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Old 09-09-2013, 09:20 PM   #41
rajnish manga
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Default Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत

(4)
दादा जी मुर्गियों को दाना दे कर मुड़े ही थे कि कि उन्हें अशोक आता हुआ दिखाई दिया. अशोक के साथ कोई भद्र पुरुष भी थे. अशोक ने दादा जी से उनका परिचय करवाया, “दादा जी आज मैं अपने स्कूल के प्रिन्सिपल साहब को आपसे मिलवाने लाया हू- आप हैं डॉ. ठाकुर ... और सर ये हैं दादा जी, जिनके बारे में मैंने आपको बताया था.”

दोनों गर्मजोशी से मिले. कुछ देर इधर उधर की बातें चलीं. दोनों ने अशोक की बहुत प्रशंसा की. प्रिन्सिपल साहब ने दादा जी को बताया कि अशोक का बनाया हुआ एक यंत्र राष्ट्रीय विज्ञान खोज प्रदर्शनी में बहुत प्रशंसित हुआ है. उन्होंने कहा,

“अशोक ने आपके बारे में ज़िक्र किया था. आपके बारे में सुन कर मैं आपसे मिलना चाहता था. परन्तु इधर प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के कारण आपसे मिल न सका. मैं चाहता हूँ कि इस सत्कार्य में आपका योगदान भी लिया जाये. नगर के बहुत से इलाकों में हमने ऐसे केंद्र आरम्भ किये हैं जहां गरीब, अनपढ़, मजदूर स्त्री-पुरुषों को लिखना पढ़ना सिखाया जा सके. उनके जीवन में परिवर्तन लाया जा सके. ऐसा एक केंद्र आपके क्षेत्र में भी खोलने का विचार है. अभी स्थान का प्रबंध नहीं हो पाया. मुझे मालूम है आप यहां अकेले रहते हैं. यदि आप एक कमरे का प्रबंध इस कार्य के लिए कर सकें तो केंद्र शीघ्र ही कार्य शुरू कर सकता है. आप यदि चाहें तो यहाँ अध्यापन भी कर सकते हैं.एक दिन में लगभग दो घंटे का कार्य हुआ करेगा. यह कार्य हम सब लोगों को मिलजुल कर करना है. मुझे आप से बहुत आशाएं हैं महोदय.”

दादा जी इस कार्यक्रम से बहुत प्रभावित हए और इस बात से भी कि प्रिन्सिपल साहब निस्वार्थ भाव से इस कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे. अगले दस दिनों में सभी तैयारियां कर ली गईं और कक्षाएं शुरू हो गईं.
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Old 09-09-2013, 09:21 PM   #42
rajnish manga
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Default Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत

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निरक्षर स्त्री पुरुषों की अलग अलग कक्षाएं चलने लगीं. बहुत से सुशिक्षित व्यक्तियों ने भी बिना वेतन के अपनी सेवायें इस केंद्र को देना स्वीकार किया. इस कार्यक्रम के अच्छे परिणाम सामने आने लगे.

दादा जी का सभी बहुत आदर करते. वे एक घंटे की कक्षा भी लिया करते थे.

वर्षाकाल में बारिश की तीव्रता से बहुधा सड़कें टूट-फूट जाती हैं परन्तु अनुकूल मौसम आने पर उनकी मरम्मत कर दी जाती है जिससे यातायात सुचारू रखना संभव होता है. दादा जी का मन भी उन सड़कों की भांति ही था जिसे अब एक मकसद मिल गया था, वे प्रसन्न रहने लगे थे और उनमे एक नई शक्ति का उदय हुआ था. उन्होंने देखा कि दूसरे दूसरे न हो कर अपनों से भी अधिक नज़दीक आ गये थे. सीधे सरल लोगों में उनकी तबीयत लगी रहती.

**
अशोक एम बी बी एस की अंतिम वर्ष की परीक्षा दे कर आया था. मालूम हुआ दादा जी बीमार हैं, झट से मिलने जा पहुंचा. दादा जी ने उसे छाती से लगा लिया. लगा जैसे फूल से उसकी गंध मिल रही हो. प्रिन्सिपल साहब भी वहीँ बैठे थे. दादा जी ने भीगे स्वर से कहा,

“इस लड़के से मैंने सीखा कि ज़िन्दगी निरंतर चलते रहने का ही दूसरा नाम है. ठहरना तो सिर्फ एक बहाना है, एक टुकड़ा मौत ...”
**
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Old 09-09-2013, 10:09 PM   #43
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Default Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत

नायाब, मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत आख्यान के लिये अभिनन्दन ।
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Old 11-09-2013, 01:51 AM   #44
rajnish manga
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Default Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत

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Originally Posted by aspundir View Post

नायाब, मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत आख्यान के लिये अभिनन्दन ।
उक्त कथा के विषय में आपके विचारों का स्वागत करते हुये, अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, पुंडीर जी.
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Old 12-09-2013, 03:06 PM   #45
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Default Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र

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Originally Posted by jai_bhardwaj View Post
इतिहास साक्षी है कि क्रोध का परिणाम सदैव विनाश ही हुआ है .. इस सी कथा में भी इसी उक्ति को सार्थक किया गया है। भाषा सरल एवं ग्राह्य होने के कारण सर्वसाधारण को भी क्रोध के परिणाम को समझने और इससे दूर रहने में सहायता मिल सकती है।

साझा करने के लिए आभार बन्धु।
जय जी, आपने कथा के मर्म को समझ कर और क्रोध के दुष्परिणाम को इतिहास से जोड़ कर देखते हुये जो समीक्षात्मक टिप्पणी दी है, उसने मुझे गदगद कर दिया है. इसके लिये मैं आपका हार्दिक धन्यवाद प्रकट करता हूँ.
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Old 12-09-2013, 03:18 PM   #46
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Default Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र

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Originally Posted by dark saint alaick View Post

अद्भुत कथा है, मित्र। आप चाहते, तो कथा को बहुत विस्तार दे सकते थे, किन्तु आपने गागर में ही विचार और ज्ञान का वह सागर भर दिया, जिसके लिए कभी-कभी उपन्यास भी लघु सिद्ध हो जाते हैं। साधुवाद आपको।
कथा को पढ़ने एवम् उस पर सूक्ष्म किन्तु अर्थपूर्ण समीक्षात्मक टिप्पणी देने के लिये मैं आपका आभारी हूँ, अलैक जी. आपके शब्दों में इस अकिंचन कथाकार के लिये प्रेरणा और प्रोत्साहन दोनों निहित हैं.
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Old 25-06-2014, 12:00 PM   #47
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Default Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत

अच्छे विचार कभी ख़त्म नहीं होते,चाहे उम्र ख़त्म हो जाये
बहुत अच्छी कहानी आपने पेश की है !धन्यवाद
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Old 28-06-2014, 10:18 AM   #48
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Originally Posted by rafik View Post
अच्छे विचार कभी ख़त्म नहीं होते,चाहे उम्र ख़त्म हो जाये
बहुत अच्छी कहानी आपने पेश की है !धन्यवाद
आपने मेरी कहानी को सराहना योग्य समझा, उसके लिये धन्यवाद. कृपया मेरा आभार स्वीकार करें.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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Old 08-07-2014, 10:48 AM   #49
rafik
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Default Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत

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Originally Posted by rajnish manga View Post
आपने मेरी कहानी को सराहना योग्य समझा, उसके लिये धन्यवाद. कृपया मेरा आभार स्वीकार करें.
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Old 30-07-2014, 11:32 AM   #50
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