20-08-2014, 03:00 PM | #661 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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और गले का हार हुयी सुबह सुबह जब नीद से जगे आँख उन्ही से चार हुयी
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20-08-2014, 07:48 PM | #662 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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यूं ही सोचता हूँ मैं अक्सर, तुझे किस तरह सजा दूँ मैं, तेरी आरज़ू करूँ और फिर, तेरा ख़याल तक भुला दूँ मैं.......
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20-08-2014, 11:05 PM | #663 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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खड़ा हुआ हूँ मैं बस की कतार में अब भी ज़माना हो गया तुमसे मिले हुये 'अलवी' तुम्हारा नाम है यारों के यार में अब भी (मुहम्मद अलवी)
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21-08-2014, 06:19 AM | #664 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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कौन अपने नर्म आँचल की हवा देगा मुझे कौन अब पूछेगा मुझसे मेरी माज़ूरी का हाल कौन बीमारी में जिद करके दवा देगा मुझे
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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21-08-2014, 07:45 PM | #665 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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झूटे इश्क के गुलशन को गुल गुज़ार न कर! ऐ नादान इंसान कभी किसी से प्यार न कर! बहुत धोखा देते हैं मोहब्बत में हुस्न वाले, इन हसीनो पर भूल कर भी ऐतबार न कर!
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21-08-2014, 08:29 PM | #666 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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रब कभी कुछ नहीं दिया करता रात-दिन घंटियाँ बजाने से
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21-08-2014, 08:48 PM | #667 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
साँसें सुरभित हो आयी हैं, प्रिय के मधुर स्मरण का क्षण है
प्रिय की स्मृति में डूब रहा हूँ, मुझको यह पूजन का क्षण है (चन्द्रसेन विराट)
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21-08-2014, 11:32 PM | #668 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हादसों के दौर में इक हादसा यह भी हुआ क़ातिलों को अपने दिल के ज़ख्म दिखलाने पड़े
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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22-08-2014, 10:12 PM | #669 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
डेरे डेरे डोलुं बावरिया रे, जाने सजना है कौन नगरीया रे।
एक झलक तेरी मील जाए, ये पलक मेरी लग जाए, जियरा को मेरे थोडा चैन आये रे....जाउं तो जाउं कोन नगरिया रे... डेरे डेरे डोलुं बावरिया रे, जाने सजना है कौन नगरीया रे। प्रसुन जोशी (अब के सावन १९९६)
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22-08-2014, 10:35 PM | #670 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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राहे वफा में कोई आखरी मकाम नहीं , शिकस्ते दिल को मुहब्बत की इन्तहा न समझ.........
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