20-12-2014, 02:48 PM | #41 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
20-12-2014, 02:49 PM | #42 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
आत्मविश्वास के समक्ष विश्व की बड़ी से बड़ी शक्ति झुकती है और भविष्य में भी झुकती रहेगी। इसी आत्मविश्वास के सहारे आत्मा और परमात्मा के बीच तादात्म्य उत्पन्न होता है तथा अजस्र शक्ति के स्त्रोत का द्वार खुल जाता है। कठिन परिस्थितियों एवं हजारों विपत्तियों के बीच भी मनुष्य आत्मविश्वास के सहारे आगे बढ़ता जाता है तथा अपनी मंजिल पर पहुँच कर रहता है।
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20-12-2014, 02:49 PM | #43 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
मानव जाति की उन्नति के इतिहास में महापुरुषों के आत्म-विश्वास का असीम योगदान रहा है। भौतिक दृष्टि से तात्कालिक असफलताओं को शिरोधार्य करते हुए भी उन्होंने विश्वास न छोड़ा और अभीष्ट सफलता प्राप्त की। आत्मविश्वास का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। लौकिक एवं अलौकिक सफलताओं का आधार यही है। उसके सहारे ही निराशा में भी आशा की झलक दीखती है। दुःख में भी सुख का आभास होता है। इससे बड़े से बड़े कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं, किए गए हैं। चीन की दीवार पिरामिड, पनामा नहर एवं दुर्गम पर्वतों पर विनिर्मित सड़कें व भवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देते हैं।
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20-12-2014, 02:49 PM | #44 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
वस्तुतः समस्त शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आधार आत्मविश्वास ही है। इसके अभाव में अन्य सारी शक्तियाँ सुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं। जैसे ही आत्मविश्वास जागृत होता है अन्य शक्तियाँ भी उठ खड़ी होती हैं और आत्मविश्वास के सहारे असम्भव समझे जाने वाले कार्य भी आसानी से पूरे हो जाते हैं।
वैयक्तिक जीवन में भी आत्मविश्वास ही सम्पूर्ण सफलताओं का आधार है। विश्वास के अभाव में ही श्रेष्ठतम उपलब्धियों से लोग वंचित रह जाते हैं असफलताओं का कारण है- अपनी क्षमता को न पहचान पाना और अपने को अयोग्य समझना। जब तक अपने को अयोग्य, हीन, असमर्थ समझा जायेगा, तब तक सौभाग्य एवं सफलता का द्वार बन्द ही रहेगा।
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20-12-2014, 02:51 PM | #45 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
सफलता ऐसों के कदम चूमती है।
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20-12-2014, 02:51 PM | #46 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
स्वस्थ आकांक्षाएं ही प्रेरणा की केन्द्र बिन्दु हैं। आगे बढ़ने- ऊँचा उठने- विकास की ओर निरन्तर अग्रसर होने की आकाँक्षा न उठी होती तो मनुष्य आदिम अवस्था में ही पड़ा रहता। आज की प्रगतिशील स्थिति में पहुँच पाना सम्भव न हो पाता। आकाँक्षाओं की प्रेरणा से ही पुरुषार्थ को गतिशील होने का अवसर मिला तथा विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। मनःशास्त्री कहते हैं कि मनुष्य की दृश्यमान हलचलों का कारण आकाँक्षाएं हैं। प्रतिभा, धन, प्रतिष्ठा अथवा श्रेय की आकाँक्षा के इर्द-गिर्द ही संसार की गति है। जीवन से वे तिरोहित हो जायं तो कुछ शेष बचता नहीं। निष्क्रिय और निचेष्ट जीवन का अभिशाप लद जाता है। मानव समाज का गहन अध्ययन करने वाले मनोविज्ञानी कहते हैं कि जिस समाज अथवा राष्ट्र की आकांक्षाएं जितनी प्रबल होंगी, भौतिक दृष्टि से वे उतने ही सम्पन्न होंगे।
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20-12-2014, 02:51 PM | #47 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
आकाँक्षाओं की पूर्ति अभीष्ट स्तर की प्रतिभा एवं पुरुषार्थ का होना आवश्यक है। अन्यथा वे मात्र ललक बनकर रह जाती है, जिनका कुछ प्रतिफल निकलता नहीं। साथ ही उनकी दिशाधारा की रचनात्मक होना भी उतना ही आवश्यक है, नहीं तो उनकी परिणति स्वयं एवं समाज दोनों ही के लिए अहित कर होती है।
नाम कमाने की आकाँक्षा अधिकाँश, व्यक्तियों के मन में होती है। कुछ सम्पदा संग्रह का मार्ग चुनते हैं, कुछ प्रतिभार्जन का तथा कुछ शक्ति संग्रह का जो अपनी स्थिति का सही मूल्याँकन करके तद्नुरूप प्रयास करते हैं, वे सफल भी होते हैं, पर अधिकाँश की इच्छाओं का उनकी स्थिति से तालमेल बैठता नहीं वे अभीष्ट स्तर का पुरुषार्थ कर पाते हैं। फलतः उन्हें असफलता ही हाथ लगती है।
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20-12-2014, 02:52 PM | #48 |
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Re: सफलता के सूत्र :: देवराज के साथ
इसके विपरीत संसार में ऐसे व्यक्ति भी समय-समय पर विभिन्न देशों में पैदा हुए हैं जिन्होंने अपनी सामर्थ्य को समाज की भौतिक समृद्धि बढ़ाने में खपाया। सम्पदा, पद एवं प्रतिष्ठा की कामना से दूर रहकर वे योगी की तरह कार्य में लगे रहे। उनके काम ही बाद में उनके नाम बन गये। ऐसे व्यक्तियों में आविष्कारक वैज्ञानिकों की एक बड़ी संख्या है जिनमें से कुछ मूर्धन्यों का नाम उल्लेखनीय है।
गेब्रियल डेनियल फारेनहाइट ने दुकानदारी के कार्य में विफल होकर भौतिकी का अध्ययन शुरू किया। व्यवसाय अपनाया- काँच का फुलाना तथा भौतिकी यन्त्रों का निर्माण करना। 1724 में उसने 0 डिग्री से 212 डिग्री अक्षांक वाले तापमापी का निर्माण किया। जल के अति शीत होने तथा दाव बदलने के साथ-साथ उबाल बिन्दु बदलने का सिद्धान्त खोजने का श्रेय भी ग्रेबियल को ही है। उसका नाम “फारेनहाइट” ही तापमान मापने की इकाई बना।
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