04-12-2011, 07:03 PM | #41 |
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Re: कतरनें
जब अपनी नायिका जीनत से प्रेम करने लगे थे देव आनंद वर्ष 1971 में अपनी फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की कामयाबी के बाद सदाबहार हीरो देव आनंद महसूस करने लगे थे कि वह अपनी खोज और इस फिल्म की नायिका जीनत अमान से प्रेम करने लगे हैं। जीनत के प्रति अपनी भावना का इजहार करते हुए देव आनंद ने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विथ लाइफ’ में लिखा है कि फिल्म की कामयाबी के बाद जब अखबारों और पत्रिकाओं में उनके रोमांटिक संबंधों के बारे में लिखा जाने लगा तो उन्हें अच्छा लगने लगा था। उन्होंने अपने प्रेम की घोषणा करीब करीब कर ही दी थी, लेकिन जब उन्होंने जीनत को राज कपूर के करीब देखा, तो उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। राज कपूर अपनी फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में जीनत को नायिका बनाना चाहते थे। वर्ष 2007 में प्रकाशित इस पुस्तक में देव आनंद ने लिखा है, ‘‘कहीं भी और कभी भी जब जीनत के बारे में चर्चा होती, तो मुझे अच्छा लगता। उसी प्रकार मेरी चर्चा होने पर वह खुश होती। अवचेतन अवस्था में हम दोनों एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ गए थे।’’ देव आनंद ने स्वीकार किया कि उन्हें उस समय ईर्ष्या हुई जब उनकी अगली फिल्म ‘इश्क इश्क इश्क’ के प्रीमियर पर राज कपूर ने लोगों के सामने सार्वजनिक रूप से जीनत को चूम लिया। उन्होंने महसूस किया कि वह जीनत से प्रेम करने लगे थे और मुंबई के 'द ताज' में एक रोमांटिक भेंट के दौरान इसकी घोषणा करना चाहते थे। देव आनंद ने लिखा है, ‘‘ अचानक, एक दिन मैंने महसूस किया कि मैं जीनत से प्रेम करने लगा हूं.. और इसे उन्हें बताना चाहता था..।’’ इसके लिए उन्होंने होटल ताज को चुना था जहां वे दोनों एक बार पहले भी साथ साथ खाना खा चुके थे। उन्होंने लिखा कि पार्टी में कुछ देर ठहरने के बाद जीनत के साथ भेंटस्थल पर जाने की व्यवस्था कर ली थी, लेकिन पार्टी में ‘नशे में राज कपूर ने अपनी बांहें फैला दी..... जीनत ने भी जवाबी प्रतिक्रिया व्यक्त की....।’ देव आनंद को संदेह था कि इसमें कुछ तो है। उन्होंने याद किया कि उन दिनों अफवाह थी कि जीनत ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ की नायिका की भूमिका के लिए स्क्रीन टेस्ट की खातिर राज कपूर के स्टूडियो गई थी। उन्होंने लिखा, ‘अफवाहें सच होने लगी थीं। मेरा मन दुखी हो गया था।’ देव आनंद के लिए स्थिति और बदल गई, जब ‘नशे में राज कपूर ने जीनत से कहा कि वह उसके सामने सिर्फ सफेद साड़ी में दिखने का अपना वादा तोड़ रही है...।’ दुखी देव आनंद ने लिखा कि जीनत अब उनके लिए वह जीनत नहीं रह गई थी।
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04-12-2011, 08:30 PM | #42 |
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Re: कतरनें
जब देव साहब ने रफी के लिए गाया
यह तो सभी जानते हैं कि रफी साहब ने देव साहब की बहुत सारी फिल्मों में उनके सदाबहार गानों को अपनी आवाज दी है, लेकिन इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि इन दोनों ने 1966 में बनी फिल्म ‘प्यार मोहब्बत’ में साथ गाया है। सदाबहार नायक देव साहब ने इसके बारे में इसी साल 31 जुलाई को आयोजित रफी की 31वीं पुण्यतिथि पर लोगों के साथ सांझा किया था। देव साहब ने उस समारोह में कहा था कि वह रफी की आवाज के प्रशंसक थे और उन्हें वह पसंद थे। देव साहब ने ट्विटर पर लिखा था, ‘‘मैंने कभी गाना नहीं गाया, लेकिन रफी के गाने ‘प्यार मोहब्बत के सिवा ये जिंदगी क्या जिंदगी...’ में जो हुर्र्रे....हुर्रे है वह मेरी आवाज है। मैने बस उतना ही गाया।’’ उन्होंने कभी अपने ट्विटर के पन्ने पर लिखा था, ‘‘रफी अमर हैं हम उन्हें हमेशा अपने पास, अपने दिलों और आत्मा में महसूस करते हैं। मैं उनकी आवाज का कायल हूं।’’
