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Old 29-08-2014, 11:11 PM   #41
rajnish manga
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

गाल पर अधरों की एक कोमल स्पर्श ने दोपहर की उस नींद से मुझे जगा दिया, देखा रीना मेरे सिरहाने खड़ी थी और उसके गोद में दो साल का भतीजा सो रहा था। एकबारगी मुझे भरोसा नहीं हुआ, लगा जैसे सपना देख रहा हूं।

‘‘खूब घोड़ा बेच के सुतो हीं, यहां साला आंख मंे नींद नै है’’ रीना ने लगे हाथ यह तीर भी मारा।

‘‘की करियै हो, नींदा तो आइऐ जा है, अब सामने से नै तो नींदे में तोरा से भंेट मुलाकात हो जा है’’ मैंने अपना बचाव किया।

‘‘हां बहाना तो खूब है पर लेटरबा में कैसे लिखल रहो है, नींद नहीं आती और चैन नहीं मिलता। सब झूठ। ’’

रीना ने फिर से एक तीर मारा जिसका जबाब मैं ढुंढ़ने लगा। सच में उस दौर में मुझे नींद बहुत आती थी और जब भी मैं सो जाता तो रीना का स्वपन में आना लाजिम था। यह सिलसिला चल रहा था और तभी आज दोपहर में रीना अचानक मेरे घर
, मेरे कमरे में आ गई। उसकी गोद में उसका दो साल का भतीजा था जिसको संभालने का बहाना उसके पास था। मेरे कमरे में आकर मुझे नींद से जगाने के बहाने उसने एक नयाब तोहफा दे दिया था। उसके अधरों के स्पर्श से मन झंकृत हो गाने लगा था, झूमने लगा था। उसके बाद वह मेरे सिरहाने से खिसक कर गोरथारी में चली गई। कमरे में सोया रहने पर मेरा सिर तो बाहर से दिखता था पर कमरे के बीचो बीच मिटटी की बनी कोठी ‘‘अनाज रखने वाला’’ होने की बजह से पैर की तरफ कोई नहीं देख पाता था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 29-08-2014, 11:12 PM   #42
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

आज रीना मेरे इतने करीब थी कि उसके बालों की खुश्बू मन को महका-बहका रही थी। आज उसे इतने करीब से पहली बार ही देख रहा था जहां बीच में कोई रोकने टोकने वाला नही था। मैं भी सालों की अपनी प्यास को आज बुझा लेना चाहता था, उसे जी भर कर देख रहा था। जब मैं लेटा लेटा उसे प्यारी भरी नजरों से देखने लगा तो उसकी नजरें झुक गई। झुकी हुई नजरों के बीच मैं अपने प्यार को आज जी भर देख रहा था। रीना के बालों की खुश्बू आज मन को बेचैन कर रही थी। मेरे प्यार भरी नजरों को रीना ने भी पढ़ लिया और अपने भतीजों को उसने सीने से लगाए रखा। करीब तीस मिनट यूं ही खामोशी से बीत गया। उस खामोशी को तोड़ने की साहस किसी से नहीं हो रही हो रही थी। पर अन्त में रीना ने ही साहस किया,
‘‘ देख, ऐसे मत देख, पागल मत कर हमरा,’’

ई में पागल करे के की बात है, पागल तो हम दोनों होले हियै। मैंने जबाब दिया।

‘‘सेकरा से की, पागल कैसे हियै, दोनों सोंच समझ के प्रेम केलिएै हें, पागल कैची रहबै।’’

‘‘की सोंचलहीं हे, पता है बियाह के बाद रहे ले घरो नै है, कहां रहमीं’’ मैंने आज अपनी लाचारी ब्यां कर दी। रीना को लेकर मैं हमेशा से इस बात से परेशान रहता कि वह एक संपन्न परिवार की लड़की है और मेरे पास गांव में एक कमरे का मकान। इस उहापोह में आज मैंने उसे दिल की बात कह दी। पर जबाब कुछ यूं मिला।
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Old 29-08-2014, 11:13 PM   #43
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

