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Old 28-12-2012, 09:40 AM   #41
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17 सितंबर, 2010

हाईकोर्ट ने फ़ैसला टालने की अर्जी ख़ारिज की.
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Old 28-12-2012, 09:40 AM   #42
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30 सितम्बर 2010

30 सितम्बर 2010 एक ऐतिहासिक फ़ैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि घोषित किया और तीन हिस्सों में बांट दिया.
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Old 28-12-2012, 09:40 AM   #43
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Default Re: बाबरी विध्वंस के 20 साल

9 मई 2011

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी. कहा कि सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के फ़ैसले को लागू करने पर रोक रहेगी और विवादित स्थल पर सात जनवरी 1993 वाली यथास्थिति बहाल रहेगी.
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Old 28-12-2012, 10:10 AM   #44
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और बाबरी मस्जिद का ढांचा गिर चुका था...

नितिन श्रीवास्तव बीबीसी संवाददाता


फ़ैज़ाबाद की पैदाइश होने की वजह से बचपन से ही किसी छुट्टी पर हमें फ़ैज़ाबाद और उसके आसपास के ऐतिहासिक जगहों पर घुमाने ले जाया जाता था. इस दौरान आमतौर पर मेरे दादा साथ में होते थे और उनकी ही देखरेख में चलता था खाने-पीने का सामान.

बहू बेगम का मक़बरा, जिस मध्यकालीन इमारत के इर्द-गिर्द ही मुज़फ्फर अली की फ़िल्म 'उमराव जान' को फ़िल्माया गया था.

'गुलाब बाड़ी'- कहते हैं कि जब 18वीं सदी में अवध रियासत के नवाब फ़ैज़ाबाद में रहते थे तो कश्मीर से आई गुलाबों की एक खेप से इस फुलवारी को आबाद किया गया था.

चौक में स्थित तीन दरवाज़ों जिनसे गुज़रने पर शुरू होती थी फ़ैज़ाबाद में अवध की रियासत, अयोध्या में राम की पौड़ी और गुप्तार घाट, दंतकथाओं के मुताबिक़ राम ने यहीं पर जल समाधि ली थी.

अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के आसपास का इलाक़ा भी हमारे लिए एक लोकप्रिय स्थान था.

उस इमारत का ढांचा मुझे आज भी याद आता है. दूर से ही देखने पर एक बड़ा और दो छोटे गुम्बद नज़र आते थे.

इस ढाँचे के इर्द-गिर्द थोड़ी खुली जगह भी थी. पूरे प्रांगण को क़रीब पांच फुट लंबी सलाखों से घेरा गया था. जब मैं पहली बार इस ढाँचे के भीतर गया तो थोड़े डर के साथ, वजह था अंदर फैला हुआ घुप्प अँधेरा.

अंदर घुसते ही आपको एक चबूतरे से नीचे दिखाया जाता था और बताया जाता था की रामलला यहीं पैदा हुए थे. उस जगह को गर्भगृह का नाम दिया गया था.

कम उम्र होने के नाते मुझे और मेरे छोटे भाई को हमेशा इस बात की जिज्ञासा रहती थी कि आख़िर अंदर और क्या-क्या है.

दूर से तो बस एक तख़्त पर स्थापित छोटी सी मूर्ती ही दिखाई पड़ती थी, लेकिन वह जिज्ञासा आज भी बनी हुई है क्योंकि उस तहख़ानेनुमा जगह में कभी जाकर देखने का मौक़ा नहीं मिला.

इमारत की बात करें तो मुझे साफ़ तौर पर याद है कि उस मंदिर या मस्जिद का निर्माण भीतर से देखने पर थोड़ा खटकता ज़रूर था. क्योंकि इमारत का निचला भाग तो बेहद पुराना और जर्जर सा दिखता था जिसमे खंभों पर हनुमान आदि की टूटी हुई प्रतिमाएँ बनी हुईं थीं और दीवारों में टूटे हुए कलश साफ़ देखे जा सकते थे. लेकिन भीतर से ही ऊपर देखने पर जो गुंबद था वो निचले हिस्से से विपरीत थोड़ी बेहतर हालत में दिखाई पड़ता था.


इमारत के निचले हिस्से के निर्माण में फ़र्क़ साफ़तौर पर दिखता था. मैंने अपने जीवन में शायद वह पहली मस्जिद देखी थी जिसके इर्द-गिर्द मीनारें नहीं बनी हुई थीं.

आइए अब चलते हैं 1992 में. उन दिनों मैं लखनऊ में स्कूल जाता था. चूंकि फ़ैज़ाबाद में भी घर था तो गर्मी की छुट्टियों और छमाही परीक्षा ख़त्म होते ही हम दोनों भाई फ़ैज़ाबाद की सैर पर रवाना कर दिए जाते थे.

