25-05-2012, 12:04 AM | #41 | |
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Re: कुछ यहाँ वहां से............
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25-05-2012, 05:40 PM | #42 |
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Re: कुछ यहाँ वहां से............
सोमबीर जी आप तो जानते ही है हरियाणा में कार का मतलब काम होता है और बे कार हो जायेंगे तो खायेंगे क्या ?
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मांगो तो अपने रब से मांगो; जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत; लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना; क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी। |
25-05-2012, 06:31 PM | #43 |
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Re: कुछ यहाँ वहां से............
यहाँ वहां से काफी बढ़िया माल जमा किया है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
09-08-2012, 09:14 PM | #44 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
जब आएगा रामू बाबा का रामराज्य!
अरुणेश सी दवे आज सुबह-सुबह श्रीमती ने फ़रमाइश रख दी- "रामू बाबा आये हुए हैं, आपको हमें प्रवचन में ले चलना होगा। हमने कहा भी कि भाई आज कल रामू बाबा पहले जैसे योग नही सिखाते हैं, फ़ोकट में राजनैतिक प्रवचन झेलना होगा।" लेकिन श्रीमती कहां मानतीं, हमें ले जाकर ही दम लिया। खैर बाबा का प्रवचन शुरू हुआ, बोले - "हम प्रमाणिकता के साथ आपकी बीमारियों को दूर भगा देंगे और विदेशों से काला धन वापस ले आएंगे।" उसके बाद बाबा ने कपाल भाती सिखाना शुरू किया, बोले- " जोर से सांस खींचो।" हमने सांस अंदर ली, फिर बाबा बोल उठे - "कालाधन छोड़ो।" हमने कहा- "बाबा हम तो आपके कहे में केवल सांस अंदर किये हैं, अब कालाधन कैसे छोड़ें?" बाबा बोले - " बेटा आप को सांस ही छोड़ना है, कालाधन वाली बात तो हम कांग्रेसियों के लिये कह रहे थे।" बाबा फ़िर शुरू हुए - "देश का तीन सौ तीस लाख करोड़ काला धन वापस लाकर इससे हम गांव-गांव को स्वर्ग बना देंगे। इस पैसे से हर सड़क पर सोने की परत होगी। गांव-गांव में खादी बुनी जायेगी, । गाय के गोबर से हम बिजली बनायेंगे, तेल आयात की जरूरत नही होगी, पचास सालो तक देश में इनकम टैक्स नही लगेगा।" cont.............
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09-08-2012, 09:15 PM | #45 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
इतना सुनते-सुनते हम सपनों में खो गये। बाबा देश के राष्ट्रपति और हम उनके प्रमुख सचिव बन गये। हमसे मिलने के लिए लोगों का तांता लग गया। हर कोई शिकायत बताने और मांगें लेकर हमारे पास आ रहा था। एक प्रतिनिधि मंडल आया, बोला - "साहब, हमारे दलित गांव का गोबर, पड़ोस के गांव के दबंग छीन कर सोसाइटी में बेच देते हैं।" हमने तुरंत आदेश जारी किया - "गायों के मालिको का हिसाब रखा जाये और नाथूराम गोड़से गोबर खरीद गारंटी मिशन के अंतर्गत चेक से सीधे मालिक के खाते में भुगतान हो।"
