13-06-2012, 03:36 AM | #61 |
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Re: कुतुबनुमा
देश में जिस तरह से अनुसंधान एवं शोध क्षेत्र में युवाओं की रुचि घटती जा रही है, उससे किसी भी सरकार का चिंतित होना लाजिमी है। हाल ही यह चिंता उस वक्त और बढ़ गई थी, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 99वीं विज्ञान कांग्रेस में कहा था कि पिछले कुछ दशकों में विज्ञान एवं शोध के क्षेत्र में भारत की स्थिति में गिरावट दर्ज की गई है और चीन हमसे आगे निकल गया है। भारत जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसे देखते हुए यह जरूरी है कि युवाओं में अनुसंधान एवं शोध को लेकर रुचि बढ़ाई जाए। इसी को ध्यान में रख कर सरकार ने पीएचडी करने वाले स्नातकों की वर्तमान संख्या को प्रति वर्ष एक हजार से बढ़ाकर 2025 तक प्रति वर्ष दस हजार करने की जो योजना बनाई है, वह वाकई स्वागतयोग्य कदम है। पिछले दिनों मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश में योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को ध्यान में रख कर काकोदकर समिति का गठन किया था। इस समिति ने कहा है कि पीएचडी करने वाले स्नातकों की संख्या को 2025 तक बढ़ाकर प्रति वर्ष दस हजार किया जाना चाहिए। समिति ने जो सिफारिशें पेश की हैं, उसमें कहा गया है कि किसी भारतीय संस्थान में बीटेक पाठ्यक्रम के तीसरे वर्ष के छात्र को एक आईआईटी में पीएचडी करने का मौका दिया जाना चाहिए। प्रारंभ में आईआईटी में ऐसे तीन सौ छात्रों को शामिल करने करने और अगले दस वर्ष में इसे बढ़ाकर ढाई हजार करने का भी समिति ने सुझाव दिया है। साथ ही उद्योगों में काम करने वाले पेशेवरों के लिए कार्यकारी एमटेक कोर्स का प्रस्ताव किया है। उद्योग और इंजीनियरिंग कॉलेजों को दूरस्थ शिक्षा के जरिए एमई पाठ्यक्रम शुरू करने की दिशा में मिलकर काम करने का सुझाव दिया गया है। हाल ही मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने भी कहा था कि जब तक हम भारत में शोध की गुणवत्ता नहीं बढ़ाएंगे, तब तक हम ऐसे आंकड़े नहीं प्राप्त कर पाएंगे, जो नीतिगत निर्णय के लिए जरूरी हों। उन्होंने देश में अनुसंधान एवं शोध के क्षेत्र में कमियों को ध्यान रखते हुए नवोन्मेष केंद्र का प्रस्ताव भी किया, जिसका उद्देश्य विभिन्न विषयों में नए एवं बहुआयामी क्षमता एवं दक्षता कौशल को बढ़ाना है। निश्चित रूप से सरकार के इन प्रयासों का आने वाले वर्षों में काफी लाभ मिलेगा और नौजवान अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में रूचि लेकर देश को अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा करेंगे।
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25-06-2012, 08:39 AM | #62 |
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Re: कुतुबनुमा
बैंकों पर लाल घेरा लगाने की बेतुकी चाल
फ्रांस की ऋण रेटिंग कंपनी फिमालेक की एक सहायक वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋण रेटिंग पर लाल घेरा लगाने की जो कोशिश की है वह किसी भी मायने में सही नजर नहीं आती। फिच ने भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई, पंजाब नेशनल बैंक समेत 12 भारतीय वित्तीय संस्थानों के भविष्य के ऋण परिदृश्य को दो दिन पहले स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया। कुछ दिनों पहले इसी एजेंसी ने भारत के वित्तीय ऋण परिदृश्य को भी स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया था। फिच ने जिन अन्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों की रेटिंग घटाई हैं उनमें बैंक आफ बडौदा, केनरा बैंक, आईडीबीआई बैंक और एक्सिस बैंक, निर्यात-आयात बैंक, हडको, आईडीएफसी और भारतीय रेल वित्त निगम भी शामिल हैं। एजेंसी के इस कदम को सरकार ने भी गलत बताया है और कहा है कि इन संस्थानों में पूंजी की कोई कमी नहीं है और चिंता की कोई बात नहीं है। भारतीय बैंकिंग प्रणाली में पूंजी संकट की बात करना बात को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पूंजी से परिपूर्ण हैं। