![]() |
#41 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() सुई बोली - किसी के बिना किसी का वजूद पूरा - अधुरा नहीं होता ये सिर्फ सोच है , क्योकि बहुत कुछ एक -दुसरे पर निर्भर करता है वो कौन है जो ज़िन्दगी में आये और मौत के आगोश में न जाये तो ऐसी ज़िन्दगी भला कौन जीता है- इसका जवाब देना फिर उसके बाद अपने वजूद के झूठे भरम का दम भरना . क्योंकि मेरा काम आपस में जोड़ते जाना है मै सिर्फ जोड़ने के लिए हूँ इसलिए धागे का पक्का होना जरुरी है, कच्चे धागे मेरे यकीन को संभाल नहीं सकते .
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
#42 |
Exclusive Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Feb 2011
Posts: 5,528
Rep Power: 41 ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
एक से बढकर एक कहानिया कुछ ना कुछ सीख देने वाली हे !
|
![]() |
![]() |
![]() |
#43 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
शहर मे कुछ लोग अपने-अपने धर्म को लेकर आपस मे झगड रहे थे वे एक दूसरे के धर्म पर तरह-तरह के आरोप मढ रहे थे उस झगडे मे सबसे खास बात यह थी कि वहां सभी धर्म के अलग-अलग व्यकित मौजूद थे और हर व्यकित अपने धर्म को श्रेष्ठ बतला रहे थे.
एक महात्मा जब उधर से गुजर रहे थे तो उन्होने वो नज़ारा देखा और उस भीड के ओर बढे और लोगो को बढी मुशिकल से शांत किया उन्होने उस भीड मे सभी धर्मो के लोग थे और हर कोई अपने ही धर्म को श्रेष्ठ बता रहे थे जैसे वो कोई धर्म न हो कोई वस्तु हो गई महात्मा ने कहा- तुम लोग एक दूसरे के धर्म पर आरोप लगा रहे हो बल्कि मेरी नज़र से तुम लोग किसी भी धर्म के लायक नही हो क्योकि जो अपने धर्म की श्रेष्ठ के लिये दूसरे धर्म पे आरोप लगाये उसका स्वयं का कोई धर्म नही क्योकि कोई भी धर्म ये नही कहता कि उस ऐसा रुप दो, उसे विवाद का विषय बनाओ फ़िर वो धर्म कहा रहा वो मूलस्वरुप से हट गया तुम लोग धर्म के मूल अर्थ को नही जानते तुम्हे धर्म के नाम पर लडना आता है जब अच्छा रुप अपने धर्म को नही दे सकते तो ये बुरा रुप भी तुम्हे देने का कोई हक नही है,अपने धर्म की श्रेष्ठता की पहचान क्या कोई ऐसे देता है हर धर्म अपने आप मे स्वतंत्र है जब तक वो अपनी गरिमा मे है अर्थात हिसात्मक रुप न लिये हो क्योकि धर्म कभी विवादी नही होता धर्म की मूल भावना है शांन्ति पूजा एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से समझ रखना अर्थात अन्य धर्मो को भी सम्मानित नज़र से देखना सम्मानित नज़र से अभिप्राय यह है कि हत धर्म को उतना ही महत्व देना जितना की हम अपने धर्म को देते है और उसे मानवता के धर्म का रुप देना क्योकि सबसे बडा अगर कोई धर्म है तो मानवता का धर्म, धर्म का अर्थ ही होता है धारण करना समस्त सभ्यता और संस्क्रति के साथ, आप लोगो का ये करना तो दूर रहा आपने उसे दूसरा ही रुप दे दिया ये कोई रास्ता है धर्म को साबित करने का, महात्मा जी के इतना कहते ही सभी लोगो के सर शर्म से झुक गये चूंकि उस भीड मे हर धर्म के लोग होने के कारण महात्मा जी ने सभी को उनकी धर्म की भाषा मे ही समझाया सभी को मूल भाषा मे समझाने के बाद महात्मा जी ने पूछा - अब बतलाओ मै किस धर्म का हूं बताइये मै किस धर्म का हूं सभी के सर शर्म से झुक गये। महात्मा ने अन्त मे कहा- सिर मत झुकाओ, थोडा सा अपनी समझ और सोचने के ढंग के प्रति अपने आप को उस ओर जाग्रत करो तभी तुम अपने धर्म के प्रति उपलब्ध हो पाओगे क्योकि सबसे बडा धर्म इन्सानियत का धर्म जो कि आदमी को आदमी से जोडता है जब आदमी , आदमी से जुडेगा तो देश जुडेगा वो हमारे धर्म की असल पहचान होगी इतना कहकर महात्मा दूसरी दिशा की ओर प्रस्थान कर गये. आज हमारी देश की एकता पर कई अपने और बेगानो की नज़र है जो नही चाहते की भारत एक जुट हो इस लिये सावधान रहियेगा
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
#44 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
बाढ़ के बाद
