातचीत करके हँसती और बोलती रहती।
सुखदेई के भानजे का बिवाह यहॉं मारवाड़े में हुआ था। हापुड़ से अपनी बहु को लेने आया। अगले दिन लाला सर्वसुख से दूकान पर मिलने गया। राजी खुशी कह के बोला कि मामी ने अपनी भावज को यह चिट्ठी दी है, घर पहुँचा देना।
लाला ने नौकर के हाथ घर चिट्ठी भेज दी। छोटेलाल की बहु ने पहले आप पढ़ी फिर सास को पढ़कर इस तरह सुना दी-

स्*वस्ति श्री सर्वोपमायोग्*य बहु आनंदीजी यहॉं से सुखदेई की राम राम बॉंचना। यहॉं क्षेम-कुशल है। तुम्*हारी क्षेम-कुशल सदा भली चाहिए। बहुत दिन हुए कि तुम्*हारी एक चिट्ठी आई थी। मैंने तो उसका जवाब लिख दिया था। फिर तुमने कोई चिट्ठी नहीं लिखी। यद्यपि वहॉं के आने-जाने वालों से राजी-खुशी की खबर मिलती रही तथापि चिट्ठी के आने से आधा मिलाप है। अब तो मुझे आये बहुत दिन हुए। तुम से मिलने को जी चाहे है। सो मॉं से कहना कि मुझे दो-चार महीने को बुला ले। यहॉं से मेरा जी उछट रहा है। लालाजी से मॉं पूछ देगी जो मेरी नथ बन गयी हो तो ज्ञानचंद मेरे भानजे के हाथ भेज देना और भाई की भोज प्रबंध की पोथी जो तुम्*हारे पास है थोड़े दिन के लिए भेज देना। जब मैं आऊँगी लेती आऊँगी। अब तो यहॉं भी एक लौंडियों का मदर्सा हो गया है। हमारी मिसरानी से हमारी पालागन कह देना और सब सहेलियों और भनेलियों से राम-राम कहना। चिट्ठी का जवाब जरूर-जरूर लिख भेजना। थोड़े लिखे को बहुत जानना। चिट्ठी लिखी मिती मार्गसिर बदी 1 सम्*बत् 1925
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है।
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जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे
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Old 24-09-2011, 06:33 PM   #32
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सुखदेई की मॉं ने चिट्ठी सुनके कहा कि कल पॉंच सेर आटे के लड्डू कर लीजो। लौंडिया को कोथली भेजनी है और जो मैं कहूँ चिट्ठी में लिख दीजो सो सुखदेई को यह चिट्ठी लिखी गयी- स्*वस्ति श्री सर्वोपमायोग्*य बीबी सुखदेई जी यहॉं से आनन्*दी की राम-राम बॉंचना। चिट्ठी तुम्*हारी आई। समाचार लिखे सो जाने। तुम्*हारी मॉं जी ने लालाजी से तुम्*हारे बुलाने वास्*ते कहा था। सो उन्*होंने कहा है कि माघ के महीने में हम बाग की प्रतिष्*ठा करेंगे। तब लौंडिया सुखदेई को भी बुलावेंगे और मेरे सामने जेठ जी से कह दिया है कि भाई तु ही लौंडिया को जाके ले अइयो। और वह बाग लाला जी ने दिल्*ली के रास्*ते में लगाया है। उसमें कुऑं तो बन गया है, शिवाला बन रहा है। जिस सुनार को तुम्*हारी नथ बनने को दी थी, वह सोना लेके भाग गया। लाला जी कहें थे, दूसरे सुनार से और बनवा करके भेज देंगे। तुम्*हारी भनेली रामदेई मेरे पास रोज-रोज फुलकारी सीखने आया करे थी। बेचारी बड़ी गरीब थी। तुम्*हें नित याद कर ले थी। जिठानी जी के स्*वभाव को तुम जानो ही हो, एक दिन बेबास्*ते उससे लड़ पड़ी। तीन दिन से वह नहीं आई। दो घड़ी जी बहला रहे था सो यह भी न देख सकीं। फुलकारी का ओन्*ना जो मैं तुम्*हारे लिए अपने पीहर से लायी थी, भोज प्रबन्*ध की पोथी, पॉंच सेर लड्डू और आठ आने नकद तुम्*हारे भानजे के हाथ तुम्*हें भेजे हैं। रसीद भेज देना। तुम्*हारी मॉं ने तुम्*हें राम-राम कही है। मेरी राम-राम अपनी सासू और भनेलियों से कह देना। चिट्ठी लिखी मिति मार्गसिर सुदि 2 सम्*वत 1925
