30-07-2014, 11:36 AM | #51 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
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01-08-2014, 12:23 AM | #52 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
पंचतंत्र की अन्य कहानियों की तरह इस कहानी से भी शिक्षा व प्रेरणा ली जा सकती है. कहानी पढ़वाने के लिये धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
23-08-2014, 01:10 AM | #53 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
पूर्वाभास
कथाकार: रजनीश मंगा उसका सारा शरीर दर्द कर रहा था. ओह – ओह – के अस्फुट स्वरों के साथ उसने अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर बिजली का स्विच ऑन कर कमरा रौशन कर दिया. अपने मन में व्याप्त भय को उसने काबू में करने का प्रयत्न किया और अपने हाथ को अपने गले के चारों ओर इस प्रकार फेरने लगी जैसे अपना पसीना पोंछ रही हो. थोडा सा उठ कर बैठी और तकिये को दीवार के सहारे खड़ा करके उसके सहारे अपनी पीठ टेक दी. तनिक निश्चिंतता से और अपनी सिहरन को काबू में करते हुये उसने सामने के दरवाजे को देखा. फिर वही दृष्टि घुमा कर खिड़की का मुआयना करने लगी. देखा लोहे की ग्रिल पूर्ववत लगी हुई थी. श्वांस की गति सामान्य हो चली थी. इसी प्रकार बैठे हुये वह सीलिंग फैन को टकटकी लगा कर देखने लगी. कितना अजीब स्वप्न है यह. पिछले कई दिनों से सोते हुये यह स्वप्न दिखाई दे जाता है. उफ़्फ़ ... कितना भयानक दृश्य है. बादल गरजने शुरू होते हैं .. हल्के .. हल्के और फिर कुछ ही क्षण के बाद उस पर बिजली टूट कर गिरती है ... और ... घबराहट के मारे उसकी नींद उचट जाती है. वह जाग जाती है. >>>
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23-08-2014, 01:11 AM | #54 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
उसने सुन रखा था कि कोई कोई स्वप्न भविष्य के बारे में संदेश देता है और व्यक्ति को सचेत करता है. बहुत से स्वप्न आने वाली घटनाओं का विवरण भी दे जाते हैं. लेकिन वह इस स्वप्न के बारे में कुछ अनुमान न लगा पा रही थी. बस स्वप्न के बाद जब उसकी नींद खुलती तो वह अपने आप को पसीने में तर-ब-तर पाती और सामान्य होने पर सोचने लगती कि क्या यह स्वप्न भविष्य के किसी संभावित खतरे के प्रति संकेत तो नहीं?
न जाने क्या सोच कर वह मुस्कुरा पड़ी. एक घुटी हुई और विवश मुस्कान जिसके कारण उसके होंठ भी एक विशेष प्रकार से मुड़ गये थे. सोचने लगी ... अब उसे पूर्वानुमानों से और भविष्यवाणियों से क्या सरोकार हो सकता है. कोई खतरा शेष नहीं. जो होना था वह तो हो चुका है. बिजली गिरनी थी सो गिर गयी. उसका तमाम अस्तित्व जैसे इस आग में भस्म हो गया था. इस आग ने अपना काम कर दिया. अब कौन सा वज्रपात होना बाकी रह गया है. हुंह ... वह भी क्या ले बैठी है? जो तस्वीर फट चुकी है उसमे से अब वह अपनी आँखे क्यों ढूंढ रही है. बार बार सोचने के बावजूद वह मानती थी कि इस सारे घटनाक्रम में उसका कहीं कोई दोष नहीं था. कभी उसे ख़याल आता कि मरुभूमि में भी तो कुछ फूल खिला करते हैं बशर्ते ... तभी वह इन ख्यालों को झटक कर परे कर देती. नहीं वह कोई शर्त नहीं रखेगी ज़िन्दगी जीने के लिये. जीवन जीने के लिये होता है न कि ढोने के लिये. सोचती ... ‘मैंने यह चुनौती स्वीकार की है तो निभाउंगी भी ... मुझे जीना है और अपने आत्म-सम्मान को अक्षुण्ण रखते हुये जीना है... कम व्हाट मे... >>>
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23-08-2014, 01:12 AM | #55 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
वह अपने होने वाले बच्चे के लिये जियेगी. वह उसे ऐसे संस्कार देगी जिससे वह एक अच्छा व सच्चा इंसान बन सके, भरपूर जीवन जी सके, उसका अर्थ समझ सके व देश और समाज के लिये कुछ कर सके.
