21-11-2017, 01:25 PM | #41 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
दूसरे दिन शिकारगाह में बादशाह ने उनसे पूछा कि आज तुमने अपनी बहन से पूछा या आज भी भूल गए। बहमन ने कहा, हम आपकी आज्ञा से बाहर नहीं हो सकते। हमने उससे पूछा तो उसने हमें आपका निमंत्रण स्वीकार करने की सलाह दी। इसके अलावा उसने हमें बुरा-भला भी कहा कि हम दो दिन तक यह क्यों भूले रहे। बादशाह ने कहा, इसकी कोई बात नहीं है। तुम दो दिनों तक मेरी बात भूले रहे इसकी मुझे कोई नाराजगी नहीं है। दोनों भाई यह सुन कर बड़े लज्जित हुए कि बादशाह हम पर इतना कृपालु है और हम उसके प्रति इतने लापरवाह हैं। वे लज्जा के मारे बादशाह से दूर-दूर ही रहे। बादशाह ने यह देखा तो उन्हें पास बुला कर उन्हें आश्वासन दिया कि ऐसी छोटी-मोटी भूलों का मैं खयाल नहीं किया करता और मैं तुम लोगों से बिल्कुल नाराज नहीं हूँ। फिर उसने शिकार खत्म किया और महल को वापस हुआ। उसके साथ बहमन और परवेज भी थे। बादशाह ने इन दोनों की ऐसी अभ्यर्थना की कि उससे कई दरबारियों और सरदारों को ईर्ष्या होने लगी कि इन अजनबियों के प्रति बादशाह इतना कृपालु क्यों है।
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23-11-2017, 12:52 PM | #42 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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किंतु महल के कर्मचारी और सेवक तथा अन्य उपस्थित प्रजाजन, यद्यपि उन्हें भी इस बात का आश्चर्य था कि इन नव परिचितों का इतना सम्मान हो रहा है, दोनों राजकुमारों के रंग-रूप और आचार-व्यवहार से प्रभावित थे। उनमें आपस में बातें होतीं कि बादशाह ने जिस मलिका को पिंजड़े में कैद कर रखा है उसके पेट से बच्चे पैदा होते तो वे इतने ही बड़े होते। खैर, जब बादशाह महल में आया तो भोजन का समय हो गया था। दासों ने स्वर्ण पात्रों में भोजन परोसा। बादशाह ने बहमन और परवेज को बैठने का इशारा किया। वे दोनों यह जानते ही न थे कि बादशाह के साथ कैसे भोजन किया जाता है। शाही रीति-आदाब बजा कर भोजन के आसन पर बैठने के बजाय वे सीधे अपने आसनों पर डट गए। बादशाह इस पर भी मुस्कुरा उठा। उसने भोजन के दौरान इन दोनों से बातें करके उनकी शिष्टता और ज्ञान की परीक्षा ली जिसमें यह दोनों अच्छी शिक्षा पाने के कारण पूरे उतरे। बादशाह सोचने लगा कि अगर ऐसे कुशाग्र-बुद्धि और वीर शहजादे उसके होते तो कितना अच्छा होता। उनके प्रति बादशाह का आकर्षण उनकी भली बातों से बढ़ता जाता था किंतु वे जो भूलें करते थे उससे यह आकर्षण कम नहीं होता था। भोजन के बाद बादशाह उन्हें अपने मनोरंजन कक्ष में ले गया और देर तक उनसे बातें करता रहा। लगता था कि उनकी बातें सुनने से उसका जी भरता ही नहीं।
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23-11-2017, 12:53 PM | #43 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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फिर बादशाह ने गायन-वादन आरंभ करने का आदेश दिया। अपने काल के सर्वश्रेष्ठ गायक और वादक आ कर उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कला का प्रदर्शन किया। फिर नाच का इंतजाम किया गया और रूपसी कलाकार नृत्यांगनाओं ने मनमोहक नृत्य दिखा कर सभी का चित्त प्रसन्न किया। फिर नाट्यकारों और विदूषकों ने बादशाह और दूसरे मेहमानों का मनोरंजन किया। यह कार्यक्रम कई घंटों तक चलते रहे और जब वे समाप्त हुए तो संध्या होने लगी थी। अब बहमन और परवेज ने अपने घर जाने की अनुमति ली। बादशाह ने कहा, कल तुम फिर शिकारगाह में मेरे साथ शिकार खेलने आना। शिकार के बाद कल भी मेरे साथ यहाँ भोजन करना। उन दोनों ने कहा, हुजूर