29-08-2014, 10:33 PM | #51 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ रे भइबा, अब के हमरा झोंटबा पकड़ के मारतै रे भइबा’’ ‘‘ रे भइबा, अब के हमर जिनगीया संबारतै रे भइबा’’ ‘‘ रे भइबा अब के हमर अरतिया उतारते रे भइबा’’ रीना की यह आवाज करेजा चीर कर रख दे रही थी पर मैं विवश उसे ढंाढस भी नहीं दे सकता था। नवीन दा ने ही पान खाने पर मुझे चांटा मारा था जिसके बाद से आज तक कभी पान को मूंह नहीं लगाया और नागपंचमी में गांव में होने वाली कब्बडी के वे प्रमुख खिलाड़ी थे। कब्बडी नागपंचमी के एक सप्ताह पहले ही प्रारंभ हो जाती थी जिसमें भाग लेने के लिए वे पटना से आते थे और मेरे विपक्षी टीम में रहते थे जिसे प्रभावित करने के लिए मैं हमेशा उनको मारने का प्रयास करता जिसमें एक आध बार सफल भी हो जाता जिस पर वे कहते- >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 29-08-2014 at 10:35 PM. |
29-08-2014, 10:37 PM | #52 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘आंय रे छौड़ा तोरा हमरे मारे के हलै, सुराज दा से कहके ने दूधा बंद करा देबौ खूब दूध पिलाबो हखुन।’’
मैं तो अपना प्रभाव जमाने के लिए उन्हें कब्बडी खेल में मारने का प्रयास करता था ताकि वे घर जाये तो वहां मेरी चर्चा हो और धाक जमे पर कब मैंने सोंचा था कि नवीनदा जिंदगी की कब्बडी से स्वंय अपने ही हाथों मर कर बाहर हो जाएगें। नवीनदा से हम दोनों को काफी भरोसा था और अभी पिछले ही दिनों दोनों में जब जीवन के अगले सफर की चर्चा हो रही थी तो रीना कह रही थी कि - ‘‘नवीन दा से अपन प्रेम के बारे मे बतईबै, उ हमरा खूब मनो हई और जरूर हमरे तरफ होतई’’ खैर गांव के अन्य गोतिया सब शवयात्रा की तैयारी कर रहे थे और फिर शवयात्रा में मैं भी साथ साथ जा रहा था। साथ ही गांव में परंपरागत रूप से शव यात्रा के साथ निर्गुण गाने वालों की टोली चलती जो ‘‘कहमां से हंसा आइ गेलै कहमां समाई गेलइ हो राम’’ गाते हुए चलती थी पर आज चूंकी एक नैजवान की मौत हो गई थी सो ऐसा नहीं हो रहा था। >>>
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29-08-2014, 10:38 PM | #53 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
नवीन दा के मौत के बाद गांव में यह चर्चा जोरों से होने लगी कि पत्नी के कारण ही उन्होने आत्महत्या कर ली। उनकी पत्नी कड़क स्वभाव की थी, रामपुरवली। पर उनके इस कड़क स्वभाव का कारण भी मैं समझता था। शादी के पंद्रह साल हो गए थे पर अभी तक बच्चा नहीं हुआ जिसकी वजह से वह बात बात पर किसी से भी उलझ जाती थी। रीना और मेरे प्रेम संबंध की भनक भी उसको लग गई थी और एक आध बार उसने परझी (व्यंग) मार कर रीना से इस बात की जिक्र भी किया था।
‘‘बबलु बउआ भी बहुत स्मार्ट हखीन नै रीना’’ ‘‘तब बियाह करभो की ओकरा से, स्मार्ट है त’’ ‘‘ हमर बियाह तो तोर भैया से हो गेलो, कहो तो तोर करा दियो’’ समय कुछ यूं ही बीतता जा रहा था और जिंदगी के चौराहे पर मैं टेफिक पोस्ट की तरह ही दुविधा में पड़ा था। काफी मान-मनौअल के बाद पटना जा कर मेडिकल की तैयारी करवाने के लिए घर वाले तैयार हो गए। इस बात की भनक रीना को लगी तो वह काफी नाराज हो गई और गुस्से में आकर कई दिनों तक दर्शन नहीं दिया और जब एक दिन गली में मिल गई तो मैंने यूं ही आवाज दे दी – ‘‘की यार, आज कल दर्शनों दुर्लभ हो गेलै हें, की बात है, लगो है की कोई दुसर जोगार हो गेलै की।’’ >>>