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Old 24-09-2011, 06:34 PM   #33
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यह चिट्ठी और चिट्ठी में लिखी हुई चीजें सुखदेई के भानजे के हाथ भेजी गयीं और जबानी भी कहलावत गई कि लाला बंसीधर से कह देना कि माघ के महीने में लौंडिया को लेने बहल आवेगी। ऐसा न हो कि उलटी फिरी आवे। एक चिट्ठी लिख भेजें। यहॉं दौलत राम की बहु बड़ी भोर उठके गौ की धार काढ़ती। गोबर पाथती। न्*हाती न धोती। चर्खा लेकर बैठ जाती और कभी-कभी दाल दलती नाज फटकती आटा छानती। दस-दस और बीस-बीस मन नाज दूकान से इखट्ठा आ जाय था। उसे अकेली बोरियों और कट्टों में भर देती। काम तो बहुतेरा करे थी। पर वैर-विषवाद बहुत रक्*खे थी।

और यह सास ने दोनों देवरानी जेठानियों को जैसा जिस जोग देखा काम बॉंट दिया था। पीसना-खोटना, चर्खापूनी ऐसी मेहनत के काम देवरानी से नहीं हो सके थे, इसलिये कि उसने बाप के घर किये नहीं थे। परंतु वह उससे दसगुने अच्*छे काम कलाबत्*तू और गोटा-किनारी के जाने थी। पीसने-खोटने में क्*या रक्*खा है। घड़ी भर पीसा, दो पैसा का हुआ। वह आठ आने रोज का कढ़ावट का काम कर ले थी।
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है।
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Old 24-09-2011, 06:34 PM   #34
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जेठानी रोटी खा के फिर चर्खा ले बैठती। इस जैसी इसकी भी दो एक भनेलियॉं थीं। सो कोई न कोई इसके पास आ बैठी करे थी। यह उससे देवरानी का ही झींकना झींकती। सासू का खोट बतलाती कि मेरी सास बड़ी दोजगन है। छोटी बहु को जो कोई आधी बात कहे है तो लड़ने को उठे है। ससुर जी से मेरी रात दिन कटनी करे है। यों कहे है यह तो कच्*ची रोटी करे है। बहिन जिस पै जैसी आती होगी वैसी करेगी। और यह मेरी देवरानी बड़ी खोट और चुपचोट्टी है। मेरा देवर सत्*तर चीजें लावे है। दोनों खसम-जोरू खावे हैं। किसी को एक चीज़ नहीं दिखलाते। छडियों के मेले के दिन जरा सा मूँग का दाना मेरे बास्*ते लेके आई थी, सो मैंने तो फेर दिया। हमें तो जैसा मिल गया खा लिया। मेरी देवरानी छटॉंक भर पक्*का घी दाल में डाल के खावे है। इस प्रकार से नित चुगली करती और अपनी देवरानी को सुना-सुना चर्खा कातती जाती, ताने-मेहने और बोली-ठोली मारती जाती कि ले पीसे कोई और खावे कोई। कोई ऐसी लुगाई भी होती होगी और पीसना नहीं जानती होगी? यों कहो मेहनत नहीं होती।
देवरानी चुपकी सुना करती। कभी कुछ न कहती। एक दिन उसने इतना कहा था कि जेठानी जी, तुम्*हारा कैसा स्*वभाव है बाहर की लुगाइयों के सामने तो बोली-ठाली की बात मत कहा करो। इसमें घर की बदनामी है।
उसके पीछे ऐसी पॉंच पत्*थर लेकर पड़ी कि उसे पीछा छुड़ाना दुर्लभ हो गया।
और बोली अब चल तो तेरी जेठानी है उससे कह। छोटा मुँह और बड़ी बातें। आप मेरी बड़ी बनके बैठी है और जो कुछ मुँह में आया कहती रहीं।
वह बेचारी चुपकी होके चली आई।
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Old 24-09-2011, 06:34 PM   #35
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सास ने कहा अरी तू उससे क्*यों बोली थी?
