27-07-2014, 01:18 PM | #581 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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वो तो चाबी का खिलौना है, चलेगा कितना अपने मेहमान से ये बात भला क्या पूछूं मेरे घर में वो रहेगा तो रहेगा कितना !! (ज्ञानप्रकाश विवेक)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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27-07-2014, 05:44 PM | #582 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ना मिली हमें मंजिल और ना ही साथी हम यूंही राहों पर भटकते रह गए ना जीत हुई, ना हारी बाज़ी हमने कभी खुद से, कभी किस्मत से लड़ गए.......
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28-07-2014, 03:21 PM | #583 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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आवाज़ दे रहे हैं पयम्बर सलीब से इस रेंगती हयात का कब तक उठायें बार बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से रूहे-अस्र = युग की आत्मा /पयम्बर = धर्म-उपदेशक /हयात = जीवन /बार= भार /तबीब = चिकित्सक (साहिर लुधियानवी)
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28-07-2014, 07:56 PM | #584 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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28-07-2014, 11:49 PM | #585 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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बैठा हूँ खुद को ज़ात के अन्दर समेट कर (अनवर हुसैन 'महवर')
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29-07-2014, 04:47 PM | #586 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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यही भूल की न समझ सके क्या हलाल है क्या हराम है 'अशरफ गिल'
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29-07-2014, 11:31 PM | #587 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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इन छोटी छोटी बातों का हम कोई ख़याल नहीं करते (स्व. वाली आसी)
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30-07-2014, 06:16 AM | #588 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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लबों पे हमारे जो ताला न होता
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31-07-2014, 12:58 AM | #589 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
तुम्हारे हिज्र का मौसम भी देर तक न रहा
हमारे शहर में हर लम्हा...रुत बदलती रही (आलम ख़ुर्शीद)
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31-07-2014, 06:10 AM | #590 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हम को जो मिला है वो तुम्हीं से तो मिला है हम और भुला दें तुम्हें ? क्या बात करो हो
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