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Old 13-06-2012, 03:59 AM   #651
Dark Saint Alaick
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

आदिमानव ने बनाए थे डायनोसोर के जीवाश्मों से घातक हथियार

इंदौर। मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी में मानवीय सभ्यता के सिलसिलेवार विकास के अहम सुरागों से परदा हटाते हुए खोजकर्ताओं के एक समूह ने रविवार को दावा किया कि आदिमानव ने ‘इत्तेफाक से’ डायनोसोर की हड्डियो के जीवाश्मों का इस्तेमाल शिकार के लिए हथियार बनाने में किया था। ‘मंगल पंचायतन परिषद’ के प्रमुख विशाल वर्मा ने बताया कि हमें नजदीकी धार जिले में डायनोसोर की हड्डियो के जीवाश्मों से बने आठ दुर्लभ हथियार मिले हैं। ये हथियार आदिमानव ने बनाए थे और इनके 10 हजार से एक लाख साल पुराने होने का अनुमान हैं। उन्होंने बताया कि इनमें हैंड ऐक्स (कुल्हाड़े की तरह चोट करने वाला धारदार हथियार), तीर के अगले हिस्से की तरह नुकीले अस्त्र और ब्लेड सरीखे तेज धार वाले हथियार शामिल हैं। आदिमानव इन घातक हथियारों का इस्तेमाल शिकार करने और इसके बाद मरे जानवर के शरीर से खाने लायक मांस निकालने में करता था। वर्मा ने कहा कि आदिमानव को स्वाभाविक तौर पर यह अंदाजा नहीं था कि वह जिन पत्थरों को हथियार बनाने के लिए तराश रहा है, वे दरअसल डायनोसोर की हड्डियों के जीवाश्म हैं। उन्होंने कहा कि आदिमानव का हथियार बनाने के लिए डायनोसोर की हड्डियो के जीवाश्मों का इस्तेमाल संयोग ही था। लेकिन उसने इन जीवाश्मों को इसलिए चुना होगा, क्योंकि ये आम पत्थरों के मुकाबले नरम होते हैं और इन्हें आसानी से मनचाहा आकार दिया जा सकता है। खोजकर्ता समूह के प्रमुख ने बताया कि हमें इस प्रक्रिया के सबूत मिले हैं कि आदिमानव ने किस तरह डायनोसोर की हड्डियो के जीवाश्मों को पत्थर समझकर चट्टानों से बाहर निकाला और इन्हें तराशकर हथियार बनाए। हमें इन जीवाश्मों के वे अवशेष भी मिले हैं, जो आदिमानव के हथियार तराशे जाने के बाद बच गए थे। वर्मा ने बताया कि उनके खोजकर्ता समूह को जिस स्थान से आदिमानव के बनाए दुर्लभ हथियार मिले हैं, वह जगह करीब 12 करोड़ साल पुरानी नर्मदा घाटी का हिस्सा है। उन्होने बताया कि हमें ये हथियार उसी क्षेत्र से मिले हैं, जहां से हम डायनोसोर के कम से कम साढ़े छह करोड़ साल पुराने जीवाश्म ढूंढ चुके हैं। हमारा अभियान फिलहाल जारी है। इसमें ऐसे और हथियार मिलने की उम्मीद है। वर्मा ने कहा कि उनका समूह नर्मदा घाटी में इस बात के प्रमाण पहले ही ढूंढ़ चुका है कि आदिमानव ने हथियार बनाने के लिए पेड़ों के जीवाश्मों का इस्तेमाल भी किया था। घाटी में नदियों के किनारे आदिमानव के बनाए पाषाण हथियार बहुतायत में मिलते हैं। ‘मंगल पंचायतन परिषद’ ने तब पहली बार दुनिया भर का ध्यान खींचा था, जब इसने वर्ष 2007 के दौरान धार जिले में डायनासोर के करीब 25 घोंसलों के रूप में बेशकीमती जुरासिक खजाने की चाबी ढूंढ निकाली थी। वर्मा के मुताबिक इन घोंसलों में डायनोसोर के सौ से ज्यादा अंडों के जीवाश्म मिले थे। इनमें सबसे दुर्लभ घोंसला वह था, जिसमें इस विलुप्त जीव के 12 अंडों के जीवाश्म एक साथ मिले थे। उन्होने कहा कि वह अब तक डायनोसोर के 150 से ज्यादा अंडों के जीवाश्म ढूंढ चुके हैं।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

