14-10-2013, 02:05 PM | #51 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
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21-10-2013, 09:46 PM | #52 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
अमित जी का ब्लॉग
लीलावती अस्पताल, मुंबई अक्टूबर 10, 2008 (अमित जी का जन्मदिवस) (अक्टूबर 16, 2008 6:26 pm पर लिखा हुआ) मैं ठीक हूँ। और ज़िंदा! और कलसुबह मैंयहाँसे छूट जाऊगाऔर मैंउन सब प्रशंसकों और शुभचिंतकों को धन्यवाद देता हूँ जिनकी प्रार्थना ने एक बार फिर मेरे परिवार का और मेरा साथ दिया और मुझेइससंकट से उबारा। आपके निरन्तर सहयोग और विश्वास, मेरे लिए आपका चिंता करना और आपकी अपनी प्रतिबद्धता की शक्ति एक ऐसा शक्तिशाली बल ही जिसने मुझे फिर से ज़िंदा किया और मेरी सारी ऊर्जालौटाई।जो मुझे लड़ने की शक्ति देताहै।अनसोची विपत्तियों का सामना करनेकी शक्ति देता है।मैं दिवालिया हो चुका हूँ शब्दों और अभिव्यक्तियों के हिसाब से, चाहे कितनी भी ईमानदारी बरतूँ, मैं कभी भी सही मायने में अपनी कृतज्ञता ज्ञापन नहीं कर सकूँगा। मैं अपनी हालत पर शर्मिंदाहूँ।मुझे ये असहज लग रहा है कि मैं दूसरों के लिए असुविधा का कारण बन सकता हूँ। मैं चाह्ता हूँ कि ऐसे हालात में मेरी तरफ़ दिया गया ध्यान हट जाए। पर ऐसा होता नहीं है। मुझे ये खयाल तक नापसन्द है कि मुझे उन से आँख मिलानी होगी जो मुझे सहानुभूति दिखाते हैं। तो मैं अपना सर झुका लेता हूँ ताकि मैं अपनी हालत का असर उन पर न देख सकूँ। मैं जनता के सामने अपना चेहरा छुपा लेता हूँ और कामना करता हूँ कि मुझे जितनी जल्दी हो सके एकांत में ले जाया जाए। जब तक ... |
21-10-2013, 09:49 PM | #53 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
जब तक मैं अपने पैरों पर फिर से खड़ा हो सकूँ. उन लोगों का शुक्रिया अदा कर सकूँ जिन्होंने अपना प्यार दिखाया. भगवान मेरी मदद करे कि मैं ऐसा सदा कर सकूँ.
तो चलो 10 अक्टूबर की ओर चलते हैं। दिन शुरु होता है सामान्य रुप से हर दिन की तरह - जिम जाना, कागज़ी काम निपटाना, और नातियों के साथ खेलना और 'तीन पत्ती' कीशूटिंग।भविष्य की शूटिंग की मीटिंग दिन में होती है और जब वो खत्म हो जाती है तो मैं अपने ऑफ़िस आता हूँ एक बिहार के अभियान के लिए, उस भयानक बाढ़ के लिए जिसने हज़ारों को भूखा और बेघर कर दिया है। मेरे देशवासियों की खुशहाली के लिए मेरा योगदान। मैंने अपनी और से कुछ भेज दिया है और और भी कुछ किया जाएगा आने वाले दिनोंमें।एक कॉंसर्ट जिसके द्वारा धन एकत्र किया जाएगा। उन लोगों में जागरुकता पैदा की जाएगी जिन्हें सामने आ कर मदद करनी चाहिए। मैंने एक संगठन का वित्तपोषण किया है 3 साल के लिए जो कि स्वयंसेवक भेज रहा है बिहार में पीड़ितों की मदद के लिए। लेकिन अभी बहुत कुछ और भी करने की जरूरत है। उसके बाद, राम गोपाल वर्मा मिलते हैं और हम लंबे समय तक - रात 10 बजे तक - बात करते हैं- एक अनूठे विचार पर। एक टी-वी चैनल वाले सम्पर्क करते हैं मेरी टी-वी पर वापस आने की सम्भावना को ले कर। और मैं अंतत: निवृत हो कर 'जलसा' आ जाता हूँ परिवार के साथ खाने के लिए और 11 अक्टूबर को लाने के लिए। |
21-10-2013, 10:13 PM | #54 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