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वित्तीय लिहाज से मजबूत बनाने के लिए चालू वित्त वर्ष के दौरान उनमें 15,500 करोड़ रूपए की पूंजी डालने का प्रस्ताव किया है। ऐसे में ऐसी कोई वजह नहीं दिखाई देती जिससे भारतीय बैंकों की रेटिंग कम की जाए। दरअसल फिच के इस कदम को शंका के रूप में भी देखा जा सकता है। पूरी दुनिया, खासकर यूरोप के कई देश इस समय आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं और वहां मंदी की आहट भी सुनाई दे रही है जबकि इसके विपरीत भारत में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के चलते किसी प्रकार की कोई कठिनाई पैदा होने के आसार नहीं है। ऐसे में फिच का यह कदम भारत की सुदृढ़ स्थिति को नजरअंदाज करने की एक चाल भी हो सकता है। वित्तीय सेवाओं के सचिव डी.के. मित्तल ने फिच के कदम की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि ऐसे समय जब भारतीय संस्थान अपने विदेशी प्रतिस्पर्धियों की तुलना में बेहतर कर रहे हैं उनकी रेटिंग कम करना पूरी तरह से बेतुका है। संकट के इस दौर में इस तरह की कारवाई से निश्चित रूप से उन देशों में अविश्वास और बढ़ेगा जो कि बेहतर ढंग से प्रगति कर रहे हैं।
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28-06-2012, 06:02 PM | #63 |
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Re: कुतुबनुमा
पाकिस्तान की पेशकश फिर एक छलावा
मुम्बई में वर्ष 2008 में हुए हमले से जुड़े आतंककारियों के आका और लश्करे तैयबा के कथित आतंकवादी सैयद जबीउद्दीन उर्फ अबू जिन्दाल उर्फ अबू हमजा की गिरफ्तारी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि इस हमले में कहीं न कहीं पाकिस्तान की बड़ी भूमिका थी। आशंका के बादल तब और घने हो जाते हैं जब अबू हमजा की गिरफ्तारी के चंद घंटों बाद ही दुनिया को दिखाने के लिए भारत स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग भारत के साथ आतंकवाद रोधी सहयोग की पेशकश करता है और कहता है कि ‘जैसी कि पाकिस्तान और भारत के बीच उच्चतम स्तर पर सहमति है, आतंकवाद साझा चिंता का विषय है और आतंकवाद रोधी सहयोग दोनों देशों के पारस्परिक हित में है।’ आखिर कब तक पाकिस्तान इस तरह से खुद को ही भ्रमित करता रहेगा? अबू हमजा को दिल्ली पुलिस ने 21 जून को महाराष्ट्र में बीड़ जिले के गोराई कस्बे से गिरफ्तार किया था और उस वक्त उसके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट था। साथ ही वह वहां कथित तौर पर लश्करे तैयबा के भर्ती मिशन पर काम कर रहा था। उसकी गिरफ्तारी के बाद चौंकाने वाली कई बातें भी सामने आई हैं। उसने मुम्बई हमले को अंजाम देने वाले 10 आतंकवादियों को हिन्दी सिखाई थी। उसकी गिरफ्तारी के साथ मुम्बई हमले के दौरान लश्करे तैयबा के 10 आतंकवादियों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं के बीच बातचीत के दौरान रिकॉर्ड की गई रहस्यमयी आवाज की पहचान हो गई है। पकड़ी गई बातचीत में हमजा को ‘प्रशासन’ जैसे कुछ खास हिन्दी शब्दों का इस्तेमाल करते सुना गया था और वह आतंकवादियों को अपनी पाकिस्तानी पहचान छिपाने को कह रहा था तथा निर्देश