छोटा शहर होने के नाते तमाम लोग जान-पहचान के थे. उनसे मिलकर क़िस्सागोई में मज़ा तो बचपन से ही आता था. लेकिन 1992 में दिसंबर की छुट्टियाँ मुझे जीवनभर याद रहेंगी, ऐसा कभी सोचा भी नहीं था.

नवंबर के आख़िरी हफ़्ते में जब हम लखनऊ से फ़ैज़ाबाद की 135 किलोमीटर की दूरी अपनी कार से तय कर रहे थे तो रास्ते में राम स्नेही घाट पर क़रीब चार-पांच सौ कथित कार सेवकों को सड़क किनारे बने ढाबों में चाय-नाश्ता करते देख कर थोड़ा चौंका था.

आगे भी रास्ते में बसों और ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरे माथे पर गेरुए रंग की पट्टी बांधे कारसेवक अयोध्या-फ़ैज़ाबाद की ओर बढ़ रहे थे.

मुझे असल हैरानी तब हुई जब फ़ैज़ाबाद शहर में प्रवेश करते ही वहाँ का माहौल छावनी की तरह नज़र आया. समझते देर नहीं लगी कि मामला अब वाक़ई गंभीर हो चुका है. घर पहुँचने पर पता चला कि शहर में तेवर काफ़ी तीखे हैं. तमाम लोग आने वाले दिनों के लिए राशन-पानी जमा कर रहे थे. कुछ ऐसे भी थे जो कारसेवकों की कथित तौर पर सेवा-टहल में जुटे थे.

ख़ैर, छह दिसंबर आते-आते तमाम हिंदू और मुस्लिम संगठनों के नेता और कार्यकर्ता शहर में पहुँच चुके थे.

अख़बारों में प्रशासन के दावे रोज़-रोज़ छप रहे थे कि माहौल नियंत्रण में है, चिंता कि कोई बात नहीं. राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद ढांचे को कोई नुक़सान नहीं पहुँचेगा.


मैं बता दूँ कि छह दिसंबर की सुबह भी हमारे घर दूध देने वही आए जो पिछले 27 सालों से देते आ रहे थे, मजीद चचा. वह भी सात किलोमीटर दूर से साइकिल की सवारी करके.

उस दिन मुझे शहर कि आबोहवा थोड़ी बदली-बदली सी लगी. हालाँकि हमें घर से बहार न निकलने की सख्त हिदायत दी गई थी. लेकिन शहर के बीचों-बीच रिक़ाबगंज इलाक़े में घर होने के नाते हमें अपनी छत की मुंडेर पर खड़े होकर अयोध्या जाने वाली रोड देखने की मनाही नहीं थी.

इसलिए छह दिसंबर की दोपहर के कई घंटे हमने छत पर टंगे हुए बिताए. शहर में पहले से ही धारा-144 लागू थी.

शाम होते-होते हमें पता चल गया कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का ढांचा गिर चुका है और प्रशासन ने फ़ैज़ाबाद और अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया है. हालांकि छह दिसंबर के बाद अगले सात दिन मैंने फ़ैजाबाद में ही बिताए लेकिन कहीं से भी किसी अनहोनी की ख़बर नहीं मिली.

आज जब उस दिन को याद करता हूँ तो ज़हन में दो ही बातें आती हैं, एक तो यह कि अपने दादा के साथ जिन इमारतों को बचपन में देखा था, 1992 के बाद उनमें से एक कम हो गई है. दूसरी यह कि छह दिसंबर के दिन फ़ैज़ाबाद के सबसे भीड़-भाड़ वाले रिक़ाबगंज में आसमान एकदम साफ़ और शांत था.

यह बात एकदम असामान्य थी क्योंकि साल के बारहों महीने, तीन सौ पैंसठ दिन रिक़ाबगंज चौक, फ़ैज़ाबाद के आसमान में पतंगबाज़ी होती रहती है. हर छत से रह रह कर आवाज़े आती रहती हैं, वोह काटा, वोह काटा!
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Old 28-12-2012, 10:15 AM   #45
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बाबरी मस्जिद विध्वंस के पांच 'सूत्रधार'
रामदत्त त्रिपाठी
बीबीसी संवाददाता, लखनऊ
भारत में बाबरी मस्जिद का विध्वंस आजादी के बाद की सबसे अहम घटनाओं में से एक है, जिसमें देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने बाने को झंझोर दिया.

इस घटना को बीस बरस गुजर गए लेकिन आज भी इस मुद्दे की गूंज भारत की राजनीति में सुनाई देती है.

नजर डालते हैं ऐसे पांच लोगों पर जिन पर इस पूरे घटनाक्रम को अंजाम देने की जिम्मेदारी आती है.
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Old 28-12-2012, 10:17 AM   #46
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सीबीआई की मूल चार्जशीट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी नेता लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद गिराने के 'षड्यंत्र' के मुख्य सूत्रधार हैं जो अक्टूबर 1990 में शुरू होकर दिसंबर 1992 तक चला बताया गया है.