तभी विभिन्न देशों के राजदूत मिलने आये। पाकिस्तान वाला बोला- "सर, दुनिया में अब आपके अलावा कोई कपड़ा नही बनाता और आपने हमसे कपास खरीदना बंद कर दिया है। हमारे किसान कहां जाएं? रहम कीजिये।" हमने कहा - "पहले आतंकवाद बिल्कुल बंद होना चाहिये, दाऊद के जैसे तमाम आरोपी भारत को सौंपिये, कश्मीर को हमारा अभिन्न अंग मानिये, उसके बाद आपसे कपास खरीदा जायेगा।" अगला दल यूरोप का था, आते ही गिड़गिड़ाने लगे - "माई बाप, सारे यूरोप का पैसा तो आप वापस ले गये हो। हमारे यहां हाहाकार मचा हुआ है, हमें कर्ज दीजिये वरना हम तबाह हो जायेंगे।" हमने कहा - "अपना सोना गिरवी रखना होगा, उसके अलावा ब्रिटेन के म्यूजियम में भारत की जितनी ऐतिहासिक वस्तुएं हों, वो सब लौटानी होंगी। आखिरी शर्त लंदन के मुख्य मार्केट की सड़क हमारी होगी। उसमें बोर्ड लगा होगा- " ब्रिटिश एन्ड डॉग्स नाट अलाउड।" इसके बाद अमेरिका के वैज्ञानिकों का दल था, वे आते ही चढ़ बैठे - "आप विश्व हित की टेक्नालॉजी को छुपा रहे हो। आप वसुधैव कुटुंबकम की हिंदू संस्कृति भूल गये हो।" हमने पूछा - "भाई, मामला क्या है?" वे और भड़क गये - " आपके यहां गायें खुल्ला घूमती हैं, लेकिन आप उस गोबर से मीथेन गैस बना, ईंधन के मामले में आत्मनिर्भर हो गये। और हम हैं कि दस हजार गायें एक-एक फ़ार्म में पालते हैं, सबका गोबर आटॊमेटिक एकत्र हो जाता है। फिर भी हम उसका उपयोग करने में असमर्थ हैं।" हमने कहा - " हम आपको गोबर की तकनीक विशेष शर्तों पर उपलब्ध करा सकते हैं। इस तकनीक में काम आने वाला गौमूत्र, शुद्ध भारतीय होगा। यह गोमूत्र आपको सौ रूपये प्रति लीटर पर खरीदना होगा।" शर्तें सुन कर अमेरिकी जमीन में लोट गये, बोले - "माई बाप, पहले एक रुपये की कीमत पचास डॉलर हो गयी है, हम ये बोझ और न सह पायेंगे।" हमने इनकार में सर हिला दिया। cont.............
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09-08-2012, 09:16 PM | #46 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
अमरीकन बोले - " हम रामू बाबा से सीधे बात करेंगे।" हमने कहा - "सौ देशो की खुफ़िया पुलिस रामू बाबा को खोज रही है कि उनके हाथ लग जायें तो उनके देश का भला हो जाये। इसलिये वे गुप्त स्थान पर रहते हैं, आप नही मिल सकते।" जाते-जाते अमेरिकन भुनभुना रहे थे - "जितने आलतू-फ़ालतू बाबा थे, उनको हरे रामा हरे कृष्णा करने अमेरिका भेजते रहे और महान रामू बाबा से मिलने तक नही देते हैं।"
तभी भाजपा के गुड़गुड़ी साहब आ गये, बोले, "दवे जी चुनाव सर पर आ गया है, देश में कोई समस्या ही नहीं बची है, जनता से कहें क्या?" हमने कहा - "कल ही वित्त मंत्री कह रहे थे कि सारे विकास कार्य हो चुके हैं। जो बचे हैं, उनके लिये पैसा आबंटित हो चुका है। अब हर साल ब्याज के तैंतीस लाख करोड़ खर्च कहां करें? आप विश्व के सत्तर गरीब देशों की इस पैसे से मदद कीजिये। फिर यूएन में उनकी सहायता से प्रस्ताव पारित करा लिया जायेगा कि चीन और पाकिस्तान भारत को जमीन वापस करें। बिना लड़े जमीन आ गई तो समझिये अगला चुनाव जीतना तय है।" प्रसन्न होकर गुड़गुड़ी साहब निकले ही थे कि तभी तेल उत्पादक देशों (ओपेक) का दल आया। आते ही गिड़गिड़ाने लगे - "साहब, कोई ऐसे ऑर्डर कैंसल करता है क्या भला! आपने तो हमें कहीं का नही छोड़ा। " हमने कहा - "भाई करें क्या, अब कुछ काम ही नही रहा तेल का, अब तो खाली परंपरा निभाने के लिये राष्ट्रपति पंद्रह अगस्त को पेट्रोल कार में बैठ कर समारोह में जाते हैं।" बाकी देशों ने तो मन मसोस लिया, लेकिन अरब वाले पैरों में गिर गये- "माई बाप, हमारे छोटे-छोटे बच्चों पर तरस खाओ, साल मे कम से कम पांच टैंकर ले लो।" हमें याद आया, जब तेल बिकता था तो कैसे अकड़ते थे साले, हमने तुरंत लात जड़ी - "चलो, भागो यहां से।" cont..........
