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#41 |
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#42 |
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![]() लीजिये कुछ शे’र आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं: |
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#43 |
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आकर्षक प्रस्तुतियां हम बन्धु ....आभार .
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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#44 |
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![]() महावीर सिंह का पत्र Last edited by rajnish manga; 13-04-2013 at 07:16 PM. |
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#45 |
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![]() रजनीश मंगा का पत्र |
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#46 |
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महावीर सिंह का पत्र
नकोट 1.11.1976 परम स्नेही रजनीश, लगभग 4-5 दिन मैं घर से लम्बे अवकाश के बाद आया – दशहरा और दिवाली मन कर, तभी तुम्हारा पत्र मिला. मुझे इतनी प्रसन्नता हुयी कि वह पत्र पूरे स्टाफ व प्रधानाचार्य को भी पढ़ने से वंचित नहीं रखा. निस्संदेह आपने पत्र ह्रदय से लिखा है. परिवार में सब प्रसन्न हैं. माता जी का स्वास्थ्य प्रतिकूल चल रहा है .... स्थानान्तरण के लिए प्रयास कर रहा हूँ .... मेरी पत्नि इस वर्ष एम.ए. (संस्कृत) पूर्वार्ध रूहेलखंड विश्वविद्यालय से कर रही है. .... (हमारी बेटी) अब एक वर्ष दो माह की है. बाल सुलभ सभी चेष्टाएँ उसमे हैं. मैं आपसे प्रेमाग्रह करूँगा कि आप मुझे थोडा समय दे कर कभी गाँव पधारें. पारिवारिक जिम्मेदारियां मेरी हैं, मैं उनको निबाहूंगा. माता जी की ओर से मैं बहुत चिंतित रहता हूँ. अपना मित्र, अपना भाई जान कर मुझे कुछ सुझाव अवश्य ही लिखें. चिरंतन मित्र, महावीर |
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#47 |
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![]() महावीर सिंह का पत्र |
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#48 |
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एक बार फिर से उत्कृष्ट प्रस्तुतियों के लिए हार्दिक अभिनन्दन बन्धु….
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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![]() कवि त्रिलोचन के दो सॉनेट |
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#50 |
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![]() 2. बढ़ो मृत्यु की ओर |
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