की हमारे ऊपर बड़ी कृपा है। हम शिकारगाह में जरूर आएँगे किंतु हमारा निवेदन है कि जब आप शिकार खत्म करें तो हमारी कुटी में आ कर और हमारा रूखा-सूखा भोजन ग्रहण करके हमारा मान बढ़ाएँ। बादशाह तो उन से अति प्रसन्न था ही, उसने तुरंत ही उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उसने कहा, मुझे तुम्हारे यहाँ आ कर प्रसन्नता होगी। मैं तुम्हारी बहन से मिल कर भी बहुत प्रसन्न हूँगा क्योंकि तुम्हारी बातों से पता चला है कि वह बहुत बुद्धिमती और व्यवहारकुशल है। उसका मेहमान बन कर मुझे बड़ी खुशी होगी।
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23-11-2017, 01:01 PM | #44 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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बहमन और परवेज घर पहुँचे तो उन्होंने परीजाद को बताया कि बादशाह ने सभी के समक्ष हमारा बड़ा सत्कार किया और यह भी वादा किया है कि कल शिकार से लौट कर वह हमारे घर आएगा और यहाँ भोजन करेगा। उन्होंने कहा, हम ने बादशाह को दावत तो दे दी है लेकिन अब यह भी जरूरी है कि उसकी प्रतिष्ठा के अनुकूल साज-सामान और भोजन का प्रबंध किया जाए। परीजाद ने भाइयों के हौसले की प्रशंसा की और कहा, तुम लोग चिंता न करो। मैं बोलनेवाली चिड़िया से सलाह ले कर सब प्रबंध कर रखूँगी। फिर वह चिड़िया का पिंजड़ा अपने कमरे में ले गई। उसने चिड़िया को पूरा हाल बताया तो उसने कहा, मालकिन, यह बड़े सौभाग्य की बात है कि बादशाह आ रहे हैं। तुम उनके स्वागत-सत्कार का जो भी प्रबंध कर सको वह यथेष्ट होगा। किंतु मेरे कहने से एक विशेष भोजन बनवाओ। तुम खीरे का गाढ़ा शोरबा बनवाओ और वह जिस प्याले में बादशाह के सामने लाया जाए उसमें शोरबे की सतह पर अनबिंधे मोती इस तरह बिछे हों जैसे पाक क्रिया के दौरान उसी सतह पर आ गए हों। परीजाद ने हैरान हो कर कहा, यह किस प्रकार का व्यंजन होगा? मेरी तो कल्पना में भी नहीं आता कि कोई व्यक्ति शोरबे के साथ मोती खा सकता है। बादशाह क्या कहेंगे? फिर अनबिंधे मोती मिलेंगे भी कहाँ से?
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24-11-2017, 12:22 PM | #45 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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चिड़िया ने कहा, मालकिन, यह बात मैंने सोच-समझ कर कही है। तुम इस बारे में बहस मत करो, मेरी यह बात जरूर मान लो। मोती कहाँ मिलेंगे यह मैं तुम्हें बताती हूँ। तुम अपने कृत्रिम जंगल में जा कर दाहिनी ओर के सब से बड़े पेड़ की जड़ के पास की जमीन खुदवाना। वहाँ से तुम्हें अपनी आवश्यकता से कहीं अधिक मोती मिल जाएँगे। परीजाद को चिड़िया पर इतना भरोसा था कि उसने उसकी बात मान ली। दूसरे दिन सुबह दो मजदूरों को ले कर गई और वर्णित वृक्ष के नीचे जमीन खुदवाने लगी। खोदते-खोदते एक बार फावड़ा एक कड़ी चीज से टकराया। होशियारी से खोदा तो मजदूरों को एक सोने का संदूकचा मिला। उसे बाहर ला कर खोला गया तो उसके अंदर ढकने तक अनबिंधे मोती भरे हुए थे। परीजाद उन्हें पा कर बहुत खुश हुई। चिड़िया के ज्ञान पर उसका विश्वास और बढ़ गया। वह सोने का संदूकचा उठा कर अपने मकान की ओर चली। बहमन और परवेज को सुबह ही यह देख कर आश्चर्य हो रहा था कि वह इस समय मजदूरों के साथ कहाँ जा रही है। इस समय सोने का संदूकचा लिए वापस आते देख कर और भी आश्चर्य में पड़े। उन्होंने कहा कि तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थीं और यह संदूकचा कहाँ से लाई हो, सुबह जाते समय तो यह संदूकचा तुम्हारे हाथ में नहीं था।
