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#41 |
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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#42 |
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मेरे विचार मेँ आप पाश्चात्य संस्कृति से तुलना कर रहे हैँ और हमारी संस्कृति , हमारा हिन्दू धर्म यानि सनातन धर्म उसकी तुलना मेँ अधिक प्राचीन है और जब कोई नया धर्म या संस्कृति अस्तित्व मेँ आती है तो वह निश्चित रूप से परिष्कृत , परिमार्जित होगी । वैसे अशिक्षा की दर तुलनात्मक रूप से हमारे यहाँ ज़्यादा है ।
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#43 | |
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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#44 |
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विद्रोही जी ,
बात केवल हिन्दू धर्म की नहीँ है । उसमेँ भी मतान्तर हैँ । जैसे जैसे नये विचार आये , शाखायेँ बनीँ और नये रिवाज़ भी । परन्तु वृक्ष एक ही रहा । हर शाखा की जड़े एक ही रही , रसद हमसे ही पूरी हुई । सबको एक साथ जोड़कर देखने से रिवाज़ भी बढ़े हुये लगे और पूरी साँख्यिकी गड़बड़ हो गयी । रीति रिवाजोँ की पृष्ठभूमि मेँ भी मनोरंजन निहित होता था । अनेक रिवाज़ प्रतीकात्मक हुआ करते थे और हैँ । कुछ हमारा जनमानस धर्मभीरु और अशिक्षित था । शायद तभी हमारे धर्मगुरुओँ ने धार्मिक रीतियोँ के रूप मेँ उसे स्थापित कर डाला जो कालान्तर मेँ कर्मकाण्ड के रूप मेँ सड़ांध पैदा करने लगा । लेकिन स्मरण रहे कि इस कुकृत्य मेँ कतिपय लोगोँ के स्वार्थ निहित थे । धर्म के भीतर भी कुछ रिवाज़ स्थान विशेष के अनुरूप होते हैँ और कुछ तमाम जातियोँ के । यह आवश्यक नहीँ कि गोला गोकर्णनाथ मेँ जो रीति रिवाज है उसे दक्षिणभारत का हिन्दू अनुयायी भी सम्मान करता हो । शिवरात्रि पर उत्तर भारत का हिन्दू निराहार रहता है तो काठमाण्डू का हिन्दू बलि चढ़ाता है । नवरात्र पर बंगाली हिन्दू मछली को शुभ मानते हुये भक्षण करता है और आप उसकी कल्पना भी नहीँ कर सकते । विवाह के पूर्व के रीति रिवाज़ महिलाओँ के लिये बतौर मनोरंजन हुआ करते थे जिसे हम टिटिम्मा समझते हैँ । जैसे जैसे हम शिक्षित हुये , विकसित हुये , उन रिवाज़ोँ मेँ भी कमी आयी । दुःख की बेला मेँ बाल मुँडवाने का रिवाज़ प्रतीकात्मक होता है । जब एक ही धर्म मेँ , एक ही राष्ट्र के भीतर इतनी विषमता है तो सात समन्दर पार अपेक्षाकृत नये धर्म और संस्कृति की भिन्नता पर भला कैसी हैरानगी । दूर क्योँ जाते हैँ अपने इर्द गिर्द मुस्लिम मित्रोँ के धर्म मेँ झाँककर देखिये । क्या उनके यहाँ रीति रिवाज़ नहीँ हैँ ?
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![]() Last edited by Kumar Anil; 16-03-2011 at 05:14 PM. Reason: शब्द अनुयायी |
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#45 |
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धन्यवाद दादा आपके जवाब ने काफी संतुष्टि पहुंचाई !
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#46 |
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एक प्रश्न और है..
क्या प्रेम ईर्षा का पूरक है ? या फिर ये अनुक्रमुनुपाती है ? अथवा वित्युक्रमानुपाती ? क्या सम्बन्ध है इनका आपस में ?
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#47 |
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अपनी पत्नी से हर बात पर झूठ बोलना सही है या गलत
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Gaurav kumar Gaurav |
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#48 |
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मुझे ये सवाल बहुत कठिन लग रहा है
फिर भी जवाब देने की कोशिश करता हूँ .. प्रेम और इर्ष्या पूरक नहीं हो सकता क्योंकि प्रेम का भाव इर्ष्या के बिना संभव है / अनुक्रमानुपाती नहीं हो सकता है क्योंकि प्रेम के बढ़ने पर इर्ष्या नहीं बढती / व्युत्क्रमानुपाती थोडा थोडा हो सकता है क्योंकि इर्ष्या प्रेम को घटा सकता है और प्रेम इर्ष्या को / वैसे मै ज्यादा सोच नहीं पा रहा हूँ इस विषय को .... |
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#49 | |
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आपके लिये तो सबाल आर्यभट्ट और आइंस्टीन खोज रहे है
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Gaurav kumar Gaurav |
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#50 |
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