02-02-2013, 11:19 PM | #41 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
राज कुमारी ‘रश्मि’ ज़ख्म अब बढ़ने लगे दीवार पर. फिर निशां पड़ने लगे दीवार पर. इस कदर है भीड़ सड़कों पर यहां, लोग अब चलने लगे दीवार पर, किस तरह से धूप मिल पाए हमें पेड़ तक जमने लगे दीवार पर. छा गयी दहशत मची हलचल बहुत सांप अब लड़ने लगे दीवार पर. क्या वजह थी ये कभी सोचा नहीं बस दिए जलने लगे दीवार पर. फायदा ले कर अंधेरों का यहाँ रहनुमां चढ़ने लगे दीवार पर. (आजकल/नवम्बर 1981 से साभार) |
02-02-2013, 11:20 PM | #42 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ग़ज़ल
(रमेश प्रसाद गर्ग ‘आतिश’) दर्द से, दुःख से, मुसीबत से बचा लो यारो. गिरने वालों को ज़रा बढ़के सम्हालो यारो. मेरी आँखों में जो तिनके हैं उन्हें रहने दो अपनी आँखों की तो शहतीर निकालो यारो. ये गरीबों के हैं आंसू न गिरें धरती पर अपनी पलकों से इन्हें बढ़ के उठालो यारो. जिनके दम से कभी मयखाना रहा आबाद आज उन रिन्दों की पगड़ी न उछालो यारो. अपने लोगों ने चलाया है ये पत्थर शायद अपना सर आप ज़रा और झुका लो यारो. दिल बड़े लोगों का रह जाए तो अच्छा होगा जानते-बूझते धोका भी तो खा लो यारो. ‘आतिश’ अभी तक आया नहीं महफ़िल में दो घड़ी और सही धूम मचा लो यारो. |
02-02-2013, 11:23 PM | #43 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
मुहाजिरनामा
(मुनव्वर राणा) मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आये हैं. तुम्हारे पास जितना हैं हम उतना छोड़ आये हैं. नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत ने पुराने घर की दहलीजों को सूना छोड़ आये हैं. हमारी अहलिया तो आ गई माँ छुट गयीं आखिर कि हम पीतल उठा लाये हैं सोना छोड़ आये हैं हमें इस ज़िंदगी पर इस लिए भी शर्म आती है कि हम मरते हुए लोगों को तन्हा छोड़ आये हैं. जनाबे मीर का दीवान तो हम साथ ले आये मगर हम मीर के माथे का कश्का छोड़ आये हैं. मुहब्बत की कोई कोंपल पनपने ही नहीं पाती हम अपनी जड़ में जो नफ़रत का मट्ठा छोड़ आये है. किसी का खूबसूरत ख्वाब इन आँखों ने देखा था किसी रुखसार पर वादे का बोसा छोड़ आये हैं. वो जिसने उम्र भर हम से बहुत सच्ची मुहब्बत की उसे भी देके हम झूठा दिलासा छोड़ आये हैं. (चुनिन्दा शे’र ) Last edited by rajnish manga; 02-02-2013 at 11:25 PM. |
02-02-2013, 11:27 PM | #44 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
सन् 1980 में हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यग्यकार श्री रवींद्र नाथ त्यागी की एक पुस्तक आयी थी ‘भद्र पुरुष’. इसी गद्य पुस्तक में एक ग़ज़ल भी कहीं आ गयी है. इसमें हास्य व्यंग्य के सुन्दर अंश दिखाई देते हैं. लीजिये आप भी इसका रसास्वादन करें:
इन गुड़ियों की कई कठपुतलियों में जान है आज शायर यह तमाशा देख कर हैरान है. ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए ये हमारे वक़्त की सबसे बड़ी पहचान हैं. एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में, या यूं कहो एक अँधेरी कोठारी में एक रोशनदान है. इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब कि सदके आपके जब से आज़ादी मिली है मुल्क में रमजान है. कल नुमाइश में मिला था चीथड़े पहने हुए मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है. ***** |
03-02-2013, 04:56 AM | #45 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
-- मनोज 'आजिज़'
