05-09-2014, 07:26 PM | #391 |
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Re: छींटे और बौछार
जब नेह-डगर पर चलकर मेरा जी जलता आह! तीक्ष्ण है शूल हृदय-'जय'-अन्तर में दहके अंगारे मिलते,जब चाही है शीतलता
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
05-09-2014, 07:27 PM | #392 |
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Re: छींटे और बौछार
विगत से सीखें, आगत देखें, बढ़ते ही जाएँ
धरा गगन की छाती पर बस चढ़ते ही जाएँ रुकें नही व श्रांत न होवें 'जय' पल भर को, जनमानस पर विजय पताका हम फहराएँ
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08-09-2014, 10:40 PM | #393 |
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Re: छींटे और बौछार
उत्तम सिख जय भैया
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
09-09-2014, 05:22 PM | #394 |
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Re: छींटे और बौछार
आभार ढेबर बन्धु। धन्यवाद।
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09-09-2014, 05:23 PM | #395 |
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Re: छींटे और बौछार
कभी जब आँख उठती थी, गगन से फूल झरते थे
कभी जब आँख झुकती थी, दिलों में शूल उठते थे समय का चक्र घूमा 'जय' कि वह मझधार में डूबा कभी जिसको सरलता से, हजारों कूल मिलते थे ||
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09-09-2014, 06:16 PM | #396 | |
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Re: छींटे और बौछार
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कालचक्र का बड़ा ही सुन्दर विवेचन किया.......
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25-09-2014, 06:35 PM | #397 |
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Re: छींटे और बौछार
धन्यवाद बन्धुओं। आभार।
"जय माता दी" तुम्हे रातों में देखा तो, सितारों में दिखीं मुझको तुम्हे दिन में निहारा तो, किरणों में मिली मुझको मेरी पलकों में रहती हो, हृदय पथ पर टहलती 'जय', मगर फिर भी नहीं मिलती तेरे मन की गली मुझको
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25-09-2014, 10:07 PM | #398 |
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Re: छींटे और बौछार
आपकी सुंदर कविता पढ़ कर मुझे अपनी ही कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं, वही पेश कर रहा हूँ:
जब से देखा तुझे हमने बहारों को नहीं देखा. ज़मीं के ख्व़ाब देखे हैं सितारों को नहीं देखा. तमन्ना मौज की करते हैं तूफ़ान से मोहब्बत में, हमें अरसा हुआ हमने किनारों को नहीं देखा.
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30-09-2014, 11:18 AM | #399 |
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Re: छींटे और बौछार
शायद प्यार में नहीं था दोस्ती सा दम..
शायद इस लिए दोस्त साथ निभाता रहा मुझे पता ना चला क्या ज्यादा था या कम मगर प्यार तो रास्ते भर रुलाता रहा... तुम्हारे घर में दरवाज़ा है लेकिन तुम्हे खतरे का अंदाज़ा नहीं है हमें खतरे का अंदाज़ा है लेकिन हमारे घर में दरवाज़ा नहीं है |
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03-10-2014, 10:26 PM | #400 | |
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Re: छींटे और बौछार
इस सूत्र पर पोस्ट न. 400 भी भाई जय भारद्वाज जी की होनी चाहिए, यही सोच कर उनकी एक विशेष रचना जो उन्होंने दिसंबर 2012 में पोस्ट की थी, उद्धृत करना चाहता हूँ. आशा है सभी मित्रों को यह रचना दोबारा पढ़ कर दोगुना आनंद आयेगा:
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