फिश स्पा एवं पेडिक्योर से फैल रही हैं बीमारियां

नई दिल्ली। सुंदर और स्मार्ट दिखने की बढ़ती होड़ के कारण महिलाओं में विशेष मछलियों के जरिए स्पा एवं पेडिक्योर कराने का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है लेकिन इसके कारण गंभीर बीमारियां एवं संक्रमण फैल रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि फिश पेडिक्योर के कारण एड्स, सोरायसिस एक्जीमा एवं अन्य त्वचा रोग फैल रहे हैं। एशियन इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंसेस (एआईएमएस) के वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ डा. अमित बांगिया कहते हैं ये मछलियां खुद कई तरह के जीवाणुओं एवं बीमारियों को फैलाती हैं और साथ ही फिश स्पा एवं पेडिक्योर के दौरान एक व्यक्ति के संक्रमण दूसरे तक पहुंचते है। कई मामलों में संक्रमण इतने गंभीर होते हैं कि पैर काटने की नौबत आ जाती हैं, खास कर वैसे लोगों में जो मधुमेह से पीड़ित होते हैं। फिश स्पा एवं पेडिक्योर के तहत गर्रा रूफा प्रजाति की मछलियों से हाथों और पैरों की मृत त्वचा की सफाई कराई जाती है। ये मछलियां टर्की से मंगाई जाती है। इन मछलियों के दांत नहीं होते, इसलिए स्पा कराने पर दर्द नहीं होता। अब कई पार्लरों एवं ब्यूटी सेंटरों ने घर-घर जाकर भी फिश स्पा देने की सेवा शुरू कर दी है। देश के महानगरों में फिश स्पा कराने वाले सेंटरों की भरमार हो गई है जहां फिश स्पा एवं पेडिक्योंर करने की फीस 150 रुपए से लेकर 500 रुपए तक होती है। इन सेंटरों की ओर से दावा किया जाता है फिश स्पा के बाद त्वचा चिकनी हो जाती है तथा इससे त्वचा सम्बंधी कई बीमारियों में भी लाभ पहुंचता है। हालांकि इन दावों को अभी तक साबित नहीं किया जा सका है। दूसरी तरफ नए अध्ययनों से पता चला है कि यह कई तरह की बीमारियों को न्यौता देता है। यही नहीं यह सामान्य स्क्रब से अधिक असरदार नहीं होता है। डा. वांगिया का कहना है कि मधुमेह के मरीजों, कम रोग प्रतिरक्षण क्षमता वाले लोगों एवं त्वचा रोगों से पीड़ित लोगों को फिश स्पा कराने से बचना चाहिए। इसके अलावा स्पा के पानी एवं इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को अच्छी तरह से किटाणुमुक्त स्टेरेलाइज किया जाना चाहिए तथा पानी का दोबारा इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। फिश स्पा में इस्तेमाल होने वाली मछलियां बेहद महंगी होती हैं इसलिए भारत में कई सेंटरों पर इसी परिवार से सम्बंधित प्रजाति चिन-चिन या उनसे मिलती-जुलती मछलियोंं का इस्तेमाल किया जाता है जिनमें से कई काटती भी हैं और एक दूसरे तक ये मछलियां जीवाणुओं एवं विषाणुओं को फैलाती रहती हैं। ज्यादातर सेंटरों में फिश स्पा के पानी की सफाई पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। इस पानी को साफ एवं जीवाणुओं से मुक्त रखने के लिए फिल्टरेशन, ओजोनाइजर तथा अल्ट्रावायलेट किरणों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा कम ही