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Old 29-03-2013, 07:22 PM   #41
jai_bhardwaj
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उसका बेटा 18 महीने का हो चुका है. वह खुश है. अपने परिवार के साथ हंसी खुशी रहती भी है लेकिन जब कोई उससे ये पूछता है कि उसके बच्चे का बाप कौन है तो उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है. वह नहीं जानती उन पांच भाइयों में से उसके बच्चे का असली बाप कौन है.

महाभारत की द्रौपदी के बारे में तो सब जानते हैं जिसे परिस्थितिवश पांच भाइयों के साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था. लेकिन हम आपको कलयुग की द्रौपदी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे पांच भाइयों से विवाह करना पड़ा और वो भी किसी परिस्थिति या हालातों से मजबूर होकर नहीं बल्कि कुछ ऐसी परंपराओं के बंधन में उसे जकड़ दिया गया जिसकी वजह से वह आज अपने जिस्म का बंटवारा करने के लिए मजबूर हो गई है.

देहरादून के पास एक छोटा सा पहाड़ी गांव है जहां आज भी यह परंपरा विद्यमान है जिसमें महिला को अपने पहले पति के सभी सगे भाइयों से विवाह करना पड़ता है.

चार साल पहले राजो नामक इस महिला का विवाह उसी ग्राम के गुड्डू से हुआ लेकिन इस विवाह के बाद उसे उसके अन्य चारों भाइयों से भी विवाह करना पड़ा. सबसे छोटा भाई 18 का नहीं था इसीलिए उसके 18 का होते ही उसे भी राजो का पति बना दिया गया. राजो की जब पहली शादी हुई थी तो उसके लिए उसके पति के भाइयों से विवाह करने जैसी बात बहुत कष्टप्रद थी, वह नहीं चाहती थी कि उसके साथ जो हुआ वह अन्य लड़कियों के साथ भी हो.

राजो के आधिकारिक पति गुड्डू का कहना है कि वे पांचों भाई राजो के साथ सेक्स करते हैं, इसके लिए उन्होंने दिन भी निश्चित किए हुए हैं. इतना ही नहीं पांचों में से कोई भी एक-दूसरे से इर्ष्या नहीं करता और ना ही उनके बीच किसी भी प्रकार का मनमुटाव है.

अब इसे हैरानी कह लीजिए या दुर्भाग्य लेकिन 21 वर्षीय राजो 18 महीने बेटे की मां भी है पर वह यह नहीं जानती कि उसके बेटे का जैविक पिता कौन है.

उल्लेखनीय है कि एक दौर था जब ऐसी कुप्रथाएं विद्यमान थीं. लेकिन आज एक छोटी सी जनजनाति के बीच ही यह परंपरा मौजूद है जिसका परिपालन वह पूरी तन्मयता से करते हैं. राजो की मानें तो उसे विवाह से पहले ही यह बात पता थी कि उसे अपने पति के अन्य 4 भाइयों से भी विवाह करना होगा. उसकी मां ने भी तीन भाइयों से विवाह किया था. स्थानीय लोगों की मानें तो यह प्रथा इसीलिए अपनाई जा रही है क्योंकि इससे भाइयों के बीच बंटवारे जैसी बात नहीं उठती और ना ही परिवार में अंदरूनी कलह होती है.