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09-08-2012, 09:18 PM | #47 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
तभी हमारा स्वप्न भंग हो गया। देखा तो हमारे सामने बैठा श्रद्धालु मुंह के बल जमीन पर पड़ा था। हमारी लात अरब राजदूत को नही, उसे पड़ी थी। लोग भड़क गये, हमें घेर लिया। तभी रामू बाबा ने बीच-बचाव करते हुए पूछा - "क्या बेटा, लात क्यों मारी?" हमने सफ़ाई दी - "बाबा, आपकी बातें सुनकर हमे कांग्रेस पर इतना गुस्सा आया कि हम क्रोध में होश खो बैठे और गलती से लात चल गयी।"
माफ़ी मांग हम प्रवचन से उठ आये। मन ही मन सोच रहे थे कि काला धन आएगा और मेरा सपना सच हो जाएगा। रास्ते भर भगवान से दुआ मांगते रहे कि बाबा को इतनी शक्ति दे कि बाबा काला धन वापस ले आयें। गोबर से मीथेन गैस बना परमाणू संयंत्रों से, कोयले की राख से मुक्ति दिलवाएं। पूरा विश्व भारत का माल खरीदे पर भारत किसी देश का माल न ले। सुबह नाश्ता किए बिना घर से निकल गए थे। सोचा था, प्रवचन से लौटकर कुछ खाया-पीया जाएगा। लेकिन बाबा ने तो तीन दिन की फास्टिंग की घोषणा कर दी है। अब पेट में चूहे कूद रहे हैं लेकिन श्रीमती जी ने किचन पर ताला जड़ दिया है। बोलीं, "बाबा की बात तो माननी ही होगी। देश में रामराज्य लाना चाहते हैं तो क्या तीन दिन भूखे नहीं रह सकते?" मरते क्या न करते। तो हम भी शामिल हो गए हैं तीन दिन के अनशन में। देश में रामराज्य लाने में हमारा यह योगदान कहीं इतिहास के पन्नों में दब न जाए इसलिए यह ब्लॉग भी लिख दिया। कल जब रामू बाबा का रामराज्य आ जाएगा और यह ऐलान होगा कि हर अनशन सेनानी को 1 लाख रुपए की पेंशन मिलेगी तो हम कैसे प्रूव करेंगे कि हमने भी बाबा के आंदोलन में भाग लिया था - यह ब्लॉग दिखाकर ही तो। साभार :-नव भारत टाइम्स !
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10-08-2012, 12:47 PM | #48 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
हर साल की राम लीला बहुत कुछ बदल देती है- शिशिर सिंह वाणी पर नियंत्रण रखना आसान नहीं है पर ये ना भूले की वो आपका चरित्र जाहिर करता है. हमारे एक नेताजी का बयान आया है की ऐसी रामलीला हर साल होती है. काश उन्होने सोचा होता (दिमाग़ हो तो) की आख़िर क्या वजह है जो हर साल ये राम लीला होती है. क्या हमारे पूर्वज नासमझ थे जिन्होने ये परंपरा चलाई? माफ़ कीजिएगा नेताजी पर जिसने आपको पैदा किया वो आपसे बड़ा नासमझ नही हो सकता. मेरे गांव मे भी हर साल रामलीला होती है. वही रामलीला जो हमारे दिल मे एक विश्वास पैदा करती है की सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं. वही रामलीला जो हमे सिखाती है की लालच हमे विनाश की तरफ ले जाती है. बडो का आदर सत्कार, छोटो को प्यार देने की सीख हमे उसी से मिलती है. किसी को छोटा ना समझना, माता पिता की इच्छा का सम्मान करना, भाई के लिए त्याग, सम्मान के लिए युद्ध करना हमने वहीं से सीखा है. काश उन्होने भी कभी रामलीला देखी होती तो ये ना बोला होता. आज बाबा जी का आंदोलन रामलीला ही सही, लोगों मे ऐसी उर्जा का संचार करेगी जिससे आपके सरकार की नींव हिल जाएगी. लोगो के अंदर आपके सरकार को उखाड़ फेंकने की शक्ति यही रामलीला देगी. आज आप सता के मद मे चूर हो कर बयान दे रहे हो, कल जब सता से बाहर किए जाओगे तो याद आएगी आपको रामलीला. परंतु में भी किसके लिए बोल रहा हूँ, रामलीला की जगह वाइफ से मुज़रा करवाया उप्र मे चुनाव जीतने के लिए पर बात नहीं बनी, यहाँ तक की आरक्षण का पत्ता भी खेला फिर भी अपने ही लोगो से दुतकार दिए गये और बुरी तरह हार गयी इनकी वाईफ. आज इनका ज़्यादा समय सिर्फ़ राहुल बाबा और सोनिया माता की चाटुकरिता मे cयतित होता है. जिसका खुद का कोई सम्मान नहीं वो आज राम, रामदेव और रामलीला का मज़ाक उड़ा रहा है.