आधी रात होते ही शुभकामनाएं आनी शुरु हो जाती हैं खाने की मेज पर। 66 साल। उपहार दिए जातेहैं।प्यारे और कोमल औरनिजी।लेकिन सबसे प्यारे उपहार की बात की जा सकतीहै।यह जया सेमिला।जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूँ, कि 'सोपान' से वे सारे पुराने पत्र आदि खोद-खोद कर संकलित कर रहीहैं।उन्होंने एक और खजाना ढूंढनिकाला।बड़े करीने से एक डब्बे में सजा करदिया।एक एक पत्र मन को जीत लेने वाला।लेकिन एक मन में घर कर गया। एक पत्र जो मैंने हिंदी में लिखा है अपनी माँ को जब वे मुझे इलाहाबाद में मेरे पिताजी की देखरेख में छोड़ कर शहर से बाहर गई हुई हैं। साल है 1948।मैं 6 साल का हूँ। मैं उनसे कहता हूँ कि वे जल्दी वापस आ जाए क्यूँकि मुझे उनकी याद आ रही है।मैं उन्हें यह भी बताता हूँ कि मेरे पेट में दर्दहै।हम इस बालसुलभ क्षण पर हँसते हैं और सोने के लिए चल देते हैं।
डेढ़ बजे तक बिस्तर में, मैं ढाई बजे के आसपास दर्द की वजह से जग जाता हूँ।पर जब दर्द जाता नहीं है तो मैं टहलकदमी द्वारा इसे दबाने की कोशिश करता हूँ और परिवारजन को परेशान नहीं करना चाहता हूँ। कोई राहत नहीं मिलती है और मैं फोन करता हूँ डॉक्टर को - सदा विनीत डॉक्टर बर्वे। जो दवा दी जाती है उसका कोई असर नहीं होता है। डॉक्टरों के चेहरे पर चिंता और जया के चेहरे पर 'मैं जानती थी' वाला भाव।पिछले कुछ महीनों से उन्हें अंदेशा था कि मेरा स्वास्थ्य गड़बड़ाने वाला है। |
21-10-2013, 10:16 PM | #55 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
अब तो जांच-पड़ताल आसन्न है और अगले कुछ घंटे कष्टदायी दर्द और असुविधा से भर जाते हैं। तड़के सुबह से, घर के बाहर एकत्रित हुई भीड़ की आवाजे सुनाई देने लग जाती हैं, जो कि परम्परा के हिसाब से मुझे जन्मदिन की शुभकामनाएं देने आए हैं। उनके साथ ही मुझे पुलिस का सायरन और एम्बुलेंस का भी विशिष्ट सायरन सुनाईदिया।मैं बमुश्किल नीचे उतरता हूँ और प्रतीक्षारत स्ट्रेचर में लेट जाता हूँ। बाहर खामोशी छाई हुई है। स्टाफ़ और निकटी शुभचिंतक फ़ोयर में एकत्रित हो जाते हैं। कोई कुछ नहीं कहता है, सिवाय मीडिया के। वे कोलाहल मचाते हैं और एक एक्सक्लूसिव शॉट के लिए चिल्लाते हैं, एम्बुलेंस की पवित्रता का हनन करते हुए। वे स्थिति की संवेदनशीलता को कभी नहीं समझेंगे। पुलिस ट्रेफ़िक और प्रतीक्षारत भीड़ के बीच से गाड़ियां निकालने की कोशिश करती हैं, लेकिन वो पर्याप्त नहीं होता।मीडिया एक और अड़चन है इस आकस्मिकसवारी का जल्दी से जल्दी नानावटी तक पहुँचने में। अगर उनका बस चलता तो वे मेरे साथ स्ट्रेचर पर बैठकर मुझसे अपने सवालों के जवाब मांगते।
"सर, आपका जन्मदिन किस तरह मनाया जाएगा? क्या आप शाहरुख को निमन्त्रण दे रहे हैं?" संवेदनहीन. कठोर. सी-टी स्कैन के क्षेत्र में, सतत गति से मशीन का रम्भाना भयभीत कर देता है. सभी धातु की चीजे हटाने के बाद, धीरे धीरे स्ट्रेचर मशीन के गुफ़ानुमा छेद में प्रवेश कर जाता हैं. मशीन के पुर्जे घुमते हैं. घुटन का माहौल. थोड़ी खटर-पटर के बाद मशीन बोलती है - लगभग भगवान की आवाज में ... "सर, आप एक गहरी सांस लें ...अब सामान्य रुप से सांस लें।" |
21-10-2013, 10:17 PM | #56 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
जैसे ही मैं गुफ़ा से निकलता हूँ, मेरे ऊपर चेहरे दिखाई देते हैं। एक मेरी बांह पकड़ कर उसे नीचे दबा देता है। कुछ दूसरे लोग एक ट्राली ले कर जा रहे हैं – भयानक उपकरणों के साथ। दस्ताने पहने जा रहे हैं, हरी शल्योपयोगी चादर बिछाई जा रही है, एक नर्स मेरी बांह पर कुछ करती है। तैयारी की जा रही है ताकि मेरी नस में कुछ डाला जा सके। एकद्रव्य डाला जाएगा जिससे कि सी-टी स्कैन के चित्र में शरीर के महत्वपूर्ण अंग अलग से दिखाई दें।
