07-02-2014, 06:02 PM | #41 |
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Re: लोककथा संसार
श्रेष्ठ लघुकथाओ का सुन्दरतम संकलन........
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*** Dr.Shri Vijay Ji *** ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे: .........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :......... Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread. |
07-02-2014, 08:16 PM | #42 |
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Re: लोककथा संसार
प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
09-02-2014, 09:31 PM | #43 |
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Re: लोककथा संसार
लोककथा/
बेटों का कारनामा एक थी बुढ़िया। उसके चार बेटे थे। एक का नाम था हमर, दूसरे का तमर, तीसरे का सारिंगा और चौथे का गनी। गांव में नौटंकी वाले अपना खेल दिखाने आए। बहुत खेल दिखाते थे। लड़कों ने कहा, ‘‘ मां, मां! आज तो हमें नौटंकी देखने जाना है।’’ बुढ़िया बोली, ‘‘जाओ, जल्दी ही घर आ जाना। मेरे मन में तो आज-कल चोरों का डर बना रहता है। लेकिन कोई फिकर की बात नहीं । तुम खेल देख आओ।’’ इधर लड़कों नौटंकी देखने चले गए और उधर कुद ही देर बाद घर में चोर घुसे। चोरों ने तो सबकुछ समेटना शुरू किया। काले-गोरे बैल खोल लिये। भूरी-भगोरी भैंस ले ली। घर में जो भी चीज़ हाथ लगी, सो सब समेट ली। घर का सारा माल-मत्ता लेकर चोर तो चल दिए। उन्हें जाते देख बुढ़िया ने दुखभरी आवाज़ में कहा, ‘‘ले जाओ। तुम्हारे बाप का माल है, तो तुम ले जाओ। मेरे लड़के अभी लौटने ही वाले हैं। अगर वे नौटंकी देखने न गए होते, तो यहीं तुमसे अच्छी तरह निपट लेते।’’ सुनकर एक चोर ने कहा, ‘‘क्यों न इस बुढ़िया को भी हम अपने साथ ले जायं? फिर कौन हमारा पीछा करेगा?’’ चोरों ने बुढ़िया को एक गठरी में बांध लिया। एक चोर ने गठरी अपने सिर पर उठा ली। दूसरे चोर माल लेकर चलते बने। गठरी वाले चोर ने कहा, ‘‘तुम सब बहुत दूर-दूर पहुंच जाओ। मैं बुढ़िया को सिर पर रखकर नौटंकी के खेल में नाचने-कूदने का एक खेल अपना भी दिखा दूंगा। बुढ़िया के लड़के खेल देखने में लगे रहेंगे, इसलिए वे तो देर से ही अपने घर पहुंच पायंगे।’’ दूसरे चोर तो आगे बढ़ गए। पर गठरी वाला चोर बुढ़िया की गठरी को अपने सिर पर रखकर नौटंकी वालों के खेल में शामिल हो गया, और सबके साथ वह भी नाचने-कूदने लगा। लोग बोले, ‘‘यह कोई नया खिलाड़ी, नई वेश-भूषा में आया है।’’ >>>
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09-02-2014, 09:33 PM | #44 |
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Re: लोककथा संसार
बुढ़िया के चारों बेटे एक खटिया पर बैठे थे, सो वे वहीं बैठे रहे। बोले, ‘‘यह नया खेल देखकर ही चलेंगे। देर तो हो गई। मां हमारी बाट भी देख रही होगी। पर देर में थोड़ी देर और सही।’’
