15-01-2013, 04:31 AM | #51 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
15-01-2013, 04:32 AM | #52 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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15-01-2013, 04:32 AM | #53 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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15-01-2013, 04:32 AM | #54 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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15-01-2013, 04:32 AM | #55 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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15-01-2013, 04:33 AM | #56 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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15-01-2013, 04:33 AM | #57 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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15-01-2013, 04:33 AM | #58 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
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19-01-2013, 04:49 PM | #59 |
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Re: बचपन :हमेशा याद आने बाले दिन
बच्चे मन के सच्चे
स्कूल में पढ़ाते हुये कितने ही अनुभव होते रहते हैं। कुछ खट्टे, कुछ मीठे...कई छोटी-छोटी घटनायें होती रहती हैं, मगर ज़्यादातर ही, ये घटनायें मानसपटल के किसी कोने में कुछ दिनों के लिये कैद होती हैं और फिर धीरे-धीरे धूमिल। बच्चों की बातें, अक्सर ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान बिखेर जाती है। कल क्रिसमस की छुट्टियों के पहले आखिरी दिन था स्कूल का। पढ़ाई कम, गिफ़्ट-एक्सचेंज और खेल ज़्यादा। सभी बहुत खुश थे, बच्चे, टीचर, सभी...माहौल छुट्टियों का, क्रिसमस का... रीसेस के बाद, बच्चे कक्षा में आकर बैठने लगे थे। सबके कक्षा में आने का इंतज़ार कर रही थी मैं कि एक बच्ची आ कर उदास चेहरे से अपनी सीट पर अनमनी हो बैठी। कक्षा तीसरी की वह बच्ची, बहुत होशियार और मिलनसार है। मैं उसके पास गई और पूछा- "क्या हुआ बेटा? आप इतनी उदास क्यों बैठी हैं? " "कुछ नहीं..." "अच्छा, अभी बाहर रीसेस में कुछ हुआ? किसी सहेली या दोस्त से अनबन हो गई? क्या बात है?" "नहीं कुछ नहीं... " "अच्छा जब तक तुम अपनी भावनाओं के बारे में बताओगी नहीं कैसे पता चलेगा? इसलिये अपने दिल की बात कह देना सबसे अच्छा होता है। क्या हुआ है?" "वो...वो...जेनेट है न, वो रिचर्ड को, वो जो कक्षा दूसरी में है...उसे पसंद करती है। तो क्रिसमस के लिये रिचर्ड ने जेनेट को फूल और ज्वूलरी दी है। तो जेनेट उसी के साथ खेल रही है। मेरे साथ नहीं खेल रही।" एक बार मन ही मन हँस पड़ी मैं। कक्षा दूसरी का ७ साल का बच्चे का कक्षा तीसरी की ८ साल की बच्ची को पसंद करना और इस बच्ची का बहुत ही सीरियसली इस वाकये का कहना और फिर उसे कोई ऐसा तोहफ़ा न मिल पाने का गम...मैं ने अपनी मुस्कान छुपा कर उतने ही गंभीरता से कहा, "अच्छा, तो ये बात है। जेनेट तो तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त है, तुम दोनों ही एक क्लास में हो तो उसे बताओ कि तुम भी उसके साथ खेलना चाहती हो, और रिचर्ड भी तो तुम्हारा दोस्त है, तीनों साथ-साथ खेलो।" "पर वो नहीं खेलते मेरे साथ अब..." "अच्छा तो ऐसा करो, उन्हें बताओ कि इस से तुम्हारी भावनायें आहत होती हैं। और फिर उन्हें भी थोड़ा खेलने दो, तुम्हारे और भी कितने अच्छे दोस्त हैं, उनके साथ भी खेलो..है न? "ह्म्म्म...." बच्चे आहत होते हैं तो परिष्कार मन से कह देते हैं। और हम...अपने अहम में, और भी जाने कितनी बातें सोच कर कह नहीं पाते...और क्या सब समझ ही पाते हैं?
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12-02-2013, 05:55 PM | #60 |
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Re: बचपन : हमेशा याद आने वाले दिन
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