वह असंतुष्ट नहीं है. तीन वर्ष तक वह अपने पति सिद्धांत के साथ रही, सुखी रही. पति सरकारी नौकरी में थे और ऊँचे पद पर काम कर रहे थे. स्वभाव मधुर और परिवार से जुड़े हुये. वह स्वयं भी किसी बात में कम नहीं थी. बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में काम कर रही थी. दोनों तन मन से एक दूसरे को चाहते थे और एक दूसरे पर जान छिड़कते थे. एक पल की जुदाई भी उन्हें बर्दाश्त न होती थी. घर में किसी प्रकार की कोई कमीं न थी. उन दोनों के मध्य किसी मन-मुटाव या किसी प्रकार की ग़लतफ़हमी के लिये कोई स्थान नहीं था. इस बीच वह और उसके पति अपने एक परिचित परिवार में जाया करते थे. पति मिश्रा जी को अंकल कहा करते थे. उनके अलावा उनके घर में उनकी पत्नी तथा दो पुत्रियाँ, एक 19 वर्ष की नेहा तथा दूसरी थी पल्लवी जिसकी उम्र 15 वर्ष के लगभग थी. उसे महसूस हुआ कि उसके पति मिश्रा जी की बड़ी लड़की की ओर आकर्षित हो रहे थे. वह लड़की भी उनकी बातों मे रूचि लेती थी. देखते ही देखते उन दोनों का परस्पर व्यवहार सामान्य से कहीं आगे बढ़ चला था. >>>
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23-08-2014, 11:38 PM | #56 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
सिद्धांत का उस परिवार में आना जाना बढ़ गया था. वह उस परिवार को पिकनिक पर या घुमाने के लिये ले जाने लगा. शुरू में तो वह शशि को भी साथ ले जाया करता लेकिन बाद में उसे अवॉयड करने लगा. अब वह अकेले ही उन्हें गाड़ी पर ले जाने लगा. ऐसा प्रतीत होता मानो उस परिवार को भी सिद्धांत की निकटता से कोई परेशानी नहीं थी. सिद्धांत और नेहा की नजदीकियाँ बढ़ती रहीं और उनके आपसी सम्बन्ध फलने-फूलने लगे थे. हाँ, बाहरी तौर पर शशि के प्रति सिद्धांत के व्यवहार में कोई खास अंतर नहीं आया था लेकिन शशि का अंतर्मन इस परिवर्तन को महसूस करने लगा था.
शशि लाख सोचती कि इस तरफ अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए लेकिन उसके मन में कडवाहट भरती चली गयी. वह सब देखती रही, सहती रही. अन्दर ही अन्दर घुटने लगी थी. अंत में, जो कुछ दिन पूर्व संभावित लगा था, वह हो गया. जल्द ही उनकी बातें, बहसें, कहा-सुनी मर्यादा की सीमा से बाहर निकल गये. पडौसियों तक को यह लगने लगा कि सिद्धांत और शशि के बीच सब कुछ ठीक होने के अतिरिक्त सब कुछ है. उनके आपसी सम्बन्ध कटुता से भर गये हैं. बात इतनी बिगड़ गई कि शशि ने अपने पति का घर छोड़ दिया और कुछ दिन के लिये अपने माता-पिता के यहाँ चली आयी. >>>
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23-08-2014, 11:39 PM | #57 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
वह अपने मायके में कभी न आती यदि सिद्धांत के व्यवहार में संयम बना रहता. वह शशि के साथ गुलामों जैसा सलूक करने लगा था, किसी न किसी बात पर झगड़ा शुरू कर देता, यहाँ तक कि धमकियां भी देने लग गया था. सुबह से शाम तक टकराव व तनाव की स्थिति बनी रहती. अन्ततः शशि ने स्वयं ही इस कटखने परिवेश से अपने आपको मुक्त करने का निश्चय कर लिया और ट्रांसफर करवाने के लिये आवेदन भेज दिया. वह पेट से थी और इस वक़्त उसे पाँच माह का गर्भ था.
उसे तलाक आदि के बारे में सोचना ही व्यर्थ लगता था. इस प्रकार की कोई बात वह अपने मन में न लाना चाहती थी. शादीशुदा जीवन को वह निकट से देख चुकी थी. इस जीवन का एक भी पृष्ठ ऐसा न था जिसे एक लड़की या पत्नी खोल कर पढ़ने की अभिलाषा मन में संजोये रहती है. रुपये पैसे का भी अभाव न था कि वह तलाक जैसा कदम जरुरी समझती. एक बात और भी थी कि वह स्वयं तलाक जैसा कदम स्वयं नहीं उठाना चाहती थी. इससे तो सिद्धांत को खुली छूट मिल जाती. यहाँ हर कोई उसका समुचित सम्मान करता. यहाँ वह किसी से जरूरत से ज्यादा बात नहीं करती. सलीके से रहती. कुछ घनिष्ठता हुई थी तो सिर्फ बैंक के प्रबंधक से जिनकी वय 55 वर्ष के आसपास होगी. वह और उनकी पत्नी दोनों ही धार्मिक प्रवृति के थे. >>>
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23-08-2014, 11:40 PM | #58 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
कभी कभी शशि ने अपने सर को हल्का सा झटका दिया जैसे वह अनचाहे विचारों के घेरे से बाहर आना चाहती हो. वह फिर से सोने का उपक्रम करने लगी. लाइट ऑफ हुई और उसने चादर को ऊपर तक खींच लिया.