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04-12-2011, 09:02 PM | #43 |
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Re: कतरनें
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देव साहब के जाने से फिल्मी दुनिया ने ‘वटवृक्ष’ खो दिया : नीरज ‘जब चले जाओगे तुम सावन की तरह । याद बहुत आओगे प्रथम प्यार के चुंबन की तरह ।।’ इन शब्दों के बीच सदाबहार अभिनेता देव आनंद को भरे मन से याद करते हुए प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ ने कहा कि देव साहब के जाने से फिल्मी दुनिया ने ‘वटवृक्ष’ खो दिया। देव आनंद की कई फिल्मों के लिए गाने लिख चुके नीरज ने अलीगढ से बताया, ‘‘एक कवि सम्मेलन के दौरान मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई थी और इसके बाद उनकी फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ से जुड़ा रिश्ता आखिरी फिल्म ‘चार्जशीट’ तक बना रहा। हालांकि, मैंने फिल्मों के लिए 1973 में लिखना छोड़ दिया था।’’ भरे मन से नीरज ने कहा, ‘‘देव साहब के रूप में फिल्म जगत ने एक वटवृक्ष खो दिया, जो फिल्मों के अपने साथियों को हमेशा याद रखा करते थे। शायद यही बड़ा कारण था कि उनकी फिल्म ‘सेंसर’ और ‘चार्जशीट’ के लिए भी मैंने गाने लिखे।’’ उनके निधन को व्यक्तिगत नुकसान बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘देव साहब के साथ फिल्म जगत से मेरा आखिरी संपर्क भी खत्म हो गया। जीनत अमान और टीना मुनीम सहित कई युवाओं को उन्होंने मौका दिया था। युवाओं को अवसर देने में वह कभी झिझकते नहीं थे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘देव साहब 88 साल की उम्र में भी एक युवा की तरह जोश ओ खरोश के साथ काम करते थे और मैं उनके सामने खुद को ‘बूढा’ महसूस करता था। वह अपनी फिल्मों के शीर्षक में अखबारों और बोलचाल के शब्दों का खुलकर इस्तेमाल करते थे।’’ नीरज ने कहा, ‘‘देव साहब नया विचार दर्शकों के सामने रखने वाले फिल्मकार थे और देव आनंद नियम, संयम और समय के पाबंद थे, जो अपनी जिंदगी को बेहद व्यवस्थित और सलीके के साथ जीने वाले व्यक्ति थे।’’ देव साहब के मित्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने बताया, ‘‘देव साहब भले ही पाश्चात्य जीवन शैली को पसंद करते थे, लेकिन वह कभी भी शराब और सिगरेट को हाथ नहीं लगाते थे। वह चाय भी शहद के साथ लेते थे। फिल्मों में भी कभी वह सिगरेट के धुंए को अंदर नहीं लेते थे।’’ नेताम ने बताया कि वह देव साहब से पहली दफा 1973 में मुंबई के उनके कार्यालय में मिले थे, उस वक्त वह केंद्र में मंत्री थे। देव आनंद को उन्होंने बस्तर आमंत्रित किया था और वह 1974 में अपनी यूनिट के तीन चार लोगों के साथ बस्तर आये और बेलाडिला सहित कई स्थानों का भ्रमण किया। देव आनंद जैसे रचनात्मक और जुनूनी व्यक्ति ने भले ही प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से खुद को हमेशा दूर रखा हो, लेकिन उन्हें न केवल देश की राजनीति की गहरी समझ थी बल्कि वैश्विक राजनीति के बारे में भी वह अच्छी जानकारी रखते थे। उन्होंने कहा कि देव आनंद को जानने वाला हर व्यक्ति बतायेगा कि वह कितने खुशमिजाज और जिंदादिल इंसान थे। जानने वाले एवं अनजान हर उम्र के लोगों से वह इतने उत्साह और गर्मजोशी के साथ मिलते थे जैसे उसे वर्षों से जानते हों।
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04-12-2011, 09:02 PM | #44 |
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Re: कतरनें
संस्मरण