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10-08-2012, 12:54 PM | #49 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
कान्डा लगाऽऽऽऽऽ, हाय लगाऽऽऽऽऽ! :- जयकुमार राणा
बेचारी गीतिका, अपना गीत ठीक से गा भी नही पाई थी की बेचारी को कांडा ओह! मेरा मतलब है काँटा लग गया. वैसे ये काँटा यहाँ सब को लगा हुआ है भाई साहब. चाहे कोई माने या ना माने. गीतिका को जब तक काँटा नही लगा था तब तक वो भी बेचारी खूब तरक्की पा रही थी, पाँच साल मे कार्यकारी निदेशक कोई ऐसे ही तो नही बनता भाई जी! और वो भी सिर्फ़ 12 वी पास लड़की! तो जब तक गीतिका को काँटा नही लगा था तब तक खूब दौड़ रही थी मगर क्या करें काँटा लगते ही फुल स्टॉप! आप खुद सोचो भाई जी अगर आपके पैर में काँटा लग जाए, आप कितना दौड़ पाओगे? ये काँटा हमारी पुलिस को भी लगा हुआ है इसीलिए उस दिन पुलिस की स्टेट्मेंट आई की ये मामला बड़ा ही संवेदनशील है, उच्च अधिकारियों से दिशा निर्देश लेकर ही आगे की कार्यवाही करेंगे. वाह जी! कितनी सतर्क है हमारी पुलिस, कभी -कभी तो इतनी सतर्कता पर मुझे फक्र होने लग जाता है भाई जी, कसम से! पुलिस वाले सोचते हैं की शायद उच्च अधिकारी ज़्यादा मजबूत जूते पहनते हैं, उन्हे काँटा लग ही नही सकता. मुझे तो छोटे-बड़े सब नंगे मेरा मतलब है नंगे पैर ही नज़र आते हैं साहब! और पुलिस का क्या छोटा-बड़ा, छोटे-बड़े तो अपराधी होते हैं. साफ-साफ नाम लिखा है कि मैं इन-इन मेहरबानों की दुआ से स्वर्ग जा रही हूँ मगर फिर भी पुलिस को लगता है की इसमे बहुत सावधानी से तहकीकात करने की ज़रूरत है. ज़रा सोचो अगर हमारे या आप जैसे किसी आदमी के खिलाफ इतना सॉफ मुकद्दमा होता तो क्या होता? उसी समय दो सिपाही मोटरसाइकल पर आपको घर से उठा कर थाने ले जाते, दो झापड़ मारते कि आप सारी स्टोरी आल इंडिया रेडियो की तरह बक-बका देते! मगर साहब यही तो खूबी है हमारी पुलिस की कि उन्हे पता है की दिवंगत के मोबाइल और लॅपटॉप से ही असली जानकारी मिल सकती है आख़िर एलेक्ट्रॉनिक्स का जमाना है भाई जी! काँटा स्वयं हरियाणा के गृह मंत्री कांडा जी को भी लगा हुआ है भाई जी. इसीलिए वे अपने दिए गये ब्यान से आगे ही नही बढ़ पा रहे हैं बार-बार वही बात दोहराते रहते हैं कि - 'गीतिका एक शरीफ, होनहार लड़की थी जो हमेशा अपने काम को मेहनत के साथ करती थी. मुझे