14-07-2014, 12:55 AM | #541 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमने सोच समझ कर ग़म अपनाया है झूट तो क़ातिल ठहरा, इसका क्या रोना सच ने भी इंसानों का.....खून बहाया है (साहिर लुधियानवी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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14-07-2014, 12:52 PM | #542 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये, चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये....... (बशीर बद्र)
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15-07-2014, 01:50 PM | #543 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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15-07-2014, 05:21 PM | #544 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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थी बड़ी ही देर चुप्पी, अब ज़रा आवाज़ हो, अँधेरों के इस शहर में सुबह का आगाज़ हो.........
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16-07-2014, 12:39 AM | #545 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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चाक दिल और भी हैं, चाक क़बा और भी हैं (साहिर लुधियानवी) शब्दार्थ: मस्लके-शोरीदा-सरी = पागलपन का रास्ता / चाक-दिल = घायल दिल वाले / चाक-क़बा = फटे हुये चोले वाले
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16-07-2014, 09:15 AM | #546 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हवाएं साथ चलती हैं फ़िज़ायें साथ चलती हैं मुझे रास्ता दिखाने को शमाएँ साथ चलती हैं डरूँ मैं आँधियों से क्यूँ कि तूफाँ क्या बिगाड़ेगा कि मेरे सर पे तो माँ कि दुआएं साथ चलती हैं पुरुषोतम'वज्र
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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16-07-2014, 06:25 PM | #547 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ख़ुशी भी याद आती है ........ तो आँसू बन के आती है (मुन्तकिल = स्थायी) - साहिर लुधियानवी
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16-07-2014, 06:50 PM | #548 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हजारों शेर मेरे सो गये, कागज की कब्रों में, अजब मां हूं कोई बच्चा, मेरा ज़िन्दा नहीं रहता.....
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16-07-2014, 10:37 PM | #549 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तो मैंने दर्द अपना और भी गहरा बना डाला
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16-07-2014, 10:53 PM | #550 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तंग मुझको मेरा घर आँगन करेगा झोलियों में लोग पत्थर ला रहे हैं दूर तक साया....तिरा दामन करेगा (इरतिज़ा निशात)
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