देव आनंद ने इंदौर में इंदौर-महू साढे छह आना की आवाज लगाई थी इन्दौर ! मशहूर निर्माता-निदेशक और सदाबहार अभिनेता देव आनंद ने मध्य प्रदेश के इंदौर के रेलवे स्टेशन पर खडे होकर महू जाने के लिए यात्रियों को इंदौर-महू साढे छह आना की आवाज लगाई थी। देव आनंद ने वर्ष ।953 में बनी टेक्सी ड्रायवर के अलावा फिल्म नौ दो ग्यारह और पेइंग गेस्ट की शूटिंग इंदौर में की थी। देव आनंद पर दो लोकप्रिय गाने फिल्माए थे। देव आनंद की इंदौर से जुडी यादो को समेटते हुए प्रसिद्ध सिनेमा पत्रकार राम ताम्रकर ने बताया कि देव आनंद की फिल्म गाइड की सिल्वर जुबली पर यहां आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अलका सिनेमाघर में आयें थे। उस समय पूरा जेलरोड उनके चाहने वालों से भर गया था। उन्होंने बताया कि देव आनंद अपनी फिल्म टेक्सी ड्रायवर के कुछ दृष्यो को इंदौर में शूटिंग करने के लिए आए थे। इस फिल्म की कहानी के अनुसार आगरा से मुबंई जाते समय वह इंदौर के रेलवे स्टेशन पर अपना ट्रक खडा करके सवारियां ढूंढने के लिए 'इंदौर-महू साढे छह आना' की आवाज लगाते है। यह फिल्म 1954 में प्रदर्शित हुई थी। फिल्म 'नौ दो ग्यारह' में इंदौर जिले के मानपुर के खतरनाक घाट में कल्पना कार्तिक के साथ मस्ती भरा गाना ..हम हैं राही प्यार के हमसे कुछ न बोलिये.. फिल्माया था। इसके अतिरिक्त फिल्म 'पेइंग गेस्ट' का एक गीत.. छोड दो आंचल .. भी नर्मदा नदी के किनारे देव आनंद ने फिल्माया था।
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04-12-2011, 09:28 PM | #45 |
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Re: कतरनें
बहुत जबर्दस्त लिखा आपने अलैक जी.
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05-12-2011, 08:00 PM | #46 |
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Re: कतरनें
छह दिसंबर को डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि पर
देश को अतुलनीय संविधान दिया अंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माता डा भीमराव अंबेडकर ने आजादी के बाद देश को एकसूत्र में पिरोकर एक नयी ताकत के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त करने के लिये ऐसे संविधान का निर्माण किया जो विश्व के लिये मिसाल बन गया। अंबेडकर ने संविधान निर्माण में उदारवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए न केवल सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखा बल्कि पिछडे वर्ग के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रावधान किए। उन्होंने संविधान बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा कि देश की एकता और अखंडता अक्षुण्य रहे। अंबेडकर ने संविधान में मौलिक अधिकार, नीति निदेशक तत्व, सामाजिक न्याय सहित अनेक बातों को शामिल कर इसका मूल ढांचा बनाया। संविधान में मतपत्र से मतदान, बहस के नियम, कार्यसूची के प्रयोग आदि को शामिल करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। संविधान विशेषज्ञ सुब्रतो मुखर्जी के अनुसार संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चार प्रमुख लोगों, पं. जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और राजेन्द्र प्रसाद को अंबेडकर पर पूरा विश्वास था, इसीलिए उन्होंने संविधान निर्माण की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी। अंबेडकर उस विश्वास पर एकदम खरे उतरे। अंबेडकर संविधान निर्माण के लिए बनाई गई प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। प्रख्यात विधिवेत्ता अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मउ में हुआ। अंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त की और कोलंबिया विश्वविद्यालय तथा लंदन स्कूल आफ इकॉनामिक्स से डॉक्टरेट की डिग्रियां हासिल कीं। 