तो समझ ही नही आ रहा कि उसने ये कदम उठाया कैसे'. मुझे भी समझ नही आ रहा भाइयो, आप में से किसी को आ रहा हो तो ज़रूर बताना. वैसे इस बात पर विपक्ष उनको बदनाम करने की कोशिश भी करेगा की ये कैसे गृह मंत्री हैं जिन्हे अपनी ही कंपनी के बारे में नही पता कि वहाँ क्या चल रहा है. कांडा साहब राजनैतिक साजिश की बात भी कर रहे हैं - हो सकती है जी , बिल्कुल हो सकती है. एक मामूली सी जूतों की दुकान का मालिक अगर किसी प्रदेश का गृह मंत्री बन जाए तो 10-20 दुश्मन तो पैदा हो ही जाएँगे. मगर सोचने वाली बात ये है की यह साजिश करेगा कौन? क्या गीतिका का परिवार? हो सकता है भाई, बिल्कुल हो सकता है. राजनीति चीज़ ही ऐसी है की कुर्बानी मांगती है. गीतिका के परिवार ने हो सकता है की गीतिका की कुर्बानी दे दी हो. मगर सोचने वाली बात ये है तो फिर हरियाणा के गृह राज्य मंत्री बनने के लिए कांडा साहब ने क्या कुर्बानी दी? अपनी बेटी की कुर्बानी? नही ना?? यही तो सोच कर मैं परेशान हो रहा था कि ये फंडा क्या है भाई जान. काँटा नुपूर मेहता जी को भी लगा दिखता है भाई जान ! उनका इंटरव्यू देखा टी वी पर . बेचारी बड़ी मुश्किल से एक बड़ा काला चश्मा लगा कर अपनी आँखों में उभर आए काँटे के दर्द को छुपाने की असफल कोशिश कर रही थी. बेचारी बिल्कुल ऐसे ही बोल रही थी जैसे कोई सी डी करप्ट होने पर बार-बार वही रिपीट करती है - 'गीतिका एक अच्छी लड़की थी. काम में हमेशा लगी रहती थी, मेरा उनसे ख़ुशवंत सिंह जी वाला रिश्ता था मतलब न काहु से दोस्ती न काहु से बैर. मुझे तो समझ नही आ रहा उसने ये कदम उठाया क्यों?' देखा ना जी, नुपूर जी को भी ये मौत का रहस्य मैच फिक्सिंग की तरह बिल्कुल समझ नही आ रहा. किस किस की बात करे भाई जान? कितने दिनों से तो हमारी अर्थव्यवस्था को काँटा लगा हुआ है, बेचारी लंगड़ा कर चल रही है. टीम अन्ना को अभी-अभी काँटा लगा है, हमारी सामाजिक संवेदनशीलता को भी काँटा लग चुका है. और थोड़ा इंतजार करो इस केस में काँटा हमारी न्याय व्यवस्था को भी लगा देखोगे. बस जिसे काँटा नही लगा वो है - महँगाई, भ्रष्टाचार और हमारी सामूहिक निद्रा. इन्हे कब लगेगा काँटा?
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05-11-2012, 10:55 PM | #50 |
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Re: कुछ यहां वहां से ...
