15-08-2015, 04:46 PM | #41 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
एक बार पं. हृषिकेश चतुर्वेदी किसी कवि गोष्ठी में गए. वहाँ स्व. बाबू गुलाब राय और डॉ. हरिशंकर शर्मा आदि अपने अपने कप में चाय पी रहे थे. चतुर्वेदी जी को आते हुए देख कर डॉ. शर्मा ने आयोजक को मुखातिब होते हुए कहा, “एक कप टी और.” ‘कप टी’ और ‘कपटी’ का अर्थ समझते हुए चतुर्वेदी जी फ़ौरन बोले, “कप टी नहीं, कु-पात्र कहिये.”
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15-08-2015, 04:51 PM | #42 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
कृशन चंदर का बचपना
एक 75 वर्षीय महिला ने लजाते हुए कृशन चंदर से कहा, “आपसे आज मिल कर बेहद ख़ुशी हुयी. मैं तो बचपन से आपको पढती आ रही हूँ." कृशन चंदर सुन कर चुप हो गए. एक महफ़िल में इसका ज़िक्र करते हुए कृशन चंदर बोले, “अगर वह महिला बचपन से मुझे पढ़ती आ रही है तो इस लिहाज़ से तो मैंने बचपन से ही कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं.” वहाँ (उनकी पत्नी) सलमा सिद्दीकी भी मौजूद थीं. वह तपाक से बोलीं, “कृशन जी, आपकी बाज कहानियाँ पढ़ कर तो ऐसा ही महसूस होता है.”
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18-08-2015, 09:05 PM | #43 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
छोटा दिवाला v/s बड़ा दिवाला
एक लेखक सरदार राजिंदर सिंह बेदी से बोले, “मेरे एक दोस्त लक्ष्मण साथी ने आपके उपन्यास “एक चादर मैली सी” का सिन्धी में अनुवाद किया है. उन्हें यह उपन्यास बेहद पसंद है. अगर आपने उन्हें इसका अनुवाद छपने की इजाज़त नहीं दी तो उनकी हालत उर्दू के शायरों जैसी हो जायेगी.” बेदी साहब बोले, “उपन्यास का सिन्धी में अनुवाद करने के बजाय वह उस पर फिल्म क्यों नहीं बनाते?” लेखक ने पूछा, “क्यों?” बेदी साहब बोले, “भाई मेरे, छोटा दिवाला निकालने से बड़ा दिवाला निकालना बेहतर होगा ना !!”
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09-10-2015, 10:51 PM | #44 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
मशहूर उर्दू शायर जनाब असरारुल हक़ "मजाज" लखनवी के जीवन से जुड़े कुछ विनोद प्रसंग
एक मुशायरे की समाप्ति पर जब सागर निज़ामी को तयशुदा राशि से कम रक़म दी जाने लगी तो वो तैश में आ गए. उन्होंने रसीद पर दस्तख़त करने से मना कर दिया, “मैं इस पर दस्तख़त नहीं कर सकता.” इतने में मजाज वहाँ आये. उन्होंने यह जुमला सुना तो मुशायरे के प्रबंधक से बोले, “अगर दस्तख़त नहीं कर सकते तो सागर साहब से अंगूठा ही लगवा लीजिये.”
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09-10-2015, 10:55 PM | #45 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
मशहूर उर्दू शायर जनाब असरारुल हक़ "मजाज" लखनवी के जीवन से जुड़े कुछ विनोद प्रसंग
फिराक़ गोरखपुरी अपनी रुबाइयों की तुलना अन्य शायरों की रुबाइयों से कर रहे थे, “कहने को तो रुबाइयाँ जोश साहब भी कहते हैं. लेकिन वह इस सनफ़-ए-सुखन का बाक़ायदा फ़न की हैसियत से इस्तेमाल नहीं करते. दरअसल, वह अपने मुँह का ज़ायका बदलने के लिए दूसरी चीजें लिखते हुए कभी कभी बीच में रुबाईयाँ भी लिख देते हैं. उनकी रुबाइयाँ एक लिहाज़ से चटनी की तरह हैं और मेरी रुबाइयाँ ....” मजाज ने फिराक़ की बात काटते हुए कहा, “मुरब्बा.”