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29-08-2014, 10:39 PM | #54 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
मेरा इतना कहना की उधर से रीना की खनकती हुई आवाज गुंजी-
ओह तो यह बात है, पटना जाने की खबर मिलने से यह नाराज है। चलो फिर ठीक है मनाने की कला तो मुझे आती ही है यह सोचते हुए मैने भी जबाब दे दिया। ‘‘ तोरे ले जा रहलिए हें, बाबूजी खोजथुन डाक्टर, इंजिनियर दुल्हा त हमरा तैयारी करे ने पड़तै।’’ ’’बाबूजी जे खोजथीन ओकरे से बियाह करे के रहतै हल त तोरा से काहे ले खोसामत करतिए हल। हमरा डाक्टर-इंजिनियर नै चाही, हमरा तोरा से मतलब है, जइसन हहीं औसने जादे नै।’’ मतलब साफ था की वह बहुत गुस्से में थी और वह मुझे दूर जाता नहीं देखना चाहती थी। चाहता तो मैं भी नहीं था पर जब कल की सोंचता तो चिंता बढ़ जाती और फिर विवश होकर कल के लिए प्रयास करने लग जाता। चार पांच सालों से साथ साथ रहते हुए जुदा होने की सोंच कर भी मन घबड़ा जाता पर होना तो था ही, सो मैने मन को कठोर कर लिया। आज अहले सुबह जब रीना निकली तो उससे आगे आगे मैं जा रहा था और फिर एक प्रेम पत्र उसके आगे गिरा कर मैं चलता रहा उसने उठाया की नहीं मैं मुड़ कर नहीं देख पाया पर उसने जबाब दिया- ‘‘ हमरा पता है कि एकरा में की लिखल है, इ सब से काम नै चलतौ।’’ >>>
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29-08-2014, 10:42 PM | #55 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
वह एक दम प्रतिरोध की मुद्रा में आ गई थी और मैंने भी निर्णय ले लिया था कि जाना है तो जाना है। इस पत्र के माध्यम से मैं उसे समझाने की पूरी कोशिश की थी कि आने वाला कल क्या होना है और फिर उसके लिए हमें क्या करना चाहिए। पर उसपर इस सब का कोई असर नहीं हुआ। वह एक विरहनी की तरह रहने लगी। उदास होकर छत पर भी बैठी रहती जैसे किसी का सबकुछ लुट गया हो। मैं भी काफी सोच विचार कर पटना जाने की तैयारी में जुटा था। पराडाइज कोचिंग का अखबार में विज्ञापन देखकर कर उससे फोन से सारी जानकारी ली और जाने की तैयारी करने ल्रगा। सोलह हजार रूपया लगना था पर नामांकन के लिए अभी तीन हजार की जरूरत थी जिसके लिए कुछ पिताजी तो कुछ फूफा से कह कर जुगाड़ हुआ। जाने के लिए आटा, चावल, दाल सहित कई समान घर से ले लिया और फिर सुबह शाम के नास्ते के लिए भुंजा तो था ही। जैसे जैसे जाने के दिन नजदीक आ रहे थे वैसे वैसे रीना उदास रहने लगी थी। आज दोपहर में रीना की मां मेरे घर आई थी और फुआ से गलबात हो रही थी।
‘‘ बबलुआ जा रहलो है पटना पढ़े ले, पढ़ा दे हीई, पता नै कल की होतै।’’ फुआ कह रही थी। ‘‘ आदमी के अपन करतब करे के चाही आगे ईश्वर जानथी।’’ रीना के मां ने कहा। ‘‘और रीना बउआ के की हाल है, नजर नै आबो हथीन,’’ ‘‘की नजर आइतो, पता नै की होबो हइ, छौड़ी दु दिन से खाना नै खा रहलो हें।’’ ‘‘ काहे कुछ पता नै चलो हई’’ ‘‘नै कुछ बोलै तब ने।’’ >>>
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29-08-2014, 10:44 PM | #56 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