बागे-वतन को जहन्नम कर दिया कुछ ने दिले-वतन में जखम कर दिया कुछ ने ग़रीबों का खून पीकर मस्ती से जीते हैं कुछ बेशर्मी से खूब दामन भर दिया कुछ ने रौशन था नाम बेहद दुनिया में एक ज़माने लूट मचाकर झुका सर दिया कुछ ने इन्सां को इन्सां से इंसानियत की आस थी हर सू दह्शती आलम कर दिया कुछ ने
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
03-02-2013, 04:58 AM | #46 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
मेरी तन्हाइयों पर तेरी नजर क्यों है साकी
यूँ शाम सहर मुझ को महफ़िल में ना बुला पर सकूं जिन्दगी है मेरी माझी के बिना मेरे सीने में मुहब्बत की प्यास न बढ़ा उस की बेरुखी में भी एक नशा है साकी मुझ को रहने दे बेहोश ना होश में ला
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03-02-2013, 09:43 PM | #47 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ग़ज़ल
(ग़जलकार / दीप शर्मा) नित्य नयी तकरार हमारी बस्ती में. हर डाकू, सरदार हमारी बस्ती में. एक रात में पूरा गाँव शहीद हुआ, सोती है सरकार हमारी बस्ती में. अब कुपात्र को भी आदर देना होगा, रहजन भी हक़दार हमारी बस्ती में. पांचवर्ष के बाद यहाँ फादर क्रिसमस लाते है उपहार हमारी बस्ती में. पूछो मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे से, कब होगा अवतार हमारी बस्ती में. सपने में बापू मिल जायें तो कहना, ऐसी है रफ़्तार हमारी बस्ती में. |
03-02-2013, 09:44 PM | #48 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ग़ज़ल
(अदम गौंडवी) भूख के अहसास को शेरो सुखन तक ले चलो. या अदब को मुफलिसों के अंजुमन तक ले चलो. जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाकिफ हो गयी, उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो. मुझको नज्मों ज़ब्त की तालीम देना बाद में, पहले अपने रहबरों को आचरन तक ले चलो. खुद को ज़ख़्मी कर रहें हैं ग़ैर के धोके में लोग, इस शहर को रौशनी के बांकपन तक ले चलो. |
03-02-2013, 09:46 PM | #49 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ग़ज़ल
(ग़ज़लकार / रऊफ़ परवेज़) आँखों में आयेगा कभी दिल पर भी आयेगा. उतरेगा नक्श बन के वो मंज़र भी आयेगा. अब चल पड़े हैं पाँव तो आँखों के सामने, जिसकी तलाश थी हमें वह दर भी आयेगा. सिमटेगी गर जमीन तो फैलेगा आसमान, कूजे में बंद हो के समंदर भी आयेगा. गुलचीं बने है आज गुलिस्तां के पासबां, अब साजिशों का बाग़ में लश्कर भी आयेगा. अच्छा नहीं पड़ोस का अपने ही घर जले, बाहर की आग का धुआं अन्दर भी आयेगा. माना कि खुशनुमा है बड़ा दिलनशीन है, शीशे का घर बना है तो पत्थर भी आयेगा. परवेज़ आओ रेत में हम सीपियाँ चुने, तदबीर कुछ करेंगे तो गौहर भी आयेगा. |
03-02-2013, 09:51 PM | #50 |
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Re: हिन्दी की श्रेष्ठ ग़ज़लें
ग़ज़ल
(ग़जलकार / हंसराज रहबर, जी हाँ, चिर परिचित कहानीकार और उपन्यासकार) किस कदर गर्म है हवा देखो. जिस्म मौसम का तप रहा देखो. बदगुमानी - सी बदगुमानी है, पास होकर भी फासला देखो, वह जो उजले लिबास वाले हैं, उनकी आंखों में अजदहा देखो. हो अँधेरा सफ़र, सफ़र ठहरा, ले के चलते हैं हम दिया देखो. खेलता है जो मौत से होली, क्या करेगा वह मनचला देखो. अमन ही अमन सुन लिया लेकिन, मक्तलों का भी सिलसिला देखो. इस ज़माने में जी लिया रहबर, मर्दे मोमिन का हौंसला देखो. |
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