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Old 04-11-2010, 12:18 AM   #41
jalwa
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वक्त के साथ हालात बदल जाते हैं,
अपनो तक के ख्यालात बद्ल जाते हैं,
जब बुरा वक्त आता है 'प्यारे'
खुद अपने ही ज़्ज़बात बदल जाते हैं.
__________________

अच्छा वक्ता बनना है तो अच्छे श्रोता बनो,
अच्छा लेखक बनना है तो अच्छे पाठक बनो,
अच्छा गुरू बनना है तो अच्छे शिष्य बनो,
अच्छा राजा बनना है तो अच्छा नागरिक बनो
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Old 04-11-2010, 12:27 AM   #42
jalwa
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Originally Posted by bhaaiijee View Post
यह हालिया बयान तुमने पढ़ा नहीं है ?
'जय' फिर अब किसी से बावफा नहीं है !!
वाह क्या बात कही ..दिल गद गद हो गया,
बावफा ना सही बेवफा ही सही,
दोस्त हो आखिर ,झेल ही लेंगे.
__________________

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Old 09-11-2010, 10:25 PM   #43
jai_bhardwaj
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तुम्हारी अधखुली पलकों में
ये कैसी मदिरा बहती है /
तुम्हारे अधखिले अधरों में
क्यों गुलाबी धारा बहती है //
तुम्हारे 'जय' कपोलों के उभारों
की सतह स्निग्ध है कितनी
तुम्हारी विस्तृत बाहें क्यों
सुखद सी कारा लगती हैं //
.................................................. .......
कारा...... जेल
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 09-11-2010, 10:26 PM   #44
jai_bhardwaj
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तुम्हारे नयनों की जिह्वा
मुझे क्यों चाटती रहती ?
हृदय के बंधनों को वह
सहज ही काटती रहती /
भयंकर ज्वार लाती 'जय'
शिराओं में, लहू में भी,
प्रिये तुम दृष्टि तो फेरो
मुझे यह मारती रहती //
__________________
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Old 09-11-2010, 10:29 PM   #45
jai_bhardwaj
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मुझे अपमान के बिछौने
से तुमने ही जगाया था /
मेरे अभिमान के पर्वत
को तुमने ही उठाया था //
साँसों के बवंडर में
फंसे होने पे 'जय' तुमने
मगर मुझको अगन-पथ
पे निरंतर क्यों चलाया था //
__________________
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Old 09-11-2010, 10:32 PM   #46
jai_bhardwaj
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''आप'' मेरी दृष्टि में


आपका ललाट है या विन्ध्य का विशाल नग
आपके कपोल हैं या भानु शशि आकाश के /
आपके नयन हैं या मदिर झील हैं कोई
आपकी नासिका है या मनोरम रास्ते //
आपके अधर ज्यों सुधा कलश हों युगल
आपके दन्त ज्यों स्तम्भ हैं प्रकाश के /
आपकी ग्रीवा से झलकते हैं जल बिंदु
जैसे कि दिखते हैं पारदर्शी गिलास से //
कुच की कठोरता में कैसी स्निग्धता है
हीरे में जैसे कि दुग्ध का निवास है /
चपल शेरनी सा कमर का प्रकार 'जय'
आपका रूप है भरा वन-विलास से //

......................................
नग....... पर्वत
__________________
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Last edited by jai_bhardwaj; 09-11-2010 at 10:36 PM. Reason: नग....... पर्वत
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Old 18-11-2010, 11:00 PM   #47
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Default Re: छींटे और बौछार

चमन के कांटे मुस्काये, चलो फिर से बहार आयी !
फटे दामन छिपाने को, गुलों की फिर कतार आयी !!
हवाओं ने कहा उनसे , ये बादल बिलकुल झूठे 'जय',
मगर मदहोश काँटों को, वो लपटें ना नज़र आयीं !!
__________________
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Old 19-11-2010, 10:29 PM   #48
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Default Re: छींटे और बौछार

अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए

आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए

मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए

मेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाए

जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे
मेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाए

कवि : नीरज
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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Old 20-11-2010, 11:18 PM   #49
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Default Re: छींटे और बौछार

सुलग रहे हैं बादल, झुलस रहा है सावन
काल की इस भट्ठी में जलता जीवन ईंधन
सेठ डकारें लेता है पर निर्धन के हैं अनशन
ताल की माटी माथे पर, है पैरों पर चन्दन
बहुत सहे हैं तेरे 'जय', अब ना सहेंगे ठनगन
मृत्यु खड़ी है आँगन में किन्तु हँस रहा जीवन

.............................
ठनगन ............ नखरे /
__________________
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Old 21-11-2010, 08:11 AM   #50
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Default Re: छींटे और बौछार

मन को है तुझे देखने की प्यास
तूझ बिन बेचैन है मेरी हर एक सांस

उस एक क्षण के लिए छोड सकता हूं ये जहाँ
जिस पल मे हो तेरी नजदीकी का एहसास
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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