चोर खिलाड़ी नाचता जाता, तालियां बजाता और सबको हंसाता। इसी बीच बुढ़िया ने गठरी के अन्दर से झांककर चारों ओर अपनी निगाह दौड़ाई। उसने देखा, उसके बेटे खटिया पर बैठे हैं। बुढ़िया गठरी में से बोली: उठो बेटो हमर-तमर उठो पूत सारिंगा। आधे ढोर गनी गए। आधे ढोर गनी गए। थै-थै-थै-थै, ता-ता-थै-थै-थै। सिर पर रखी गठरी में से बुढ़िया को बोलते सुना, तो चोर खिलाड़ी परेशान हो उठा। मन-ही-मन बोला—‘बुरे फंसे! इस बुढ़िया ने तो सारा खेल ही बिगाड़ दिया।’ बुढ़िया की बात लोग सुन न सकें, इसके लिए चोर चिल्ला-चिल्लाकर बोलने लगा: तुम सच कहती हो। सच कहती हो। माल तुम्हारा गया कच्छ। माल तुम्हारा गया कच्छ। इतना कहकर चोर ने अपने सिर पर रखी गठरी उठाई और उसे ज़ोर से ज़मीन पर पटक कर वहां से भाग निकला। इसी बीच सबलोग गठरी के आसपास इकट्ठा हो गए। गठरी खेली, तो अन्दर से बुढ़िया निकली! बुढ़िया ने चारों को सारी बात कह सुनाई। सुनते ही हमर-तम, सारिंगा और गनी चारों भाई चारों दिशाओं में दौड़ गए। उन्होंने चोरों को पकड़ लिया और चोरी गया सारा माल भी वे अपने साथ ले आए। बुढ़िया ने छह महीनों तक खाट पर पड़े-पड़े हलुआ खाया। लेकिन उसका चोरी गया सारा माल तो सही सलामत मिल ही गया। ii इति ii प्रस्तुतकर्ता : प्रगति रथ
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15-02-2014, 06:54 PM | #45 |
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Re: लोककथा संसार
अफ्रीकी लोककथा
आसमानी बिजली और तूफ़ान की कहानी बहुत पहले आसमानी बिजली और तूफ़ान बाकी सारे लोगों के साथ यहीं धरती पर रहा करते थे, लेकिन राजा ने उन्हें सारे लोगों के घरों से बहुत दूर अपना बसेरा बनाने का आदेश दिया हुआ था. तूफ़ान असल में एक बूढ़ी भेड़ थी जबकि उसका बेटा आसमानी बिजली एक गुस्सैल मेढा. जब भी मेढा गुस्से में होता वह बाहर जाकर घोरों में आगज़नी किया करता और पेड़ों को गिरा देता. वह खेतों को भी नुकसान पहुंचाता और कभी तो लोगों को मार भी डालता. वह जब नभी ऐसा करता उसकी माँ ऊंची आवाज़ में डांटती हुई उसे और नुक्सान न पहुंचाने और घर वापस आने को कहती, लेकिन आसमानी बिजली अपनी माँ की बातों पर ज़रा भी ध्यान दिए बिना तमाम नुकसान करने पर आमादा रहता. अंत में जब यह सब लोगों की बर्दाश्त से बाहर हो गया, उन्होंने राजा से शिकायत की. सो राजा ने एक विशेष आदेश दिया और भेड़ और उसके मेढे को शहर छोड़कर दूर झाडियों में जा कर रहने पर मजबूर होना पड़ा. इस से भी कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि गुस्सैल मेढा अब भी कभी कभार जंगलों में आग लगा दिया करता और आग की लपटें जब-तब खेतों तक पहुंचकर उन्हें तबाह कर दिया करतीं. लोगों ने राजा के आगे फिर से शिकायत की और इस बार राजा ने दोनों माँ-बेटे हो धरती छोड़कर आसमान में जाकर अपना घर बना लेने को कहा, जहां वे बहुत ज़्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे. तब से जब भी आसमानी बिजली को गुस्सा आता है, वह हमेशा की तरह तबाही मचाता है लेकिन हम उसकी माँ को उसे दांत पिलाता हुआ सुन सकते हैं. हाँ कभी कभी जब माँ अपने शरारती बेटे से कुछ दूर कहीं गयी होती है, हम देख सकते हैं कि वह अब भी गुस्सा है और नुक्सान पहुंचा रहा है अलबत्ता उसकी माँ की आवाज़ हमें नहीं सुनाई देती.
