30-11-2012, 11:29 AM | #411 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:30 AM | #412 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
भूताकाश चित्ताकाश के आश्रय है और चित्ताकाश चिदाकाश के आश्रय है तेरा भर्ता अब भूताकाश को त्यागकर चित्ताकाश को गया है । चित्ताकाश चिदाकाश के आश्रय स्थित है इससे जब तू चिदाकाश में स्थित होगी तब सब ब्रह्माण्ड तुझको भासेगा । सब उसी में प्रतिबिम्बित होते हैं वहाँ तुझको भर्त्ता का और जगत् का दर्शन होगा । हे लीले । देश से क्षण में संवित देशान्तर को जाता है उसके मध्य जो अनुभव आकाश है वह चिदाकाश है ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:30 AM | #413 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
जब तू संकल्प को त्याग दे तो उससे जो शेष रहेगा सो चिदाकाश है । हे लीले! यहाँ जो जीव विचरते हैं सो पृथ्वी के आश्रय हैं और पृथ्वी आकाश के आश्रय है, इससे ये जीव जो विचरते हैं सो भूताकाश के आश्रय विचरते हैं और चित्त जिसके आश्रय से क्षण में देश देशान्तर भटकता है सो चिदाकाश है । हे लीले! जब दृश्य का अत्यन्त अभाव होता है तब परमपद की प्राप्ति होती है सो चिरकाल के अभ्यास से होती है और मेरा यह वर है कि तुझको शीघ्र ही प्राप्त हो ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:31 AM | #414 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
हे रामजी! जब इस प्रकार कहकर ईश्वरी अन्तर्धान हो गई तब लीला रानी निर्विकल्प समाधि में स्थित हुई और देह का अहंकार त्याग कर चित्त सहित पक्षी के समान अपने गृह से उड़कर एक क्षण में आकाश को पहुँची जो नित्य शुद्ध अनन्त आत्मा परमशान्तिरूप और सबका अधिष्ठान है उसमें जाकर भर्ता को देखा । रानी स्पन्दकल्पना ले गई थी उससे अपने भर्ता को वहाँ देखा और बहुत मण्डलेश्वर भी सिंहासनों पर बैठे देखे । एक बड़े सिंहासन पर बैठे अपने भर्ता को भी देखा जिसके चारों ओर जय जय शब्द होता था ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:31 AM | #415 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
उसने वहाँ बड़े सुन्दर मन्दिर देखे और देखा कि राजा के पूर्व दिशा में अनेक ब्रह्मण ऋषीश्वर और मुनीश्वर बैठे हैं और बड़ी ध्वनि से पाठ करते हैं । दक्षिण दिशा में अनेक सुन्दरी स्त्रियाँ नाना प्रकार के भूषणों सहित बैठी हुई हैं । उत्तरदिशा में हस्ती, घोड़े, रथ, प्यादे और चारों प्रकार की अनन्त सेना देखी और पश्चिम में मण्डलेश्वर देखे । चारों दिशा में मण्ड लेश्वर आदि उस जीव के आश्रय विराजते देखके आश्चर्य में हुई । फिर नगर और प्रजा देखी कि सब अपने व्यवहार में स्थित हैं और राजा की सभा में जा बैठी पर रानी सबको देखती थी और रानी को कोई न देखता था ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:31 AM | #416 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
जैसे और के संकल्पपुर को और नहीं देखता वैसे ही रानी को कोई देख न सके । तब रानी ने उसका अन्तःपुर देखा जहाँ ठाकुरद्वारे बने हुए देवताओं की पूजा होती थी । वहाँ की गन्ध, धूप और पवन त्रिलोकी को मग्न करती थी और राजा का यश चन्द्रमा की नाईं प्रकाशित था । इतने में पूर्व दिशा से हरकारे ने आके कहा कि हे राजन्! पूर्व दिशा में और किसी राजा को क्षोभ हुआ ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:31 AM | #417 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
फिर उत्तर दिशा से हरकारे ने आ कहा कि हे राजन्! उत्तरदिशा में और राजा का क्षोभ हुआ है और तुम्हारे मण्डलेश्वर युद्ध करते हैं । इसी प्रकार दक्षिण दिशा की ओर से भी हरकारा आया और उसने भी कहा कि और राजा का क्षोभ हुआ है और पश्चिम दिशा से हरकारा आया उसने कहा कि पश्चिम दिशा में भी क्षोभ हुआ है । एक और हरकारा आया उसने कहा कि सुमेरु पर्वत पर जो देवतों और सिद्धों के रहने के स्थान हैं वहाँ क्षोभ हुआ है और अस्ताचल पर्वत क्षोभ हुआ है । तब जैसे बड़े मेघ आवें वैसे ही राजा की आज्ञा से बहुत सी सेना आई ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:32 AM | #418 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
रानी ने बहुत से मन्त्री, नन्द आदिक टहलिये, ऋषीश्वर और मुनीश्वर वहाँ देखे । जितने भृत्य थे वे सब सुन्दर और वर्षा से रहित बादरों की नाईं श्वेत वस्त्र पहिने देखे और बड़े वेदपाठी ब्राह्मण देखे जिनके शब्द से नगारे के शब्द भी सूक्ष्म भासते थे! हे रामजी! इस प्रकार ऋषीश्वर , मन्त्री, टहलिये और बालक उसमें देखे, सो पूर्व और अपूर्व दोनों देखती भई और आश्चर्यवान् हो चित्त में यह शंका उपजी कि मेरा भर्त्ता ही मुआ है वा सम्पूर्ण नगर मृतक हुआ है जो ये सब परलोक में आये हैं ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:32 AM | #419 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
तब क्या देखा कि मध्याह्न का सूर्य शीश पर उदित है और राजा सुन्दर षोडश वर्ष का प्रथम की जरावस्था को त्यागकर नूतन शरीर को धारे बैठा है । ऐसे आश्चर्य को देख के रानी फिर अपने गृह में आई । उस समय आधीरात्रि का समय था अपनी सहेलियों को सोई हुई देख जगाया और कहा जिस सिंहासन पर मेरा भर्त्ता बैठता था उसको साफ करो मैं उसके ऊपर बैठूँगी और जिस प्रकार उसके निकट मन्त्री और भृत्य आन बैठते थे उसी प्रकार आवें । इतना सुनकर सहेलियों ने जा बड़े मन्त्री से कहा और मन्त्री ने सबको जगाया और सिंहासन झड़वाकर मेघ की नाईं जल की वर्षा की ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
30-11-2012, 11:32 AM | #420 |
Special Member
|
Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
सिंहासन पर और उसके आसपास मेघ की नाईं जल की वर्षा की । सिंहासन पर और उसके आसपास वस्त्र बिछाये और मशालें जलाकर बड़ा प्रकाश किया । जैसे अगस्त्यमुनि ने समुद्र को पान किया था वैसे ही अन्धकार को प्रकाश ने जब पान कर लिया तब मन्त्री, टहलुये , पण्डित, ऋषीश्वर ज्ञानवान् जितने कुछ राजा के पास आते थे वे सब सिंहासन के निकट आकर बैठे और इतने लोग आये मानों प्रलयकाल में समुद्र का क्षोभ हुआ है और जल से पूर्ण प्रलय हुई सृष्टि मानों पुनः उत्पन्न हुई है ।
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
Bookmarks |
|
|