07-12-2010, 11:25 AM | #542 |
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Re: साक्षात्कार
आप कभी तो किसी लडकी के तरफ आकर्षित हुए हैँ
या कभी आपने आँफर तो किया होगा
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
07-12-2010, 11:28 AM | #544 |
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Re: साक्षात्कार
मेरे नाम "नीरज" का शाब्दिक अर्थ है 'कमल का फूल' . यानी की जो कीचड में रहकर भी खिला रहता है.
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07-12-2010, 11:35 AM | #546 |
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Re: साक्षात्कार
खालिद भाई, मेरे जीवन में बहुत सी प्रेम कहानियां हैं. मैंने अपने अल्प जीवन में कई बार दिल लगाया है और दिल तुडवाया भी है. वो सब बहुत लम्बी कहानियां हैं. मैं आपको अपने प्रथम प्रेम के विषय में बताता हूँ . हमारी गली में एक लड़की नें मुझे बहुत आकर्षित किया था. और मुझे उससे प्रेम भी हो गया था. उससे पहले मुझे इस विषय पर कुछ भी ज्ञान नहीं था. हमारा एक दूसरे से आंखमिचौली का खेल दो वर्ष तक चला . न मैंने उसे कुछ कहा .. न उसने मुझे कुछ कहा. बस एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते थे. एक दिन मुझे मेरे एक प्रिय दोस्त नें बताया की उसे उसी लड़की से प्रेम है. मैंने अपने दोस्त के लिए उस लड़की का विचार त्याग दिया तथा उसकी गली से गुजरना ही छोड़ दिया. यही कार्य मेरे उस दोस्त नें भी किया. हम दोनों दोस्तों नें एक दूसरे की दोस्ती के लिए जो बलिदान दिया था उसका लाभ तीसरा बाहर का लड़का उठा ले गया. और उस लड़की से शादी कर ली.
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07-12-2010, 11:43 AM | #547 |
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Re: साक्षात्कार
यदि पिछले फोरम की बात की जाए तो मैं एक सदस्य "सोनी" से बहुत प्रभावित हुआ था. क्योंकि उनमें वो सब कुछ बेबाक ढंग से कहने का माद्दा था जो हममें से किसी भी सदस्य के लिए कहना तो दूर सोचना भी बहुत मुश्किल कार्य है. उनकी बातें कई बार दिल को इस प्रकार से झिंझोड़ जाती थीं की कई घंटे तक दिमाग में वही बात घूमती रहती थीं. उनकी बातों से ऐसा प्रतीत होता था जैसे की उन्होंने कोई गहरी चोट खाई है. बाकी सभी सदस्य सामान्य (मेरे जैसे) हैं. तथा आदरणीय हैं.
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07-12-2010, 11:48 AM | #548 |
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Re: साक्षात्कार
यदि चार पहियों वाली गाडी की बात कर रहे हैं तो मैंने पहली बार गाड़ी बदली थी २००८ में जब मैंने अपनी सैंट्रो बेच कर नई "ज़ेन एस्टिलो l x i" ली थी. तबसे अब तक वही मेरे पास है .. और बढ़िया चल रही है. मुझे छोटे आकार की गाड़ियाँ पसंद हैं . मुझे गाडी के सम्बन्ध में अधिक दिखावा पसंद नहीं है. अपनी जरुरत के अनुसार ही इनका चयन करता हूँ.
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07-12-2010, 04:21 PM | #550 | |
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Re: साक्षात्कार
Quote:
हमारे ज़िंदगी तो खुली किताब है !! कोई भी पढ़ सकता है, तो आप कैसे ना पढ़ पाए ??? जो किताब आँखों के ज्यादा नज़दीक होते हैं, उन्हें पढने में मुस्किल होती है !! शायद इसलिए !! चांदनी चौक से गुडगाँव है ही कितना दूर ???
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
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