उसने ऑफिस से तीन माह की मेटरनिटी लीव ले ली थी. अब कुछ ही दिन में घर में एक नया मेहमान आने वाला था. उसने ममा को सूचित कर के उन्हें अपने पास बुला लिया था. सारी व्यवस्था माँ ने संभाल ली थी. एक नौकरानी थी जो दिन भर वहीँ रहती थी. इन हालात में उसे घर के काम की कोई चिंता नहीं रहती थी. शशि दिन भर आँगन में घूमती रहती या माँ से बातचीत करती या कोई पुस्तक उठा कर पढ़ने लगती. उसका काफी समय बिस्तर पर लेटे लेटे ही निकल जाता. यकायक उसने देखा कि वह सड़क पर अकेली चली जा रही है. वातावरण सुनसान है, भयानक अंधेरा छाया हुआ है चारों ओर, उसने अपने दायें हाथ में एक गठरी पकड़ रखी है इसे उसने यत्नपूर्वक छुपाया हुआ है. बदहवास सी वह कभी भागती है और कभी मुड़ कर पीछे देखने लगती है. आकाश में बादल गड़गड़ा रहे हैं. एकाएक बड़े जोरों की रौशनी के साथ बिजली चमकती है जो शशि को अपनी लपेट में ले लेती है, राख कर देती है. डर के मारे उसके मुंह से चीख निकल जाती है और उसकी आँख खुल जाती है. वह हड़बड़ा कर उठ बैठती है. उसे ज्ञात हुआ कि वह एक डरावना सपना देख रही थी. >>>
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23-08-2014, 11:40 PM | #59 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
वह आँखों से ही अपने चारों ओर की दीवारों को टटोलने लगती है. उसके हृदय की गति अपने आप ही बहुत बढ़ गई थी. एक बार फिर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं. हृदय पर हाथ रख कर अपने श्वांस को सामान्य करने का प्रयत्न करने लगी.
“कड़ाक ....” की ध्वनि के साथ कमरे में रोशनी हो गयी. वह सिहर कर बोली, “क ... कौन है ??” उससे करवट भी न बदली जा सकी. “मैं हूँ, बेटे .... क्या बात है ... ??” यह माँ की आवाज थी. “ओह .. ममा ... मुझे बड़ा डर लग रहा है ..... “ “तुम सोते हुये चीख पड़ी थी, शशि.” माँ ने बताया, “ ज्यादा तकलीफ तो नहीं हो रही, बेटा?” “ममा तुम यहाँ मेरे पास ही सो जाओ ... मुझे अकेले में बड़ा डर लग रहा है ...... ममा.” “पगली बच्ची, मुझे कुछ बताएगी भी या .... “ “वही पहले वाला सपना, ममा .... आज तो दो बार वही सब कुछ नींद में देखा है मैंने. ओह .... ममी ... कितने खौफनाक तरीके से बिजली गिर कर सब कुछ भस्म कर देती है.” यह बताते हुये उसका चेहरा श्वेत पड़ गया और आँखें सामने रोशनदान में स्थिर हो गयीं. उसके चेहरे पर भय का स्थायीभाव चिपक गया था. माँ ने अपनी बेटी के कंधे को अपने दाहिने हाथ से थपथपाया. >>>
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23-08-2014, 11:42 PM | #60 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
“ममा, कितनी अजीब बात है कि जिस लड़की ने अकेले जीवन जीने का फैसला सिर्फ अपने बूते पर ही लिया हो उसे एक स्वप्न ने भयभीत कर दिया. अच्छा, बताओ .... ममा, क्या आपको सपनों की सच्चाई का विश्वास है?”
“किस प्रकार का ... ?” “यही कि हमारे सपने हमारे आगामी जीवन के बारे में संकेत देते है. कुछ पूर्वाभास होता है, इस बारे में?” “बेटा, सुना जरुर है लेकिन पक्का कहा नहीं जा सकता. बल्कि मेरा अपना विचार तो इससे बिलकुल विपरीत है. वैसे तुम घबराई हुई क्यों हो?” “ममा, मुझे तो कुछ नहीं सूझ रहा. मेरे ध्यान में केवल वह दृश्य आता है जिसे मैं अपने स्वप्न में कई बार देख चुकी हूँ. और कुछ सोच ही नहीं पाती. बल्कि सोचने के लिये कोई छोर ही नहीं मिलता है.” “खैर जाने दे, बेटा. सो जाओ ... अभी तो रात के तीन बजे हैं. तुम अपने मन में दृढ़ता रखो. यह सोच लो कि स्वप्न और कुछ भी हो, वास्तविकता तो नहीं हो सकती न ..... अब सो जाओ ... मैं यहाँ तुम्हारे पास ही हूँ.” >>>
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