‘‘ पता है, सुनीतबा गेलै हल तोर घर, हम सब ब्यौरा ले लेलियै, की करमहीं, एक कमरा के घर मंे आदमी नै रहो है, हमहूं रह लेबै’’

बातों का यह सिलसिला जो चल निकला तो चल निकला। मन के किसी कोने में ज्वार भाटा से उठ रहा था। शायद रीना के मन में भी। दोनों पास पास थे और घड़कनों की आवाज दोनों एक दूसरे की सुन सकते थे। सांसे तेज चल रही थी। बातचीत करते हुए हकला रहे थे
, बीच बीच में दोनों अटक जाते, पता नहीं क्या हुआ था कि दोनों बेचैन थे।

तभी देखा कि फुआ की छोटकी गोतनी सूप में बूंट (चना) लिए मुख्य दरवाजे से प्रवेश कर रही थी
, कलेजा धक्क से कर गया। आज तो रंगे हाथ पकड़ा गया। वैसे भी मेरा फुआ के यहां रहना उन्हें तनी नहीं सोहाता था, कारण था मेरे कारण उन लोगों को फुफा की जमीन पर नजर गड़ाने में नहीं बन रही थी। सो मेरी बुराई खोजना ही उनका काम था। रीना को आहिस्ते से मैंने बता दिया "सिरायबली"। वह मेरे इतना बेचैन नहीं हुई, धुत्त कह कर मुंह बिचका दिया। सिंरायबली आई और दूसरे कमरे के पास बने जांता (आटा-चक्की) मे दाल दररने चली गई। दरअसल वह दाल के लिए ही आई थी। मतलब की वह अब यहां घंटो रहने वाली है। मैं सोंच में पड़ गया।
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Old 29-08-2014, 11:14 PM   #44
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

थोड़ी देर बाद मैं उठा और कमरे से बाहर गया तथा लौट कर आया और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। पता नहीं मन में क्या सूझा। रीना वहीं मेरे पैर के करीब चौंकी पर बैठ गई और सोये हुए भतीजे को मेरे बगल में लेटा दिया। रीना का भतीजा अभी कुछ ही देर लेटा था कि वह जाग गया और रोने लगा। उसे झट से रीना ने गोद में लिया, अब दोनों की घड़कने और तेज हो गई। कमरे के बाहर वह निकल नहीं सकती थी और अंदर यह जाग गया था। बाप रे बाप , आज तो पकड़ा जाना तय है। रीना भतीजे को चुप कराने का उपक्रम कर रही थी पर बाहर दाल दररने की आवाज की वजह सिंरायवली को इसकी आवाज अभी सुनाई नहीं दी होगी, मैंने अंदाज लगाया और उस बच्चे को चुप कराने में लग गया। तरह तरह के हथकंडे अपनाया, कभी पैसा दिया, तो कभी कहीं खोज कर खिलौना, पर वह चुप होकर फिर से रोने लगता.......

इस सब के बीच, मन मौन के इन क्षणों में कई तरह के झंझावातों और ज्वारभाटों से होकर गुजर रहा था। जब वह आई तो कितने देर तक दोनों के बीच कोई नहीं था पर खामोशी ने इस एकांत पर अपना सर्वाधिकार बहुत देर तक सुरक्षित कर रखा। वह भी खामोश थी और मैं भी। मन के अंदर उठे ज्वारभाटे की लहर प्रबल थी और रह रह कर मन के चटटान पर अपनी कोमल थपेड़ों से उसे तोड़ने का प्रयास कर रही थी। देह की भाषा थपेड़ा बन सामने आया। मन के किसी कोने में देह अपनी भाषा बुलंद कर रहा था और हमदोनों इसको समझ अंदर से खुश हो रहे थे और डर रहे थे। उसके चेहरे पर छाई खामोशी को तोड़ने का उपक्रम करता हुआ पसीना झलक आया और मेरी खामोशी के एकाधिपत्य को सांसों का रफतार तोड़ रही थी। उस क्षण मन के ज्वारभाटे ने इस तरह शब्दों का रूप ले कविता में ढल गई.............
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Old 29-08-2014, 11:16 PM   #45
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

