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Old 10-12-2010, 08:43 AM   #41
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

व्यापारी ने कहा। ‘तुम्हें तुम्हारी चोटी का मुँहमाँगा दाम दिया जाएगा।’ तेनालीराम ने कहा। ‘सब आपकी कृपा है लेकिन…।’व्यापारी ने कहा। ‘क्या कहना चाहते हो तुम।’-तेनालीराम ने पूछा। ‘जी बात यह है कि जब मैंने अपनी बेटी का विवाह किया था, तो अपनी चोटी की लाज रखने के लिए मैंने पूरी पाँच हजार स्वर्णमुद्राएँ खर्च की थीं। पिछले साल मेरे पिता की मौत हुई। तब भी इसी कारण पाँच हजार स्वर्णमुद्राओं का खर्च हुआ और अपनी इसी प्यारी-दुलारी चोटी के कारण बाजार से कम-से-कम पाँच हजार स्वर्णमुद्राओं का उधार मिल जाता है।’ अपनी चोटी पर हाथ फेरते हुए व्यापारी ने कहा।

‘इस तरह तुम्हारी चोटी का मूल्य पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ हुआ। ठीक है,यह मूल्य तुम्हें दे दिया जाएगा।’ पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ व्यापारी को दे दी गईं। व्यापारी चोटी मुँड़वाने बैठा। जैसे ही नाई ने चोटी पर उस्तरा रखा,व्यापारी कड़ककर बोला, ‘सँभलकर, नाई के बच्चे। जानता नहीं, यह महाराज कृष्णदेव राय की चोटी है।’ राजा ने सुना तो आगबबूला हो गया। इस व्यापारी की यह मजाल कि हमारा अपमान करे? उन्होंने कहा, ‘धक्के मारकर निकाल दो इस सिरफिरे को।’ व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राओं की थैली को लेकर वहाँ से भाग निकला। कुछ देर बाद तेनालीराम ने कहा, ‘आपने देखा महाराज, राजगुरु ने तो पाँच स्वर्णमुद्राएँ लेकर अपनी चोटी मुँड़वा ली। व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ भी ले गया और चोटी भी बचा ली। आप ही कहिए, ब्राह्मण सयाना हुआ कि व्यापारी?’राजा ने कहा, ‘सचमुच तुम्हारी बात ठीक निकली।’
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Old 10-12-2010, 08:43 AM   #42
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

तेनालीराम और लाल मोर
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय को अनोखी चीजों को जमा करने का बहुत शौक था। हर दरबारी उन्हें खुश करने के लिए ऐसी ही चीजों की खोज में लगे रहते थे, ताकि राजा को खुश कर उनसे मोटी रकम वसूल सके।

एक बार कृष्णदेव राय के दरबार में एक दरबारी ने एक मोर को लाल रंग में रंग कर पेश किया और कहा, “महाराज इस लाल मोर को मैंने बहुत मुश्किल से मध्य प्रदेश के घने जंगलों से आपके लिए पकड़ा है।” राजा ने बहुत गौर से मोर को देखा। उन्होंने लाल मोर कहीं नहीं देखा था।

राजा बहुत खुश हुए…उन्होंने कहा, “वास्तव में आपने अद्भुत चीज लाई है। आप बताएं इस मोर को लाने में कितना खर्च पड़ा।” दरबारी अपनी प्रशंसा सुनकर आगे की चाल के बारे में सोचने लगा।

उसने कहा, “मुझे इस मोर को खोजने में करीब पच्चीस हजार रुपए खर्च करने पड़े।”

राजा ने तीस हजार रुपए के साथ पांच हजार पुरस्कार राशि की भी घोषणा की। राजा की घोषणा सुनकर एक दरबारी तेनालीराम की तरफ देखकर मुस्कराने लगा।

तेनालीराम उसकी कुटिल मुस्कराहट देखकर समझ गए कि यह जरूर उस दरबारी की चाल है। वह जानते थे कि लाल रंग का मोर कहीं नहीं होता। बस फिर क्या था, तेनालीराम उस रंग विशेषज्ञ की तलाश में जुट गए।
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Old 10-12-2010, 08:44 AM   #43
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