दुखद लेकिन सत्य है कि राजो को बारी-बारी से पांचों भाइयों के साथ सेक्स करना होता है. उसके लिए यह बहुत कष्टप्रद है लेकिन वो कहती है कि उसके पांचों पति उसका बहुत ध्यान रखते हैं और उससे प्यार भी करते हैं इसीलिए उसे कोई आपत्ति नहीं है.
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Old 29-03-2013, 07:36 PM   #42
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पाकिस्तान से मुक्ति के लिए बांग्लादेश की लड़ाई में अहम योगदान देने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी हिमांशु मोहन चौधरी को बांग्लादेश ने मुक्ति युद्ध मित्र सम्मान से 24 मार्च 2013 को सम्मानित किया. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित एक समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद ने उन्हें प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिन्ह प्रदान किया.
हिमांशु मोहन वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से सटे त्रिपुरा के सोनामूरा इलाके में बतौर सब डिविजनल ऑफिसर तैनात थे. हिमांशु मोहन चौधरी ने त्रिपुरा के सोनामूरा इलाके में वर्ष 1971 में बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को रहने-खाने से लेकर उनके बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने तक का काम किया था.
विदित हो कि युद्ध से प्रभावित सीमावर्ती इलाके में काम करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972 में हिमांशु मोहन चौधरी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने उन्हें पद्श्री पुरस्कार दिया था.
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Old 01-04-2013, 07:24 PM   #43
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टीवी एक्ट्रेस मोना सिंह का एमएमएस इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैल चुका है। 23सेकेंड के इस क्लिप पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।

हालांकि जस्सी यानी मोना ने मुंबई पुलिस से इस एमएमएस के बारे में शिकायत की है, लेकिन अफवाहों के बाजार में इस तरह की चर्चा जोरों पर है कि उन्होंने पब्लिसिटी पाने के लिए खुद यह एमएमएस डलवाया है। वैसे सच्चाई क्या है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इंटरनेट पर लाखों लोग अभी तक इस वीडियो को देख चुके हैं।

पुलिस का कहना है कि उस कंप्यूटर का पता लगाया जा रहा है, जिसके जरिए अश्लील वीडियो क्लिप अपलोड किया गया था। पुलिस इस बात को जाने में लगी है कि कहीं इस हरकत के पीछे मोना सिंह के किसी जानने वाले का हाथ तो नहीं है।

कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि एमएमएस लीक करना मोना सिंह का पब्लिसिटी स्टंट है। इसका कारण यह सामने आया है कि जल्द ही मोना के ब्वॉयफ्रेंड विद्युत की फिल्म 'कमांडो' रिलीज होने वाली है। फिल्म रिलीज से पहले एमएमएस के जरिए असल में फिल्म को प्रचार दिलाने की कोशिश हो रही है। लेकिन इन अफवाहों पर मोना कहती हैं, प्रचार के लिए इस तरह की हरकत कोई नहीं करेगा। हांलाकि मोना ने एमएमएस के पीछे किसी परिचित का हाथ होने से भी इनकार किया।
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Old 01-04-2013, 07:30 PM   #44
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प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज चकराता क्षेत्र के रामताल गार्डन चौली डांडा की प्राचीन झील सरकारी उपेक्षा के चलते अस्तित्व खो रही है। एक समय अपनी सुंदरता से आकर्षित करने वाली झील सूखने की कगार पर है। यहां पर केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से पर्यटन क्षेत्रों को विकसित करने के दावे खोखले नजर आते हैं।

देहरादून जनपद के चकराता मसूरी मार्ग पर चौडी डांडा नामक स्थल पर प्राचीनकालीन रामताल झील है, जो अस्तित्व खो रही है। एक समय था जब आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस प्राकृतिक झील की अलग पहचान थी, लेकिन प्रकृति के बदले मिजाज व सरकार के उपेक्षित रवैये के चलते इस झील की साख आज समाप्ति की कगार पर है।

क्षेत्र के बुर्जुगों की सही माने तो भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में सीता मईया की प्यास बुझाने के धरती से जो पानी उत्पन्न किया था, उसी दौरान यह झील विकसित हुई। बुजुर्ग नैन सिंह, जगत सिंह, अमर सिंह आदि के अनुसार चौली डांडा नामक यह स्थल कई तरह से ऐतिहासिक व धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है। यहां शहीद वीर केसरीचंद की प्रतिमा स्थापित है। हर वर्ष तीन मई को शहीद मेला लगता है। साथ ही हर वर्ष जौनसार बावर का प्रमुख पर्व बिस्सू मेला भी चौली डांडा नामक इस चोटी पर लगता है।