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15-02-2014, 08:32 PM | #46 |
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Re: लोककथा संसार
उत्तराखंड की लोक कथा
राजुला-मालूशाही की प्रेम कथा उत्तराखंड की लोक गाथाओं में गाई जाने वाली 15वीं सदी की अनोखी प्रेम कथा है राजुला-मालूशाही की। कहते हैं कुमाऊं के पहले राजवंश कत्यूर से ताल्लुक रखने वाले मालूशाही जौहार के शौका वंश की राजुला के प्रेम में इस कदर दीवाने हुए कि राज-पाट छोड़ संन्यासी हो गए। उनके प्रति राजुला की चाहत भी इस कदर थी कि उसने उनसे मिलने के लिए नदी, नाले, पर्वत किसी बाधा की परवाह नहीं की। कत्यूरों की राजधानी बैराठ (वर्तमान चौखुटिया) में थी। जनश्रुति के अनुसार बैराठ में राजा दोला शाह राज करते थे। उनकी संतान नहीं थी। उन्हें सलाह दी गई कि वह बागनाथ (वर्तमान बागेश्वर) में भगवान शिव की आराधना करें तो संतान प्राप्ति होगी। वहां दोला शाह को संतानविहीन दंपति सुनपति शौक-गांगुली मिलते हैं। दोनों तय करते हैं कि एक के यहां लड़का और दूसरे के यहां लड़की हो तो वह दोनों की शादी कर देंगे। कालांतर में शाह के यहां पुत्र और सुनपति के यहां पुत्री जन्मी। ज्योतिषी राजा दोला शाह को पुत्र की अल्प मृत्यु का योग बताते हुए उसका विवाह किसी नौरंगी कन्या से करने की सलाह देते हैं। लेकिन दोला शाह को वचन की याद आती है। वह सुनपति के यहां जाकर राजुला-मालूशाही का प्रतीकात्मक विवाह करा देते हैं। इस बीच राजा की मृत्यु हो जाती है। दरबारी इसके लिए राजुला को कोसते हैं। अफवाह फैलाते हैं कि अगर यह बालिका राज्य में आई तो अनर्थ होगा। उधर, राजुला मालूशाही के ख्वाब देखते बड़ी होती है। इस बीच हूण देश के राजा विक्खीपाल राजुला की सुंदरता की चर्चा सुन सुनपति के पास विवाह प्रस्ताव भेजता है। राजुला को प्रस्ताव मंजूर नहीं होता। वह प्रतीकात्मक विवाह की अंगूठी लेकर नदी, नाले, पर्वत पार करती मुन्स्यारी, बागेश्वर होते हुए बैराठ पहुंचती है। लेकिन मालूशाही की मां को दरबारियों की बात याद आ जाती है। वह निद्रा जड़ी सुंघाकर मालूशाही को बेहोश कर देती है। राजुला के लाख जगाने पर भी मालूशाही नहीं जागता। राजुला रोते हुए वापस चली जाती है। यहां माता-पिता दबाव में हूण राजा से उसका विवाह करा देते हैं। उधर, मालूशाही जड़ी के प्रभाव से मुक्त होता है। उसे राजुला का स्वप्न आता है, जो उससे हूण राजा से बचाने की गुहार लगाती है। मालूशाही को बचपन के विवाह की बात याद आती है। वह राजुला के पास जाने का निश्चय करता है तो मां विरोध करती है। इस पर मालूशाही राज-पाट, केश त्याग संन्यासी हो जाता है। दर-दर भटकते उसकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से होती है। उनकी मदद से वह हूण राजा के यहां जा पहुंचता है। राजुला मालूशाही को देख अति प्रसन्न हो जाती है, लेकिन मालूशाही की हकीकत विक्खीपाल पर खुल जाती है। वह उसे कैद कर लेता है। प्रेम कथा का दुखद अंत होता है। (आलेख: प्रवेश कुमारी)
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06-03-2014, 04:52 PM | #47 |
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Re: लोककथा संसार
ईरानी लोककथा
खुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो अब प्रस्तुत है वह कहानी जिस पर कहावत आधारित है वह है, “कुजा ख़ुश अस्त, आन्जा के दिल खुश अस्त”अर्थात ख़ुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो। एक बुढ़िया थी जिसके एक पुत्र था।दोनों ही निर्घन थे और बहुत ही कठिनाई में जीवन व्यतीत कर रहे थे।एक दिन बुढ़िया के पुत्र ने अपनी माता से कहा कि यहां पर तो मेरे लिए कोई काम है नहीं।आप मुझे अनुमति दीजिए ताकि मैं किसी दूसरे नगर जाऊं, हो सकता है कि वहां पर मुझे कोई काम मिल जाए और मैं पैसा कमाकर वापस आऊं।बूढ़ी मां ने अपने बेटे को एक सिक्का दिया और थोड़ी सी रोटी भी यात्रा-मार्ग के लिये दे दी।इसके बाद उसने अपने पुत्र को विदा किया।बुढ़िया का बेटा चलते-चलते एक बाज़ार पहुंचा।वहां पर उसने एक बूढ़े भिखारी को देखा।वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि है कोई जो मेरे जीवन के अनुभव को एक सिक्के में ख़रीदे? कोई भी उस बूढ़े भिखारी की बात नहीं सुन रहा था।इसी बीच उस युवक ने सोचा कि मेरे पास एक सिक्के के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।क्यों न यह सिक्का मैं इस बूढ़े को दे दूं?उसने यह सोचते हुए कि आजीविका का प्रबंध करने वाला तो ईश्वर है, वह सिक्का बूढ़े को दे दिया।सिक्का देते समय युवक ने उस बूढ़े से कहा कि अब तुम मुझको अपने जीवन का अनुभव बताओ।बूढ़े ने कहा कि कोई भी अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं है।वह सोचता है कि इस स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाऊं ताकि मेरी स्थिति बेहतर हो जाए।बूढ़े ने कहा कि मेरे हिसाब से तो वह स्थान उचित है जहां पर मन को शांति मिले।प्रसन्नता महत्वपूर्ण है न कि स्थान। >>>
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06-03-2014, 04:54 PM | #48 |
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Re: लोककथा संसार
बूढ़े की बात सुनने के पश्चात युवा आगे बढ़ गया और चलते-चलते एक जंगल में पहुंचा।वहां पर उसने देखा कि बहुत से लोग एक कुएं के किनारे जमा हैं।उसने उन लोगों से पूछा कि क्या हुआ? लोगों ने कहा कि इस आशा के साथ हमारा कारवां यहां पर आया था कि इस कुएं से पानी निकाल कर पियेगा।अब हम स्वयं प्यासे हैं और हमारे पशु भी प्यासे हैं।हमने कुएं से पानी निकालने के लिए कई बार रस्सी में बालटी बांधकर कुंए में डाली और हर बार रस्सी टूट गई और बाल्टी कुएं में गिर गई।अंत में हमने एक व्यक्ति को कुएं में भेजा ताकि वह हमारी बाल्टियों को वापस ले आए किंतु वह भी वापस नहीं आया।पता नहीं कुंए में क्या है?
युवक जो अपने घर से काम के लिए ही निकला था उसने यह सोचा कि इन लोगों को अपनी योग्यता और क्षमता को प्रदर्शित करने का यह बहुत अच्छा अवसर है। हो सकता है कि कारवां के लोग इसे देखकर मुझे कोई काम सौंप दें। उसने कारवां वालों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि आप अनुमति दें तो मैं कुंए में जाकर देखूं कि वहां पर क्या है? कारवां वालों ने उसे तुरंत ही कुंए में जाने की अनुमति देदी क्योंकि वे स्वंय इस कार्य से डर रहे थे।उन्होंने युवक की कमर में रस्सी बांधी और उसे कुंए में भेज दिया।वह दीवार के सहारे धीरे-धीरे कुंए में उतर रहा था।जैसे ही वह पानी के निकट पहुंचकर बाल्टियों को ढूंढने का प्रयास कर रहा था।एकदम से उसने एक बहुत बड़े काले देव को देखा।देव ने उससे कहा कि तुम यहां पर क्या कर रहे हो? देव को देखकर नौजवान डर गया।उसने देव को सलाम किया।इसपर देव हंसा और बोला।सलाम, सुरक्षा लाता है।तुम मुझको एक सज्जन युवक लग रहे हो।मैं तुमसे एक प्रश्न करना चाहता हूं। >>>
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06-03-2014, 04:58 PM | #49 |
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Re: लोककथा संसार