अभियोजन पक्ष का तर्क है कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि ढांचे का विवाद काफी समय से चला आ रहा है, जो अदालत में लंबित है. हिंदुओं के अनुसार राम जन्मभूमि पर मीर बाकी ने मस्जिद का निर्माण किया था.

विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिरों को मुक्त करने का अभियान चलाया और इसके अंतर्गत लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा की.

शिव सेना नेता बाल ठाकरे ने मुंबई के दादर में आडवाणी का स्वागत किया. उसी दिन लाल कृष्ण आडवाणी ने पंचवटी में घोषणा की थी कि बाबरी मस्जिद कभी भी मस्जिद नही रही और हिंदू संगठन प्रत्येक दशा में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए दृढ संकल्प हैं.


ठाकरे इस कार्य में साथ देने का वादा किया.

चार्जशीट के अनुसार 1991 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस योजना मे सक्रिय साथ दिया.

पांच दिसंबर 1992 को अयोध्या मे भाजपा नेता विनय कटियार के घर पर एक गोपनीय बैठक हुई, जिसमें विवादित ढांचे को गिराने का अंतिम निर्णय लिया गया.

आडवाणी ने छह दिसंबर को कहा था, "आज कारसेवा का आखिरी दिन है. कारसेवक आज आखिरी बार कारसेवा करेंगे."

जब उन्हें पता चला कि केन्द्रीय बल फैजाबाद से अयोध्या आ रहा है तब उन्होंने जनता से राष्ट्रीय राजमार्ग रोकने को कहा. अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि आडवाणी ने कल्याण सिंह को फोन पर कहा कि वे विवादित ढांचा पूर्ण रूप से गिराए जाने तक अपना त्यागपत्र न दें.

आडवाणी ने राम कथा अकुंज के मंच से चिल्लाकर कहा कि "जो कार सेवक शहीद होने आए हैं, उन्हें शहीद होने दिया जाए."

आडवाणी पर आरोप है कि उन्होंने यह भी कहा कि, “मंदिर बनाना है, मंदिर बनाकर जाएंगे. हिंदू राष्ट्र बनाएंगे.”

स्थानीय प्रशासन ने विवादित ढांचा गिराए जाने से रोकने का कोई प्रयास नही किया इसलिए अभियोजन के अनुसार तत्कालीन जिला जिला मजिस्ट्रेट आरएन श्रीवास्तव और पुलिस अधीक्षक डीबी राय इस 'षड्यंत्र' में शामिल थे. इनमें से राय का अब निधन हो चुका है.

लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के तहत आडवाणी पर फिलहाल बाबरी मस्जिद गिराने के षड्यंत्र में शामिल होने का पहला मुकदमा नही चल रहा है.

आडवाणी तथा उनके सात अन्य सहयोगियों पर रायबरेली की अदालत में केवल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विद्वेष भड़काने वाल भाषण देकर कारसेवकों को उकसाने का आरोप है, जिसके फलस्वरूप मस्जिद गिरा दी गई.

आडवाणी और उनके साथियों ने अदालत में सभी आरोपों से इनकार किया है.
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Old 28-12-2012, 10:18 AM   #47
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कल्याण सिंह उन तेरह लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने के 'षड्यंत्र' में शामिल होने का आरोप है, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से अभी मुकदमा नही चल रहा है.

सीबीआई की मूल चार्जशीट के मुताबिक़ 1991 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कल्याण सिंह ने डॉ. मुरली मनोहर जोशी और अन्य नेताओं के साथ अयोध्या जाकर शपथ ली थी कि विवादित स्थान पर ही मंदिर का निर्माण होगा. उन्होंने नारा लगाया , “राम लला हम आए हैं, मंदिर यहीं बनाएंगे.”

केंद्र सरकार ने 195 कंपनी केन्द्रीय पैरा मिलिटरी फ़ोर्स कानून व्यवस्था में मदद के लिए भेजी, लेकिन भाजपा सरकार ने उसका उपयोग नही किया. पांच दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव गृह ने केन्द्रीय बल का प्रयोग करने का सुझाव दिया, लेकिन कल्याण सिंह इससे सहमत नही हुए.

कल्याण सिंह ने मस्जिद की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में दिए गए आश्वासन का पालन नही किया, जबकि उन्होंने संविधान और देश के कानून की सुरक्षा की शपथ ली थी.

कल्याण सिंह घटना के समय अयोध्या में उपस्थित नही थे, फिर भी उन्हें षड्यंत्र में शामिल बताया गया.