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प्यास बुझाने वाली खुद प्यासी

कभी पूरे वर्ष भर रामताल झील में पानी भरा रहता था, लेकिन कुछ वर्षो से ग्रीष्म काल में झील सूख जाती है।

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'रामताल गार्डन नामक स्थल को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। इस स्थल के विकास के लिए चार वर्षों से योजना चल रही है। शहीद स्मारक स्थल बनाने के साथ ही यहां गेस्ट हाऊस भी बनाया गया। झील का सौंदर्यकरण किया जाएगा।

-वाईके गंगवार, जिला पर्यटन अधिकारी
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Old 05-04-2013, 08:40 PM   #45
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मुंबई बम ब्लास्ट मामले में पांच साल की सजा सुनाए जाने के बाद मुश्किल दौर से गुजर रहे संजय दत्त चमत्कार की आस लगाए माता के दरबार में पहुंचे हैं। आज वह अपने जीजा और बॉलीवुड अभिनेता कुमार गौरव के साथ मध्यप्रदेश में दतिया की प्रसिद्ध पीताम्बरा देवी पीठ में दर्शन करने आए। वह प्राइवेट प्लेन से मुंबई से गुना पहुंचे।

हालांकि संजय की इस विजिट को प्राइवेट रखा गया था, पर फिर भी कुछ फैन्स को यह खबर लगने के कारण गुना हवाई स्ट्रिप पर उनके बहुत से फैन्स इकट्ठा हो गए।

संजय दत्त ने धोती कुर्ता पहना हुआ था। ऐसा बताया जा रहा है कि दतिया में मां पीताम्बरा पीठ के दर्शन कर वहां पूजा पाठ करेंगे, देर शाम गुना लौटकर संजय दत्त प्राइवेट प्लेन से ही मुंबई रवाना हो जाएंगे।

सूत्रों ने बताया कि ग्वालियर या झांसी में वायु सेना की ट्रेनिंग चलने के कारण वहां की एयर स्ट्रीप पर नहीं उतर सके। साथ ही शिवपुरी की एयर स्ट्रीप भी पूरी तौर पर सुरक्षित नहीं होने के कारण उन्हें गुना हवाई पट्टी पर उतरना पड़ा।
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Old 05-04-2013, 09:03 PM   #46
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वह अपनी आंखों में नए अरमान और ढेरों सपने सजाकर अपने पिता के घर से विदा होकर ससुराल आई. लेकिन ससुराल में कुछ समय बिताते ही उसे यह डर सताने लगा कि आखिर कब तक वह अपने जख्मों को अपने माता-पिता से छुपाती रहेगी, वे जख्म जो उसे उसके पति और ससुरालवालों द्वारा दिए गए हैं. जिसका कारण था बेटे को जन्म ना देकर दो बार बेटी पैदा करना. शायद वह यह नहीं समझ पाई कि आज भी समाज में बेटी को जन्म देने वाली महिला को अपराधिन समझा जाता है और यह अपराध किसी भी हाल में क्षम्य नहीं है. पहली बेटी के जन्म के बाद उस पर जो अत्याचार हुए वह उन्हें फिर भी सह गई लेकिन दूसरी बेटी के बाद तो जैसे उस पर कहर ही बरपाया जाने लगा. परेशान होकर वह अपने माता-पिता के घर आ गई. लेकिन यहां भी उसे चैन से जीने नहीं दिया गया. उसके ससुराल वाले उसके पति की दूसरी शादी करवाने की जिद करते या उसे अपने मायके से पैसे लाने के लिए कहते ताकि उसकी बेटियों का खर्चा उठाया जा सके. यह मामला पुलिस के पास से होता हुआ अदालत तो पहुंचा लेकिन इससे पहले कि अदालत अपना निर्णय सुना पाता उसके पति ने उसे गोली मार दी.

यह उसी महिला की दर्दभरी कहानी है जिसे सरेआम गोलियों से भून दिया गया और उसे भूनने वाला और कोई नहीं बल्कि उसका अपना पति ही था. वह हर हाल में अपने परिवार को टूटने से बचाना चाहती थी लेकिन हुआ वो जो उसकी किस्मत को मंजूर था.


