02-05-2012, 03:00 PM | #521 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
लंदन। अगर आप मोटापे से परेशान हैं और वजन कम करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा तो सो जाइए। जी हां वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने एक नए शोध में कहा है कि नौ घंटे से अधिक सोने से व्यक्ति को वजन कम करने में मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा कि सोने की आदत से मोटापे के जीन पर उल्टा असर पड़ता है। शोधकर्ताओं ने अपने दो अध्ययनों में पाया कि सात घंटे से कम सोने का संबंध शरीर के ज्यादा वजन से है। द डेलीटेलीग्राफ की खबर के मुताबिक हालांकि उन लोगों के साथ इसका ठीक उल्टा होता है जो नौ घंटे या उससे ज्यादा सोते हैं।
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02-05-2012, 03:01 PM | #522 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
सामान्य रक्त परीक्षण से लग सकेगा स्तन कैंसर का पता
लंदन। वैज्ञानिकों के एक दल का कहना है कि सामान्य रक्त परीक्षण के जरिए इस बात का पता लगाया जा सकता है कि कोई महिला भविष्य में स्तन कैंसर से पीड़ित हो सकती है। वैज्ञानिकों ने श्वेत रक्त करण (डब्ल्यूबीसी) जीन के मोलक्यूलर बदलाव और रोग के बीच सम्बंध होने का पता लगाने के बाद यह दावा किया। यह शोध लंदन के इंपीरियल कॉलेज में वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया है। उनका कहना है कि स्तन कैंसर होने की आशंका का काफी समय पहले ही पता लग सकता है। टीम की अगुवाई करने वाले डॉ. जेम्स फ्लैंगन ने कहा कि नए शोध से काफी समय पहले ही स्तन कैंसर का पता लगाया जा सकता है। यह रिपोर्ट डेली एक्सप्रेस में प्रकाशित हुई है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में विभिन्न उम्र की 1380 महिलाओं के रक्त के नमूनों की जांच की। इन महिलाओं में से 640 महिलाएं बाद में स्तन कैंसर की मरीज हो गईं।
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02-05-2012, 03:01 PM | #523 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
शुक्राणुओं को अंडाणुओं से जोड़ने वाले जीन का पता लगा
लंदन। दुनिया भर में संतान से वंचित लोगों के लिए एक अच्छी खबर। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे नए जीन का पता लगाने का दावा किया है जो पुरुष शुक्राणुओं को महिलाओं के अंडाणु से बांध देता है। प्रजनन की यह अनिवार्य प्रक्रिया है। डरहम विश्वविद्यालय के एक दल ने प्रोटीन बनाने वाले जीन पीडीआईएलटी के बारे में जानकारी लगना एक प्रमुख सफलता है। इस सफलता से प्रभावी क्षमता बढ़सकती है और इन विट्रो फर्टीलाइजेशन (आईवीएफ) की लागत बढ़ सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि जब पुरुष चूहे में इस जीन को रोक दिया गया तो तीन प्रतिशत से भी कम महिला अंडाणुओं में प्रजनन हुआ। इसके विपरीत जीन पर रोक नहीं होने की स्थिति में यह प्रतिशत 80 से जयादा पाया गया। डेली मेल में प्रकाशित खबर के अनुसार इस प्रकार के जीन को पहली बार प्रजनन से जोड़ा गया है। इस अध्ययन का नेतृत्व डॉ.एडम बेनहम ने किया। हालांकि यह अनुसंधान अभी प्रारंभिक स्तर पर है लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इसकी मदद से शुक्राणुओं को अंडाणुओं से जोड़ा जा सकेगा और यह दंपति के लिए संतान की नई उम्मीद बन सकता है।
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03-05-2012, 12:27 PM | #524 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
शिशुओं में हृदय रोग को पहचानने के लिए नई तकनीक