दूसरे ही दिन उन्होंने उस चित्रकार को खोज निकाला। वे उसके पास चार मोर लेकर गए और उन्हें रंगवाकर राजा के सामने पेश किया।

“महाराज हमारे दरबारी मित्र, पच्चीस हजार में केवल एक मोर लेकर आए थे, पर मैं उतने में चार लेकर आया हूं।”

वाकई मोर बहुत खूबसूरत थे। राजा ने तेनालीराम को पच्चीस हजार रुपए देने की घोषणा की। तेनाली राम ने यह सुनकर एक व्यक्ति की तरफ इशारा किया, “महाराज अगर कुछ देना ही है तो इस चित्रकार को दें। इसी ने इन नीले मोरों को इतनी खूबसूरती से रंगा है।”

राजा को सारा गोरखधंधा समझते देर नहीं लगी। वह समझ गए कि पहले दिन दरबारी ने उन्हें मूर्ख बनाया था।

राजा ने उस दरबारी को पच्चीस हजार रुपए लौटाने के साथ पांच हजार रुपए जुर्माने का आदेश दिया। चित्रकार को उचित पुरस्कार दिया गया। दरबारी बेचारा क्या करता, वह बेचारा सा मुंह लेकर रह गया।
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Old 10-12-2010, 08:44 AM   #44
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तेनालीराम का घोड़ा

राजा कृष्णदेव राय का घोड़ा अच्छी नस्ल का था इसलिए उसकी कीमत ज्यादा थी। तेनालीराम का घोड़ा मरियल था। तेनाली राम उसे बेचना चाहते थे, पर उसकी कीमत बहुत ही कम थी। वह चाह कर भी बेच नहीं पाते थे।

एक दिन राजा कृष्णदेव राय और तेनाली राम अपने अपने घोड़े पर सवार होकर सैर को निकले। सैर के दौरान राजा ने तेनालीराम के घोड़े की मरियल चाल देखकर कहा, “कैसा मरियल घोड़ा है तुम्हारा, जो कमाल मैं अपने घोड़े के साथ दिखा सकता हूं, वह तुम अपने घोड़े के साथ नहीं दिखा सकते।”

तेनाली राम ने राजा को जवाब दिया, “महाराज जो मैं अपने घोड़े के साथ कर सकता हूं वह आप अपने घोड़े के साथ नहीं कर सकते।”

राजा मानने को जरा भी तैयार नहीं थे। दोनों के बीच सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लग गई।

दोनों आगे बढ़े। सामने ही तुंगभद्रा नदी पर बने पुल को वे पार करने लगे। नदी बहुत गहरी और पानी का प्रवाह तेज था। उसमें कई जगह भंवर दिखाई दे रहे थे। एकाएक तेनालीराम अपने घोड़े से उतरे और उसे पानी में धक्का दे दिया।

उन्होंने राजा से कहा, “महाराज अब आप भी अपने घोड़े के साथ ऐसा ही कर के दिखाइए।” मगर राजा अपने बढ़िया और कीमती घोड़े को पानी में कैसे धक्का दे सकते थे। उन्होंने तेनाली राम से कहा, “न बाबा न, मैं मान गया कि मै अपने घोड़े के साथ यह करतब नहीं दिखा सकता, जो तुम दिखा सकते हो।” राजा ने तेनाली राम को सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दीं। “पर तुम्हें यह विचित्र बात सूझी कैसे?” राजा ने तेनाली राम से पूछा।