खुश न हों भ्रष्टाचारी, यह फूट नहीं ताकत है- राजेश कालरा देश के भ्रष्ट लोगों की आंखों में चमक साफ दिख रही है। उन्हें लग रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई मुहिम का रंग फीका पड़ चुका है। लड़ाकों में फूट पड़ गई है। रिटायर्ड जनरल वीके सिंह टीम अन्ना में शामिल हो गए हैं तो इन भ्रष्टाचारियों लोगों को लग रहा है कि अब टीम अन्ना का पूरा ध्यान अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को पीछे छोड़ने में होगा, और ऐसा करके ये लोग एक दूसरे को ही काटेंगे। सोमवार को जनरल सिंह ने टीम अन्ना के साथ आने का ऐलान किया। इससे आंदोलन और ज्यादा ताकतवर होगा। अपनी रिटायरमेंट से ठीक पहले वह उम्र विवाद को लेकर सरकार से उलझ गए थे और एक तरह से उनकी हार हुई थी। लेकिन यह हार उन्हें किसी तरह से कमतर साबित नहीं करती। सरकार हमें कुछ भी यकीन दिलाने की कोशिश करती रहे, आम लोग यही मानते हैं कि जनरल सिंह पूरी तरह कुशल भले न हों, वह एक ईमानदार इन्सान हैं। वह अपने फायदे के लिए देश को बेचेंगे नहीं, जैसा कि हमारे शासकों के बारे में ज्यादातर लोग सोचते हैं। उलटी सीधी चालें चलने वाले और निराशावादी लोग भले ही कहते रहें कि अब यह आंदोलन मर चुका है, सचाई यही है कि आंदोलन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुआ है। सड़क चलते, चाय के ठेलों पर या बसों में लोगों से बात कीजिए। आपको समझ आएगा कि मैं क्या कह रहा हूं। हो सकता है कि अनशनों और धरनों में कम लोग पहुंच रहे हों लेकिन इसका फैलाव पहले से बढ़ा है। लोगों में जागरूकता बढ़ी है। और क्योंकि हमारे नेता कुछ नहीं सीखते, इसलिए अब हर जगह फैले करप्शन, प्रबंधन की कमियों और महंगाई से लोग और ज्यादा परेशान हो चुके हैं। अब आंदोलन की बात। अन्ना और जनरल सिंह और अरविंद केजरीवाल के अलावा बाबा रामदेव भी हैं। सबमें कुछ न कुछ कमियां हो सकती हैं। सब कुछ न कुछ बेवकूफियां करते हैं। सबके अपने अपने अहम हैं। लेकिन सबका अपना अपना अच्छा खासा प्रभाव क्षेत्र है। और आखिरकार सबका मकसद तो एक ही है। इसलिए मुझे इसमें अच्छा ही अच्छा नजर आता है। उलटी सीधी चालें चलने वाले लोग चाहेंगे कि जनता यह मानने लगे कि इन सभी आंदोलनकारियों के लिए निजी एजेंडे, अहंकार और देश हित नहीं बल्कि निजी हित सर्वोपरि हैं। उन्हें मेरा जवाब है – 1. यह सच नहीं है। 2. उन्हें शायद इस बात का यकीन न हो, लेकिन ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि राष्ट्र हित से आखिर में अपना ही फायदा होता है। और फिर इसमें तो कोई संदेह नहीं कि एक ही मकसद के लिए जितने ज्यादा आंदोलन खड़े होंगे, उतना अच्छा है। क्योंकि मैं पहले भी कह चुका हूं कि इन सभी का अपना अपना प्रभाव क्षेत्र है। और सच कहूं तो जिस स्तर तक हाल में हमारे चुने हुए प्रतिनिधि गिरे हैं, ये लोग किसी भी सूरत में उस स्तर तक नहीं जाएंगे। इसलिए कोई कुछ भी कहे, मौजूदा नेतृत्व से आजिज आ चुके लोगों के पास अब विकल्प हैं जो बेशक बेहतर हैं। और कम से कम इस मामले में मैं पूरे यकीन से कह सकता हूं कि जब आखिरी लड़ाई का मौका आएगा तो सभी आंदोलनों के नेता साथ खड़े होंगे। ऐसा नहीं है कि हमारे मौजूदा शासकों को यह बात पता नहीं है। हाल ही में कांग्रेस एक वरिष्ठ सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी का एक बयान सुना। उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों के नेता विश्वसनीयता खो चुके हैं, खासकर युवाओं के नजरों में। इसलिए एक-दूसरे पर उंगली उठाने और कीचड़ उछालने के बजाय सबको साथ बैठकर अपने अंदर झांकना चाहिए और इस खोए हुए भरोसे को जीतने के तरीकों पर विचार करना चाहिए। अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन इन नेताओं को यह अहसास दिलाने में कामयाब हो जाते हैं तो यह भी अपने आप में एक उपलब्धि होगी। और फिलहाल मुझे इससे भी संतोष मिलेगा। साभार-नवभारत टाइम्स
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