लंदन। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अब एक नई तकनीक से नवजात बच्चों में हृदय सम्बंधी गंभीर समस्याओं को पहचाना जा सकता है। उनका दावा है कि ‘पल्स आक्सीमेट्री’ नामक इस तकनीक से सैकड़ों नवजात बच्चों की जान बचाई जा सकती है। प्रतिवर्ष दुनिया भर में पैदा हुए शिशुओं को गंभीर हृदय सम्बंधी समस्याएं होती हैं। चिकित्सकों का कहना है कि यदि उनकी सर्जरी न कराई जाए तो शिशुओं की जान को भी खतरा रहता है। कभी-कभी इन समस्याओं के बारे में जानकारी नहीं मिलती। शिशुओं के बहुत बीमार पड़ने पर ही उनके मां-बाप को इसके बारे में जानकारी मिलती है। अभी मौजूद अल्ट्रासाउंड और चिकित्सकीय तकनीकों से सिर्फ आधे मामलों में ही इन समस्याओं को पहचाना जाता है। प्रसिद्ध ‘लांसेट’ जर्नल में छपे लंदन विश्वविद्यालय के इस शोध में कहा गया है कि दो मिनट में की जाने वाली ‘पल्स आक्सीमेट्री’ जांच इस आंकड़े को 75 प्रतिशत तक पहुंचा सकती है। इस जांच में नवजात के पंजे में एक ‘क्लिप’ लगाई जाती है जिससे उसके शरीर में रक्त में आक्सीजन की मात्रा को मापा जा सकता है। आक्सीजन के कम स्तर वाले शिशुओं को अन्य परीक्षण के लिए भेजा जाता है। डॉ. शकीला थंगरतीनम ने कहा कि आमतौर पर शिशुओं में हृदय सम्बंधी समस्याएं कम होती हैं पर उनके प्रभाव बहुत भयंकर हो सकते हैं।
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03-05-2012, 12:29 PM | #525 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
फ्लोराइड की समस्या से निजात दिलाने के लिये नए संयंत्र
हैदराबाद। पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा को कम करने वाले संयंत्रो को डिजाइन करने वाले भारतीय रसायन तकनीक संस्थान द्वारा अब राजस्थान में भी फ्लोराइड नियंत्रण कर योजना बनाई जा रही है। संस्थान द्वारा पहले फ्लोरोसिस से प्रभावित कई गांवों में ऐसे संयंत्र लगाए जा चुके हैं जो भूजल में फ्लोराइड की मात्रा को कम कर सकें। भूजल में फ्लोराइड की मात्रा कम करने से पानी को पीने योग्य बनाया जा सकता है। फ्लोरोसिस एक भीषण बीमारी है जो पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा के कारण होती है। इसमें हड्डियों और दांतों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे भारत भर में लाखों लोग प्रभावित हुए हैं, खासतौर पर राजस्थान और आंध्र प्रदेश में इसके पीड़ितों की संख्या अधिक है। संस्थान के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि आंध्र प्रदेश के गांवों में लगाए संयंत्रों के बाद राजस्थान में भी इन्हें लगाने के लिए बात की जा रही है। संस्थान के इन संयंत्रों को देश भर में पानी को फ्लोराइड रहित बनाने का मॉडल बनाया जा सकता है। परियोजना का नेतृत्व करने वाले एस श्रीधर ने बताया कि यदि हमें पर्याप्त कार्यबल और धन मुहैया कराया जाता है तो हम राजस्थान में डिफ्लोराइडेशन संयंत्र लगा सकते हैं जो अन्य संगठनों द्वारा बनाकर स्थापित किए जा सकें। श्रीधर नालगोंडा में छह संयंत्र लगाने की योजना का नेतृत्व कर रहे हैं। नलगोंडा जिले के गांवों में भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 20 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) तक पहुंच चुकी है। उनका कहना है कि इस योजना की सफलता के लिए ग्राम पंचायत और गैर सरकारी संगठनों का योगदान भी अहम है।
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03-05-2012, 12:29 PM | #526 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
ज्यादा सावधान रहते हैं तो हो सकता है पार्किन्सन
वाशिंगटन। बहुत ज्यादा सावधान रहना आपको खतरों से बचा तो सकता है पर जरूरी नहीं कि आपके स्वास्थ के लिए भी हितकर हो। एक नए अध्ययन में व्यक्ति के सावधानीपूर्ण रवैये और पार्किन्सन्स की बीमारी के बीच एक सम्बंध पाया है। दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने पाया है कि पार्किन्सन से पीड़ित लोग ज्यादा सावधानी बरतते हैं और खतरे मोल नहीं लेते। शोध में पाया गया है कि पार्किन्सन से पीड़ित होने वाले लोगों में पहले से जीवन भर खतरे मोल न न लेने की प्रवृति रहती है। इसके रोगियों ने भी बताया है कि वह कभी तेज रफ्तार या झूले पर झूलने जैसी गतिविधियों में शामिल नहीं होते थे। लाइव साइंस के अनुसार इस अध्ययन से इस सवाल को बल मिला है कि क्या सावधानीपूर्ण