सेंटरों में होता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि बार-बार स्पा एवं पेडिक्योर कराने से अंदर की ओर बढ़ने वाले नाखूनों में समस्या हो सकती है। पेडिक्योर कराने के दौरान नाखूनों की ऊपरी परत को रगड़ा जाता है, जिससे इसकी ऊपरी परत घिसती है और साथ ही साथ इसकी नमी भी खत्म होने लगती है और नाखून कमजोर हो जाते हैं। फिश स्पा की शुरूआत टर्की में कनगाल नामक स्थान पर गर्म पानी के सोते से हुई, जहां पर वर्ष 1917 में एक स्थानीय चरवाहे ने गर्रा रूफा मछली द्वारा चिकित्सकीय लाभ का पता लगाया। कहा जाता है कि गर्रा रूफा मछली डाइर्थाइनोल नामक एन्जाइम उत्सर्जित करती है, जो त्वचा में नया जीवन भरते हैं। लेकिन नए अध्ययनों से पता चलता है कि ये मछलियां संक्रमण एवं बीमारियां फैलाने वाले जीवाणुओं को भी अपने साथ लाती हैं। इनमें से कुछ बैक्टीरिया पर तो एंटीबायोटिक का भी असर नहीं पड़ता है। चिकित्सकों का कहना है कि फिश स्पा एवं पेडिक्योर कराने से एडसएचआईवी के चपेट में आने का खतरा हो सकता है, खास तौर पर तब जब आपके पैरों में जख्म हो। डा. बांगिया के अनुसार जब मछलियां पैरों एवं हाथों से मृत कोशिकाओं को काटती है ऐसे में अगर पैरों में जख्म या वे कहीं से कट गए हों तो रक्त बहने लगता है। चूंकि कई महिलाओं या पुरूषों को एक ही टब में स्पा दिया जाता है और इस कारण एड्स तथा एचआईवी जैसे संक्रमणों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं आम तौर पर ज्यादातर सेंटरों में कई-कई दिनों तक स्पा टब का पानी भी नहीं बदला जाता। ऐसे में जब एचआईवी संक्रमित या हेपेटाइटिस सी के मरीज स्पा में आते हैं और अगर इनके हाथ तथा पांव पर घाव होते हैं, तो मछलियां इन जख्मों को कुरेद देती हैं। कुरेदे गए जख्म से रक्त का रिसाव होता है जो पानी को संक्र मित कर देता है और जब अन्य महिलाएं इस पानी के संपर्क में आती हैं तो उनके विषाणुओं के चपेट में आने का खतरा बहुत बढ़ जाता है। यही नहीं जिन लोगों को मधुमेह और सोरायसिस जैसी बीमारी हैं, उनके लिए संक्रमण होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। इसके अलावा, जिनकी रोग प्रतिरक्षण क्षमता कमजोर है उन्हें फिश स्पा लेने से बचना चाहिए।
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Old 13-06-2012, 04:01 AM   #653
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परेशानी में फंसे मनुष्यों की मदद का प्रयास करते हैं कुत्ते

लंदन। जरूरत पर काम आने वाले ही सच्चे मित्र होते हैं ... यह कहावत कुत्तों पर भी चरितार्थ होती है, क्योंकि अध्ययनकर्ताओं के अनुसार मनुष्य के परेशान होने की स्थिति में वे उससे सटकर और चाट कर उसे राहत देने का प्रयास करते हैं। अठारह पालतू कुत्तों का उनके मालिकों के साथ यह अध्ययन किया गया। इन कुत्तों को अज्ञात लोगों के पास उस समय ले गया, जब वे रोने या चिड़चड़ाने का अभिनय कर रहे थे। ऐसे लोगों के पास और भी कुत्ते आ गए और उन्होंने लोगों को स्पर्श किया। डेली मेल की खबर के अनुसार जब कुत्तों को लगता है कि कोई मनुष्य परेशान है, तो वह उसे स्पर्श करते हैं और उसे चाटते हैं। लंदन विश्वविद्यालय, गोल्डस्मिथ के डा. देबराह कस्टांस ने बताया कि कुत्ते रोने और चिड़चिड़ाने के बीच फर्क महसूस करते हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि रोने पर उनकी प्रतिक्रिया महज जिज्ञासा वाली नहीं होती। गोल्डस्मिथ के मनोविज्ञान विभाग के कस्टांस और जेनिफर मेयर ने यह अध्ययन किया था।