मौन अधर की भाषा

मन ही जाने
मन ही समझे
मौन अधर की भाषा,

न शब्द
न कोष
मन ही बूझे
मौन अधर की परिभाषा।

कभी आंसू बन यह छलके
कभी सूर्ख पलकों से झलके
कभी चेहरे पर पढ़ लेता मन
मौन अधर की अभिलाषा।

मन में कई तरह के विचार एक झण में आये और गुजर गए। गांव में प्रेम की पूर्णाहुति देह पर होती थी और पूर्णाहुति का यह क्षण मेरे आगे बांह फैलाए खड़ा था। इस सबके बीच द्वंद जारी थी जिसमें मन की कसौटी पर पवित्र-प्रेम, नैतिकता-अनैतिकता सहित कई तरह के चीजों को कसी जा रही थी।
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Old 29-08-2014, 11:18 PM   #46
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

खैर, भगवान, भगवान, करते हुए बच्चे को चुप कराने का उपक्रम करते हुए रीना अपने भतीजे से कह रही थी

‘‘फुफा बउआ फुफा’’

और बच्चा मेरा मुंह देखने लगाता। मैं भी उसे कभी गोद में लेता तो कभी कंधे पर बैठा कर घुमाता ताकि वह चुप रहे।

जैसे तैसे सिरायबली वहां से गई और फुआ भी वापस नहीं आई थी, जान में जान आई।

इस सब के बीच महसूस किया कि जितना मैं डर गया था उतना रीना नहीं डरी थी, उसके चेहरे पर एक अजीब सा आत्मविश्वास थी और वह बस इतना ही कह रही थी कि-

‘‘ की होतइए, आय नै तो कल ई सामने तो आइबे करतै, तब डरे की का बात है’’

मेरे लिए यह संबल की बात थी। रीना हमेशा से अपने प्रेम को उजागर करना चाहती थी, लोग जान जांय तब सब ठीक हो जाएगा।.......

ज्वारभाटों का जो शोर उठा था उसकी भ्रुण हत्या दोनों ने कर दी। मैं तो खैर दब्बू था ही सो ऐसा ही होना था। वहां से वह चली गई और मन ही मन मैं खुद को कोसता रहा। कई दिनों तक इस बात का मलाल रहा और उसकी आंखों ने में इस मलाल को मैं देख पा रहा था। पर किसी कोने में कोई खुश भी था। वाह।

प्रेम की अपनी परिधि है और उस परिधि से जब मन बाहर जाना चाहता है कोई आकर रोकने के लिए खड़ा हो जाता है।
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Last edited by rajnish manga; 29-08-2014 at 11:20 PM.
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Old 29-08-2014, 11:21 PM   #47
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आज मुकेश दा नन्दनामां गांव से मुझे देखने आये थे की पढ़ता हूं या नहीं और उन्होंने मेरी पूरी क्लास ले ली। दरअसल दीदी (मां) ने उन्हें मुझे समझाने भेजा था की पटना में जाकर मेडिकल की तैयारी करवाने का सामर्थ नहीं है सो यहीं से तैयारी करे।

शाम में दोनो भाई छत पर टहल रहे थे और दिनचर्या के मुताबिक रीना भी अपने छत पर आकर बैठ गई थी और मैं नजरें बचा-बचा कर बातचीत के क्रम में बीच-बीच में रीना की ओर झांक लेता। मेरी इस हरकत को मुकेश दा भांप कर बोले-