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09-10-2015, 10:58 PM | #46 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
मशहूर उर्दू शायर जनाब असरारुल हक़ "मजाज" लखनवी के जीवन से जुड़े कुछ विनोद प्रसंग
एक बार जिगर मुरादाबादी ने बहुत हमदर्दी दिखाते हुए शराब की खामियाँ गिनवाते हुए, मजाज से कहा, “मजाज, शराब वाकई खाना खराब (घर नष्ट करने वाली) है. खुम के खुम लुढ़ाने के बाद आखिरकार मुझे तौबा ही करनी पड़ी. मैं तो दुआ करता हूँ कि खुदा तुमको तौफ़ीक़ बख्शे कि तुम भी इससे तौबा कर सको.” मजाज यह सुन कर बहुत मासूमियत से बोले, “जिगर साहब आपने तो एक बार तौबा की. लेकिन मैं तो सैंकड़ों बार तौबा कर चुका हूँ.”
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09-10-2015, 11:10 PM | #47 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
मशहूर उर्दू शायर जनाब असरारुल हक़ "मजाज" लखनवी के जीवन से जुड़े कुछ विनोद प्रसंग
मजाज बलानोश माने जाते थे अर्थात् छक के पीने वालों में थे. उर्दू के उनके समकालीन मशहूर शायर जोश मलीहाबादी के बारे में यह कहा ताजा है कि वे घड़ी रख कर पीने बैठते और एक घंटे में एक ड्रिंक ख़तम करते थे. उन्होंने एक बार मजाज से कहा, “मजाज, तुम भी घड़ी रख कर पिया करो.” मजाज ने उत्तर दिया, “जोश साहब, मेरा बस चले तो मैं घड़ा रख कर पिया करूँ.”
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10-10-2015, 07:02 PM | #48 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
मशहूर उर्दू शायर जनाब असरारुल हक़ "मजाज" लखनवी के जीवन से जुड़े कुछ विनोद प्रसंग
राजा साहब महमूदाबाद ने बड़े प्यार से मजाज से खिताब करते हुए कहा, ”मजाज, मेरी बात मानो तो एक बात कहूँ.” मजाज ने विनम्रतापूर्वक उन्हें देखते हुए कहा, “आपका हुक्म सर आँखों पर. फरमाइए क्या ईरशाद है.” “मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा दो सौ रूपए महीना वजीफ़ा मुकरर कर दूँ.” राजा साहब ने कहा. “बड़ा करम है हुज़ूर का,” मजाज ने उसी विनम्रता के साथ जवाब दिया. “लेकिन, राजा साहब गंभीर होते हुए बोले, “लेकिन खुदा के वास्ते तुम शराब पीना छोड़ दो." “शराब पीना छोड़ दूँ?” राजा साहब को देखते हुए मजाज बड़ी हैरानी और बेचारगी से पूछ बैठे, ”फिर आपसे हर माह मिलने वाले दो सौ रूपए मेरे किस काम आया करेंगे?”
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10-10-2015, 10:11 PM | #49 | ||
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
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12-10-2015, 08:46 AM | #50 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
मशहूर उर्दू शायर जनाब असरारुल हक़ "मजाज" लखनवी के जीवन से जुड़े कुछ विनोद प्रसंग
एक मशहूर शायर ने (असरारुल हक़) मजाज से पूछा, “मेरी समझ में नहीं आता कि तुमने शे’र कहना क्यों छोड़ दिया?” मजाज ने परेशान सा हो के जवाब दिया, “और मेरी समझ में नहीं आता कि आप बराबर शे’र क्यों कहे जा रहे हैं?” ** मजाज और फ़िराक के बीच गंभीर बातचीत हो रही थी. इस बीच फ़िराक का लहज़ा बदला और उन्होंने मजाज से हंसते हुए पूछा, ”मजाज, तुमने कबाब बेचने बंद क्यों कर दिए?” “आपके यहाँ से गोश्त जो आना बंद हो गया था,” मजाज ने संजीदा रहते हुए ही जवाब दिया.
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