उसने कहा अयजी, मैंने तो उसके भले की बात कही थी।
सास ने कहा मैं क्*या कहूँ? हमारी वह कहावत है कि अपना मरण जगत की हांसी।
दौलत राम की बहु जहॉं तक होता अपने मालिक से रात को नित्*यप्रति सास और देवरानी की बुराई करती। तुम जानो, आदमी ही तो है और बेपढ़ा। रोज-रोज के सिखलाने और बहकाने से दौलतराम भी अपनी बहु की हिमायत करने लगा और मॉं से लड़ने लगा।
जब उसकी मॉं ने यह हाल देखा तो एक दिन उसके बाप से कहा और यह सलाह दी कि दौलत राम को जुदा कर दो। और मैं तो छोटी बहु में रहूँगी। तुम्*हारी तुम जानो।
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Old 24-09-2011, 06:34 PM   #36
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ऊँच-नीच सोच के बड़ी देर में यह जवाब दिया कि अच्*छा तो मैं बड़ी बहु में रोटी खा लिया करूंगा। अपना सिर पकड़ कर बैठ गया और कहने लगा कि बिरादरी के लोग हॅसेंगे और ठट्ठे मारेंगे कि फलाने के घर लुगाइयों में लड़ाई हुई थी तो उसने अपने बड़े बेटे को जुदा कर दिया। देखो यह कैसी बहु आई इसने हमारी बात में बट्टा लगाया और घर तीन तेरह कर दिया।

घरवाली बोली अजी जब अपना ही पैसा खोटा हो परखन वाले को क्*या दोष है? जग तो आरसी है जैसा लोग देखेंगे वैसा कहेंगे।

सामने का दालान दौलत राम को दे दिया और सब तरह से जुदा-जोखा कर दिया। जो कोई चीज दुकान से आती दोनों घर आधी-आधी बट जाती।

जब यह खबर गुड़गॉंवें पहुँची कि लाला सर्वसुख के यहॉं औरतों में लड़ाई रहे थी सो उन्*होंने अपने बेटों को जुदा कर दिया है। सो तहसीलदार साहब ने अपनी बेटी को यह चिट्ठी लिखी-
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Old 24-09-2011, 06:34 PM   #37
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स्*वस्ति श्री सर्वोपमायोग्*य बीबी आनन्*दी जी यहॉं से राम प्रसाद आदि समस्*त बाल गोपाल की राम-राम बंचना। यहॉं क्षेम-कुशल है तुम्*हारी क्षेम-कुशल चाहते हैं। तुम्*हारी मॉं तुमको बहुत याद करे है। सो मैं तुमको बहुत जल्*दी ही बुलाऊँगा। तुम्*हारे छोटे भाई गंगाराम को मदर्से में बिठा दिया है और बड़े भाई राम प्रसाद को तुम्*हारे ताऊ के पास आगरे इस कारण भेज दिया है कि वहॉं कालिज में पढ़कर वकालत का इम्*तहान दे। तुम्*हारी छोटी बहिन भगवान देई एक महिने से मॉंदी है और जब ही से उसका लिखना-पढ़ना छूटा हुआ है। और तुम तो आप बुद्धिमान हो परन्*तु तौ भी जो पिता का धर्म है, दो चार बात लिखना आवश्*यक है। बेटी, जो मैं तुमसे उसी दिन प्रसन्*न हूँगा जब मैं यह सुनूँगा कि तुम्*हारी ससुराल वाले तुमसे प्रसन्*न हैं। तुम्*हारा लिखना-पढ़ना उसी दिन काम आवेगा जब तुम अपनी सास की आज्ञा में रहोगी। सास को माता के तुल्*य जानना। ननद और जेठानी को अपनी बहिनों से अधिक मानना। और यह मैं जानता हूँ कि सब लड़कियों को ससुराल में जाकर प्रथम कठिनता मालूम हुआ करती है और इसका कारण यह है कि बाप के घर तो कुछ और ही चाल-चलन होता है और ससुराल में जाकर नये-नये तौर देखती है। जी घबराया करता है। परन्*तु जो ज्ञानवान लड़कियें हैं घबराती नहीं सब काम किये जाती हैं। यह भी जानना उचित है कि मॉं-बाप का घर तो थोड़े ही दिन के लिए है। सारी अवस्*था ससुराल में ही काटनी है। अपने धर्म-कर्म पर चलना ईश्*वर को याद रखना। आए-गए का आदर सम्*मान करना, सबसे मीठा बोलना, संतोष से अपने कुटुम्*ब में गुजरान करना, आपको तुछ जानना, यह अच्*छे कुल की बेटियों के धर्म हैं। ज्ञान चालीसी की पोथी में तुमने पढ़ा है कि अच्*छों से सबको लाभ होता है। मेरा इस कहने से प्रयोजन यह है कि जो कोई स्*त्री तुम्*हारे कुटुम्*ब की तुमको सीने-पिरोने का काम दे, जो अवसर मिले तो उसे कर देना उचित है। देखो विद्यादान का शास्*त्र में कैसा महात्*मा लिखा है। अर्थात जो बातें तुमको आती हैं, औरों को भी सिखलाना चाहिए। चिट्ठी लिखी मिति पौष शुदि 6 संबत् 1925