मेरे जाने की तारीख तै हो गई। पहली बार पटना जाना था। रहने का जुगाड़ मैंने गांव के ही राजीव दा से कह कर नालान्दा मेडिकल कॉलेज अगमकुंआ के पास स्थित फार्मेसी कॉलेज के होस्टल में की थी। उन्हीं के कमरे में रहना था। जाने के लिए तीन दिन बचा था और अब मैं भी बचैन हो रहा था। जाने का मन नहीं करने लगा। पता नहीं ऐसा पहली बार घर से बाहर जाने को लेकर हो रही थी या फिर रीना को लेकर पर मन बेचैन रहने लगा। आज सुबह से मैने भी खाना छोड़ दिया । रात भर छत पर आंखों आंखो में काट दिया। रात के उस जागती आंखों में एक पत्र लिखा जिसे अहले सुबह रीना को देना चाहता था पर वह नहीं निकली और मैं और बेचैन हो गया। शाम मे अपने दालान वह बाबूजी के लिए लोटा में लेकर चाय जा रही थी। मैने मौका देख कर उसकी कलाई पकड़ ली।
‘‘ पागल नियर काहे करो ही, अपना ले जा रहलिए हें की तोरे ले।’’ ‘‘ छोड़, छोड़ जादे बाबा नै बन, तोरा की भरम हौ की तोरा बिना नै रहबै तब उहो टूट जइतै।’’ रीना एक दम भड़कती हुई बोली। तभी देखा रास्ते से महेश दा गुजर रहे थे, आम दिन होता तो मैं और वह दोनो वहां से खिसक लेते पर आज नहीं खिसका। हां मैने उसकी कलाई छोड़ दी और वहीं खड़ा रह कर पटना कोचिंग जाने की बात करने लगा। “कौची के तैयारी करे ले जा रहलीं है, डागडर बनभीं की?’’ ‘‘काहे डाक्टर गाछ से टपको है की?’’ जैसे ही महेश दा गुजरे बातचीत का टौपीक बदल गया। >>>
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29-08-2014, 10:47 PM | #57 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
रीना एक दम गुस्से में बोली हमरा से नै बरदास्त होतै, हम अकेले नै रहबै, पता नै यहां की होतऔ।
’’ अब तो हमर शादी के चर्चा भी घर में होबे लगलौ हें।’’ ‘‘कुछ नै होतई, हम अइते रहबै।’’ “उ सब कुछ नै हम जानो ही, नै जाना है तब नै जाना है।’’ ‘‘ठीक है नै जइबे।’’ पर तोरा परसों रात में पोखरिया पर हमरा से मिल ले आबे पड़तौ तब नै जइबै। बरगद के पेंड़ के नीचे।’,’ बोल, ‘मंजूर।’’ ‘‘मंजूर।’’ रीना से मिलकर जैसे घर की ओर जाने लगा वैसे ही फूफा और फूआ के झगड़ने की आवाज गूंजने लगी। घर पहुंचा तो कोहराम मचा हुआ था। फूफा और फूआ के झगड़े का कोई खास बजह नहीं होती थी पर एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता था जब दोनों में झगड़े नहीं होते हो और कभी कभी फूफा कें द्वारा फूआ की जबरदस्त पिटाई कर दी जाती थी। बचपन से यह सब देखते हुए आज किशोर हुआ था। जब मैं कमरे में गया तो फूआ रोते हुए गाली दे रही थी। ‘‘ कोढ़ीया, भंगलहवा, निरवंशा’’ मरबो नै करो हई कने से कने हमर मथवा में लिख्खल हलई’’ ‘‘हां बोलमीं नै, तकदीरवा तो हमर ,खराब हलइ जे तोरा से वियाह होलई’’ >>>
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29-08-2014, 10:51 PM | #58 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
लड़ाई का कभी कोई बड़ा कारण नहीं रहता था और ऐसा अक्सर होता रहता था। दो कमरे के इस घर मंे एक में जानवर के खाने का कटटू भुस्सा रहता था और एक में हम लोग रहते थे। यह कमरा बड़ा सा था लगभग पच्चीस बाई पच्चीस का। जब फुआ के जबरदस्त प्रतिरोध के बाद बंटबारा हुआ था तो उसके हिस्से में पुराना घर नहीं था और बैक से कर्ज लेकर और जमीन बेचकर गांव के बाहरी भाग में एक दो कमरे का घर बनाया गया जिसमे से दोनो कमरा इसी साइज का था। कमरे में ओसारा भी नहीं था और उसके बाहरी भाग में जानवर का बथान था। जानवर के नाम पर दो भैंस और एक बैल थी जिसकी सेवा ही फूफा का प्रमुख काम था। जिस कमरे में हमलोग रहते थे उसके अनाज रखने का तीन बड़ी बड़ी कोठी लगभग तीन बाई दो की चौड़ाई और आठ फुट की उंचाई रखी हुई थी। सभी कोठी फुआ ने ही अपने हाथों से बनाया था जिसमें से एक गोल कोठी मेरे चौकी के बगल में तथा दो कमरे के बीचो बीचो लगा हुआ था। जिसमें से एक कोठी दो खाना का था और सभी में अनाज भरा रहता था और वह तभी खुलता जब कभी अनाज बेच कर कुछ घर का सामान लाना रहता या फिर दवा इत्यादी खरीदनी होती।