दे रहा था कि वे खुद को हैदराबाद के टोली चौक से सम्बंधित डेक्कन मुजाहिदीन का सदस्य बताएं। उसकी मौजूदगी का उल्लेख मुम्बई हमलों में जीवित पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी आमिर अजमल कसाब ने भी किया था। कसाब ने अदालत को बताया था कि अबू जिन्दाल उर्फ अबू हमजा नाम के एक व्यक्ति ने 10 आतंकवादियों को हिन्दी बोलना सिखाया था। कुल मिलाकर हमजा की गिरफ्तारी भारत की एक बड़ी कामयाबी है। पाकिस्तान को भी अब अहसास होने लगा है कि वह मुम्बई हमले में पेश भारत के सबूतों को ज्यादा समय तक नजरअंदाज नहीं कर सकता।
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28-06-2012, 11:17 PM | #64 |
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Re: कुतुबनुमा
अपने बूते मजबूती की तरफ सरकार के कदम
भारत की जो विशाल अर्थव्यवस्था है उससे जुड़ी समस्याओं के हल के लिए देश को बाहर से किसी बहुत बड़ी मदद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए बल्कि देश को अपनी समस्याओं का समाधान खुद निकालना होगा। यह सटीक बात कहकर प्रधानमंत्री ने यह साफ जता दिया है कि अब सरकार किसी के भरोसे ना रहकर अपने बूते अर्थव्यवस्था को और मजबूत बनाने की तरफ कदम बढ़ाने जा रही है। सिंह ने यह बात ऐसे समय की है जब घरेलू अर्थव्यवस्था कुछ मुश्किलों से गुजर रही है और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार कुछ नए उपाय करने की तैयारी में दिखती है। दरअसल पिछले कुछ दिन की घटनाओं से सरकार को इस बात का तो पक्का यकीन हो गया है कि भारत जैसे विशाल देश के लिए कोई अंतर्राष्ट्रीय समाधान नहीं है। हमें अपनी अर्थव्यवस्था की योजना इस सोच के साथ तैयार करनी होगी कि हमें कठिनाई के समय बाहर से इतनी बड़ी मदद नहीं मिलेगी कि हम उसके भरोसे संकट को पार कर जाएं। इसी के चलते प्रधानमंत्री ने वादा किया है कि राजकोषीय प्रबंधन की समस्या का हाल प्रभावी तथा विश्वसनीय तरीके से किया जाएगा। भुगतान संतुलन के घाटे तथा चालू खाते के घाटे के प्रबंधन की समस्याआें को भी हल कर लिया जाएगा। सिंह ने कहा है कि भारत वित्तीय संतुलन कायम करने के लिए पहले से कहीं अधिक मेहनत करेगा। हमें भुगतान संतुलन की समस्या तथा विदेशी निवेश के लिए माहौल बनाने के लिए व्यवस्थित तरीके से काम करना होगा। इसके लिए केन्द्र के साथ साथ राज्यों की सरकारों को भी आगे बढ़कर काम करना होगा। चूंकि भारत की राजनीतिक प्रणाली अर्द्ध-संघीय है ऐसे में केंद्र और विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ़ सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे मिल कर देश को आर्थिक वृद्धि की उस तीव्र राह पर फिर वापस लाने के लिए विश्वसनीय तरीके निकालें जिस तीव्र राह पर देश अब तक चल रहा था। यह तो तय है कि अर्थव्यवस्था को लेकर इस समय बहुत सी परेशानियों की जड़ भारत से बाहर है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की वजह से भी हमारी वृद्धि दर प्रभावित हुई और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9 से घटकर 6.7 प्रतिशत पर आ गई। अगले दो साल में हमारी स्थिति सुधरी, लेकिन फिर यूरो क्षेत्र का संकट आ गया। कुल मिलाकर सरकार हर हालात से वाकिफ है और उससे पार पाने में लगी है।
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30-06-2012, 03:17 PM | #65 |
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Re: कुतुबनुमा
वैज्ञानिकों की एक और बड़ी कामयाबी
विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति की रफ्तार जिस गति से चल रही है उसका लोहा तो दुनिया भी मानने लगी है लेकिन उसके साथ ही अंतरिक्ष और सैन्य क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे कामो पर भी सभी की नजरें जमी हुई हैं। ऐसे में देश के वैज्ञानिकों द्वारा हासिल एक नई तकनीक ने तो गर्व से हमारा सीना ही चौड़ा कर दिया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में पानी के भीतर से छोड़ी जाने वाली परमाणु मिसाइल पूरी तरह विकसित करने में कामयाबी हांसिल कर ली है और अब इसे पनडुब्बी से जोड़े जाने का काम तेज गति से चल रहा है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रमुख एवं रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वी. के. सारस्वत की अगुवाई में वैज्ञानिकों ने यह कामयाबी पाई है। डॉ. सारस्वत का कहना है कि इस मिसाइल की से जुड़ी तकनीक का विकास का काम तो पूरा हो ही गया है और इसे दागने के सभी पहलुओं पर भी हमने अपना काम पूरा कर लिया है। एक रक्षा समाचार वेबसाइट को साक्षात्कार में डॉ.सारस्वत ने कहा कि चूंकि इस मिसाइल की तकनीक को पूर्ण रूप से विकसित किया जा चुका है इसलिए वैज्ञानिकों को इस मिसाइल के पनडुब्बी में लगाने के काम में कोई अड़चन की आशंका नजर नहीं आ रही है। दर असल इस तरह की मिसाइल को विकसित कर लेना ही अपने आप में काफी पेचीदा है क्योंकि पानी के भीतर से छोड़ी जाने वाली मिसाइल की तकनीक आम मिसाइल तकनीक से बहुत जटिल होती है। मिसाइल को पनडुब्बी से छोड़े के बाद पानी में से ही होकर गुजरना पड़ता है। पानी से बाहर आने और फिर लक्ष्य की ओर बढ़ने की तकनीक की अपनी अलग ही जटिलताएं हैं। इस सभी जटिलताओं को ध्यान में रखना, उन्हे दूर करना और फिर उसमें कामयाब होना वास्तव में हमारे वैज्ञानिकों की एक बड़ी सफलता ही कहा जा सकता है। पानी के भीतर से छोड़ी जाने वाली इस मिसाइल की रेंज 700 किलोमीटर है और भविष्य के खतरों को देखते हुए इसकी रेंज बढ़ाने की जरूरत भी रहेगी। खबर है कि यह परीक्षण इसी साल के अंत तक होने की संभावना है। दूसरी ओर सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस के पानी के भीतर से छोड़ने वाले प्रक्षेपास्त्र का विकास भी हो चुका है और उसके भी परीक्षण की तैयारियां चल रही हैं। यह परीक्षण भी इसी साल होने की उम्मीद है। ऐसा होगा तो हर भारतवासी और गोर्वान्वित होगा।
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08-07-2012, 04:32 AM | #66 |
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Re: कुतुबनुमा
मुकरने की सीमा लांध चुका है पाकिस्तान
लगता है कि पाकिस्तान यह ठान चुका है कि भारत चाहे लाख कहे वह यह मानेगा ही नहीं कि मुंबई पर हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान सरकार से सम्बंधित किसी व्यक्ति या किसी सरकारी ऐजेंसी का हाथ था। तीन दिन पहले ही पाकिस्तान के गृह मंत्री ने इस बात से इनकार किया था और भारत के दौरे पर आए पाकिस्तान के विदेश सचिव जलील अब्बास जिलानी ने गुरूवार को कहा कि हम भारत में किसी आतंकी हमले में पाकिस्तान की किसी सरकारी एजेंसी के शामिल होने की बात को खारिज करते हैं। पाकिस्तान तो मुंबई हमलों की संयुक्त जांच का इच्छुक है। दरअसल पाकिस्तान का इस तरह बार-बार मुकरना ही यह साबित करता है कि वह आतंकियों को अपने यहां शह दे रहा है। वह यह कह कर पूरी दुनिया को भ्रमित करने में लगा है कि जितना भारत आतंकवाद से प्रभावित है उतना ही पाकिस्तान भी आतंकवाद से पीड़ित है जबकि सच्चाई तो यही है कि भारत में आतंक की कोई भी हरकत पाकिस्तान की जमीन पर ही जन्म लेती है। अबू हमजा की गिरफ्तारी और उसके द्वारा उगले जा रहे राज इस बात के पुख्ता सबूत बनते जा रहे