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद अंबेडकर देश के पहले कानून मंत्री बने। संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर राजनीतिक और सामाजिक समता के पैराकार होने के साथ ही आर्थिक सुधारों के प्रबल समर्थक भी थे। उनका सपना कृषि क्षेत्र और ग्रामीण भारत को बुलंदी पर देखने का था। जानकार भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद ने कहा, ‘‘डॉक्टर अंबेडकर के राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण की बात हमेशा की जाती है, लेकिन उनके आर्थिक नजरिये के बारे में चर्चा बहुत कम होती है। वह एक प्रखर अर्थशास्त्री थे और उन्होंने हमेशा आर्थिक सुधारों का समर्थन किया।’’ प्रसाद के मुताबिक कृषि को लेकर अंबेडकर की नीति अलग थी। उन्होंने कहा, ‘‘अंबेडकर ने 1952 के चुनाव में अपनी पार्टी के घोषणापत्र में कृषि को प्राथमिकता दी थी। वह कृषि को औद्योगिक रूप देना चाहते थे ताकि समाज के निचले तबके का शोषण न हो और देश में समृद्धि भी आये।’’ कुछ जानकार अंबेडकर की नीतियों में समाजवाद का पहलू भी देखते हैं। अंबेडकर पर अध्ययन करने वाले लेखक मस्तराम कपूर के अनुसार डॉक्टर अंबेडकर की नीतियां समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया से मिलती थीं। कई ऐसे मौके आये जब लोहिया और अंबेडकर की राय एक दिखी। सामाजिक सुधार और समता की राह पर चलते हुए अंबेडकर ने हिंदू और इस्लाम से भी अपनी असहमति दिखाई। इसी का नतीजा था कि जीविन के आखिरी दिनों में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। विदेश नीति के मामले पर अंबेडकर की सोच बड़ी दूरगामी थी। अंबेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री रहे। उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया का गठन किया, हालांकि चुनावी राजनीति में ज्यादा कामयाबी नहीं मिली। छह दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया था।
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05-12-2011, 08:09 PM | #47 |
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Re: कतरनें
छह दिसंबर को मुहर्रम पर
सच्चाई के लिए लड़ने का पैगाम देता है ‘आशूरा’ मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10वीं तारीख ‘आशूरा’ सच्चाई के लिए लड़ने और इंसानियत का झंडा हमेश बुलंद रखने की कोशिश करने का पैगाम देती है। इसी पैगाम को लेकर हजरत हुसैन भी आगे बढे थे और कर्बला के मैदान में शहादत पाई। मुहर्रम की 10वीं तारीख को इस्लाम के मानने वाले दोनों धड़ों शिया एवं सुन्नी अलग-अलग नजरिए से देखते हैं और इसको लेकर उनके अकीदों में भी फर्क है। इसके बावजूद इन दोनों तबकों के लोग पैगम्बर के नवासे हजरत हुसैन के असल पैगाम को मानते हैं। दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद का कहना है, ‘‘मुहर्रम इस्लामी तारीख का पहला महीना है। मजहबी नजरिए से इस महीने की बहुत अहमियत है। इसकी 10वीं तारीख ‘आशूरा’ की और भी ज्यादा अहमियत है क्योंकि इसी दिन हजरत हुसैन ने सच्चाई और हक के लिए लड़ते हुए शहादत पाई थी। यह दिन उनके पैगाम पर गौर करने और इबादत करने का है।’’ मुहर्रम की 10वीं तारीख को कर्बला (इराक) के मैदान में हजरत हुसैन यजीद की सेना के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उनके साथ 72 लोग भी शहीद हुए थे। इनमें कई मासूम बच्चे भी शामिल थे। हुसैन पैगम्बर की प्यारी बेटी हजरत फातिमा के बेटे थे। हुसैन के वालिद हजरत अली थे। मुहर्रम के शुरुआती 10 दिनों में सुन्नी समुदाय के लोग रोजा रखते हैं और इबादत करते हैं, हालांकि शिया समुदाय के लोगों का नजरिया इससे थोड़ा अलग है। इस दौरान शिया लोग कई मजहबी पाबंदियों का एहतराम करते हैं। वे लोग सूरज ढलने तक कुछ नहीं खाते हैं और अशूरा के दिन ये लोग मातम करने के साथ ही ताजिया निकालते हैं। इन 10 दिनों में शिया समुदाय लोग मजलिस (सभाएं) करते हैं। इनमें हजरत हुसैन और उनसे जुड़े वाकयों को बयां किया जाता है। लोग उनकी शहादत को लेकर गम और फख्र का इजहार करते हैं। मुफ्ती मुकर्रम कहते हैं, ‘‘आम तौर पर लोग मातम करते हैं और ताजिया निकालते हैं। हमें हजरत हुसैन के असल पैगाम को समझना होगा। उन्होंने सच्चाई के लिए लड़ने और इंसानियत का पैगाम दिया था। आज के दौर में उनका पैगाम और भी अहम हो जाता है।’’
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07-12-2011, 05:32 AM | #48 |
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Re: कतरनें
महिलाओं की गहनों के लिए चाह बरकरार, पसंद बदल गई
नयी दिल्ली ! सोना चाहे कितना भी महंगा क्यों न हो जाए, इस पीली चमकीली धातु के गहने हमेशा महिलाओं की पहली चाहत रहे हैं, लेकिन बदलते ट्रेंड और हालात के साथ आज की महिलाएं जरूरत, अवसर और बजट के हिसाब से अपने गहनों का चुनाव करती हैं। ज्वेलरी डिजाइनर माहिषी लूथरा ने बताया ‘‘हर महिला सुंदर दिखना चाहती है और इसके लिए वह हरसंभव कोशिश करती है। गहने इसी कोशिश का हिस्सा हैं। आज की महिलाएं भारी भरकम और परंपरागत गहने केवल शादी ब्याह में पहनना पसंद करती हैं। पार्टी और अन्य अवसरों के लिए उनकी पसंद अलग होती है। महंगाई को देखते हुए वह अपने बजट के अनुसार, गहने चुनती हैं।’’ उन्होंने कहा कि सोने में निवेश को अच्छा निवेश माना जाता है लेकिन ज्यादातर महिलाएं सोने के गहने पहनने के लिए खरीदती हैं और निवेश वाली बात उनके मन में नहीं रहती। जिन घरों में बेटियां हैं, उन घरों की महिलाएं उनकी शादी को ध्यान में रखकर गहने खरीदती हैं। एमएमटीसी के पैनल में ज्वलेरी डिजाइनर पूजा जुनेजा का कहना है कि हाल के वर्षों में दुल्हन के गहनों को लेकर पसंद काफी बदल गई है। पहले जहां महिलाएं सिर्फ सोने के गहने पसंद करतीं थीं वहीं आजकल सोने के साथ हीरे, कुंदन आदि का काफी चलन है। ज्वेलरी डिजाइनर राजवी ने कहा ‘‘जो हंसुली पहले ग्रामीण महिलाओं का गहना मानी जाती थी और बीच में लगभग पूरी तरह उपेक्षित हो गई थी, अब उसकी बहुत मांग है। इसका श्रेय छोटे पर्दे को ही है।’’ पूजा ने कहा ‘‘ब्राइडल ज्वेलरी में पोलकी सेट की बहुत मांग हैं पहले शादियों में गहनों का खर्च कुल शादी के खर्च का 20 प्रतिशत होता था वहीं अब यह बढकर 40-50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दुल्हन के अलावा परिवार की अन्य महिलाएं भारी भरकम एवं परंपरागत गहने पहनती हैं। करधन, बाजूबंद जैसे जो गहने पहले लगभग उपेक्षित हो गए थे, उनकी अब फिर से पूछ होने लगी है।’’ उन्होंने बताया कि आजकल चेंजेबल गहनों की भी बहुत मांग हैै। इनमें रंगीन नग जडे होते हैं और उन्हें इस तरह डिजाइन किया जाता है कि कपड़ों के रंग के हिसाब से इनके नग बदले जा सकते हैं। ऐसे गहनों की कीमत और परंपरागत गहनों की कीमत में अधिक अंतर नहीं होता। इसके अलावा, इनसे कई अवसरों पर काम चलाया जा सकता है ! फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में किरदारों द्वारा पहने गए गहनों से महिलाएं कितना प्रभावित होतीं हैं? इस सवाल पर राजवी सिंह ने कहा कि फिल्मों से तो महिलाएं हमेशा से प्रभावित होतीं रही हैं, लेकिन छोटे पर्दे ने अब उनकी पसंद को गहरे तक प्रभावित कर दिया है। विभिन्न धारावाहिकों के महिला किरदारों द्वारा पहने जाने वाले गहने औरतों को खूब लुभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि विभिन्न चैनलों पर विभिन्न प्रांतों के सीरियल दिखाए जा रहे हैं, इससे महिलाओं को गहनों के नये नये डिजाइन नजर आते हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब और बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित धारावाहिकों में महिला पात्र स्थानीय परिवेश और आभूषणों में दिखाई देती हैं।