‘‘ की हो ई कौन पढ़ाई होबो हई, बढ़िया कॉलेज ज्वाइन कलहीं हें’’
‘‘की कहो हो कुछ समझ में नै आइलो’’ मैं झेंपता हुआ प्रतिरोध किया।
‘‘हमहूं ई कॉलेजवा में पढ़लिए हें, दाय से पेट छुपतौ’’ उ चिडैंया टूकूर टूकूर इधरे ताक रहलौ हें, के हाउ।’’
‘‘भाबहू के ऐसे बोलभो, पाप लगतो, सुनहो ने।’’ मैं ने जबाब दिया।
‘‘हो गेलई तोर पढ़ाई लिखाई।’’यहां रहके इहे सब करो हीं, जाके चाची के कहबौ।’’
छोड़ों ने
, कते परवाह करबै, जे होना है, उ होतई।

मुकेशा दा ने भी वही समझा जो आमतौर पर लोग समझते है। किसी तरह से मैंने उन्हे दीदी से यह बात नहीं कहने के लिए राजी कर लिया और रीना के तरफ ईशारा किया प्रणाम करने के लिए। वह झट से दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम कर ली।

‘‘चलतै, बियाह करमहीं की मौज मस्ती’’
उनके इस सवाल के जबाब खोजने में मुझे कुछ क्षण सोंचना फिर सीना तान के कहा-
‘‘ बियाह करबै बियाह।’’
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Old 29-08-2014, 11:22 PM   #48
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खैर, इस सब के बीच भजन गाने के मेरे नये शौक ने आज मंगलबार को देवी स्थान तक दोस्तों के साथ लेकर चला आया। यहां रीना का बड़ा भाई ढोलकिया था। मैं भी एक झाल लेकर बजाने लगा। हलांकि ईश्वर के प्रति आस्था-अनास्था जैसी कोई बात मुझमें नहीं थी सो थोड़ी ही देर में मैंने झाल एक साथी को थमा दी और वहीं बैठे बैठे मेरी आंख लग गई। भगवान की आरती का समय आया तो मुझे साथियों ने जगाना चाहा-

‘‘अरे उठी न रे, आरती में नै सोना चाही’’

पर मेरी नींद नहीं मानी और जब सब लोग खड़े होकर आरती गा रहे थे मैं सो रहा था कि तभी पैर में किसी चीज ने काटा और मैं जोर से चिल्लाने लगा। लोगों ने टॉर्च जला कर देखा तो एक बिच्छू डंक मार कर भागा जा रहा था। उसे मार दिया गया।

‘‘देखलीं, भगवान के आरती में नै सोना चाही, तों तो जिद्दी हीं, के समझइतै।’’

कोई कह रहा था पर मैं अपने पैर के जलन से बेचैन था और बेतहाशा रो रहा था। सबसे पहले मेरे जांध के उपर गमछे से लपेटा लगा कर बांध दिया गया और फिर वहीं एक बिच्छा उतारने वाला सामदेव ने झारना प्रारंभ कर दिया। मन ही मन वह कुछ बुदबुदाता और फिर जोर से पैर को पटकने के लिए कहता, कुछ देर तक यह सिलसिला चलता रहा पर कुछ असर नहीं हुआ। मैं रोता हुआ घर आया। टोले के लोग अभी सोये नहीं थे सो उनके बीच हलचल हो गई। बहुत लोग देखने आए जिसमें से रीना भी थी उसे देख मेरे रोने की आवाज थोड़ी कम हो गई पर उसके व्यंगय वाण चलने लगा।
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Old 29-08-2014, 11:29 PM   #49
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‘‘ बड़की महात्मा बने ले जा है, भजन गइला से भगवान खुश होथुन। ओकरो पर अरतिये घरी सुत जा है, वाह रे नयका जमाना’’

‘‘देख, जादे मथवा खराब नै कर, ढेर मामा बनमहीं ने त ठीक नै होतउ।’’ मैंने अपने गुस्से का इजहार किया।

‘‘ बाप रे गोस्बा तो ऐसन है जैसे हमहीं काट लेलिये।’’

