11-05-2014, 08:20 AM | #51 |
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Re: माँ
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
11-05-2014, 08:22 AM | #52 |
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Re: माँ
माँ कह एक कहानी
"माँ कह एक कहानी।" "बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?" "कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी? माँ कह एक कहानी।" "तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे, तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।" "जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।" "वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।" "लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।" "गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।" "हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!" "चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया, इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।" "लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।" "माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी, तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।" "हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।" "हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में, गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सब ने जानी।" "सुनी सब ने जानी! व्यापक हुई कहानी।" राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?" कह दो निर्भय जय हो जिसका, सुन लूँ तेरी वाणी" "माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी। कोई निरपराध को मारे तो क्यों न अन्य उसे उबारे? रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।" "न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।" - मैथिलीशरण गुप्त
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11-05-2014, 08:25 AM | #53 |
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Re: माँ
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11-05-2014, 08:25 AM | #54 |
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Re: माँ
अम्मा चिंतन दर्शन जीवन सर्जन रूह नज़र पर छाई अम्मा सारे घर का शोर शराबा सूनापन तनहाई अम्मा उसने खुद़ को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है, धरती अंबर आग हवा जल जैसी ही सच्चाई अम्मा सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी गर्म हवा आतिश अंगारे झरना दरिया झील समंदर भीनी-सी पुरवाई अम्मा घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे चुपके चुपके कर देती थी जाने कब तुरपाई अम्मा बाबू जी गुज़रे, आपस में- सब चीज़ें तक़सीम हुई तब- मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा - आलोक श्रीवास्तव
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11-05-2014, 08:27 AM | #55 |
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Re: माँ
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11-05-2014, 08:28 AM | #56 |
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Re: माँ
अम्मा चली गई
पूजा-घर का दीप बुझा है अम्मा चली गई. अंत समय के लिए सहेजा गंगा-जल भी नहीं पिया इच्छा तो कितनी थी लेकिन कोई तीरथ नहीं किया बेटों पर विश्वास बडा था आखिर छली गई. लोहे की संदूक खुली भाभी ने लुगडे छाँट लिये औ' सुनार से वजन करा कर सबने गहने बाँट लिये फिर उजले संघर्षो पर भी कालिख मली गई. रिश्तेदारों की पंचायत घर की फाँके, चटखारे उसकी इच्छाओं, हिदायतों सपनों पर फेरे आरे देख न पाती बिखरे घर को अम्मा! भली गई -शशिकांत गीते
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11-05-2014, 08:29 AM | #57 |
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Re: माँ
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11-05-2014, 08:30 AM | #58 |
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Re: माँ
अंधियारी रातों में
अंधियारी रातों में मुझको थपकी देकर कभी सुलाती कभी प्यार से मुझे चूमती कभी डाँटकर पास बुलाती कभी आँख के आँसू मेरे आँचल से पोंछा करती वो सपनों के झूलों में अक्सर धीरे-धीरे मुझे झुलाती सब दुनिया से रूठ रपटकर जब मैं बेमन से सो जाता हौले से वो चादर खींचे अपने सीने मुझे लगाती -अमित कुलश्रेष्ठ
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11-05-2014, 08:30 AM | #59 |
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Re: माँ
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11-05-2014, 09:34 AM | #60 |
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Re: माँ
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया........ मुन्नवर राणा
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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