“महाराज, मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि बेकार और निकम्मे मित्र का यह फायदा होता है कि जब वह नहीं रहे, तो दुख नहीं होता।” तेनाली राम की यह बात सुनकर राजा ठहाका लगाकर हंस पड़े।
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Old 10-12-2010, 08:44 AM   #45
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तेनालीराम का बोलने वाला बुत
दशहरे का त्यौहार निकट था। राजा कृष्णदेव राय के दरबारियों ने भी जब दशहरा मनाने की बात उठाई तो राजा कृष्णदेव राय बोले, ‘मेरी हार्दिक इच्छा है कि इस बार दशहरा खूब धूमधाम से मनाया जाए। मैं चाहता हूँ कि इस अवसर पर सभी दरबारी, मंत्रीगण, सेनापति और पुरोहित अपनी-अपनी झाँकियाँ सजाएँ। जिसकी झाँकी सबसे अच्छी होगी, हम उसे पुरस्कार देंगे।’

यह सुनकर सभी दूसरे दिन से ही झाँकियाँ बनाने में जुट गए। सभी एक से एक बढ़कर झाँकी बनाने की होड़ में लगे थे। झाँकियाँ एक से बढ़कर एक थीं। राजा को सभी की झाँकियाँ नजर आईं मगर तेनालीराम की झाँकी उन्हें कहीं दिखाई नहीं दी।

वह सोच में पड़ गए और फिर उन्होंने अपने दरबारियों से पूछा, ‘तेनालीराम कहीं नजर नहीं आ रहा है। उसकी झाँकी भी दिखाई नहीं दे रही है। आखिर तेनालीराम है कहाँ?’

‘महाराज, तेनालीराम को झाँकी बनानी आती ही कहाँ है? वह देखिए, उधर उस टीले पर काले रंग से रंगी एक झोंपड़ी और उसके आगे खड़ा है एक बदसूरत बुत। यही है उसकी झाँकी तेनालीराम की झाँकी।’ मंत्री ने व्यंग्यपू्र्ण स्वर में कहा।

राजा उस ऊँचे टीले पर गए और तेनालीराम से पूछा, ‘तेनालीराम, यह तुमने क्या बनाया है? क्या यही है तुम्हारी झाँकी?’ ‘जी महाराज, यही मेरी झाँकी है और मैंने यह क्या बनाया है इसका उत्तर मैं इसी से पूछकर बताता हूँ, कौन है यह?’ कहते हुए तेनालीराम ने बुत से पूछा, ‘बोलता क्यों नहीं? महाराज के सवाल का उत्तर दें।’

‘मैं उस पापी रावण की छाया हूँ जिसके मरने की खुशी में तुम दशहरे का त्यौहार मना रहे हो। मगर मैं मरा नहीं। एक बार मरा, फिर पैदा हो गया। आज जो आप अपने आसपास भुखमरी, गरीबी, अत्याचार, उत्पीड़न आदि देख रहे हैं न…। ये सब मेरा ही किया-धरा है। अब मुझे मारने वाला है ही कौन?’ कहकर बुत ने एक जोरदार कहकहा लगाया।

राजा कृष्णदेव राय को उसकी बात सुनकर क्रोध आ गया। वे गुस्से में भरकर बोले, ‘मैं अभी अपनी तलवार से इस बुत के टुकड़े-टुकड़े कर देता हूँ।’ ‘बुत के टुकड़े कर देने से क्या मैं मर जाऊँगा? क्या बुत के नष्ट हो जाने से प्रजा के दुख दूर हो जाएँगे?’ इतना कहकर बुत के अंदर से एक आदमी बाहर आया और बोला, ‘महाराज, क्षमा करें। यह सच्चाई नहीं, झांकी का नाटक था।’

‘नहीं, यह नाटक नहीं था, सत्य था। यही सच्ची झाँकी है। मुझे मेरे कर्तव्य की याद दिलाने वाली यह झाँकी सबसे अच्छी है। प्रथम पुरस्कार तेनालीराम को दिया जाता है।’राजा कृष्णदेव राय ने कहा। राजा की इस बात पर सभी दरबारी आश्चर्य से एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।
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Old 10-12-2010, 08:45 AM   #46
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तेनालीराम की घोषणा

एक बार राजा कृष्णदेव राय से पुरोहित ने कहा, ‘महाराज, हमें अपनी प्रजा के साथ सीधे जुड़ना चाहिए।’ पुरोहित की बात सुनकर सभी दरबारी चौंक पड़े। वे पुरोहित की बात समझ न पाए।