रात का समय था फ़िर भी चारो तरफ़ बाढ़ के पानी का भयानक और डरावना शोर था। भिखुआ रात से पेड़ के ऊपर बैठा हुआ था, उसके बगल में ही पंडित जी भी बैठे थे पेड़ की डाल पर। गाँव तो अब दिखता ही नहीं था, केवल मकानों के छप्पर और बड़े-बड़े पेड़ों की ऊपरी डाल ही नज़र आती थी। और नज़र आता था तो बिजली के उन खंभों का तार जिनमे बिजली तो आती नहीं थी पर बिल जरुर आता था। तभी अचानक पेड़ पर ऊपर कुछ सरसराता महसूस हुआ, नीचे झाँक कर देखा तो एक सांप नज़र आया। शायद वो बेचारा भी अपनी जान इस पानी से बचने के लिए ऊपर चढ़ा आ रहा है, यही सोच कर भिखुआ ने थोड़ा सांप रास्ता दे दिया. सांप ऊपर आकर उसके बगल में बैठ गया। वो ख़ुद भी सहमा दिख रहा था तो किसी को क्या काटता? पंडित जी नींद में थे पर इतने शोर में सो कैसे पाते ? सो वो ऊँघ रहे थे वरना अभी चिल्ला पड़ते सांप-सांप. अचानक धडाम की आवाज से मैं सहम गया, ललुआ के मकान की दीवार ढह गई थी ये उसीके गिरने की आवाज थी॥ पंडित जी भी उठ गए और देखने लगे इधर उधर. जब भिखुआ के साथ सांप देखा तो इशारे से बोले तेरे पीछे सांप है. भिखुआ बोला कोई बात नही, मुझसे पूछ कर बैठा है। पंडित जी मुस्कुरा दिए। भिखुआ के पास थोड़े चने थे, वो अपनी गठरी निकाल कर खाने को हुआ। पर साथ में कोई और भी भूखा हो तो अकेले कैसे खा ले? सो उसने पंडित जी से पूछा की वो खायेंगे? पंडित जी भूखे तो थे मगर एक छोटी जाति वाले के हाथ से कैसे खा लेते? लेकिन दो दिन से पेड़ पर भूखे बैठे थे टंगे हुए से.. और कोई चारा भी नही था। फ़िर उन्होंने सोचा की खा लेते हैं कौन यहाँ पर देख रहा है? क्यूंकि अब भूख जवाब दे रही थी। सो उन्होंने भिखुआ के साथ वो चने खा लिए और दोनों की भूख काफी हद तक शांत हो गई॥ और जहाँ पेट में थोड़ा अन्न जाता है फ़िर नींद भी आ ही जाती है। तो दोनों ही सो गए और सांप बेचारा उन दोनों को देखता रहा और एक तरह से पहरा देता रहा। सुबह चिडियों की आवाज़ ने उन दोनों की नींद खोली॥ देखा तो दूर से गाँव के लड़के केले के तने का बेडा (एक तरह का नाव) लिए उनकी तरफ़ ही आ रहे थे..पंडित जी ने शोर मचाया और जिसे सुनकर लड़के इसी तरफ़ आ गए। जैसे ही बेडा पास आया पंडित जी लपक कर उसमे सवार हो गए और आदेश देते हुए बोले-" चलो रे॥"लड़को ने पूछा भी की क्या भिखुआ को नही लेंगे? वो बोले दूसरी बार में ले लेना॥और चल दिए..बेडा दूर जा चुका था.. भिखुआ और सांप साथ बैठे उसे जाते देख रहे थे। भिखुआ सोच रहा था की शुक्र है सांप में जाति प्रथा नही है। और सांप सोच रहा था अच्छा हुआ मैं मनुष्य नही हूँ।
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
#45 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
गरीब की बेटी की शादी
आज उसके यहां खुशी का माहौल था। सभी के चेहरे दमक रहे थे। माता-पिता, चाचा-चाची, दादा-दादी, भाई-बंधु, बुआ सभी के चेहरे में अजीब तरह की चमक थी। चमक हो भी क्यों न, जब परिवार के किसी सदस्य को पहली बार सरकारी नौकरी मिली हो। वह भी केंद्र सरकार की नौकरी। खुशियां चहुंदिश से बरस रही थीं और मैं भी आनंदित हो रहा था, लेकिन यहां की खुशी मुझे कुछ 'अजीब' तरह की लग रही थी जैसे सभी की व्यक्तिगत रूप से मनोकामनाएं पूरी होने वाली हों। मैं यह सोच ही रहा था तभी मेरे कानों में आवाज आई कि अब 'चौधरी' के तो भाग ही खुल गए। रातों-रात लाटरी लग गई। वह भी लाखों रुपयों की? यह आवाज लड़के (जिसे नौकरी लगी) की बुआ की ओर से आई। मेरी जिज्ञासा शांत नहीं हुई। मैं उधेड़बुन में था कि 'चौधरी' की तरफ से मुझे बुलावा आया। मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि आज तक तो नहीं बुलाया गया। खैर मैं उनके पास पहुंचा तो अच्छे कपड़े पहने हुए वहां लोगों की मंडली जमी हुई थी। लड़के के रिश्ते को लेकर कुछ लोग दूसरे शहर से आए थे। चौधरी जी को सूझ नहीं रहा था कि अब क्या कहें क्या नहीं। अब इसलिए क्योंकि लड़की वालों के यहां चौधरी के लड़के की बात काफी दिनों से चल रही थी। रिश्ता लगभग तय था। केवल लेन-देन की बात थी। लड़के वाला दो लाख कह रहा था और लड़की वाले 1.5 लाख पर बात तय करने की गुहार लगा रहे थे। लेकिन, अब स्थिति में काफी बदलाव आया था। लड़के को नौकरी मिल गई वो भी केंद्र सरकार की। सो, चौधरी के भाई ने कहा