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10-12-2011, 05:00 PM | #49 |
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Re: कतरनें
11 दिसंबर को रेडियो दिवस पर विशेष
समय के साथ बदल रहा है रेडियो सेटेलाइट टीवी, इंटरनेट और आईपीटीवी के इस दौर में सूचना का परंपरागत माध्यम रेडियो समय के साथ न केवल बदल रहा है बल्कि दिन प्रतिदिन नयी तकनीकों से खुद को लैस कर रहा है। आकाशवाणी दिल्ली के स्टेशन डायरेक्टर लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने बताया कि बाजार में टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट आ जाने के बावजूद सूचना का परंपरागत माध्यम रेडियो न केवल अपना अस्तित्व बनाये हुए है बल्कि बदलती हुई जरूरतों के लिहाज से अपने में बदलाव लाकर यह तकनीक के साथ कदम ताल कर रहा है। वाजपेयी ने कहा, ‘‘समय के साथ रेडियो में बदलाव आ रहा है और इसकी गुणवत्ता सुधारने के लिये नित नयी तकनीक अपनायी जा रही है । इसी प्रयास के तहत रेडियो के मीडियम वेव पर आवाज की गुणवत्ता सुधारने के लिये हम जल्द ही फ्रांस की डीआरएम तकनीक अपनाने जा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘रेडियो के श्रोता लगातार बढ रहे हैं और मोबाइल पर रेडियो सुनने की व्यवस्था ने सराहनीय योगदान दिया है । इससे लाखों श्रोता बढ गये हैं । इसके अलावा हमने श्रोताओं के लिये डाक्टरों से फोन पर बात जैसे विशेष कार्यक्रम शुरू किये हैं।’’ आकाशवाणी के संस्कृत प्रभाग में लंबे समय से समाचार वाचक बलदेवानंद सागर ने कहा, ‘‘दुनिया में अब विभिन्न शोधों से यह बात सामने आ रही है कि रेडियो की पहुंच दृश्य माध्यमों से ज्यादा है । रेडियो की आवाज से व्यक्ति परेशान नहीं होता है और अपना काम करते हुए रेडियो सुनता रहता है।’’ रेडियो की दुनिया में आ रहे बदलावों पर सागर ने कहा, ‘‘आज सामुदायिक रेडियो और एफएम की वजह से रेडियो का दायरा काफी बढ गया है । पहले एनलॉग और एकास्टिक साउंड थे और अब डिजिटल साउंड का जमाना है । वैज्ञानिकों के बीच इससे भी बढकर ‘सुपर डिजिटल’ तकनीक लाये जाने की बात होने लगी है। एफएम आज आकाशवाणी के दूसरे स्टेशनों से ज्यादा प्रभावी हो गया है । लोग ज्यादा से ज्यादा समय तक रेडियो सुनने लगे हैं । टीवी के आने पर कुछ समय के लिये रेडियो का संक्रमण काल आया था लेकिन अब फिर से रेडियो अपना प्रभाव बढाने लगा है ।’’ वाजपेयी ने कहा कि युवाओं के लिये ‘युववाणी’, किसानों के लिये ‘कृषि जगत’ लोगों में पहले से ही बहुत लोकप्रिय है । इन कार्यक्रमों से आज के समय में रेडियो की प्रासंगिकता और बढ गई हैै । उन्होंने कहा, आज प्रतिदिन 40 से 45 करोड़ लोग आकाशवाणी के विभिन्न कार्यक्रम और समाचार सुनते हैं । ये श्रोता अफ्रीका महाद्वीप से लेकर अमेरिका तक फैले हैं। उन्होंने बताया कि आकाशवाणी जल्द ही इंटरनेट पर समाचारों और कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण करने जा रही है । वाजपेयी ने कहा कि आकाशवाणी दिल्ली लोगों से जुड़ने के लिये खुद ही पहल कर रही है और उनके पास जा रही है । देश के विभिन्न महाविद्यालयों, गांवों और कस्बों में कार्यक्रम आयोेजित किये जा रहे हैं । इसके अलावा हम कव्वाली, वाद्यवृंत, मुशायरा और नौटंकी जैसे परंपरागत कलाओं से लोगों को जोड़े रखने के लिये एक पूरी योजना के साथ काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि रेडियो के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिये विश्व के कई देशों में आज के दिन को रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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Re: कतरनें