तब पुरोहित ने अपनी बात को समझाते हुए उन्हें बताया, ‘दरबार में जो भी चर्चा होती है, हर सप्ताह उस चर्चा की प्रमुख बातें जनता तक पहुँचाई जाएँ। प्रजा भी उन बातों को जानें।’ मंत्री ने कहा, ‘महाराज, विचार तो वास्तव में बहुत उत्तम है। तेनालीराम जैसे अकलमंद और चतुर व्यक्ति ही इस कार्य को सुचारु रूप से कर सकते हैं। साथ ही तेनालीराम पर दरबार की विशेष जिम्मेदारी भी नहीं है।’

राजा ने मंत्री की बात मान ली और तेनालीराम को यह काम सौंप दिया। तय किया गया-तेनालीराम जनहित और प्रजा-हित की सारी बातें, जो राजदरबार में होंगी, लिखित रूप से दरोगा को देंगे। दरोगा नगर के चौराहों पर मुनादी कराकर जनता और प्रजा को उन बातों की सूचनाएँ देगा।

तेनालीराम सारी बात समझ गया था। वह यह भी समझ गया था कि मंत्री ने उसे जबरदस्ती फँसाया है। तेनालीराम ने भी अपने मन में एक योजना बनाई। सप्ताह के अंत में उसने मुनादी करने के लिए दरोगा को एक पर्चा थमा दिया। दरोगा ने पर्चा मुनादी वाले को पकड़ाकर कहा, ‘जाओ और मुनादी करा दो।’

मुनादी वाला सीधा चौराहे पर पहुँचा और ढोल पीट-पीटकर मुनादी करते हुए बोला, ‘सुनो-सुनो, नगर के सारे नागरिकों सुनो।’ महाराज चाहते हैं कि दरबार में जनहित के लिए जो फैसले किए गए हैं, उन्हें सारे नगरवासी जानें। उन्होंने श्रीमान तेनालीराम को यह कठिन काम सौंपा है। हम उन्हीं की आज्ञा से आपको यह समाचार सुना रहे हैं। ध्यान देकर सुनो।
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Old 10-12-2010, 08:45 AM   #47
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महाराज चाहते हैं कि प्रज्ञा और जनता के साथ पूरा न्याय हो। अपराधी को दंड मिले। इस मंगलवार को राजदरबार में इसी बात को लेकर काफी गंभीर चर्चा हुई। महाराज चाहते थे कि पुरानी न्याय-व्यवस्था की अच्छी और साफ-सुथरी बातें भी इस न्याय प्रणाली में शामिल की जाएँ। इस विषय में उन्होंने पुरोहित जी से पौराणिक न्याय-व्यवस्था के बारे में जानना चाहा किंतु पुरोहित जी इस बारे में कुछ न बता सके, क्योंकि वह दरबार में बैठे ऊँघ रहे थे। उन्हें इस दशा में देखकर राजा कृष्णदेव राय को गुस्सा आ गया। उन्होंने भरे दरबार में पुरोहित जी को फटकारा। गुरुवार को सीमाओं की सुरक्षा पर राजदरबार में चर्चा हुईं किंतु सेनापति उपस्थित न थे, इस कारण सीमाओं की सुरक्षा की चर्चा आगे न हो सकी। राजा ने मंत्री को कड़े आदेश दिए हैं कि राजदरबार में सारे सभासद ठीक समय पर आएँ।’

यह कहकर मुनादी वाले ने ढोल बजा दिया। इस प्रकार हर सप्ताह नगर में जगह-जगह मुनादी होने लगी। हर मुनादी में तेनालीराम की चर्चा हर जगह होती थी। तेनालीराम की चर्चा की बात मंत्री,सेनापति और पुरोहित के कानों में भी पहुँची। वे तीनों बड़े चिंतित हो गए,कहने लगे,‘तेनालीराम ने सारी बाजी ही उलटकर रख दी। जनता समझ रही है कि वह दरबार में सबसे प्रमुख हैं। वह जानबूझकर हमें बदनाम कर रहा है।’