दिल्ली के कड़कड़डूमा मेट्रो स्टेशन पर अपनी पत्नी और ससुर को गोली मारने वाले आरोपी युवक ने यूं तो खुद को भी गोली मार ली लेकिन क्या इससे उसका अपराध कम हो जाएगा. उसके लिए उसकी बेटियां बोझ थीं, वह उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाया तो अपनी पत्नी को ही जान से मार दिया.

हालात वही पुराने और मामला नया. बेटियों को बोझ समझने का सिलसिला आज की बात नहीं है. अगर यह कहें कि भारतीय समाज की जड़ों में ही यह खूबी व्याप्त है तो भी शायद कोई इस बात को नहीं नकार पाएगा.


पहले बेटियों का खून बहाया जाता था लेकिन अब पत्नियों पर जुल्म ढाए जाने का सिलसिला शुरू हो गया है जबकि विज्ञान यह पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि बेटी होगी या बेटा ये महिला के हाथ में नहीं होता बल्कि पुरुष का स्पर्म ही निर्धारित करता है कि उसकी पत्नी की कोख से एक बेटी जन्म लेगी या बेटा. अगर बेटी का जन्म लेना पाप है तो जाहिर है इस पाप का असली भागी सिर्फ और सिर्फ वह पुरुष है ना कि महिला. मां अपने बच्चे को 9 माह तक कोख में रखती है बस इसीलिए उसे दोषी ठहराया जाना पूर्णत: गलत है. पहले कहा जाता था कि बेटा-बेटी में भेदभाव वो लोग करते हैं जो अशिक्षित होते हैं. गांव-देहात में रहते हैं, लेकिन इसे हमारे समाज की विडंबना कहिए या कुछ और परंतु बेटियों को अपनाने में आजकल सबसे पीछे वही लोग हैं जो शिक्षित हैं और संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं और जिनके पास ना तो धन की कमी है और ना ही सुविधाओं की. अगर कुछ कम है तो वह है बेटियों को अपनाने का जज्बा. उन्हें बोझ समझने की मानसिकता जब तक हमारे दिमाग में रहेगी घर के घर तबाह होते रहेंगे.
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Old 14-04-2013, 09:20 PM   #47
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मेरे दादा जी उस उम्र के दौर से गुजर रहे हैं जहां चीजें अक्सर छूटने लगती हैं। छोटी बच्ची ने उनके हाथों को देखकर हैरत से कहा,‘इनके हाथों की नसें किस तरह चमक रही हैं।’ ऐसा उसने गंभीरता से कहा था। उस छोटी बच्ची को भी एक वृद्ध की इस अवस्था को देखकर हैरानी हुई।

दरअसल बुढ़ापा अपने साथ संशय और हैरानी लाता है। इंसान खुद को ऐसे दौर में पाता हैं जहां से रुट बदलना नामुमकिन है। अब तो सिर्फ आगे जाना है। हां, पीछे मुड़कर देखा जा सकता है, लेकिन पुराने दिनों को जिया नहीं जा सकता।

बच्ची की बात ने मुझे भी गंभीर कर दिया था। नसों ने त्वचा का दामन नहीं छोड़ा है। बस किसी तरह चिपकी हैं।

हम जब एक वृद्ध को देखते हैं तो पाते हैं कि जर्जरता किस कदर हावी हो सकती है। शरीर कितना है बाकी।

हम जानते हैं कि हम भी कभी वृद्ध होंगे। हम भी होंगे अपने वृद्धजनों के दौर में। ...............तब एहसास होगा कि बुढ़ापा क्या होता है?
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Old 14-04-2013, 09:24 PM   #48
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बुढापा : एक अध्ययन

