09-12-2010, 04:23 PM | #51 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
Quote:
बहुत खूब कही
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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09-12-2010, 06:08 PM | #52 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
मेरा प्यार
टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है। रख न पाया मान निज जो, प्यार वो कैसे करेगा? हीनता से ग्रस्त है जो, दीनता ही दे सकेगा द्वार पर तेरे खड़ा हूँ, स्नेह का लेकर निमंत्रण एक चुटकी भीख को यह दीन का फेरा नहीं है हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है है विदित, होती रही है प्यार की उद्दाम धारा बँध सके जो बंधनों से और ना निज कूल से राह में अवरोध कोई सर उठाए यह झुका दे, तोड़ दे, ढाये उखाड़े मूल से है अगर यह प्यार तो आश्वस्त हूँ मैं इस प्रभंजन ने प्रबल, यह मन मेरा घेरा नहीं है हो किसी का प्यार लेकिन प्यार वो मेरा नहीं है प्यार वो है ले बहे जो, मंद मंथर गति निरंतर जी उठे स्पर्श पाकर हाँफती मरुभूमि बंजर मान रखता, मान देता, मधुर मंगल रूप कोमल प्यार का जो स्वप्न मेरा क्या वही तेरा नहीं है? टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
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09-12-2010, 07:11 PM | #53 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
आजकल बहुत बड़ी भ्रान्ति है
या कहूँ कि समाज में घोर अशान्ति है क्योकि देह को ही माध्यम समझने लगें है लोग प्यार की अभिव्यक्ति का तन के बिना अधूरा ही मानते हैं प्रेम व्यक्ति से व्यक्ति का उनके अनुसार जब तक तन नहीं होते एकाकार प्रेम पा ही नहीं सकता गगन सा विस्तार वे कहते हैं प्यार हैं जलन प्यार हैं चुभन प्यार हैं मिलन प्यार हैं बिछुड़न प्यार है कामनाओं की पूर्ति यानि शारीरिक इच्छाओं की आपूर्ति पर हमारी मान्यता है भिन्न भले ही लोग हो जाएं हमसे खिन्न पर सच मानिए ऐसा प्रेम, प्रेम नहीं ये है एक मानसिक विकार या कामनाओं का ज्वार तन हो ही नहीं सकता प्रेम का आधार ये तो अन्तर्मन में बहता एक पावन झरना है जिसे झर - झर – झर झरना है अन्तर्रात्मा को संतृप्त करना है ऐसे भी कह सकते है कि प्रेम अन्तस्तल में बहती पावन नदी है व्यर्थ ही भ्रमित इक्कीसवीं सदी है इसलिए र ध न नहीं कोमल स्वर में गाइए रे ध नि यानि प्यार की सरगम
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09-12-2010, 08:40 PM | #54 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
जिसने जिस्म से प्यार किया उसने क्या खाक प्यार किया....वो चमड़े का सौदागर है जो जिस्म से प्यार करे.....
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11-12-2010, 10:11 AM | #55 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
वाह वाह !! बहुत खूब !!
सिकंदर भाई, मेरी ये सूत्र आपके प्रविष्टी के बिना अधूरी रह जाती !! दिल से स्वागत है आपका !!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
11-12-2010, 10:15 AM | #56 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
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अभूतपूर्व अभिव्यक्ति !!
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11-12-2010, 12:52 PM | #57 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
क्या कह गयी किसी की नज़र कुछ न पूछिए ! क्या कुछ हुआ है दिल पे असर कुछ न पूछिए !! वो देखना किसीका कन्खिओं से बार बार ! वो बार बार उसका असर कुछ न पूछिए !! रो रो के किस तरह से कटी रात क्या कहें ? मर मर के जी है सहर कुछ न पूछिए !! अक्सर ख्याल- ए -हुस्न में पहुंचे है मर के हम ! क्यों कर हुआ है तय- ए - सफ़र कुछ न पूछिए !!
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14-12-2010, 04:16 PM | #58 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
हर तरफ खामोशी का साया है !! ज़िन्दगी में प्यार किसने पाया है ?? हम यादों में झूमते हैं उसकी, और ज़माना कहता है........ “देखो आज फिर पीकर आया है ” !!!
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14-12-2010, 04:27 PM | #59 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
बेवफा वो न थे, बेवफा हम न थे ! वो हालात ही कुछ तब ऐसे थे ! इसलिए शायद साथ आज हम न थे !! वो आज किसी और के हैं ! मैं आज किसी और का हूँ ! है सब कुछ मेरे आस पास जब भी, तनहा सा महसूस करता भीड़ में अब भी !! ये जानता वो कभी न मेरे हो सकते जब भी, न जाने क्यों फिर भी उन्हें पाने की आस है अब भी !! जितना उनके यादों से दूर जाना चाहता हूँ जब भी, उन्हें उतना ही दिल के करीब पाता हूँ अब भी !! मिलते हैं आज वोह कहीं जब भी, दिल में एक दर्द सा उठता है तब भी !! धुन्ड़ता हूँ हर शे में उनको अब भी, रोना तो बहोत चाहा मगर आंसू न निकले तब भी........................!!!!!
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15-12-2010, 01:15 PM | #60 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
Quote:
सुभान अल्लाह
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