My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Mehfil
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 09-12-2010, 06:01 PM   #41
ndhebar
Special Member
 
ndhebar's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Kerrville, Texas
Posts: 4,605
Rep Power: 50
ndhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond reputendhebar has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to ndhebar
Default Re: ऐसी की तैसी।

अरविन्द भाई
अगर दिल्ली वाली जबान में कहूँ तो
आपने तो शेर की ..................हन एक कर दी
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
ndhebar is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 06:10 PM   #42
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: ऐसी की तैसी।

Quote:
Originally Posted by ndhebar View Post
अरविन्द भाई
अगर दिल्ली वाली जबान में कहूँ तो
आपने तो शेर की ..................हन एक कर दी
सही कहा बंधु,
तभी तो सुबह से शेरनी दाँत तेज करवा कर मुझे ढूंढ रही है।
arvind is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 07:57 PM   #43
Video Master
Senior Member
 
Join Date: Oct 2010
Location: जयपुर
Posts: 301
Rep Power: 16
Video Master will become famous soon enoughVideo Master will become famous soon enough
Send a message via Yahoo to Video Master
Default Re: ऐसी की तैसी।

अरविन्द भाई आपने तो सबकी ऐसी की तैसी कर दी मजा आ गया
Video Master is offline   Reply With Quote
Old 10-12-2010, 10:44 AM   #44
bijipande
Member
 
bijipande's Avatar
 
Join Date: Dec 2010
Location: laptaganj
Posts: 37
Rep Power: 0
bijipande is on a distinguished road
Default Re: ऐसी की तैसी।

अरविन्द भाई पापा कसम मजा आ गया
bijipande is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2011, 07:03 PM   #45
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: ऐसी की तैसी।

जूता पुराण

हाल ही में पत्रकारों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बुश से लेकर भारतीय गृहमंत्री चिदंबरम तक पर जूते चलाएं हैं। कुछ अन्यों ने भी इसी माध्यम से हल्के-फुल्के ढंग से दूसरों को कूटा है। जूते के इसी बढ़ते प्रयोग को लेकर मुझे कई तरह की संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं।

इस निरीह सी वस्तु के बारे में सबकुछ जान लेने की इच्छा मन में खदबदाने लगी है। पीएचडी तक के लिए यह विषय मुझे अत्यंत ही उर्वर नजर आने लगा है। एक जूते का चिंतन, चिंतन में जूता परंपरा, उसका निर्धारित मूल कर्म, दीगर उपयोग, इतिहास में मिलती गौरवशाली परंपरा, आख्ययान, उसमें छुपी संभावनाएं, अन्य क्षेत्रों से जूते का निकट संबंध, समाज के अंगों के बीच इसका प्रयोग, जूते का इतिहास में स्थान, वर्तमान की आवश्यकता, भविष्य में उपयोगिता।

अर्थात् जूते के रूप में मुझे पीएचडी के लिए इतना जबर्दस्त विषय हाथ लगा गया है कि अकादमिक इतिहास में मौलिक पीएचडी करने वालों में मेरा नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना तय सा ही दिखाई देता है। चूंकि यहां यह बात अलग से भी उपयोगी साबित होगी कि पूरे प्रकरण में की गई रिसर्च के दौरान जूतों से स्थापित तदात्म्य के चलते बाद में परीक्षक या आलोचक अपनी बातों के कितने भी जूते चलाएंगे वे सब मेरे ऊपर बेअसर ही साबित होंगे। तो इस तरह 350 पन्नों की चिंतन से भरी जूता पीएचडी मेरी आंखों के सामने चमकने लगी है। शोध तक का प्रस्ताव मैंने तैयार कर लिया है। आप भी चाहें तो जरा नजर डाल लें..।
arvind is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2011, 07:04 PM   #46
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: ऐसी की तैसी।