रवैये अपनाने वाले लोगों को पार्किन्सन्स से प्रभावित होने की संभावना ज्यादा रहती है। मुख्य शोधकर्ता कैली सुलिवेन ने कहा कि यह संभव हो सकता है कि किसी के व्यक्तित्व का यह पहलू उसके पार्किन्सन से पीड़ित होने का प्रमाण हो। उन्होंने कहा, इस तथ्य को पुष्ट करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। सुलिवन और उनके सहयोगियों ने पाया कि पार्किन्सन्स से पीड़ित 60 प्रतिशत महिलाओं ने भी माना कि किशोरावस्था में उनकी दिनचर्या आम रहती थी। शोधकर्ताओं के अनुसार, मस्तिष्क में मौजूद ‘डोपामाइन’ नाम का एक रसायन मांसपेशियों में हरकत करने के लिए जिम्मेदार होता है। पार्किन्सन्स से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क में इसे पैदा करने वाली कोशिकाएं दम तोड़ने लगती हैं। सुविलन ने कहा कि इस रसायन के स्तर से ही व्यक्तित्व निर्धारित हो सकता है। अगर आपमें इसका स्तर कम है तो आप जीवन में जोखिम और साहसिक कामों को मनोरंजक नहीं महसूस करेंगे।
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03-05-2012, 11:02 PM | #527 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
‘ओट्जी द आइसमैन’ में हैं विश्व की सबसे पुरानी रक्त कोशिकाएं
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने आल्प्स के पर्वत पर वर्ष 1991 में मिले ‘ओट्जी द आइसमैन’ के 5300 वर्ष पुराने परिरक्षित शव में विश्व का सबसे पुरानी रक्त कोशिकाएं खोजने का दावा किया है। इस नये खोज के बारे में जानकारी रायल सोसाइटी इंटरफेस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस परिरक्षित शव में यह खोज पहली बार हुआ है। यह शव दो पर्यटकों ने आस्ट्रियाई-इतालवी सीमा पर मिला था। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से प्राचीन व्यक्ति के मौत के कारणों की पुष्टि हो सकेगी। अध्ययन का नेतृत्व करने वाले अल्बर्ट जिंक ने कहा, ‘हमारे लिए यह काफी आश्चर्यजनक था क्योंकि हमें यह उम्मीद नहीं थी कि हमें पूर्ण रक्त कोशिकाएं मिलेंगी।’
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03-05-2012, 11:02 PM | #528 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
वृद्धों के रात में जागने का कारण पता चला
लंदन। वैज्ञानिकों का मानना है कि हो सकता है कि उन्होंने उस कारण का पता लगा लिया है कि कई वृद्धों को बीच मूत्र त्यागने के लिये रात में क्यों उठना पड़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में मौजूद एक प्रोटीन मस्तिष्क को इस भ्रम में डालता है कि मूत्राशय भर गया है। समाचार पत्र ‘डेली मेल’ में प्रकाशित खबर के अनुसार जापान के क्योतो यूनीवर्सिटी के एक दल ने पाया कि कोनेक्सिन 43 नाम के एक प्रोटीन की कमी मस्तिष्क को इस भ्रम में डालता है कि मूत्राशय भर गया है। यह मस्तिष्क को ‘अवश्य मूत्र त्यागने’ का संदेश भेजता है। कोनेक्सिन 43 प्रोटीनों के एक समूह का हिस्सा है जो लोगों के ‘सिरकादियन रिद्म’ प्रभावित होता है। सिरकादियन रिद्म वह प्रणाली होती है जिसके तहत दिन के समय शरीर में मूत्र अधिक मात्रा में बनता है जबकि रात में यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के गुर्दे से दिन के मुकाबले रात में कम मात्रा में मूत्र बनता है। वहीं दिन की अपेक्षा रात के समय मूत्राशय में अधिक मात्रा में मूत्र जमा होता है।
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05-05-2012, 12:35 AM | #529 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
मिली मोटापे और मधुमेह की वजह