इसी बीच किसी ने डाक्टर साहब के पास जाने की सलाह दी और फूआ के साथ उसकी डांट को सुनता हुआ डाक्टर साहब के पास चला गया। वहां उन्होने छोटी सी शीशी में बंद एक तरल मलहम निकाला और बिच्छू के काटे के स्थान पर लगा दिया। बहुत तेज जलन हुई पर उन्होने पहले ही कह दिया था बरदास्त करना होगा।


खैर करीब आधा घंटा के बाद जलन कम होना शुरू हुआ तो मैं घर चला आया। गांव में यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। नहीं मेरे बिच्छू काटने की नहीं
, आरती के समय नहीं जागने की और सभी ने एक सुर से कहा-‘‘ महावीर जी ने तुरंते सजा दे देलखिन, जादे होशियार बनो हई।’’

‘‘अरे गुडूआ नवीन दा मर गेलखुन’’

नीमतर खंधा में हम तीन-चार साथी मछली मार रहे थे तभी गांव पर से बाचो ने आ कर यह खबर दी और हम सभी लोग जिस हालत में थे उसी हालत में दौड़ते हुऐ गांव की तरफ भागे। यह जेठ का महीना था और गांव के सबसे गहरे तलाब के सबसे गहरे हिस्से की पानी को अहले सुबह से हम लोग उपछ रहे थे। इसकी योजना पिछले शाम को ही साथियों के साथ मिल कर बना ली थी जिसमें रीना का भाई गुडडू भी था उसे टीम में रखना इसलिए आवश्यक था कि इसमे मांगूर मछली का निकलना तय था जिसे हममें से कोई पकड़ नहीं सकता था और वह इसको पकड़ने का एक्सपर्ट था।

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Old 29-08-2014, 11:31 PM   #50
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अभी दस बज रहे थे और पानी उपछते उपछते हमलोगों का बुरा हाल हो गया था, यूं कहें तो किसी की हालत चलने तक की नहीं रही थी, गर्मी से घरती तप रही थी पर मन के अंदर मछली मार कर खाने का उत्साह था सो सुरज ने ही अपनी हार मान ली थी और हमलोगों ने मिलकर लगभग तीन हिस्सा पानी साफ कर दिया था और अब कादों में मछली पकड़ने का काम प्रारंभ करना था कि तभी यह बुरी खबर आई। जिस वक्त यह खबर मिली उस वक्त मैं गड्ढे के बीचों बीच बने बांध पर लेटा था क्योकि अब थोड़ी सी पानी बची थी और बांध टूटने लगा था और गर्मी से सबकी हालत खराब थी और मैं ने बांध बनाने के बजाय बांध पर लेट जाना ही श्रेष्कर समझा और मेरे शरीर के उपर से पानी उपछाने लगी थी की खबर को पा कर एकबारगी मैं उठ खड़ा हुआ और सारी मेहनत पर पानी फिर गया। दौड़े दौड़े हमलोग गांव आये, वहीं रीना के दलान पर नवीन दा का शव रखा हुआ था और बगल में उसके पिताजी स्तब्ध बैठे थे पर रीना की मां, रीना और अन्य महिलाऐं जार जार रो रही थी।

‘‘ की होलई हो, कैसे इ सब हो गेलई, नवीन दा से कल बात होलई हल ठीके हलखिन’’ मैंने बगल में खडे पप्पू से यह बात पूछी तो उसने जो जबाब दिया वह स्तब्ध करने वाला था-

‘‘मौगी के ससुराल से लाबे ले गेलई हल नै अइलै तब नींद के गोली खा कर सुत रहलै’’

‘‘बस इतनै बात हलई और अपन जिनगी खत्म कर लेलखिन’’

‘‘ हां हो, पर मौगी भी करर हलई हो, तीन बार से लाबेले जा हलखिन औ नै आबो हलई, बेचारा घरा में इहे एगो आदमीए हलई, हीरा ।’’

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