दूसरे ही दिन जब राजा दरबार में थे तो मंत्री ने कहा, ‘महाराज, हमारा संविधान कहता है कि राजकाज की समस्त बातें गोपनीय होती हैं। उन बातों को जनता या प्रजा को बताना ठीक नहीं।’

तभी तेनालीराम बोल पड़ा, ‘बहुत अच्छे मंत्री जी, आपको शायद उस दिन यह बात याद नहीं थी। आपको भी तभी याद आया, जब आपके नाम का ढोल पिट गया।’

यह सुनकर सारे दरबारी हँस पड़े। बेचारे मंत्री जी की शक्ल देखने लायक थी। राजा कृष्णदेव राय भी सारी बात समझ गए। वह मन ही मन तेनालीराम की सराहना कर रहे थे।
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तेनालीराम बने महामूर्ख
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय होली का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाते थे। इस अवसर पर हास्य-मनोरंजन के कई कार्यक्रम होते थे। हर कार्यक्रम के सफल कलाकार को पुरस्कार भी दिया जाता था। सबसे बड़ा पुरस्कार ‘महामूर्ख’ की उपाधि पाने वाले को दिया जाता था।

कृष्णदेव राय के दरबार में तेनालीराम सब का मनोरंजन करते थे। वह बहुत तेज दिमाग के थे। उन्हें हर साल का सर्वश्रेष्ठ हास्य-कलाकर का पुरस्कार तो मिलता ही था, ‘महामूर्ख’ का खिताब भी हर साल वही जीत ले जाते। दरबारी इस कारण से उनसे जलते थे। उन्होंने एक बार मिलकर तेनालीराम को हराने की युक्ति निकाली।

इस बार होली के दिन उन्होंने तेनालीराम को खूब छककर भंग पिलवा दी। होली के दिन तेनालीराम भंग के नशे में देर तक सोते रहे। उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा दोपहर हो रही थी। वह भागते हुए दरबार पहुंचे। आधे कार्यक्रम खत्म हो चुके थे।

कृष्णदेव राय उन्हें देखते ही डपटकर पूछ बैठे, “अरे मूर्ख तेनालीराम जी, आज के दिन भी भंग पीकर सो गए?”

राजा ने तेनालीराम को मूर्ख कहा, यह सुनकर सारे दरबारी खुश हो गए। उन्होंने भी राजा की हां में हां मिलाई और कहा, “आपने बिल्कुल ठीक कहा, तेनालीराम मूर्ख ही नहीं महामूर्ख है।”

जब तेनालीराम ने सब के मुंह से यह बात सुनी तो वे मुस्कराते हुए राजा से बोले, “धन्यवाद महाराज, आपने अपने मुंह से मुझे महामूर्ख घोषित कर आज के दिन का सबसे बड़ा पुरस्कार दे दिया।”

तेनालीराम की यह बात सुनकर दरबारियों को अपनी भूल का पता चल गया, पर अब वे कर भी क्या सकते थे? क्योंकि वे खुद ही अपने मुंह से तेनालीराम को महामूर्ख ठहरा चुके थे। हर साल की तरह इस साल भी तेनालीराम ‘महामूर्ख’ का पुरस्कार जीत ले गए।
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नाई की उच्च नियुक्ति

शाही नाई का कार्य प्रतिदिन राजा कॄष्णदेव राय की दाढी बनाना था। एक दिन, जब वह दाढी बनाने के लिए आया तो राजा कॄष्णदेव राय सोए हुए थे। नाई ने सोते हुए ही उनकी दाढी बना दी। उठने पर राजा ने सोते हुए दाढी बनाने पर नाई की बहुत प्रशंसा की। राजा उससे बहुत प्रसन्न हुए और उसे इच्छानुसार कुछ भी मॉगने को कहा। इस पर नाई बोला, “महाराज, मैं आपके शाही दरबार का दरबारी बनना चाहता हूँ।”