कि अभी तो लड़के की नौकरी लगी है जरा उससे पूछ लें, उसकी शादी की इच्छा है या नहीं। इसके बाद आपको खबर दी जाएगी। लड़की वाले चले गए। शायद उन्हे पता चल गया था कि यहां बात बनने वाली नहीं है। खैर, लड़की वाले चले गए, लेकिन लड़के वाले उधेड़ बुन में थे कि इस लड़के की क्या कीमत रखी जाए। गांव के प्रमुख लोगों के साथ चौधरी जी व उसके नजदीकी रिश्तेदारों की देर रात तक बैठक हुई। तय हुआ कि लड़के की कीमत 20 से 30 लाख के बीच रखी जाए। ज्यादा से ज्यादा रकम लड़की वालों से लेने की कोशिश की जाए। रकम तय होने के बाद ही लड़की व उसके परिवार के बारे में जानकारी की जाए। प्राथमिकता पैसे को दी जाए। तब मुझे पता चला कि अजीब खुशी का रहस्य क्या है। चौधरी जी जो पांच हजार रुपये दस हजार रुपये लोगों से उधारी लेते थे आज 25 लाख के आदमी बनने जा रहे थे। एक लड़की वाले ने 25 लाख की बोली लगाई थी। सबसे ज्यादा बोली। सो लड़का उसी का हुआ। इधर, लड़के की शादी की तैयारी हो रही थी उधर चौधरी जी के रिश्तेदारों में शीत युद्ध जारी था। संयुक्त परिवार के कर्ताधर्ता सदस्यगण अपना-अपना हिसाब लगा रहे थे कि लड़के की पढ़ाई लिखाई में उन्होंने कब क्या-क्या खर्च किए। कौन-कौन सी जमीन बेची गई। कब लड़के को आने-जाने का भाड़ा दिया गया। मैं इस द्वंद्व को देख रहा था और सोच रहा था कि लड़के के नौकरी से पूर्व संयुक्त परिवार और अब के संयुक्त परिवार में कितना अंतर आ गया। बड़े-छोटे का सम्मान भी चला गया। चौधरी जी जो हमेशा दहेज विरोधी बयान देते थे। दूसरे के बेटी के लिए जब लड़के का हाथ मांगने जाते थे तो किस तरह लच्छेदार बातों से लड़के वालों को दहेज की कुरीति के बारे में बताते थे। ..और आज 25 लाख में बिक गए थे। खुशी थी कि 25 लाख नगद आ रहे हैं। ..उधर, लड़की वाले दहेज के इंतजाम में लगे थे। बिना किसी समस्या के उन लोगों ने 20 लाख रुपये का घर अपने बेटी-दामाद को बेटी के नाम से दे दिया और चौधरी जी..फिर से दहेज विरोधी खेमे में शामिल हो गए। रिश्तेदार कट गए।..और मैं सोच रहा था कि गरीब की योग्य बेटी की शादी किसी योग्यवर से कैसे हो?
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
#46 | |
Special Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() Quote:
पर आजकल उल्टी रीत है ज्यादा मीठा बोलने वाले को दुर्जन समझा जाता है
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
|
![]() |
![]() |
![]() |
#47 |
Special Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
लेकिन ज्यादा मीठा बोलने वाले को तो ढीला बोला जाता है
__________________
Gaurav kumar Gaurav |
![]() |
![]() |
![]() |
#48 |
VIP Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
दंभी
एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’ नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’ दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’ थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?” नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा। दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“ मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया। नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’ सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’ “फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया। मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
![]() |
![]() |
![]() |
#49 | |
Special Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]() Quote:
__________________
Gaurav kumar Gaurav |
|
![]() |
![]() |
![]() |
#50 |
Senior Member
![]() ![]() ![]() Join Date: Feb 2011
Location: Rudrapur
Posts: 373
Rep Power: 17 ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
मित्र सिकंदर जी, बहुत अच्छी कहानियां प्रस्तुत की हैं.
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
Bookmarks |
Tags |
hindi stories, inspiring, inspiring stories, motivating |
|
|