चार्जशीट के अनुसार कल्याण सिंह ने छह दिसंबर के बाद अपने बयानों में स्वीकार किया कि गोली न चलाने का आदेश उन्होंने ही जारी किया था और उसी वजह से प्रशासन का कोई अधिकारी दोषी नही माना जाएगा.

कल्याण सिंह ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
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Old 28-12-2012, 10:19 AM   #48
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विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल अयोध्या के विवादित स्थल पर राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के प्रमुख स्तंभ रहे हैं.

चार्जशीट के अनुसार अशोक सिंघल 20 नवंबर 1992 को बाल ठाकरे से मिले और उन्हें कारसेवा में भाग लेने का निमंत्रण दिया.

चार दिसंबर 1992 को बाल ठाकरे ने शिव सैनिकों को अयोध्या जाने का आदेश दिया.
शिव सेना नेता जय भान सिंह पवैया ने अशोक सिंघल से चंबल घाटी में प्रशिक्षित मौत दस्ता तैनात करने के लिए कहा.

अशोक सिंघल ने यह भी कहा था कि छह दिसंबर की कारसेवा में मस्जिद के ऊपर मीर बाक़ी का शिलालेख हटाया जाएगा, क्योंकि यही अकेला चिन्ह मस्जिद के संबंध में है.


दूसरे दिन पांच दिसंबर को अशोक सिंघल ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था "जो भी मंदिर निर्माण में बाधा आए गी उसको हम दूर कर देंगे. कार सेवा केवल भजन कीर्तन के लिए नही है बल्कि मंदिर के निर्माण कार्य को प्रारम्भ करने के लिए है."

चार्जशीट में अशोक सिंघल पर आरोप है कि वो छह दिसंबर को राम कथा कुंज पर बने मंच से अन्य अभियुक्तों के साथ- साथ कारसेवकों से नारा लगवा रहे थे कि "राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे. एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो."

जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो अभियुक्त हर्षित थे और मंच पर उपस्थित लोगों के साठ उत्साहित होकर मिठाई बांटी जा रही थी. अभियुक्तों के भाषण से उत्तेजित होकर पहले बाबरी मस्जिद ढहाई गई और उसी दिन अयोध्या में स्थित मुसलमानों के घरों को तोड़ा गया, जलाया गया, मस्जिदें और कब्रें तोडी गईं. इससे मुसलमानों में भय उत्पन्न हुआ और वे अयोध्या छोड़ जाने को बाध्य हुए.

रायबरेली में चल रहे केस नम्बर 198 के सभी अभियुक्तों, विशेषकर उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा पर ऐसे आरोप हैं. सभी अभियुक्त ने आरोपों से इनकार किया है.
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Old 28-12-2012, 10:20 AM   #49
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विनय कटियार की पहचान विश्व हिंदू परिषद के सहयोगी संगठन बजरंग दल के नेता के रूप में रही है. वह अपने उग्र और विवादस्पद बयानों के लिए जाने जाते रहे हैं.

चार्जशीट के अनुसार 14 नवंबर 1992 को विनय कटियार ने अयोध्या में कहा कि बजरंग दल का आत्मघाती दस्ता कार सेवा करने को तैयार है, और छह दिसंबर को मौत दस्ता शिवाजी की रणनीति अपनाएगा.

विवादित मस्जिद गिरने से एक दिन पूर्व पांच दिसंबर को अयोध्या में विनय कटियार के घर पर एक गोपनीय बैठक हुई, जिसमे आडवाणी के अलावा शिव सेना नेता पवन पांडे मौजूद थे. इसी बैठक में विवादित ढांचे को गिराने का अंतिम निर्णय लिया गया.

चार्जशीट के अनुसार कटियार ने छह दिसंबर को अपने भाषण में कहा था, “हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नही तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा."
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Old 28-12-2012, 10:20 AM   #50
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मुरली मनोहर जोशी आडवाणी के बाद भारतीय जनता पार्टी के दूसरे बड़े नेता हैं जो राम मंदिर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिसा लेते रहे हैं.

जोशी छह दिसंबर को विवादित परिसर में मौजूद थे. चार्जशीट के अनुसार मस्जिद का गुम्बद गिरने पर उमा भारती आडवाणी और डॉ. जोशी के गले मिल रही थीं.

मुरली मनोहर जोशी के बारे में अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया है कि वे और आडवाणी कार सेवा अभियान के लिए मथुरा और काशी होते हुए दिल्ली से अयोध्या के लिए चले.

इन सभी पर आरोप है कि 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट से प्रतीकात्मक कारसेवा का निर्णय हो जाने के बाद भी इन लोगों ने पूरे प्रदेश में सांप्रदायिकता से ओतप्रोत भाषण दिए.

इन उत्तेजनात्मक भाषणों से धर्मनिरपेक्ष भारत में सांप्रदायिक जहर घोला गया.
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