दूसरों का साथ
एक पीड़ा जो अंतहीन है उसका असर कम होना चाहिए ताकि जीवन उपहास न करे। मैला जीवन किसने बताया। लोगों की हंसी इसे साफ कर देगी और उनका साथ भी। दुख होंगे कम। आंख होगी नम। यह नमी हर्ष की होगी

हम प्यार क्यों करते हैं?
मैं खुद से जूझ रही हूं लेकिन खुद से प्रेम भी कर रही हूं। जीवन से भी तो हम प्रेम कर सकते हैं। बुढ़ापे से भी प्रेम किया जा सकता है। बात सिर्फ नजरिये की है। प्यार का मतलब भाव से है. वह है प्यार का भाव जिसका अदृश्य होना उसकी खासियत है। वैसे भाव दिखते ही नहीं, महसूस किये जाते हैं

खुशी बिखेरता जीवन
खुशी एक एहसास है, एक खूबसूरत अनुभव। हमारा अंग-अंग इससे प्रभावित होता है। हम खुद को ताजा पाते हैं। नयी ऊर्जा का संचार होता और जीवन में बहार आ जाती है। कलियां खिलने लगती हैं, महक से हम पुलकित हो उठते हैं। वातावरण का रंग बदल जाता है। मन का दर्द छिप जाता है

थोड़ा रो लो, मन हल्का हो जाएगा
मेरी मां कहा करती थी कि आंसू अनमोल हैं, इन्हें यूं जाया मत करो। जो बात छिपी हो किसी कोने में, दर्द बढ़ा हो कहीं, उसे बाहर लाना हो अगर, तो थोड़ा रो लो। शायद तसल्ली मिल जाए, मन हल्का हो जाए

कहीं फूटती कोपलें मिल जाएं
खोई हुई चीजें अक्सर ढूंढी जाती हैं। ऐसा हमारे साथ भी होता है। इंसान खुद को खुद में खोजने की कोशिश करता है। लेकिन ऐसा करने वाले कम होते हैं क्योंकि भ्रम में जीने वालों की तादाद का कोई ठिकाना भी तो नहीं

जीवन से इतना प्यार है
जब रिश्ते बने हैं, मोह जरुर उपजा होगा। इंसान के लिए यह जरुरी नहीं कि वह किस स्थिति में लोगों से जुड़ाव रखे, बल्कि वह कई बार मोह के झोंके को अचानक अपने करीब पाता है। उन्हें जीवन से मोह हो जाता है

प्रेम कितना मीठा है
प्रेम कितना अनोखा है। निरंतर बहता है, सिर्फ बहता है। उसकी महक जीवन को आनंदित करती है। ऐसा लगता है जीवन उल्लास से भर गया है। पता नहीं हवा कैसी चलने लगती है। झोंके रंगीन लगते हैं। मिजाज बदल जाता है। फूलों से बातें करने का मन करता है

सूखी भी, गीली हैं आंखें
अनमोल हैं किसी के लिए कोई, और उनसे भी कीमती हैं उसकी आंखें। न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती हैं। निरालापन-अलबेलापन समझाती हैं। इंसान को इंसान से मिलाती हैं। यह संसार सुन्दर है, हमने इसके रुप को अपनी आंखों से निहारा है

जिंदगी मीठी है
मैं खुद को पीछे नहीं हटने दूंगी क्योंकि जिंदगी मीठी थी, मीठी है और अंतिम सांस तक रहेगी। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले की मिठास और अबकी मिठास में जमीन आसमान की दूरी है

उसने कहा था
बातों की नदियां बह जाती हैं। दुख–दर्द मानो सिमट गये हैं– ऐसा अहसास होता है। उस समय संसार निर्जन, सूखा रेगिस्तान नहीं रह जाता। सूखे पत्ते फड़फड़ाहट नहीं करते, बल्कि उनकी शुष्कता तरंगित होती दिखती है। सुख की बीणा बजती है

