19-01-2017, 12:06 AM | #41 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
हरिवंशराय बच्चन / Harivansh Rai Bachchan डॉ. हरिवंश राय ‘बच्चन’ का जन्म 27/11/1907 को प्रयाग में हुआ. उनकी प्रारम्भिक और स्कूली शिक्षा इलाहाबाद के स्कूलों में हुयी और उच्च शिक्षा प्रयाग और काशी विश्वविद्यालय में संपन्न हुयी. 1941 से 1952 तक वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे. तत्पश्चात वे आईरिश कवि डब्ल्यू बी यीट्स के काव्य पर शोधकार्य के सिलसिले में 1952 से 1954 तक इंगलैंड में रहे जहाँ उन्होंने केम्बिज यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की. 1941 से 1952 तक वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे. तत्पश्चात वे आईरिश कवि डब्ल्यू बी यीट्स के काव्य पर शोधकार्य के सिलसिले में 1952 से 1954 तक इंगलैंड में रहे जहाँ उन्होंने केम्बिज यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की. . दिल्ली में रहते हुए उन्होंने ‘सोपान’ नाम से एक कोठी भी बनवा ली थी. 1972 से लेकर जीवन की संध्या तक वे दिल्ली और मुंबई के बीच आते जाते रहे. मुंबई में उनके होनहार अभिनेता पुत्र अमिताभ बच्चन अपने परिवार के साथ रहते है. जीवन के अंतिम दिनों में बच्चन जी (जिन्हें उनके पुत्र बाबूजी कह कर बुलाते थे) मुंबई में ही रहने लगे थे. यहीं पर 18 जनवरी 2003 को उन्होंने अंतिम सांस ली. बच्चन जी के कृतित्व की बात करें तो उन्होंने सन 1932 से लेकर जीवन पर्यंत लगभग 55 मौलिक कृतियों के अतिरिक्त बहुत सी संपादित और अनूदित रचनाओं (उमर ख़य्याम की रुबाइयाँ और शेक्सपीयर के कुछ नाटक) से भी हिंदी साहित्य के भण्डार में अपना अमूल्य योगदान दिया. ‘मधुशाला’ के अतिरिक्त चार खण्डों में प्रकाशित उनकी आत्मकथा हिंदी साहित्य में न सिर्फ़ अत्यंत सम्मानजनक स्थान रखती है बल्कि लोकप्रियता में भी शीर्ष पर (बेस्ट सैलर) रही हैं. पुरस्कार: 1968 में वे साहित्य अकादमी द्वारा (अपनी कृति ‘दो चट्टानें’ के लिये) पुरस्कृत किये गए. उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें प्रतिष्ठित ‘सरस्वती सम्मान’ प्राप्त हुआ. सन 1976 में उन्हें उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान से अलंकृत किया गया. इन पुरस्कारों के अतिरिक्त भी उन्हें उनके जीवन काल में कई देशी और विदेशी सम्मान प्राप्त हुये. मुझे इस बात का गर्व है कि कॉलेज के दिनों मे उन्हें रू-ब-रू सुनने का मौक़ा मिला. उन दिनों वे मधुशाला की रुबाइयों का सस्वर पाठ किया करते थे. बच्चन जी को हमारी सादर श्रद्धांजलि. >>>
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19-01-2017, 12:09 AM | #42 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (18 जनवरी)
हरिवंशराय बच्चन / Harivansh Rai Bachchan डॉ हरिवंशराय बच्चन अनुवाद कार्य में कितने प्रवीण थे यह रॅाबर्ट फ्रॉस्ट (Robert Frost) की कविता के एक अंश के अनुवाद से स्पष्ट हो The Woods are lovely dark and deep But I have promises to keep And miles to go before I sleep And miles to go before I sleep उपरोक्त पंक्तियों का बच्चन जी के द्वारा भावानुवाद: गहन सघन मनमोहक वन तरु, मुझको आज बुलाते हैं. किन्तु किये जो वादे मैंने, याद मुझे आ जाते हैं. अभी कहाँ आराम बदा, ये मूक निमंत्रण छलना है, अरे अभी तो मीलों मुझको, मीलों मुझको चलना है. *****
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21-01-2017, 01:14 AM | #43 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
नया सूत्र शुरू किया आपने तिथि और तरीकों के अनुसार सब बड़ी बड़ी विभूतियों के बारे में जानकारी एकत्रित करना और उसे यहाँ हम सबसे शेयर करना कोई छोटी बात नहीं भाई उसके लिए आपकी मेहनत और लगन के लिए हम सब आपके शुक्रगुज़ार हैं हैं आप ने हमेशा फोरम को उपयोगी जानकारियों से सबलऔर रोचक बनाये रखा है भाई .