जूता खाना-जूता चलाना, जूतम पैजार, जूते का नोंक पर रखना, जूता देखकर औकात भांप लेना, दो जूते लगाकर कसबल निकाल देना.. आदि-आदि.. अर्थात जूता हमेशा से ही भारतीय जनसमाज के अंतर्मन में उपयोग और दीगर प्रयोग की दृष्टि से मौलिक चिंतन का केंद्र रहा है। प्राचीन काल से ही जूते के स्वयंसिद्ध प्रयोग के अलावा अन्य क्रियाकलापों में उपयोग का बड़ी शिद्दत से मनन किया गया है।ऋषि-मुनि काल की ही बात करें तो तब जूतों की स्थानापन्न खड़ाऊं का प्रचलन था, तब इसका उपयोग न सिर्फ कंटीली राहों से पैरकमलों की रक्षा के लिए किया जाता था अपितु संक्रमण काल में खोपड़ा खोलने के लिए भी कर लिया जाता था। चूंकि खड़ाऊं की मारकता-घातकता चमड़े के जूते के मुकाबले अद्भुत होती थी इसी कारण कई शांतिप्रिय मुनिवर केवल इसी के आसरे निर्भय होकर यहां से वहां दड़दड़ाते घूमते रहते थे।

हालांकि खड़ाऊं प्रहार से कितने खोपड़े खोले गए, इस बावत कितने प्रकरण दर्ज हुए, किन धाराओं में निपटारा हुआ, कौन-कौन से श्राप, अनुनय-विनय की गतिविधियां हुईं, इस विषय में इतिहास मौन ही रहा है। चूंकि हम अपने इतिहास में छांट-छांटकर प्रेरणादायी वस्तुएं रखने के ही हिमायती रहे हैं सो ऐसे अप्रिय प्रसंगों को हमने पीट-पीटकर मोहनजोदाड़ो के कब्रिस्तान में ही दफना रखा है। और नहीं तो क्या? लोग मनीषियों के बारे में क्या सोचेंगे? इस भावना को सदैव मन में रखा है।

जिसके चलते हमें हमारी ही कई बातों की जानकारी दूसरे देशों के इतिहास से पता चली है, उन्होंने भी जलन के मारे ही इन्हें रखा होगा ऐसा तो हम जानते ही हैं इसलिए उन प्रमाणों की भी ज्यादा परवाह नहीं करते। तो हम बात कर रहे थे जूते के अन्यत्र उपयोगों की।
arvind is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2011, 07:06 PM   #47
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: ऐसी की तैसी।

चूंकि हम शुरू से ही मितव्ययी-अल्पव्ययी, जूगाडू टाइप के लोग रहे हैं, इस कारण किसी चीज के हाथ आते ही उसके मूल उपयोग के अलावा अन्योन्याश्रित उपयोगों पर भी तत्काल ही गौर करना शुरू कर देते हैं। जैसे बनियान को ही लें, पहले खुद ने पहनी फिर छोटे भाई के काम आ गई फिर पोते के पोतड़े बनी फिर पोंछा बन गया। यानि छिन-छिनकर मरणोपरांत तक उससे उसके मूल कर्म के अलावा दीगर सेवाएं ले ली जाती हैं। ऐसी जीवट से भरपूर शोषणात्मक भारतीय पद्धती भी आद्योपांत विवेचन की मांग तो करती ही है ना, ताकि अन्य राष्ट्र तक प्रेरणा ले सकें।

चूंकि हमारे पास प्रेरणा ही तो प्रचुर मात्रा में है, सदियों से हम प्रेरणा ही तो बांट रहे हैं तो अब एक और प्रेरणादायी चीज कुलबुला रही है, प्रेरित करने के लिए, बंट जाने के लिए। फिर प्रेरणा के अलावा प्रयोगों के कितने अवसर पैदा हुए हैं जूते की विभिन्न वैराइटियों देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर मारपीट जैसे महत्वपूर्ण कार्यो के समय जूते नहीं खुले तो तत्काल ही बिना फीते की जूतियों का आविष्कार कर डाला गया। अत: यहां इस अन्वेषण की मूल दृष्टि की विवेचना भी जरूरी है।

इसी तरह जूते चलाने के कई तरीके श्रुतिक परंपरा से प्राप्त होते हैं। कुछ वीर जूते को ऐड़ी की तरफ से पकड़कर चाकू की तरह सामने वाले पर फेंकते हैं ताकि नोंक के बल सीने में घुप सके। तो कुछ सयाने नोंक वाले हिस्से को पकड़कर फेंकते हैं ताकि ऐड़ीवाले हिस्से से मुंदी चोट पहुंचाई जा सके।
arvind is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2011, 07:08 PM   #48
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: ऐसी की तैसी।