राजा नाई की इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हो गए। नाई की उच्च नियुक्ति का समाचार जैसे ही चारों ओर फैला, अन्य दरबारी यह सुनकर व्याकुल हो गए। सभी ने सोचा कि अज्ञानी व्यक्ति दरबारी बनकर अपने पद का दुरुपयोग कर सकता है। सभी दरबारी समस्या के समाधान के लिए तेनाली राम के पास पहूँचे। तेनाली राम ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया।

अगली सुबह राजा नदी किनारे सैर के लिए गए। वहॉ उन्होंने तेनाली राम को एक काले कुत्ते को जोर से रगड-रगड कर नहलाते हुए देखा तो हैरान हो गए। राजा द्वारा कारण पूछने पर तेनाली राम ने बताया, “महाराज, मैं इसे गोरा बनाना चाहता हूँ।”

राजा ने हँसते हुए पूछा, “क्या नहलाने से काला कुत्ता गोरा हो जाएगा?”

“महाराज, जब एक अज्ञानी व्यक्ति दरबारी बन सकता है तो यह भी गोरा हो सकता है।” तेनाली राम ने उत्तर दिया।

यह सुनकर राजा तुरन्त समझ गए कि तेनाली राम क्या कहना चाहता है। उसी दिन राजा ने दरबार में नाई को पुनः उसका वही स्थान दिया, जिसके लिए वह उपयुक्त था।
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पकड़ी चोरी
एक बार राजा कृष्णदेव राय के राज्य विजयनगर में लगातार चोरी होनी शुरू हुई। सेठों ने आकर राजा के दरबार में दुहाई दी, “महाराज हम लुट गए बरबाद हो गए। रात को ताला तोड़कर चोर हमारी तिजोरी का सारा धन उड़ा ले गए।”

राजा कृष्णदेव राय ने इन घटनाओं की जांच कोतवाल से करवाई, पर कुछ भी हाथ नहीं लगा। वह बहुत चिंतित हुए। चोरी की घटनाएं होती रही। चोरों की हिम्मत बढ़ती जा रही थी।

अंत में राजा ने दरबारियों को लताड़ते हुए कहा, “क्या आप में से कोई भी ऐसा नहीं जो चोरों को पकड़वाने की जिम्मेदारी ले सके?” सारे दरबारी एक दूसरे का मुंह देखने लगे। तेनालीराम ने उठ कर कहा, “महाराज यह जिम्मेदारी मैं लूंगा।”

वहां से उठकर तेनालीराम नगर के एक प्रमुख जौहरी के यहां गया। उसने अपनी योजना उसे बताई और घर लौट गया। उस जौहरी ने अगले दिन अपने यहां आभूषणों की एक बड़ी प्रदर्शनी लगवाई। रात होने पर उसने सारे आभूषणों को एक तिजोरी में रख कर ताला लगा दिया।

आधी रात को चोर आ धमके। ताला तोड़कर तिजोरी में रखे सारे आभूषण थैले में डालकर वे बाहर आए। जैसे ही वे सेठ की हवेली से बाहर जाने लगे सेठ को पता चल गया, उसने शोर मचा दिया।

आस-पास के लोग भी आ जुटे। तेनालीराम भी अपने सिपाहियों के साथ वहां आ धमके और बोले, “जिनके हाथों में रंग लगा हुआ है, उन्हें पकड़ लो।” जल्द ही सारे चोर पकड़े गए। अगले दिन चोरों को दरबार में पेश किया गया। सभी के हाथों पर लगे रंग देखकर राजा ने पूछा, “तेनालीराम जी यह क्या है?”

“महाराज हमने तिजोरी पर गीला रंग लगा दिया था, ताकि चोरी के इरादे से आए चोरों के शरीर पर रंग चढ़ जाए और हम उन्हें आसानी से पकड़ सकें।”

राजा ने पूछा, “पर आप वहां सिपाहियों को तैनात कर सकते थे।”

“महाराज इसमें उनके चोरों से मिल जाने की सम्भावना थी।”

राजा कृष्णदेव राय ने तेनाली राम की खूब प्रशंसा की।
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