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24-11-2017, 12:23 PM | #46 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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परीजाद ने कहा, यह लंबी बात है। खड़े-खड़े नहीं बताई जा सकती। अंदर चलो तो बताऊँगी। वे लोग उसके साथ घर के अंदर आए तो उसने कहा, कल शाम को मैंने बोलनेवाली चिड़िया से सलाह ली थी कि बादशाह की खातिरदारी के लिए क्या करना चाहिए। उसने सलाह दी कि और साज-सामान और व्यंजन तो ऐसे हों जैसे बादशाहों-अमीरों के खाने में होते हैं। लेकिन उसे एक प्याले में खीरे का गाढ़ा शोरबा भी दिया जाए जिसकी सतह पर अनबिंधे मोती पटे पड़े हों। मैंने बहुत विरोध करना चाहा कि बादशाह इसे मजाक समझेंगे और क्रुद्ध भी हो सकते हैं। लेकिन वह नहीं मानी, अपने सुझाव पर अड़ी रही। वह कहने लगी कि यह अजीब बात करने के लिए मैं बहुत सोच-समझ कर तुमसे कह रही हूँ और आश्वासन देती हूँ कि बादशाह नाराज नहीं होंगे और इस सब का नतीजा अच्छा ही निकलेगा। तुम जानते हो कि मुझे उसकी बात पर विश्वास है। उसी ने मुझे गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी दिलवाया है और उसी की सलाह से तुम दोनों और तुम्हारे साथ बीसियों और आदमी दोबारा जिंदगी पा सके हैं। इसीलिए मैं उसकी किसी बात को नहीं टालती। उसी की सलाह पर मैं अपने जंगल के उस पेड़ के पास खुदाई करा कर मोतियों का डिब्बा लाई हूँ।
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24-11-2017, 12:24 PM | #47 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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बहमन और परवेज यह सुन कर चक्कर में पड़े और काफी देर तक सोचते रहे। अंत में उन्होंने यही ठीक समझा कि जो कुछ हो रहा है होने दिया जाए। वे कहने लगे, बहन परीजाद, तुम हम दोनों से अधिक बुद्धिमान हो। इसमें भी संदेह नहीं कि वह चिड़िया बहुत-सी ऐसी बातें जानती है जो संसार में कोई अन्य व्यक्ति नहीं जानता। इसलिए चिड़िया की बात मान लेनी चाहिए। बादशाह नाराज होगा तो देखा जाएगा। परीजाद ने बावर्चियों को आदेश दिया कि दोपहर तक राजाओं, बादशाहों के लायक पूरा भोजन बनाओ। क्या बने यह तुम्हीं तय करो। सिर्फ एक चीज मेरे कहने से बनाना। वह है खीरे का गाढ़ा शोरबा जिसकी सतह अनबिंधे मोतियों से पटी पड़ी हो। बावर्चियों ने यह सुन कर बड़ा आश्चर्य प्रकट किया कि खाने की चीजों में साबुत मोती डालने का क्या मतलब है। उन्होंने कहा, सरकार, हमने ऐसा खाना कभी देखा क्या सुना तक नहीं। हंसों के मोती चुगने की बात जरूर सुनी हैं, आदमियों को मोती खाते कभी नहीं सुना। परीजाद ने कहा, मैंने तुम्हें बहस करने के लिए नहीं बुलाया। जो कहती हूँ वह करो। और जितने मोती बचें वह मेरे पास वापस भेज देना। वे बेचारे चुपचाप चले गए। इधर परीजाद ने मकान की ऐसी सफाई कराई कि वह शीशे की तरह चमकने लगा।
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25-11-2017, 08:20 PM | #48 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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उसी समय शहजादे बढ़िया कपड़े पहन कर घोड़ों पर सवार हुए और शाही शिकारगाह में पहुँचे। शिकारगाह में कुछ देर तक उन्होंने बादशाह के साथ रह कर शिकार खेला। किंतु उस रोज गर्मी अधिक थी और धूप तेज थी, इसलिए उसने और दिनों से कुछ जल्दी ही शिकार खेलना खत्म कर दिया और अपने सैनिकों को वापस भेज कर दो-एक आदमियों को ले कर बहमन और परवेज के साथ उनके भवन की ओर चला। बहमन ने आगे बढ़ कर पहले से परीजाद को बताया कि बादशाह आ रहे हैं। वह ठीक कपड़े पहन कर भवन के मुख्य द्वार पर आ खड़ी हुई। बादशाह द्वार के सामने घोड़े से उतरा और भवन की ओर चला तो परीजाद आगे बढ़ी और उसने अपना सिर बादशाह के चरणों पर रख दिया। बहमन और परवेज ने परिचय दिया कि यही हमारी बहन परीजाद है। बादशाह ने उसे उठा कर उसके सिर पर हाथ फेरा ओर उसके सुंदर रूप को वात्सल्यपूर्ण दृष्टि से देखता रहा। उसे यह देख कर ताज्जुब-सा हो रहा था कि परीजाद की जैसी सूरत उसकी स्मृति में धुँधली-सी उभर रही थी।