इस तरह जनसामान्य में जूते के उपयोग की अलग राजनीति है, जबकि राजनीति में जूते के प्रयोग की अलग ही रणनीति है। यहां दूसरे के कंधे पर पैर रखकर जूते चलाए जाते हैं, जबकि कुछ नौसिखुए खुलेआम आमने-सामने आकर जूते चलाते हैं, जबकि कुछ ऊर्जावान कार्यकर्ता हाथ से ही पकड़कर दनादन खोपड़ी पर बजा देते हैं, इस तरह नेता के नेतापने से लेकर कार्यकर्तापने तक के निर्धारण में जूते की विशिष्ट भूमिका एवं परंपरा के दिग्दर्शन प्राप्त होते हैं।

इसी तरह कुछ हटकर चिंतन की परंपरा के अनुगामी जूते को तकिया बनाकर बेहतर नींद के प्रति उम्मीद रखते हुए बसों- ट्रेनों में पाए जाते हैं। इन आम दृश्यों में भी करुणा का भाव छिपा होता है। सिर के नीचे लगा जूता बताता है कि सामान भले ही चला जाए लेकिन जूता कदापि ना जाने पाए, यानि हम अपने पददलित को कितना सम्मान देते हैं यहां नंगी आंखों से ही निहारा जा सकता है, सीखा जा सकता है, परखा जा सकता है। तो इस तरह यहां जूता, जूता न होकर आदर्श भारतीय चिंतन की परंपरा की जानकारी देने वाली कड़ी बन जाता है।

इसी तरह जहां मंदिरों के बाहर से जूते चोरी कर लोग बिना खर्चा कई ब्रांड्स पहनने का लुत्फ उठाकर समाजवाद के निर्माण का जरिया बन जाते हैं। सर्वहारावादी प्रवृतियां इन्हीं गतिविधियों के सहारे तो आज तक अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती आ रही हैं। शादी के अवसर जूता चुराई के माध्यम से जीजा-साली संवाद जैसी फिल्मी सीन को वास्तविक जीवन में साकार होते देखने का सुख उठाया जाता है।
arvind is offline   Reply With Quote
Old 04-01-2011, 07:08 PM   #49
arvind
Banned
 
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0
arvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant futurearvind has a brilliant future
Default Re: ऐसी की तैसी।

वहीं, हर जगह दे देकर त्रस्त लड़कीवाले इस स्थान से थोड़ा बहुत वसूली कर अपने आप को धन्य पाते हैं। अर्थात् जीवन के हर पक्ष में भी जूते की उपस्थिति और महत्व अगुणित है। इस कारण भी यह विषय पीएचडी हेतू अत्यधिक उपयुर्क्त सारगर्भित-वांछनीय माना जा सकता है।

इस तरह ऊपर दिए पूरे विश्लेषण का लब्बोलुआब यह कि पूरी राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक परंपरा को समग्र रूप से खुद में संजोए एक प्रतीक पूरे अनुशीलन, उद्खोदन, खोजबीन, स्थापन, विवरण की विशाद मांग रखता है। अत: अपनी पीएचडी के माध्यम से मैं यह दायित्व लेना चाहता हूं कि परंपरा के इतने (कु)ख्यात प्रतीक के बारे में पूरा विवरण निकालूं ताकि भविष्य में पीढ़ियों को इस दिशा में पूर्ण-प्रामाणिक और उपयोगी ज्ञान प्राप्त हो सके।

अत: आशा है कि चयन कमेटी मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर इस पर शोध करने की अनुमति प्रदान करेगी।. हालांकि जल्दी ही मैं अपना यह प्रस्ताव किसी विश्वविद्यालय में जमा कराने वाला हूं, डरता हूं कि इसी बीच किसी और जागरूक ने भी इसी विषय पर पीएचडी करने की ठान ली तो फिर तो निश्चित ही जूता चल जाएगा..तय मानिए।
arvind is offline   Reply With Quote
Old 06-01-2011, 01:02 PM   #50
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ऐसी की तैसी।

क्या बात है अब मोजा पुराण भी सुना दो भाई !
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
funny hindi poems, hindi poems


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 01:34 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.