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Old 24-09-2011, 06:35 PM   #38
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यह चिट्ठी छोटेलाल के खत में बंद होकर आई और उसने अपने घर में दे दी।
दौलत राम के जुदे होने से छह महीने पीछे एक लड़की हुई। इधर उसी दिन हापुड़ से चिट्ठी आई कि लाला सर्वसुख जी, अनन्*त चौदस के दिन चार घड़ी दिन चढ़े तुम्*हारे धेवती हुई है।
(उस समय लाला दुकान पर थे) चिट्ठी को पढ़ के लाला ने दौलत राम से कहा कि ले भाई लौंडियों ने घर घेर लिया। यह चिट्ठी अपनी मॉं को सुनाई आ।
दौलत रात की लड़की की छटी तो हो चुकी ही थी। दसूठन के दिन लाला भी घर ही थे और सारे कुटुम्*ब ने उस दिन दौलत राम ही के घर खाया था।
दोपहर को दुकान से एक पल्*लेदार चिट्ठी ले के आया और बोला कि लालाजी यह चिट्ठी तुम्*हारे नाम दिल्*ली से आई है। मुनीम जी ने खोली नहीं तुम्*हारे पास भेज दी है और एक आना महसूल का दिया है।
लाला ने चिट्ठी पढ़ के कहा कि पार्बती की बड़ी लौंडिया का वसन्*त पंचमी का बिवाह है। पंदरह दिन पहिले वह भात नौतने आवेगी सो अब भात का फिकर भी करना चाहिए।
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घरवाली बोली कि सुखदेई को छूछक भेजना है। फिर ऐसी ही दो चार गृहस्*त की बातें करके कहा कि छोटेलाल के घर में भी लड़की-बाला होने वाला है। बहु के बाप को एक खत गिरवा देना कि वह साध भेज दे।
धौन भर पक्*के लड्डू, पॉंच तीयल बागे, पॉंच गहने, कुछ मूँग और चावल, एक रुपया नगद छूछक के नाम से नाई के हाथ हापुड़ भेज दिया।
जब पार्वती भात नौतने आयी तो अपनी देवरानी को साथ लायी। गुड़ की भेली देके बोली कि बिवाह में सबको आना होगा। लाला जी ने कहा बीबी, छोटेलाल की तो छुट्टी नही है। दौलतराम भात ले के आवेगा।
और बिवाह से एक दिन पहिले नाई ब्राह्मण को साथ ले दौलत राम भात ले के दिल्*ली में जा पहुँचा।
उस दिन सारी बिरादरी में बुलावा फिर गया कि आज भात लिया जायगा। 51 रुपये नगद, नथ, बिछुआ, छन, पछेली, सोने मूँगे की माला, पायजेब, सोने की हैकल, सोने का बाजू पचलड़ा और नौ नगे, पार्बती के सारे कुटुम्*ब को कपड़े 21 तीयल भरी-भरी, ग्*यारह बरतन, एक दोशाला और एक रुमाल आदि सबको दिखलाके पार्वती के ससुर के हवाले किये। और जब भात ले के डौढ़ी पर पहुँचे थे पार्वती दस-बीस तो स्त्रियों को साथ लिये गीत गाती हुई भाई का आर्ता करने आई थी।
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वहॉं दौलत राम को जो कोई पूछता यह कौन साहब हैं वह कह देते कि यह भाती हैं।
इन दिनों छोटेलाल की बहु गर्म चीज न खाती। बहुत करके कोठे पै न जाती और न बोझ उठाती। जब किसी चीज को खाने को जी चाहता तो अपनी सास वा और किसी बड़ी-बढ़ी से पूछ के मँगा लेती। ऐसी-वैसी चीज न खाती। खट्टी चीज को बहुत जी चाहा करे था सो कभी-कभी नीबू का आचार वा कैरी खा ले थी।
जेठ शुदि 3 जुमेरात के दिन छोटेलाल के घर लड़के का जन्*म हुआ। बड़ी खुशी हुई नक्*कारखाना रखा गया। जन्*म पत्री लिखी गई बिरादरी बालों को एक-एक पान का बीड़ा दिया।
वह उठ खड़े हुए और बोले, लाला सर्वसुखजी मुबारिक।
उन्*होंने उत्*तर दिया कि साहब आपको भी मुबारिक।
बाहर जो नाई ब्राह्मण घिर गये थे उन सबको पैसा-पैसा बॉंट दिया। दाई को एक रुपया दिया, वह पॉंच रुपये मॉंगती रही।
जच्*चा के खाने को गूँद की पँजीरी हुई। अब जो भाई बिरादरी और नाते-रिश्*ते में से औरतें आतीं लौंडे की दादी का मुबा*रिक वा बधाई कहके बैठ जातीं।
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