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29-08-2014, 10:52 PM | #59 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
कोठी खोल कर अन्न निकालने का फूआ एक नियम एक दम कड़ा था, मंगल, गुरू और शनि चाहे जो हो कोठी नहीं खुलना है। फूफा के बारे मे फूआ का कहना एक दम सटीक था कि यह बतलहवा हमरे लिख हलई। गांव का एक सीधा साधा या यूं कहे बुरबक आदमी मेरे फूफा को माना जाता था। गांव से बाहर कभी अकेले नहीं गए। उन्हें चिढ़ाने के लोग अक्सर कहा करते आयं सुराज थाना का मुंह किधर है हो और वह उसको गरियाने लगते। उन्हें पुरब पश्चिम का ज्ञान नहीं था हां एक बात उनमें जबरदस्त थी वह था अपने जानवरों से उनका लगाव। वह सीधा कहते जानवर तो भगवान है, निमूंहा धन, गौरक्षणी होबों है। लड़ाई का ज्यादा कारण जानवर ही होता था। आज भी जानवर को लेकर दोनों में ठनी हुई थी। कारण था जानवर को फूफा ने आज फिर से चोरी कर गेंहू का आंटा कटटू में मिला कर दे दिया था। अक्सर जब वे सानी-पानी लगाते थे तो फुआ घर में रहती थी पर आज वह बाहर गई हुई थी कि उन्होने ने मौका देखा आटा मिला दिया। तभी फूआ आ गई।
‘‘आदमी कें खाना नसीब नै है, मुदा तोरा जानवर के खाइले आंटा चाही, कोढीया के कामाबे में भार पड़ो है और घर के समानवां बरबाद करो है।’’ बरबाद कौची, इहे लक्ष्मी सब कमा के दे हखीन की तों।’’ >>>
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29-08-2014, 10:53 PM | #60 |
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Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
और फिर महाभारत शुरू। दोनों के अंदर एक अजीब सी कुंठा थी, खालीपन भी। अपना बच्चा नहीं होने को लेकर वे कफी परेशान थे और गांव में उनका जीना दुभर हो गया था। बच्चे को लेकर अनपढ़ होते हुए भी दोनों ने किसी न किसी गांव कंे लोग को पकड़ कर पटना के शांति राय से लेकर कहां कहां ईलाज नहीं कराया और कौन कौन ओझा गुणी से नहीं दिखाया। अभी हाल ही में एक मात्र मेरी प्यारी छोटी सी गाय को एक ओझा ने दोनों से ठग लिया था। किसी ने बताया था कि बहुत पहूंचे हुए है और फिर दोनों ने उन्हें घर बुलाया टोना टोटका हुआ। ओझा आते ही अपनी ओझई दिखाने लगा और उसने नास्ते के रूप में एक कटौरा शुद्व देशी धी पी गया उसके अनुसार यही उसका भोजन है। और फिर उसने जाते जाते एक मात्र देशी मेरी प्यारी गाय को फूआ से दक्षिणा के रूप में मांग लिया।
फूआ फूफा को पगला कहते और फुफा पगली। यह प्रेम की अभिव्यक्ति का एक सशक्त तरीका था। लड़ाई चाहे जितनी हो पर दोनों का प्रेम भी अमर था और अक्सर फूफा ही मनाने मे जुट जाते- ‘‘खा ले पगली, फेर तबीयताबा खराब हो जइतौ’’। और फिर सबकुछ सामान्य। फूफा का एक गुण या अवगुण भी अक्सर घर में कलह का कारण बनता और वह था उनके गप्पी होने की आदत। घर से खेत जाना हों या खलिहान, पानी लाना हो या हरीयरी उनको घंटो लग जाते। जो भी रास्ते में मिल जाता उसे टोक कर बतियाने लगते। >>>
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