हर दिन हजारों लोगों की जिंदगी से खिलवाड़
सेक्स संबंधी बीमारी हो या जोड़ों का दर्द, सभी बीमारियों के सफल इलाज का दावा करने वाले ‘नीम हकीमों’ की आज कल बाढ़ सी आ गयी है। जगह जगह तंबू लगाकर प्रशासन की नाक के नीचे बैठे ये खतरनाक ‘डॉक्टर’ हर दिन हजारों लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। भीड़भाड़ वाले कई चौराहों और बस अड्डों तथा रेलवे स्टेशनों के पास इन नीम हकीमोंं के तंबू लगे दिखाई देते हैं। तंबूओं के बाहर लगे बैनर पर लिखा होता है - ‘सेक्स संबंधी बीमारी है, स्त्री रोग है, जोड़ों का दर्द है या फिर मर्दाना कमजोरी, बच्चे नहीं हो रहे तो हमारे पास इसका समुचित और पक्का इलाज है।’ अंतर्राज्यीय बस अड्डे के निकट तंबू लगा कर लोगों का इलाज कर रहे एक कथित हकीम ने काफी मान मनौव्वल के बाद अपना नाम जाहिर न करने की शर्त के साथ बताया, ‘हम बरसों पहले उत्तार प्रदेश से यहां आए थे। पिछले बीस साल से यहीं काम कर रहे हैं।’ तालीम के बारे में पूछने पर वह इतराकर बोले, ‘अजी किताबें पढ़ने से क्या होता है। हमारा तजुर्बा ही हमारी पढ़ाई है। हम उन सभी बीमारियों का इलाज कर सकते हैं, जिसका इलाज करने का दावा करते हैं। किसी को शक हो तो आजमा कर देख ले।’ जब हकीम से पूछा गया कि क्या उन्होंने स्वास्थ्य विभाग से कोई लाइसेंस लिया है अथवा कोई डिग्री है, तो वह तमककर बोले, ‘मरीजों का इलाज करना तो खुदा की इबादत करने जैसा है। उसके लिए हमें किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है और रही बात डिग्री की तो हमें सब बीमारियों के नुस्खे जबानी याद हैं। हमारे हाथ की शफा से ही मरीज ठीक हो जाते है।’ आमदनी के बारे में पूछने पर वह थोड़ा हिचकिचाने के बाद बोले, ‘रोजाना एक से डेढ हजार रूपए की दवाएं बिक जाती हैं।’ वह अपनी दवाओं के नाम और नुस्खे बताने पर बिल्कुल राजी नहीं हुए। ये नीम-हकीम जालंधर के सिटी और छावनी रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बीएमसी चौक, पठानकोेट रोड, होशियारपुर रोड, करतारपुर रोड और नकोदर रोड जैसे स्थानों पर आज कल ‘सेक्स संबंधी’ विभिन्न बीमारियों के साथ साथ जोडों का दर्द, पेट की बीमारी, गैस आदि तमाम बीमारियों का इलाज करते हुए देखे जा सकते हैं। कई तंबुुओं में जाने पर पता चला कि चिकित्सा के नाम पर ठगी करने वाले इन लोगों के जाल में वे लोग फंसते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर, अशिक्षित अथवा श्रमिक वर्ग के लोग होते हैं। उप्र के बलिया जिला निवासी श्रमिक सुभाष राय ने बताया कि इस चिकित्सक ने पैसे ले लिये लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई है। पिछले आठ महीने से वह छावनी स्टेशन पर मौजूद इस नीम हकीम से अपना इलाज करा रहे हैं। इस बारे में शहर के एक आयुर्वेदाचार्य डॉ. अजय शर्मा ने कहा, ‘यह दुखद है कि प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस ओर से आंख बंद किये हुए हंै। ये नीम हकीम न केवल लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं, बल्कि आयुर्वेद और उसकी सेवा करने वाले को भी बदनाम कर रहे हैं। बिना किसी शिक्षा के ये नीम हकीम लोगों को आयुर्वेद के नाम पर कोई भी जड़, तना, पत्ती, भभूत या चूर्ण देते हैं जिसका असर उनके शरीर और स्वास्थ्य पर पड़ता है। ये लोग सेक्स संबंधी बीमारी का इलाज करने का झूठा दावा करते हैं। ऐसी किसी बीमारी के शिकार लोग कम पैसों में इलाज के लालच में और संकोचवश किसी बड़े डाक्टर के पास न जा पाने के चलते इनके चंगुल में फंस जाते हैं। यह घातक है।’
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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