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Old 13-06-2012, 04:01 AM   #654
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मलेशिया में बच्चों से सबसे अधिक बुरा बर्ताव करती हैं मां

कुआलालंपुर। मलेशिया में एक नए अध्ययन के अनुसार देश में बच्चों से बुरा बर्ताव करने में माताएं सबसे आगे हैं। महिला, परिवार एवं सामुदायिक विकास उपमंत्री हेंग सी की ने बताया कि पिछले तीन साल के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकतर अभिभावक, मुख्य तौर पर मां, ही बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। उन्होंने कल ‘एसोसिएशन आफ रजिस्टर्ड चाइल्ड केयर प्रोवाइडर्स मलेशिया’ के तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि बाल दुर्व्यवहार के 25.4 फीसदी मामलों में माताएं दोषी पाई गईं, जबकि 18.9 फीसदी मामलों में पिता दोषी पाए गए। कुल मिला कर पिछले साल बाल दुर्व्यवहार के 44.3 फीसदी मामलों में अभिभावक शामिल थे।
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Old 13-06-2012, 04:01 AM   #655
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चीन में नई विशेषताओं के साथ सैनिकों की मिट्टी की मूर्तियां बरामद

बीजिंग। चीन के पुरातत्वविदों ने शांझी प्रांत के झियान शहर में चीन के पहले शासक किन शी हुआंग के कब्रिस्तान की खुदाई से नई विशेषताओं वाली मिट्टी से बनी सैनिकों की मूर्तियां बरामद हुई हैं। खुदाई के काम में भाग लेने वाले पुरातत्वविद युआन झांग्यी ने कहा कि खुदाई में मिट्टी से बनी सैनिकों और युद्ध के घोड़ों की मूर्तियों, दो रथों, कुछ हथियारों, ड्रम और ढाल सहित कई चीजों के 314 टुकड़े मिले हैं। युआन ने कहा कि ढाल सबसे रोचक खोज है क्योंकि इस संबंध में पिछली तीन खुदाइयों में कोई ढाल कभी बरामद नहीं हुआ। करीब 70 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा ढाल एक रथ के दाईं ओर बरामद हुआ।
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Old 14-06-2012, 11:12 AM   #656
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डीजल का धुआं बनता है कैंसर का कारण

लंदन। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का कहना है कि वाहनों में प्रयुक्त होने वाले डीजल का धुंआ फैंफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है। संगठन की फ्रांस स्थित कैंसर इकाई द्वारा मंगलवार को जारी किए गए बयान में कहा गया कि डीजल का धुंआ फैंफड़ों के कैंसर का तो कारण बनता ही है इसके अलावा लंबे वक्त तक इसके प्रभाव में आने की वजह से ब्लैडर का कैंसर भी हो सकता है। संगठन ने कैंसर का सर्वाधिक कारक समझे जाने वाले पदार्थों की सूची में डीजल को भी डाल दिया है। इस सूची में एस्बेस्टोस, आर्सेनिक और मस्टर्ड गैस जैसे खतरनाक पदार्थ शामिल हैं। संगठन