यदि तुमने मेरे प्रश्न का सही उत्तर दे दिया तो मैं तुम्हें यह अनुमति दूंगा कि कुंए से पानी लेकर सुरक्षित वापस चले जाओ।यदि तुमने मेरी बात का सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुमको भी उन्हीं लोगों की भांति यहां पर बंदी बनाऊंगा जो तुमसे पहले यहां पर आए थे।एसे में युवक ने सोचा कि तुम्हें क्या परेशानी थी जो यहां पर आए।लेकिन अब इन बातों से कोई लाभ नहीं था।अब मुझको ईश्वर पर भरोसा करते हुए देखना यह है कि इस काले देव ने क्या सोच रखा है? यह सोचते हुए उसने देव से कहा कि ठीक है।मुझको तुम्हारी बात स्वीकार है।तुम अपना प्रश्न पूछो।देव ने युवा से कहा कि यह बताओ कि खुशी कहां है? देव का प्रश्न सुनकर युवा ने कहा कि मालूम है कि खुशी तो धरती पर ही है।फिर उसने सोचा कि यदि मैं उसको यही उत्तर दूंगा तो हो सकता है कि उसे बुरा लगेक्योंकि उसका घर तो अंधेरे कुंए में हैं।
अभी वह यह सोच ही रहा था कि युवक को बूढ़ेफ़क़ीर की बात याद आई।बूढ़े की बात जैसे ही उसके मन में आई वह बहुत प्रसन्न हुआ।इसके बाद उसने देव से कहा कि जानते हो खुशी कहां है? जहां पर मन प्रसन्न है वहीं पर खुशी है।उसकी बात सुनकर देव बहुत प्रसन्न हुआ।उसने कहा कि तुम्हारी बातों से बता चलता है कि तुम बहुत समझदार और अनुभवी हो।तुमसे पहले जिससे मैंने यह प्रश्न किया था उसने मुझसे कहा था कि धरती पर पाए जाने वाले बाग़, खुशी का स्थल हैं जबकि मुझको तो यही स्थान अच्छा लगता है और मैं इसे ही पसंद करता हूं।देव ने कहा कि जाओ बाल्टियों को ले जाओ।मैं तुमको तीन अनार दूंगा।जबतक अपने घर न पहुंच जाना किसी से भी इस बारे में कोई बात नहीं करना। >>>
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06-03-2014, 05:06 PM | #50 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
युवक ने देव का आभार व्यक्त किया, बाल्टियों को पानी से निकालकर एकत्रित किया और उनको पानी से भरकर वापस ऊपर भेज दिया।उसके बाद वह भी कुंए से सुरक्षित वापस निकल आया।बाहर आने के बाद उसने देव की कहानी कारवां वालों को सुनाई किंतु अनार के बारे में उसने उनसे कुछ भी नहीं कहा।कारवां वालों से उसका आभार व्यक्त किया।फिर युवककारवां के साथ अपने नगर वापस आ गया।जब वह अपने नगर पहुंचा तो कारवां वालों ने उसे एक गाय और भेड़ उपहार स्वरूप दी।उन्होंने कहा कि हम कुछ समय तक तुम्हारे नगर में रहेंगे।जब हम यहां से वापस जाएंगे तो तुम भी हमारे साथ आ सकते हो और हमारे लिए काम कर सकते हो।इसके बाद युवक ने कारवां वालों से विदा ली और अपने घर की ओर चल पड़ा।अपने पुत्र को देखकर उसकी माता बहुत प्रसन्न हुई।उसने कहा कि बहुत अच्छा हुआ कि तुम आ गए।मुझको तो आशा नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी वापस आ जाओगे।
युवक ने कहा कि ईश्वर ने मेरी सहायता की।अब तक मुझे एक गाय और एक भेड़ उपहार में मिल चुकी है।कुछ दिनों के बाद अब मैं कारवां वालों के साथ उनके नगर जा सकता हूं और उनके लिए काम कर सकता हूं।रात को मां और बेटे ने खाना खाया।मां थकी हुई थी अतः जल्द सो गई।युवक ने अपनी जेब से एक अनार निकाला और उसका एक टुकड़ा काटा।अनार के दाने बहुत चमक रहे थे जो जगमगाते रत्न की भांति थे।युवक को पता चला कि अनार के दाने, बहुमूल्य रत्न हैं।यह जानकर वह बहुत खुश हुआ।वह कारवां के साथ यात्रा पर नहीं गया।उसने कुछ रत्न लिए और उन्हें जाकर बाज़ार में बेच दिया।उनसे मिलने वाले पैसों से उसने एक दुकान ख़रीदी और व्यापार आरंभ किया।जब भी लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो अनुपयुक्त स्थान पर रहता हो या उसकी आय कम हो और बड़ी कठिनाइयों में जीवन व्यतीत करता हो लेकिन इन सब के बावजूद भी वह प्रसन्न हो तो लोग यह कहावत दोहराते हैं- “कुजा खुश अस्त, आन्जा के दिल ख़ुश अस्त” अर्थात् ख़ुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो। (समाप्त)
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