27-10-2013, 11:16 AM | #61 |
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Re: अमृत वचन......................
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ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है, एंव अपनी अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है। Teach Guru |
27-10-2013, 11:17 AM | #62 |
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Re: अमृत वचन......................
जैसे बालक प्रतिबिम्ब के आश्रयभूत दर्पण की ओर ध्यान न देकर प्रतिबिम्ब के साथ खेलता है, जैसे पामर लोग यह समग्र स्थूल प्रपंच के आश्रयभूत आकाश की ओर ध्यान न देकर केवल स्थूल प्रपंच की ओर ध्यान देते हैं, वैसे ही नाम-रूप के भक्त, स्थूल दृष्टि के लोग अपने दुर्भाग्य के कारण समग्र संसार के आश्रय सच्चिदानन्द परमात्मा का ध्यान न करके संसार के पीछे पागल होकर भटकते रहते हैं |
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27-10-2013, 11:17 AM | #63 |
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Re: अमृत वचन......................
जब आपने व्यक्तित्व विषयक विचारों का सर्वथा त्याग कर दिया जाता है तब उसके समान अन्य कोई सुख नहीं, उसके समान श्रेष्ठ अन्य कोई अवस्था नहीं
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27-10-2013, 11:17 AM | #64 |
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Re: अमृत वचन......................
ओ खुदा को खोजनेवाले ! तुमने अपनी खोजबीन में खुदा को लुप्त कर दिया है | प्रयत्नरूपी तरंगों में अनंत सामर्थ्यरूपी समुद्र को छुपा दिया है |
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27-10-2013, 11:17 AM | #65 |
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Re: अमृत वचन......................
जिनके आगे प्रिय-अप्रिय, अनुकूल-प्रतिकूल, सुख-दुःख और भूत-भविष्य एक समान हैं ऐसे ज्ञानी, आत्मवेत्ता महापुरूष ही सच्चे धनवान हैं |
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27-10-2013, 11:17 AM | #66 |
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Re: अमृत वचन......................
मनुष्य की वास्तविक अंतरात्मा इतनी महान् है कि जिसका वर्णन करते वेद भगवान भी 'नेति.... नेति.....' पुकार देते हैं। मानव का वास्तविक तत्त्व, वास्तविक स्वरूप ऐसा महान् है लेकिन भय ने, स्वार्थ ने, रजो-तमोगुण के प्रभाव ने उसे दीन-हीन बना दिया है।
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27-10-2013, 11:18 AM | #67 |
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Re: अमृत वचन......................
कबीरा निन्दक ना मिलो पापी मिलो हजार।
एक निन्दक के माथे पर लाख पापीन को भार।।
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27-10-2013, 11:18 AM | #68 |
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Re: अमृत वचन......................
अन्य देवी देवताओं की पूजा के बाद भी किसी की पूजा करना शेष रह जाता है लेकिन सच्चे ब्रह्मनिष्ठ सदगुरू की पूजा के बाद और किसी की पूजा करना शेष नहीं रहता।
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27-10-2013, 11:18 AM | #69 |
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Re: अमृत वचन......................
चलते-चलते पैर में छाले पड़ गये हों, भूख व्याकुल कर रही हो, बुद्धि विचार करने में शिथिल हो गई हो, किसी पेड़ के नीचे पड़े हों, जीवन असम्भव हो रहा हो, मृत्यु का आगमन हो रहा हो तब भी अन्दर से वही निर्भय ध्वनि उठे : ‘सोऽहम्…सोऽहम्…मुझे भय नहीं…मेरी मृत्यु नहीं…मुझे भूख नहीं…प्यास नहीं… प्रकृति की कोई भी व्यथा मुझे नष्ट नहीं कर सकती…मैं वही हूँ…वही हूँ…’
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27-10-2013, 11:18 AM | #70 |
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Re: अमृत वचन......................
आप आत्म-प्रतिष्ठा, दलबन्दी और ईर्ष्या को सदा के लिए छोड़ दो | पृथ्वी माता की तरह सहनशील हो जाओ | संसार आपके कदमों में न्योछावर होने का इंतज़ार कर रहा है
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