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25-11-2017, 08:21 PM | #49 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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किंतु वह समझ न पाया कि किसकी सूरत है। इसके बाद परीजाद बादशाह को भवन के अंदर ले गई। उसने बादशाह को अपने सुंदर और विशाल आवास के हर भाग को दिखाया। बादशाह ने पूरा भवन देख कर कहा, बेटी, तुमने अपने महल की सजावट और रखरखाव खूब कर रक्खा है। अब मुझे अपना बाग भी दिखाओ। कोई आदमी मुझसे तुम्हारे बाग की बड़ी तारीफ कर रहा था। परीजाद ने उस कक्ष का, जिसमें यह सभी लोग मौजूद थे, एक ओर का दरवाजा खोला तो हरा-भरा बाग दिखाई दिया। बाग में वैसे तो सब कुछ सुंदर था किंतु बादशाह की नजर फव्वारे पर अटक गई। सुनहरा पानी काफी ऊँचाई तक उछल रहा था। बादशाह ने उसे पास से देखना चाहा। परीजाद उसे फव्वारे के पास ले गई। बादशाह ने कहा, इसके सुनहरे पानी का हौज कहाँ है और किस चीज के जोर से यह फव्वारा इतना ऊँचा उछलता है। यहाँ तो मुझे कोई चीज दिखाई नहीं देती न कोई हौज...। वह अपनी बात पूरी करने के पहले ही चौंक कर एक ओर देखने लगा जहाँ से सुमधुर संगीत का ध्वनि आ रही थी। उसने कहा, क्या तुम लोगों ने बाग के अंदर भी गाने-बजाने का प्रबंध कर रखा है और यह कौन गायक है जिसकी आवाज शाही गवैयों से भी अच्छी है? परीजाद हँस कर बोली, नहीं हुजूर, कोई गवैया नहीं है। यह आदमी नहीं, पेड़ गा रहे हैं। बादशाह की भौंहें चढ़ गईं, उसने सोचा परीजाद हँसी कर रही है। लेकिन परीजाद ने कहा, आइए, आपको दिखाऊँ। यह कह कर वह बादशाह को गानेवाले पेड़ के पास ले गई। बादशाह हक्का-बक्का रह गया। मधुर संगीत वास्तव में पेड़ ही से निकल रहा था। कुछ देर तक बादशाह के मुँह से कोई आवाज नहीं निकली। कभी फटी-फटी आँखों से गानेवाले पेड़ को देखता कभी सुनहरे फव्वारे को।
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25-11-2017, 08:23 PM | #50 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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कुछ देर बाद उसने कहा, यह दोनों चीजें कल्पना के बाहर हैं। यह पेड़ तुमने कहाँ पाया? और हाँ, मैं पूछ रहा था कि फव्वारे का हौज कहा है और इतना ऊँचा किस चीज के जोर से उछलता है? परीजाद ने कहा, सरकार, इस पानी का कहीं हौज नहीं है, न किसी कल द्वारा इसे जोर की उछाल दी जाती है। संगमरमर के हौज के अंदर रखा हुआ जो बर्तन आप देख रहे हैं, उसी में कुल पानी है। यह उसी में से उछलता है और वहीं पर लौट कर गिरता है। यह सूखता भी नहीं इसीलिए कम नहीं होता। जो गानेवाला पेड़ अभी आपने देखा है उसकी अपनी विशेषता संगीत देने की है। इसके पत्ते ऐसे हैं कि जब हवा चलने पर आपस में रगड़ खाते हैं तो उनसे अपने आप मनोहर संगीत पैदा होता है। जब हवा बिल्कुल नहीं चलती तो यह वृक्ष मूक रहता है। बादशाह ने कहा, यह तो बड़ी अजीब चीजें हैं। इनके जैसी किसी चीज की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। तुमने इन्हें कहाँ पाया? परीजाद ने कहा, यह चीजें किसी देश में नहीं पाई जातीं। मैं इन्हें एक रहस्यमय स्थान से लाई हूँ लेकिन मेरे वहाँ से आने के बाद वहाँ का रास्ता भी बंद हो गया।
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