मकड़ी के जाले सी जिंदगी
उलझनों और परेशानियों का मेल है जिंदगी। मकड़ी के जाले सी उलझी हूई, जीत-हार का मैदान है जिंदगी। यहां पासे फेंके जाते हैं, पासे पलट भी जाते हैं। उदास और खिले चेहरों का समागम, भावनाओं की बिक्री का खुला बाजार, मोल-भाव और कई खरीददार

अब यादों का सहारा है
यादों को समेटने का वक्त आ गया है। बुढ़ापा चाहता है कि जिंदगी थमने से पहले यादों को फिर जीवित कर लो। शायद कुछ पल का सुकून मिल जाए। शायद कुछ पल पुराना जीवन जीकर थोड़ा हैरान खुद को किया जाए

बुढ़ापा भी सुन्दर होता है
मुझे मालूम है कि सबकी सोच एक-सी नहीं होती। इन जर्जर हाथों में कोमलता अब कहां? फिर भी सुन्दर हैं यह हाथ। चेहरे पर रौनक की बात छोड़ो, झुर्रियां चहलकदमी क्या, स्थायी तौर पर निवास करने लगी हैं

बस समय का इंतजार है
उत्पत्ति के समय से जीवन के कष्टों की उल्टी गिनती शुरु हो जाती है। हम एक तरह से अनजान हैं। हमारे आसपास बहुत कुछ ईश्वर तैयारियां कर रहा होता है

उन्मुक्त होने की चाह
पंछियों को देखकर बूढ़ी काकी शायद यही सोच रही थी कि वह भी इक दिन इसी तरह उन्मुक्त होगी। सब तरह के बंधनों से मुक्त होगी. यह कामना जल्द पूरी होने की आस लगाये थी काकी

बंधन मुक्ति मांगते हैं
अब वक्त नहीं कहता कि आगे चलो। कहता है कि बस भी करो, बहुत हुआ, विश्राम करने का समय आ गया। मनुष्य शरीर सारे बंधनों से मुक्त होगा और आजाद होगी आत्मा अपने नये देश जाने के लिए। यह उजाले को छूने की कोशिश होगी

गलतियां सबक याद दिलाती हैं
हमारी गलतियां सबक होती हैं ताकि भविष्य में ऐसा न हो। इतना समझकर भी हम नहीं संभले तो अपने नुक्सान के जिम्मेदार हम खुद हैं। छोटी-छोटी गलतियां अक्सर बड़ी बन जाया करती हैं। मामूली दरारें विशाल भवनों को समय के साथ कमजोर करती रहती हैं

सीखने की भी चाह होती है
सीखना भी एक कला है और जीना भी। जीकर निपुणता पायी जा सकती है तथा कौशल से सुन्दर जीवन। पर यह सब इतना आसान नहीं। प्रायः अच्छे कार्य सरल नहीं होते। हम जानते हैं कि अच्छे विचार उतनी तीव्रता से ग्रहण नहीं किये जाते, जबकि बुराइयों को समाने में वक्त नहीं लगता
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हर पल जीभर जियो
इंसान हर पल को जीभर कर जीना सीखे। चूम ले रोशनी को ताकि सूरज निकलने का इंतजार न करना पड़े। दूसरों से लगाव करना सीखे वह। उनके शब्दों को समझे, मीठा बोले, तो कितना कुछ आसान हो जाए

संबंधों के दायरे में
इंसान इंसान के बिना पूरा नहीं। हम संबंधों के दायरे में जीते हैं। यह किसी ने सिखाया नहीं, स्वत: है। जरुरतें मिलजुलकर पूर्ण होती हैं। इंसानियत सिखाती है कि जुड़कर चलो। रिश्ते यहीं उत्पन्न होते हैं। रिश्ते टूटते जरुर हैं, लेकिन उनका अंत नहीं होता

पूर्व जनम के मिले संजोगी
तुमने एक मजबूत रिश्ता बना लिया जो शायद ही कभी टूटे। एहसास हो गया मुझे कि अनजाने लोग किस तरह अपनों की तरह लगने लगते हैं। कितना प्रेम करने लगते हैं हम उनसे। ये लोग शायद कभी हमसे जुड़े रहे होंगे, तभी फिर से हमारे साथ हैं- यह संयोग नहीं तो क्या है?

