02-03-2012, 07:20 PM | #51 |
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Re: दोहावली
प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ॥॥ तीर तुपक से जो लड़े, सो तो शूर न होय । माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय ॥ तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय । सहजै सब विधि पाइये, जो मन जोगी होय ॥ तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर । तब लग जीव जग कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर ॥ दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार । तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥ |
02-03-2012, 07:21 PM | #52 |
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Re: दोहावली
दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥ दस द्वारे का पींजरा, तामें पंछी मौन । रहे को अचरज भयौ, गये अचम्भा कौन ॥ धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सीचें सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय । मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ॥ पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । एक पहर भी नाम बीन, मुक्ति कैसे होय ॥ ॥ पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय । ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय ॥ |
02-03-2012, 07:21 PM | #53 |
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Re: दोहावली
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात ॥ पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार । याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ॥ ॥ पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय । अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेंगे जाय ॥ प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बजाय । चाहे घर में बास कर, चाहे बन मे जाय ॥ ॥ बन्धे को बँनधा मिले, छूटे कौन उपाय । कर संगति निरबन्ध की, पल में लेय छुड़ाय |
02-03-2012, 07:23 PM | #54 |
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Re: दोहावली
बूँद पड़ी जो समुद्र में, ताहि जाने सब कोय ।
समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ॥ बाहर क्या दिखराइये, अन्तर जपिए राम । कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम ॥ बानी से पहचानिए, साम चोर की घात । अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह की बात ॥ बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर । पँछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥ मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय । बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥ |
02-03-2012, 07:24 PM | #55 |
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Re: दोहावली
माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश ।
जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश ॥ भज दीना कहूँ और ही, तन साधुन के संग । कहैं कबीर कारी गजी, कैसे लागे रंग ॥ माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय । भागत के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय ॥॥ मथुरा भावै द्वारिका, भावे जो जगन्नाथ । साधु संग हरि भजन बिनु, कछु न आवे हाथ ॥ ॥ माली आवत देख के, कलियान करी पुकार । फूल-फूल चुन लिए, काल हमारी बार ॥॥ |
10-03-2012, 07:56 PM | #56 |
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Re: दोहावली
रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह ।
नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह ॥ |
10-03-2012, 07:57 PM | #57 |
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Re: दोहावली
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच ।
सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच ॥ रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल । बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय । पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय ॥ |
10-03-2012, 07:57 PM | #58 |
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Re: दोहावली
राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि ।
कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि ॥ रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि । प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय । रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय ॥ |
10-03-2012, 07:58 PM | #59 |
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Re: दोहावली
रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम ।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम ॥ रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन । ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन ॥ रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम । पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम ॥ |
10-03-2012, 07:58 PM | #60 |
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Re: दोहावली
रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय ।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय ॥ रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय । बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय ॥ लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार । जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार ॥ |
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