हार्दिक आभार सह बहुत बहुत धन्यवाद भाई |
21-01-2017, 09:31 AM | #44 | |
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22-01-2017, 12:17 AM | #45 | |
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22-01-2017, 08:46 AM | #46 | |
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22-01-2017, 08:54 AM | #47 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (19 जनवरी)
ओशो / Osho
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22-01-2017, 09:22 AM | #48 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (19 जनवरी)
ओशो / Osho तत्व का कोई निर्माण नहीं होता; निर्माण केवल संयोगों का होता है। तत्व वह है, जिसे हम न बना सकेंगे। इस देश ने तत्व की परिभाषा की है, वह जिसे हम पैदा न कर सकेंगे और जिसे हम नष्ट न कर सकेंगे। अगर किसी तत्व को हम नष्ट कर लेते हैं, तो सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि हमने गलती से उसे तत्व समझा था; वह तत्व था नहीं। अगर किसी तत्व को हम बना लेते हैं, तो उसका मतलब इतना ही हुआ कि हम गलती से उसे तत्व कह रहे हैं; वह तत्व है नहीं। दो तत्व हैं जगत में। एक, जो हमें चारों तरफ फैला हुआ जड़ का विस्तार दिखाई पड़ता है, मैटर का। वह एक तत्व है। और एक जीवन चैतन्य, जो इस जगत में फैले विस्तार को देखता और जानता और अनुभव करता है। वह एक तत्व है, चैतन्य, चेतना। इन दो तत्वों का न कोई निर्माण है और न कोई विनाश है। न तो चेतना नष्ट हो सकती है और न पदार्थ नष्ट हो सकता है। हां, संयोग नष्ट हो सकते हैं। मैं मर जाऊंगा, क्योंकि मैं सिर्फ एक संयोग हूं; आत्मा और शरीर का एक जोड़ हूं मैं। मेरे नाम से जो जाना जाता है, वह संयोग है। एक दिन पैदा हुआ और एक दिन विसर्जित हो जाएगा। कोई छाती में छुरा भोंक दे, तो मैं मर जाऊंगा। आत्मा नहीं मरेगी, जो मेरे मैं के पीछे खड़ी है; और शरीर भी नहीं मरेगा, जो मेरे मैं के बाहर खड़ा है। शरीर पदार्थ की तरह मौजूद रहेगा, आत्मा चेतना की तरह मौजूद रहेगी, लेकिन दोनों के बीच का संबंध टूट जाएगा। वह संबंध मैं हूं। वह संबंध मेरा नाम-रूप है। वह संबंध विघटित हो जाएगा। वह संबंध निर्मित हुआ, विनष्ट हो जाएगा।
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23-01-2017, 06:00 PM | #49 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (23 जनवरी)
नेता जी सुभाष चंद्र बोस / Netaji Subhash Chandra Bose
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23-01-2017, 06:04 PM | #50 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (23 जनवरी)
नेता जी सुभाष चंद्र बोस / Netaji Subhash Chandra Bose पढ़ाई में सदा अव्वल रहने वाले सुभाष चन्द्र अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.सी.एस.) की तैयारी के लिये 1919 में इंग्लैंड चले गए थे। इसके लिये उन्होंने 1920 में आवेदन किया और इस परीक्षा में उनको न सिर्फ सफलता मिली बल्कि उन्होंने चौथा स्थान भी हासिल किया। उनका मन इसमें नहीं रमा. 1921 में उन्होंने प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया। भारत वापस आने के बाद नेता जी गांधीजी के संपर्क में आए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1938 (हरिपुरा) और 1939 (त्रिपुरी) में कांग्रेस के अध्यक्षचुने गए. इस समय विश्व दूसरे विश्व-युद्ध के दहाने पर खड़ा था. नेता जी ने अंग्रेजों को छः माह के भीतर भारत से निकल जाने का अल्टीमेटम दे दिया. महात्मा गाँधी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेता अभी ऐसे क़दम के पक्ष में नहीं थे. नेता जी ने इन परिस्थितियों में कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया. उन्होंने 1939 में ही अपनी नई पार्टी फॉरवर्ड ब्लाक का गठन किया. नेता जी को अपने बाग़ी तेवरों के कारण बहुत बार जेल भी जाना पड़ा. 