क्योंकि सपने हम भी देखते हैं
काकी अपनी सखा को नहीं भूली क्योंकि वह उसके हृदय में बस गयी। कुछ लोग हमसे अलग दुनिया के लगते जरुर हैं, लेकिन होते नहीं। हम उन्हें हमेशा अपने पास रखने की ख्वाहिश करते हैं। उम्मीद सदा रहती है क्योंकि सपने हम भी देखते हैं।

पाया क्या इतना जीकर?
वास्तव में हमने जर्जरता को पाया इतना जीकर। बुढ़ापा हासिल किया इतना जीकर। थकी काया को ढोने का इंतजाम किया इतना जीकर। कुछ नहीं, फिर भी सबकुछ किया हमने। सिर्फ पहचान नहीं की खुद की, क्योंकि हम संसार में खो गए. खोकर खुद को फिर पाया क्या हमने इतना जीकर?

मुसीबतें हौंसला देती हैं
जीवन यह कहता है कि वह असंख्य उतार-चढ़ाव से भरा है। उसमें गोते खाने पड़ते हैं और नाव किनारा मांगती है चाहें वह उसे पहचानती न हो। संघर्ष हर पल मौजूद है। इसके बिना जीवन संभव भी तो नहीं

जीवन अभी हारा नहीं
बुढ़ापा बिल्कुल बोझिल नहीं। सफर कितना भी मुश्किल क्यों न हो, एक मुस्कराहट उसे आसान बना देती है। जिंदगी का यह अंतिम सफर अबतक के सफर का सार है. बुढ़ापा टिका है हौंसले पर, एक वादे पर कि जीवन अभी हारा नहीं, वह पीछे हटेगा नहीं

ठेस जो हृदय तोड़े
हमें सीखना होगा ताकि किसी को यह न लगे कि हम बुरे हैं। हमें सीखना होगा कि किसी का हृदय कभी न टूटे, कभी न दुखे क्योंकि इससे व्यक्ति भी बिखर जाता है। हमें नहीं कहना होगा वह शब्द जो वाण की तरह धंस जाए

कितने अहम हैं कुछ लोग
हम इंसानों में यह खासियत होती है कि जहां हमें किनारा दिखाई पड़ता है, हम उस ओर रुख कर देते हैं। जिनकी जिंदगी में दुख अधिक होता है, उन्हें सुख की तलाश रहती है। वे प्यार की मामूली छींट से खुद को पूरी तरह भिगो देते हैं

जिंदगी हर बार हार जाती है
मरने से पहले यादों की पूरी किताब इतनी तेजी से खुलती है कि हम केवल देखते रह जाते हैं। यह सब इतनी जल्दी हो जाता है कि सोच भी पशोपेश में पड़ जाती है। जिंदगी कितनी भी शानदार क्यों न रही हो, उसके सिमटने की बारी आती है

सच का सामना
बुढ़ापा जीवन का सार होता है। जीवन भर में कष्टों भरी राहें मिलती हैं। हम उनसे दो-चार होते हैं। लेकिन बुढ़ापा उतना सरल नहीं, इसे निभाना पड़ता है। सच कहूं तो बुढ़ापा ढोया जाता है

न सिमटेगा यह प्रेम
इस समय सूखे रेगिस्तान में एक बूंद भी सागर बहा देती है। थकी आंखें जिनकी नमीं कब की सूख चुकी, हरी-भरी दिखाई देती हैं। बुढ़ापे को और चाहिये ही क्या?