ने बताया कि उन्होंने वैज्ञानिक शोध के आधार पर यह फैसला लिया है। विश्वभर के लोगों को जारी की गई चेतावनी में डीजल के धुंए से जितना संभव हो उतना बचाव करने की सलाह दी गई है। डब्लूएचओ ने यह फैसला सप्ताह भर तक विभिन्न शोधकर्ताओं के बीच चली बैठक के बाद लिया। इस बैठक में इन शोधकर्ताओं ने डीजल और गैसोलीन के धुंए से कैंसर होने सम्बंधी वैज्ञानिक शोधों का आंकलन करने का प्रयास किया था। डब्लूएचओ के इस कदम के बाद से वाहन निर्माता कंपनियां सकते में आ गई हैं। यूरोपीय आॅटोमोबाइल निर्माता संघ की प्रवक्ता सिग्रीड डे वेराइस ने कहा कि हमें डब्लूएचओ के इस कदम पर हैरानी है। मौजूदा समय में डीजल का उत्पादन बेहद स्वच्छ तकनीक के जरिए होता है। आॅटोमोबाइल उद्योग इस मामले में एक स्वतंत्र शोध कराएगा। उल्लेखनीय है कि भारत और पश्चिमी यूरोपीय देशों में डीजल की सस्ती कीमत के कारण इससे चलने वाले वाहन खासे लोकप्रिय हैं। दूसरे देशों में सिर्फ व्यवसायिक वाहनों में डीजल का इस्तेमाल किया जाता है। विश्वभर में वर्ष 2008 में कैंसर ने 76 लाख लोगों की जान ली थी। इनमें से फैंफड़ों के कैंसर के 18 फीसदी मामले सामने आए थे।
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Old 20-06-2012, 01:49 AM   #657
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कोलोन कैंसर की दवा तैयार करने का दावा
जल्द होगा क्लीनिकल परीक्षण, कीमोथेरेपी के प्रतिकूल प्रभावों से होगा बचाव

जालंधर। अनुसंधानकर्ताओं ने मलाशय के कैंसर की दवा तैयार करने का दावा किया है और उनका कहना है कि इसके सेवन से मरीज कीमोथेरेपी के प्रतिकूल प्रभावों से बच सकता है, क्योंकि इलाज के दौरान यह दवा उसी भाग में पहुंचेगी जहां कैंसर है। इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होगा। इस दवा का क्लीनिकल परीक्षण जल्दी ही किया जाएगा। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के अप्लाइड मेडिकल साइंस विभाग की कुलसचिव डॉ. मोनिका गुलाटी ने बताया कि हमारी टीम ने मलाशय के कैंसर के इलाज के लिए एक ऐसी दवा इजाद की है, जिससे कीमोथेरेपी से इलाज के दौरान होने वाले दुष्प्रभाव जैसे दर्द होना और बाल झड़ने जैसी समस्या जल्दी ही बीते दिनों की बात हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हमने दवा (एंटी कैंसर माइक्रोस्फेयर) का एक नया ‘डोजेज फॉर्म’ विकसित किया है जो मलाशय के कैंसर के इलाज से होने वाले दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने में सक्षम होगा। मोनिका ने बताया कि दवा में प्री बायोटिक्स (शरीर के लिए जरूरी बैक्टीरिया का भोजन) की कोटिंग की गई है। दवा सेवन के बाद जब कैंसर वाले भाग तक पहुंचती है तब तक बैक्टीरिया उस कोटिंग को खाता है और मलाशय में पहुंचने के बाद वह दवा खुल जाती है। इस प्रकार दवा का असर केवल मलाशय पर होता है, शरीर के अन्य भागों पर नहीं। कीमोथेरेपी के दौरान अभी पूरे शरीर में दवा दी जाती है जिससे मरीज को तेज दर्द होता है। मोनिका ने कहा कि जानवरों पर इस दवा के परीक्षण में सफलता मिली है। जल्द ही इसका क्लीनिकल परीक्षण किया जाएगा। यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति अशोक मित्तल ने बताया कि इस दवा का पेटेंट 140 देशों में प्रकाशित करवाया गया है और देहरादून की एक दवा निर्माता कंपनी रिहडबर्ग के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं। इस बीच नई दिल्ली स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजीव सूद ने कहा कि नैनो टेक्नोलॉजी और कई तकनीक ऐसी हैं, जिनमें दवा पर कोटिंग कर उस स्थान पर भेजा जाता है जहां समस्या है। उन्होंने कहा कि कैंसर या अन्य बीमारियों के इलाज के लिए कोटिंग वाली दवाओं का उपयोग नया नहीं है। लेकिन इसके लिए यह देखना पड़ता है कि कैंसर किस अवस्था में है और क्या वह ऐसी दवा से ठीक हो सकता है या कीमोथेरेपी जरूरी है? उन्होंने कहा कि इसके अलावा, क्लीनिकल परीक्षण में सकारात्मक नतीजे मिलने पर ही किसी दवा की सफलता सुनिश्चित होती है। भारत में ‘ड्रग कंट्रोलर आॅफ इंडिया’ और ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ ऐसे क्लीनिकल परीक्षण करते हैं। नई दवा की सफलता भी इन परीक्षणों पर निर्भर करेगी।
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बच्चों को भी कुछ देने में मिलती है खुशी: अध्ययन

टोरंटो। किसी को कुछ देने का विचार ही व्यक्ति को किसी से कुछ लेने से अधिक रोमांचित करता है और अब एक नए अध्ययन में पाया गया है कि यदि आप एक छोटे बच्चे हैं तो भी आपको कुछ देने में अधिक खुशी मिलती हैं। ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को उस वक्त अधिक खुशी मिलती है, जब वे किसी से कुछ लेने के बजाय किसी को कुछ देते हैं। इसमें सबसे अधिक दिलचस्प यह है कि वे उस वक्त अधिक खुश होते है, जब बनावटी बर्ताव करने के बजाय वे किसी के साथ स्वाभाविक बर्ताव करते है। इन निष्कर्षों का पब्लिक लाइब्रेरी आॅफ साइंस के आनलाइन जनरल में प्रकाशित अनुसंधान भी समर्थन करता है, जिसमें कहा गया है कि व्यस्कों को दूसरों की मदद करने में अच्छा लगता है और इसमें विवरण दिया गया है कि क्यों लोग दूसरों की सहायता करने में अपने पैसे तक खर्च कर देते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया है कि यह पहला अध्ययन है, जो बताता है कि बच्चों को दूसरों की मदद करने में अधिक खुशी मिलती है। अध्ययन की अगुआ डा. लारा अकिन ने बताया कि लोगों की ऐसी सोच है कि बच्चे स्वाभाविक तौर पर स्वार्थी होते हैं। मगर इसमें यह दिखाया गया है कि वास्तव में बच्चों को कुछ लेने की बजाय देने में खुशी मिलती है। अध्ययन के दौरान सभी बच्चों के खाने के सामान को लेकर कुछ अलग बर्ताव देखने को मिले थे। इसके कुछ मिनट बाद बच्चों ने कठपुतली या खिलौने को दूर करने के लिए कहा था। इसके अलावा बच्चों के साथ अलग बर्ताव किया गया और उनसे खिलौने देने के बारे में कहा गया। बच्चों की प्रतिक्रियाओं का वीडियो टेप तैयार किया गया और बाद में खुशी का सात सूत्रीय पैमाने पर मूल्यांकन किया गया। बच्चों के साथ शोधकर्ता द्वारा किए गए बर्ताव के बनिस्बत कठपुतली या खिलौने के साथ उनके स्वयं के व्यवहार में अधिक खुश देखा गया। डा. अकिन ने बताया कि इन निष्कर्षों में सबसे रोमांचक बात यह रही कि अपने स्वाभाविक बर्ताव से कुछ देने में बच्चों को अधिक खुश पाया गया। अपने कीमती सामान दूसरों के फायदे के लिए किसी को देने में वे अधिक खुशी महसूस करते हैं।
