15-02-2014, 10:31 PM | #41 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
1.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
02-04-2014, 11:42 PM | #42 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
नवाब मोहम्मद मुस्तफ़ा ख़ां शेफ़्ता (1806-1869) ^ हम तालिबे शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम
बदनाम अगर होंगे......तो क्या नाम न होगा
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02-04-2014, 11:47 PM | #43 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
नवाब मोहम्मद मुस्तफ़ा ख़ां शेफ़्ता (1806-1869) ^ मुस्तफ़ा खान, जो “शेफ़्ता” उपनाम से उर्दू शायरी करते थे, का जन्म दिल्ली में सन 1806 में हुआ था. उनके पिता का नाम नवाब मुरतिज़ा खान था. वे जहांगीराबाद (जिला- बुलंदशहर) रियासत के नवाब थे. जहांगीराबाद की जायदाद नवाब मुस्तफ़ा खान ने खुद खरीदी थी. 1857 के ग़दर में विद्रोहियों की सहायता करने के जुर्म में उन्हें सात वर्ष के कारावास की सजा हुई. लेकिन गनीमत हुई कि अपील करने पर उनकी सजा रद्द हो गई पर कुल जायदाद ज़ब्त कर ली गई और पेंशन रद्द कर दी गई. बाद में, लम्बी कोशिशों के बाद उनकी आधी जायदाद वापिस कर दी गई.
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02-04-2014, 11:51 PM | #44 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
नवाब मोहम्मद मुस्तफ़ा ख़ां शेफ़्ता (1806-1869) 1824 में उन्होंने शायरी के क्षेत्र में बाकायदा पदार्पण किया और उर्दू तथा फ़ारसी में कलाम कहना शुरू कर दिया. उर्दू में ‘शेफ़्ता’ और फ़ारसी शायरी में ‘हसरती’ उपनाम से लिखना शुरू किया. वह मिर्ज़ा ग़ालिब और मोमिन से क्रमशः उर्दू शायरी और फ़ारसी शायरी में इस्लाह लेते थे. उन्हें शायरी से बेपनाह मुहब्बत थी और वे अपने घर में ही हर हफ्ते शो’अरा की बैठके या नशिस्तें रखते थे. हिजरत के बाद उनका रुझान शायरी से कम हो गया और मज़हब के कामकाज में अधिक लगने लगा. कहते हैं कि 1857 के ग़दर के दौरान उनकी शायरी का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था. फिर भी उनकी उर्दू और फ़ारसी की जो रचनाएं उपलब्ध थीं उनको मिला कर एक ‘तज़किरा’ “गुलशन-ए-पुरख़ार” नाम से प्रकाशित हुआ जिसे उस दौर की साहित्यिक हिस्ट्री का एक विश्वसनीय दस्तावेज माना जाता है.
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02-04-2014, 11:55 PM | #45 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
नवाब मोहम्मद मुस्तफ़ा ख़ां शेफ़्ता ग़ज़ल / शेफ़्ता था गै़र का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब था गै़र का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब
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02-04-2014, 11:59 PM | #46 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
नवाब मोहम्मद मुस्तफ़ा ख़ां शेफ़्ता ग़ज़ल / शेफ़्ता दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए
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03-04-2014, 12:01 AM | #47 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
नवाब मोहम्मद मुस्तफ़ा ख़ां शेफ़्ता ग़ज़ल / शेफ़्ता आराम से है कौन जहान-ए-ख़राब में आराम से है कौन जहान-ए-ख़राब में
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14-04-2014, 10:21 PM | #48 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अख्तर शीरानी ^ अख्तर शीरानी का असल नाम मोहम्मद दाऊद ख़ां था 4 मई, 1905 ई. को टौंक (राजस्थान) में आपका जन्म हुआ| आपके पिता हाफ़िज महमूद खां शीरानी जाने-माने शिक्षाविद थे|1914 ई. में जब ‘अख़्तर’ के पिता हाफ़िज महमूद खां शीरानी इंगलैंड से वापस आये तो उन्होंने शायरी की बजाय उसे पहलवानी सिखानी शुरू कर दी और इस उद्देश्य के लिए विशेष रूप से एक पहलावन नौकर रख दिया, जो सुबह शाम ‘अख़्तर’ की मालिश करके और लंगर-लंगोट कसके उसे अखाड़े में उतरने के लिए ललकारता। पहलवानी का यह सिलसिला 1920 ई. तक चला। 1920 ई. में जब ‘अख़्तर’ के पिता ओरियंटल कालेज लाहौर में फ़ारसी के प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए तो ‘अख़्तर’ भी उनके साथ लाहौर चला गया। आपने 1921 में इस्लामिया कालेज, लाहौर में पढाना प्रारंभ किया बाद में वे ओरिएंटल कालेज, लाहौर में चले गए| अख्तर बहुत कम उम्र में टौंक से लाहौर आ गए थे और जिंदगी भर यही रहे| >>>
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14-04-2014, 10:26 PM | #49 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
शायरी के अतिरिक्त, उस ज़माने में कुछ समय तक उसने उर्दू की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘हुमायूँ’ के सम्पादन का काम किया। फिर 1925 में ‘इन्तिख़ाब’ का सम्पादन किया। 1928 में रिसाला ‘ख़यालिस्तान’ निकाला और 1931 में ‘रोमान’ जारी किया और उसके बाद कुछ समय तक स्वर्गीयमौलाना ताजवर नजीबाबादीकी मासिक पत्रिका ‘शाहकार’ का सम्पादन किया। आपके ज्ञात ग़ज़ल संग्रह मेंअख्तरिस्तान, सुबह-ए-बहार, शहनाज़है| अपनी आज़ादाना तबीयत के चलते अख्तर शीरानी साहब की आर्थिक दशा भी दयनीय हो गई और शराब के अत्यधिक सेवन से उनका स्वास्थ्य भी दिन-ब-दिन बिगड़ता चला गया. फ़्लेमिंग रोड, लाहौर के एक मकान में बाहर की सीढ़ियों से मिला हुआ एक छोटा-सा कमरा था और ‘अख़्तर’ था। लाहौर के शराबख़ाने थे और ‘अख़्तर’ था। या भटकने को गलियां थीं और ‘अख़्तर’ था। फिर शराब-नोशी भी आम शराबियों जैसी न थी। एक बार पीने बैठता तो बस पिये चला जाता। कई कई दिन बिना कुछ खाये. आखिर यह सब कुछ कब तक चलता? 9 सितम्बर 1948 ई. को उर्दू के इस महान रोमांसवादी शायर ने बड़ी दयनीय दशा में लाहौर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया।
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14-04-2014, 11:05 PM | #50 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
gazal Poet: Akhtar Shirani यारो कू-ए-यार की बातें करें
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