अपने ही अपने होते हैं
बचपन से लेकर आजतक हमने किसी न किसी से प्रेम ही तो किया है। शायद इसमें बंधकर ही हमने कठिन रास्तों को चुना, लेकिन सरलता से पार करने में हम कामयाब भी हुए। मां-बाप और औलाद के बीच प्रेम जमकर हंसा और खूब नाचा

युवा हवा का रुख
युवाओं की स्थिति पतंग के समान होती है, इधर-उधर इतराती पतंग। तेज हवा के झोंके पर डोर छूटने का डर भी रहता है। उन्मुक्त गगन से बातें करने की चाह कई बार धरातल पर भी रहने को विवश कर देती है

अनुभव अहम होते हैं
हम खोकर भी बहुत कुछ पा लेते हैं और कभी-कभी बैठे-बिठाये लुट जाते हैं। अपनी तकदीर खुद लिखने की कोशिश करते हैं। अनजाने में अनचाही राहों पर निकल पड़ते हैं। किस लिये, आखिर किस लिये करते हैं हम यह सब। हमारे अनुभव हमें बताते हैं कि हम क्या भूल गये, क्या तैयारी बाकी रह गयी

रसहीनता का आभास
सिलवटें इकट्ठा होने पर अहसास होता है कि इतने स्वाद होते हुए भी जीवन रसहीन है। नीरसता और हताशा का माहौल बहुत कुछ सोचने को विवश करता है। वक्त कई जायके दे जाता है- अनगिनत स्वादों से भरे

जीवन का निष्कर्ष नहीं
कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका हल नहीं निकलता, लेकिन सवाल असल में वे ही होते हैं। बातों को घुमाया-फिराया जा सकता है, लेकिन जीवन की गुत्थी को हल नहीं किया जा सकता। अगर हल निकल जाता तो इंसान जीवित ही रहता
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 14-04-2013, 09:26 PM   #50
jai_bhardwaj
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मैं अकेला हूं, सूनसान हूं, वीरान हूं। यह मुझे मालूम है कि मेरा जीवन बीत चुका। कुछ सांसें शेष हैं- कब रुक जाएं क्या पता?

मैंने हर रंग को छूकर देखा है, चाहें वह कितना उजला, चाहें वह धुंधला हो। उन्हें सिमेटा, जितना मुटठी में भर सका, उतना किया। रंग छिटके भी और उनका अनुभव जीवन में बदलाव लाता रहा। मैं बदलता रहा, माहौल बदलता रहा, लोग भी।

चश्मे में मामूली खरोंच आयी। दिखता अब भी है, मगर उतना साफ नहीं। सुनाई उतना साफ नहीं देता। लोग कहते हैं,‘‘बूढ़ा ऊंचा सुनता है।’’ लोग पता नहीं क्या-क्या कहते हैं।

जब जवानी में फिक्र नहीं की, फिर बुढ़ापे में शर्म कैसी?

कुछ लोग यह कहते सुने हैं,‘‘बूढ़ा पागल है।’

हां, बुढ़ापा पागल होता है, बाकि सब समझदार हैं।

जवानों की जमात में ‘कमजोर’ कहे जाने वाले इंसानों का क्या काम? सदा जमाने ने हमसे किनारा किया। हमें बेगाना किया। इसमें अपनों की भूमिका ज्यादा रही।

इतना कुछ घट चुका, इतना कुछ बीत चुका। पर लगता नहीं कि इतनी जल्दी इतना घट गया। जीवन वाकई एक सपने की तरह है। थोड़े समय पहले हम नींद में थे, अब जाग गये। शायद आखिरी नींद लेने के लिए। चैन की अंतिम यात्रा हमारे लिए शुभ हो।

मैं बिल्कुल टूटा नहीं। यह लड़ाई खुद से है जिसे मुझे लड़ना है। समर्पण नहीं करुंगा। संघर्ष मैंने जीवन से सीखा है।

विपत्तियों को धूल की तरह उड़ाता हुआ चलना चाहता हूं। हारना नहीं चाहता मैं। बिल्कुल नहीं। वैसे भी हारने के लिए मेरे पास बचा ही क्या है? इतना कुछ गंवा चुका, बस चाह है मोक्ष पाने की। चाह है फिर से न लौट कर आने की।

बुढ़ापा चाहता है छुटकारा, बहुत सह चुका, बस आराम की चाह है।
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