सुन्न करने वाले डॉक्टर खुद को तैयार करते हैं जिससे कि वे मेरी कोहनी के पास सुई लगा सके. बाकी लोग सतर्क हो जाते है किसी भी सम्भावना के लिए. मरीज चीख भी सकता है. पागलों की तरह भाग भी सकता है. मारपीट कर सकता है. "सर, बस थोड़ी सी चुभन ... आपको पता भी नहीं चलेगा." हाँ जैसे कि ... सुई घुसती है चमड़ी के अंदर और इधर उधर खोजती है सतह की नस को. खून सीरिंज में उभर आता है. "मिल गया ... सर, हो गया!!" फिर से गड्डे में। द्रव्य शरीर में। शरीर गर्म होता जा रहा। गले से, पेट में और फिर ठीक नीचे वहाँ 'जहाँ आप जानते हैं कहाँ।" भगवान की आवाज। और कर्णभेदी खटर-पटर के बाद बाहर निकल कर फ़ैसला सुनना। लीलावती भागो। आंत्र बाधा। या तो मुड़ गई या अटक गई या दब गई या काम नहीं कर रही। |
21-10-2013, 10:35 PM | #57 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
मैं सर झुका कर एम्बुलेंस की तरफ़ जाता हूँ। आसपास कई मरीज। एक आवाज। ' बच्चन जी, आप चिंता न करें। आपको कुछ नहीं होगा!' मैं उनके आशावाद के बदले मंद मुस्कान लौटाता हूँ, श्वेता मेरा हाथ पकड़ कर सहारा देती है, मैं गाड़ी में बैठ जाता हूँ जो कि अपने आप को तैयार कर रही है मीडिया की पीछा करने की आदत से बचने का।
यात्रा में हर बम्प पर दर्द होता है। अस्पताल पर निकलते वक़्त और भी ज्यादा। मैं झुज्कता हूँ और मुँह छुपा लेता हुँ मीडिया से बचने के लिए और प्रार्थना करता हूँ कि जल्दी से अपने गंतव्य के द्वार में प्रवेश कर जाऊँ। मेरे सिर पर अभिषेक का आश्वासन से भरा हाथ है और उनके आश्वासित शब्द सारी प्रक्रिया को मार्गदर्शन देते हैं। 'अंदर। अब हम गलियारों में हैं। अब हम लिफ़्ट में हैं। अब कमरे के अंदर। ठीक। ऐसे।" नामांकित कमरा अभी तैयार नहीं है और मैं इसलिए एक अस्थायी पलंग पर लेट जाता हूँ। नर्स, स्टाफ़, डॉक्टर सब जुट जाते है और नियमित रुप से काम शुरु हो जाता है। आर-टी पहले लगाई जाएगी। रायल्स ट्यूब। एक मोटी ट्यूब जो कि नथुनों में डाली जाती है और फिर वहाँ से मुँह और गले में होते हुए आहार नली में। सब प्रयास असफल। आहार नली की बजाय विंड पाईप में चली जाती है और मेरा गला घोंटती है। मैं छटपटाता हूँ। हर प्रयास के साथ मेरा दर्द बड़ता जाता है। लेकिन करना भी आवश्यक है पेट तक सामन लाने-ले जाने के लिए। थोड़ी देर के लिए मुझे राहत दी जाती है फिर से कोशिश करने से पहले। एक घंटे के बाद मेरा निर्धारित कमरा तैयार हो जाता है। तुरंत मुझे वहाँ ले जाया जाता है। आर-टी लगाने का काम फिर से शुरु और कुछ प्रयासो के बाद ये सफलता पुर्वक लग भी जाती है। मैं हर सांस के साथ प्लास्तिक की ट्यूब और हर घूंट के साथ प्लास्तिक की ट्यूब निगलता हूँ। भयंकर। न खाना। न पीना। एक बूँद तक नहीं। दोनों हाथों पर और छेद किए गए। कई और सुईयाँ, और आई-वी के स्टेंड द्रव्य पदार्थों की बोतलों से लैस। तार ही तार सारे शरीर पर। लोग व्यस्त है मेरे शरीर के विभिन्न अंगो के साथ। यहाँ दबा, वहाँ छेद, यहाँ खींचतान। सब सामन्य प्रक्रिया। |
21-10-2013, 10:38 PM | #58 |
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Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
मेरे जीवन का एक और दिन अस्पताल में। जैसे कि कई और भी।
मैं आँख खोलता हूँ और चारों ओर देखता हूँ। कुछ परिचित और कुछ अपरिचित चेहरे सामने आते हैं। मुस्काराकर आश्वासन देते हुए। लेकिन जैसे मैं देखना शुरु करता हूँ मुझे अब ये ज्यादा ही जाना पहचाना लग रहा है। ये है रूम 1101 वही कमरा जहाँ मेरी माँ थीं। लगभग दो साल तक, निधन से पहले। दिसम्बर में कुछ महीने पहले। मैं फिर से अपनी आंखें बंद कर लेता हूँ। 1948। मेरा पत्र मेरी माँ के नाम। "माँ .. आप जल्दी वापस आ जाओ। मुझे आप की बहुत याद आती है। मेरे पेट में दर्द हो रहा है!" |
07-01-2014, 11:36 PM | #59 |
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07-01-2014, 11:37 PM | #60 |
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