20-06-2013, 01:27 PM | #41 |
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Re: मोती और माणिक्य
सन 1942 से ही दिनकर जी मधुमेह के रोगी थे. उनको मिठाई पूरी वाला खाना वर्जित था. अपने घर पर वह परहेज वाला खाना ही खाते थे. लेकिन मैथिलिशरण गुप्त जी को बेसन के लड्डू और बासी पूरी खाने-खिलाने का शौक था. बाहर दिनकर जी भी इन्हें खाने का लोभ न छोड़ पाते. गुप्त जी उनकी इस कमजोरी से भली भाँती परिचित थे. ज्योही दिनकर जी गुप्त जी के यहाँ पहुंचते उनके सामने बेसन के लड्डू और पूरियां परोस दी जाती थीं. एक दिन दिनकर जी लड्डू-पूरी पर हाथ साफ कर रहे थे कि वहां नवीन जी आ पहुंचे. नवीन जी अत्यंत भावुक व्यक्ति थे और दिनकर जी को बहुत प्यार करते थे. नवीन जी को लगता था कि दिनकर जी के प्रति गुप्त जी का स्नेह निश्छल नहीं है.वैसे तो नवीन जी आरंभ से ही निर्भीक और मुंहफट होने की सीमा तक स्पष्टवादी थे, किन्तु उन दिनों वे अधिक ही मुंहफट हो गए थे. बाद में चल कर तो नवीन जी का मानसिक संतुलन ही बिगड़ गया था.बहरहाल, उस दिन दिनकर जी को लड्डू-पूरी खाते देख कर नवीन जी अनायास मैथिलीशरण गुप्त पर बरस पड़े, “दद्दा, तुम इतने बड़े दुष्ट हो, यह मुझे मालूम नहीं था. मधुमेह के रोगी को लड्डू खिला रहे हो ताकि यह मर जाए और तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए!” उन दिनों दद्दा को राष्ट्रकवि के नाम से संबोधित किया जाता था. बहुत से लोग दिनकर जी को भी राष्टकवि कह कर ही बुलाते थे. नवीन जी का क्रोध देख कर गुप्त जी अवाक रह गए. दिनकर जी को भी नवीन जी का उग्र व्यवहार उस समय अच्छा नहीं लगा था. लेकिन नवीन जी के देहावसान के बाद उनकी चर्चा करते हुए दिनकर जी अक्सर भावुक हो जाते थे. उन्होंने नवीन जी के देहावसान के बाद कहा था, “नवीन जी का निश्छल प्यार मुझे मिला था, किन्तु इसे मैं उनके जीवन काल में समझ नहीं पाया. अंतिम समय वे अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह खो चुके थे और खादी का पतला जांघिया पहने ही विनसर प्लेस से साउथ एवन्यू, मेरे फ्लेट में चले आते थे. तब मुझे उनका इस रूप में आना अच्छा नहीं लगता था. आज चारों तरफ देखता हूँ तो वैसा सहज मनुष्य कहीं नज़र नहीं आता. साहित्यकार और राजनीतिज्ञ सहज हो ही नहीं सकता. कितना बड़ा आश्चर्य है कि नवीन जी साहित्यकार थे और राजनीतिज्ञ भी.” (पं. शिवसागर मिश्र के संस्मरण) ***** |
17-09-2013, 11:54 PM | #42 |
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Re: मोती और माणिक्य
मास्टर पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी जी
जन्म = 27 मई, 1894 (जन्म स्थान: राजनांद गांव, छत्तीसगढ़) मृत्यु = 18 दिसम्बर 1971 वे “सरस्वती” के कुशल संपादक, साहित्य वाचस्पति, और मास्टर जी के नाम से प्रसिद्ध हुये. 1911 में जबलपुर से निकलने वाली पत्रिका “हितकारिणी” में उनकी पहली कहानी ‘तारिणी’ 1911 में प्रकाशित हुई. यह एक विद्वान् निबंधकार के रूप में भी जाने जाते हैं. उपन्यासकार और कवि के रूप में भी इनका कृतित्व उल्लेखनीय है. 1920 से 1925 तक वे “सरस्वती” के सम्पादक (एक वर्ष) और प्रधान सम्पादक रहे. द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में उनकी गिनती की जाती है. उन्होंने कई वर्ष तक अध्यापन कार्य भी किया. उनकी कुछ कवितायें नीचे दी जा रही हैं. Last edited by rajnish manga; 18-09-2013 at 12:01 AM. |
17-09-2013, 11:55 PM | #43 |
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Re: मोती और माणिक्य
“शतदल” की कविता ‘ग्राम गौरव’ से |
17-09-2013, 11:57 PM | #44 |
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Re: मोती और माणिक्य
गाँव का जीवन
हुआ करता था पुलकित ग्राम, उमड़ जाता था हर्ष प्रवाह. |
18-09-2013, 10:10 AM | #45 |
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Re: मोती और माणिक्य
शायर: अली सरदार जाफ़री नाम : अली सरदार जाफ़री जन्म : 29 नवम्बर 1913 गाँवबलरामपुर (गोंडा ज़िला, उ.प्र.) में मृत्यु : 1 अगस्त 2000 शिक्षा : एम.ए. लखनऊ विश्वविद्यालय प्रकाशित कृतियाँ : ‘परवाज़’ (1944), ‘जम्हूर’ (1946), ‘नई दुनिया को सलाम’ (1947), ‘ख़ूबकी लकीर’ (1949), ‘अम्मन का सितारा’ (1950), ‘एशिया जाग उठा’ (1950), ‘पत्थर की दीवार’ (1953), ‘एक ख़्वाब और (1965) पैराहने शरर (1966), ‘लहु पुकारता है’ (1978) सम्मान :
ज्ञानपीठ पुरस्कार, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, कुमारन आशान पुरस्कार तथा इक़बाल सम्मान जैसे विशिष्ठ साहित्यिक सम्मानों से अलंकृत किया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और रूसी सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार Last edited by rajnish manga; 18-09-2013 at 11:41 PM. |
18-09-2013, 10:17 AM | #46 |
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Re: मोती और माणिक्य
भूखी मां, भूखा बच्चा |
18-09-2013, 10:59 AM | #47 |
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Re: मोती और माणिक्य
सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल |
18-09-2013, 11:02 AM | #48 |
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Re: मोती और माणिक्य
मेरा सफ़र |
18-09-2013, 11:03 AM | #49 |
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Re: मोती और माणिक्य
मैं रंग-ए-हेना आहंग-ए-ग़ज़ल |
18-09-2013, 11:13 AM | #50 |
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Re: मोती और माणिक्य
नज़्म |
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