1941 में वे अंग्रेज़ों की आँखों में धूल झोंकते हुये कलकत्ता में अपने घर में नज़रबंदी से भाग निकले. उन्होंने भेष बदल कर यह कारनामा किया. वे अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते जर्मनी जा पहुंचे. जर्मनी और जापान उन दिनों अलाइड फोर्सेज के विरोध में खड़े हुये थे. नेता जी इन दोनों देशों के सहयोग से अंग्रेजी शासन को भारत से खदेड़ना चाहते थे. जापान में उन दिनों रास बिहारी बोस पहले से मौजूद थे. उन्होंने अपने साथियों कैप्टेन मोहन सिंह तथा निरंजन सिंह गिल ने मिल कर Indian National Army या आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना की. इसकी प्रथम ब्रिगेड का गठन 1 दिसम्बर सन 1942 अमल में आया. इसमें 16300 सैनिक थे. इसमें उन भारतीय फ़ोजियों का भी बहुत रोल रहा जिन्हें जापान ने द्वितीय युद्ध के दौरान युद्धबंदी बना लिया था. उस समय जापान के पास लगभग 60000 भारतीय युद्धबंदी थे. जुलाई 1943 में नेता जी जर्मन पनडुब्बी द्वारा सिंगापुर पहुँच गए. सिंगापुर का काफ़ी हिस्सा उन दिनों जापान के कब्जे में था. यहाँ से ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ का दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण अभियान शुरू हुआ. यहाँ उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया. 4 जुलाई 1943 ई. को सुभाष चन्द्र बोस ने 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' एवं 'इंडियन लीग' की कमान को संभाला। आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाही सुभाषचन्द्र बोस को 'नेताजी' कहते थे। बोस ने अपने सिपाहियों को 'जय हिन्द' का नारा दिया। उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 ई. को सिंगापुर में अस्थायी 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की। राम सिंह ठाकुर का यह गाना – क़दम क़दम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा, ये ज़िंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा – आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिकों में आत्मविश्वास का संचार करता था। यह गीत आज भी हमारे फौज के कदमताल का गीत है। जुलाई, 1944 ई. को सुभाष चन्द्र बोस ने रेडियो पर गांधी जी को संबोधित करते हुए कहा "भारत की स्वाधीनता का आख़िरी युद्ध शुरू हो चुका हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते हैं।" सुभाषचन्द्र बोस ने सैनिकों का आहवान करते हुए कहा “तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।”आज़ाद हिंद फ़ौज ने जब भारत की और कूच किया तो उन्हें बर्मा तथा भारत की पूर्वी सीमा पर अंग्रेजी सेना से मुक़ाबला करना पड़ा. दुर्भाग्यवश द्वितीय युद्ध में जापान को पराजय का सामना करना पड़ा. इस बीच ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नेता जी की जान चली गई. इस सारे घटना क्रम का आज़ाद हिंद फ़ौज की तैयारियों तथा योजनाओं पर भारी असर पड़ा. आज़ाद हिंद फ़ौज के बहुत से सैनिक तथा अफ़सर अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिये गए और उन पर दिल्ली के लाल किले में देशद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया. इसमें मुख्य अभियुक्त थे प्रेम सहगल, गुरबख्श सिंह ढिल्लों तथा शाहनवाज़ खान. इन मुकद्दमों के विरुद्ध सारे देश में जलसे और जलूस निकाले गए. आन्दोलन किये गए और अखबारों में भी उनकी सहानुभूति में आलेख छपने लगे. सारे देश में 1946 की दिवाली भी नहीं मनाई गई, दिये भी नहीं जलाए गए. अंग्रेजी हकुमत के विरुद्ध जब दबाव बढ़ा तो इन सभी के विरुद्ध देशद्रोह का आरोप हटा लिया गया. निर्णय में उन्हें जलावतन की सजा मिली. जनता के व्यापक प्रतिरोध के बाद इसे भी निरस्त कर दिया गया. इन घटनाओं के कुछ दिन बाद ही भारत स्वतंत्र हुआ.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 24-01-2017 at 06:08 PM. |
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