वाशिंगटन। अमेरिका और आस्ट्रेलिया में हुए एक शोध में मानव शरीर में मौजूद उन कारणों को ढूंढ़ निकाला गया है जिनसे मोटापे और मधुमेह जैसी समस्याएं हो जाती हैं। ये कारण हमारे शरीर में मौजूद जैव घड़ी के कुछ हिस्से हैं, जो कि हमारे यकृत और मस्तिष्क में मौजूद होते हैं। इस शोध से आने वाले समय में इन कारणों के निवारण की खोज की जा सकेगी। जैव घड़ी दरअसल हमारे शरीर में चलने वाली एक जैव प्रक्रिया है जो कि हमारे शरीर की सचेतता, भूख, सोने के समय और हारमोन का स्त्राव नियंत्रित करती है। जिन लोगों की इस जैव घड़ी में कुछ गड़बड़ होती है, उनमें मोटापा और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याएं देखी जाती हैं। दरअसल पहले ऐसा माना जाता था कि इस जैव घड़ी से जुड़े कुछ ग्राही, सिर्फ मस्तिष्क में ही मौजूद होते हैं, लेकिन इस शोध में यह सामने आया है कि ये ग्राही मस्तिष्क के साथ-साथ यकृत में भी पाए जाते हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय समूह का कहना है कि हमारे शरीर में मौजूद जैव घड़ी के गड़बड़ा जाने से मोटापे और मधुमेह का खतरा बहुत बढ़ जाता है। इस नए शोध के परिणामों से इस जैव घड़ी को दोबारा से सही करने के तरीके ढूंढ़ने में मदद मिलेगी खासकर अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों, शिफ्टों में काम करने वालों और मोटापा ग्रसित अन्य लोगों को भी। इस शोध में सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस लिडल और अमेरिका के साल्क संस्थान के उनके कुछ साथी शामिल थे। नेचर पत्रिका में छपे इस शोध के अनुसार इन शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क और यकृत दोनों में पाए जाने वाले जैव घड़ी से जुड़े ग्राहियों की महत्ता दर्शाई है। शोधकर्ताओं ने दर्शाया है कि यकृत में मौजूद ये ग्राही वसा की रस प्रक्रिया (चयपचय) के साथ-साथ आहार, पोषण, पाचन और ऊर्जा खर्च से जुड़े जीन्स को नियंत्रित करते हैं। इस शोध से जुड़े प्रोफेसर लिडल कहते हैं, यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिए पहचाने गए जैव घड़ी के उन मूल भागों को पहचाना जा सका है। इन भागों को दवाइयों की मदद से लक्षित करने पर इस जैव प्रक्रिया के गड़बड़ाने से प्रभावित हुए लोगों को आराम मिल सकेगा। वे इसे एक उदाहरण के जरिए समझाते हुए कहते हैं, जब आप विदेश के लिए उड़ान भरते हैं तो आप न सिर्फ देर रात तक जागते ही हैं, बल्कि आपने नोट किया होगा कि देर रात आपकी खाने की इच्छा भी होती है और दिन के दौरान आपकी ऊर्जा कम हो जाती है। ऊर्जा के नियंत्रण के लिए यकृत एक मुख्य कारक है और अब हम यह भी जान गए है कि किस तरह से यकृत की जीन्स हमारी जैव प्रक्रियाओं पर भी असर डालती हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने इस शोध में दर्शाया है कि ये मूल भाग हमारे शरीर में मौजूद जैव घड़ी (जैव प्रक्रियाएं) को संचालित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं और इन पर हम दवाइयों का प्रयोग कर सकते हैं।
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05-05-2012, 12:37 AM | #530 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बिजली बचाने में विश्वास नहीं रखती युवा पीढ़ी
वाशिंगटन। तकनीक के साथ दोस्ती कर बैठी आज की युवा पीढ़ी भले ही बिजली पर आश्रित हो पर इसको बचाने में विश्वास नहीं रखती। मोनाश विश्वविद्यालय के एक शोध दल का नेतृत्व करने वाली सामंथा स्मिथ ने पर्यावरण को लेकर युवा पीढ़ी की राय पर सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि उनके सर्वेक्षण का हिस्सा बने 13 से 30 साल के लोगों को बिजली बचाने की जरूरत नहीं महसूस होती। उन्होंने कहा कि बिना किसी शक के यह कहा जा सकता है कि आज की पीढ़ी पूरी तरह बिजली पर आश्रित है। सामंथा ने बताया कि इस सर्वेक्षण में शामिल लोग पर्यावरण और बिजली के प्रति उपेक्षापूर्ण राय रखते हैं और यदि बिजली की आपूर्ति ठप हो जाए तो तनाव में भी आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि मौसम परिवर्तन के इस दौर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर ऊर्जा के सही और समुचित इस्तेमाल को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इस सर्वे में पाया गया कि युवाओं से ज्यादा उनके मां बाप बिजली बचाने में योगदान देते हैं।
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