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कुत्तों पर पाई जाने वाली धूल ,रखेगी बच्चों को दमा से दूर

वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह पाया है कि घरेलू कुत्तों की त्वचा पर पाई जाने वाली धूल में बचपन में होने वाली दमे की बीमारी के जीवाणुओं से लड़ने की क्षमता होती है। उन्होंने कहा कि यह खोज आने वाले समय में बच्चों में दमा की चिकित्सा विधि में परिवर्तन लाएगी। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा मादा चूहे पर किए गए प्रयोग में उसे घरेलू कुत्ते पर पाई जाने वाली धूल खिलाई गई और यह पाया गया कि इसमें श्वसन सम्बन्धी संक्रमण के वाहक जीवाणु ‘रेस्पिरेट्री सिंक्टियल वाइरस’ (आरएसवी) से लड़ने की क्षमता थी। एक अध्ययनकर्ता की फूजीमूरा ने बताया कि आरएसवी संक्रमण आमतौर से नवजात शिशुओं में पाया जाता है जो बाद में होने वाली श्वास की गंभीर बीमारियों का लक्षण है। बचपन में हुए संक्रमण का बाद में अस्थमा में परिवर्तित हो जाने का खतरा बना रहता है। सैनफ्रांसिस्को में ‘अमेरिकन सोसाइटी आफ माइक्रोबायोलॉजी’ की एक बैठक में यह जानकारियां दी गई।
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Old 21-06-2012, 12:50 AM   #660
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अधिकांश उपभोक्ता अच्छे फीचर्स को देते हैं तवज्जो

शिकागो। कई सारे उत्पादों में से आप एक उत्पाद कैसे चुनते हैं। एक नए अध्ययन में यह पाया गया कि जिन उपभोक्ताओं के पास किसी उत्पाद की कम जानकारी होती है, वे उसी तरह के और उत्पादों से उनकी तुलना करके अपना चुनाव करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, कंपनियां बिना यह जाने कि उपभोक्ता कई विशेषताओं वाले उत्पाद के स्थान पर एक बेहतर उत्पाद को प्राथमिकता देते हैं, अपने संसाधनों का बड़ा हिस्सा नए और अनोखी विशेषताओं वाले उत्पाद को पेश करने में खर्च कर देती हैं। सिंगापुर के इंसीड बिजनेस स्कूल के म्यूंगवू नैम, लोवा विश्वविद्याालय के जिंग वांग व नॉर्थ वेस्टर्न विश्वविद्याालय की एंजिला ली की संयुक्त टीम ने ‘जरनल आफ कंज्यूमर रिसर्च’ में अपनी जानकारियां विस्तार से दी। अध्ययन में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों जैसे मोबाइल फोन्स, डिजिटल कैमरा, एमपी3 प्लेयर व लैपटॉप को शामिल करने पर टीम ने पाया कि उपभोक्ताओं को विशेषता प्रभावित करती है लेकिन वे सामान्य फीचर्स व अतिरिक्त फीचर्स में अन्तर करके ही उत्पादों को खरीदते हैं। नौसिखिए सामान्य फीचर्स वाले उत्पादों पर भरोसा करके जबकि विशेषज्ञ उपभोक्ता अनोखे एवं ज्यादा फीचर्स को ध्यान में रखकर उत्पादों को खरीदते हैं। टीम के अनुसार कंपनियों को विशेषज्ञ और नौसिखिए उपभोक्ताओं के बीच फर्क करना चाहिए। विशेष उपभोक्ताओं के लिए अनोखे फीचरों व कम जानकारी रखने वाले ग्राहकों के लिए मौजूदा फीचरों में ही अधिक सुधार के साथ उत्पादों को पेश करना चाहिए।
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