हैं कि मुंबई हमले में पाकिस्तानी ऐजेंसियों की मिली भगत थी और इसी के चलते केन्द्र्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने पाकिस्तान के इस दावे का खुलेआम दो बार खंडन कर चुके हैं कि मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में पाकिस्तानी सरकार से सम्बंधित किसी व्यक्ति का हाथ नहीं था। भारत के पास जो सबूत हैं उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान सरकार के समर्थन के बिना वहां आतंकवादियों का कंट्रोल रूम बनना संभव नहीं था। ऐसे में पाकिस्तान इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि मुंबई हमलों में शामिल आतंकवादियों को उसकी सरकार से जुड़े लोगों का समर्थन हासिल था। मुंबई हमलों के मामले में गिरफ्तार अजमल आमिर कसाब और अबू हमजा के बयान भारत के हर दावे को पुष्ट ही कर रहे हैं। यही कारण है कि भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान को यह साफ बता दिया है कि मुंबई हमले के दोषियों को कानून के दायरे में लाना ही पाकिस्तान द्वारा किया जा सकने वाला सबसे बड़ा विश्वास बहाली उपाय होगा। अब भारत पाकिस्तान की किसी भी बात पर भरोसा कर ही नहीं सकता क्योंकि वह लगातार मुकरने की अपनी सीमा पार कर चुका है।
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08-07-2012, 05:12 AM | #67 |
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Re: कुतुबनुमा
प्रधानमंत्री की नायाब सलाह, नहीं खरीदें सोना
देश की अर्थ व्यवस्था को सही राह पर ले जाने और तेजी से आर्थिक विकास के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोगों को यह नायाब सलाह दी है कि वे अपनी बचत से सोना नहीं खरीदें, बल्कि उसे स्थाई निवेश में लगाएं, ताकि उसका सीधा फायदा देश को मिले। डॉ. सिंह खुद एक जाने माने अर्थशास्त्री हैं और इसलिए उनका यह सुझाव भी गौर करने लायक है कि लोगों को सोना खरीदने की बजाय इन पैसों को बचत के रूप में स्थायी निवेश में लगाना चाहिए। प्रधानमंत्री का मानना है कि सोने के भाव में इन दिनों हो रहे उतार- चढ़ाव के चलते ये धातु निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है। दरअसल डॉ. सिंह का यह सुझाव दूरदर्शिता का परिचायक है, क्योंकि लोग अगर सोना खरीदने के प्रति दीवानगी को कम नहीं करेंगे, तो निवेश के बंद हो चुके अन्य दरवाजे कहां से खुलेंगे। तय है, जब लोग अपनी बचत को अन्य जगह लगाने की सोचेंगे, तो वह बचत उत्पादक निवेश में लगाई जाएगी और जब निवेश उत्पादकता क्षेत्र में बढ़ेगा, तो देश का विकास होगा और जब देश का विकास होगा, तो लोगों का विकास भी अपने आप होगा। वैसे भी सरकार अब अर्थ व्यवस्था को गति देने के अपने प्रयासों को तेज कर रही है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण, कर प्रणाली में स्पष्टता, म्यूचुअल फंड और बीमा उद्योग में जान फूंकना, विदेशी निवेश के लंबित प्रस्तावों को हरी झंडी देना और इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी से सुधार करना सरकार के मुख्य एजेंडे में है। विदेशी निवेशकों को भी भारत की तरफ आकर्षित करने के उपाय किए जा रहे हैं और देश में उनके लिए बेहतर माहौल तैयार किया जा रहा है। सरकार राजकोषीय घाटा कम करने के लिए तर्कसंगत उपायों पर काम कर रही है। प्रधानमंत्री का मानना है कि सरकार कर से जितना कमाती है, उससे कहीं अधिक खर्च करती है, जिससे राजकोषीय घाटा होता है। राजकोषीय घाटा कम करना सरकार के एजेंडे में टॉप पर है। कुल मिलाकर सरकार की तरफ से प्रयासों में तो कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है, लेकिन सरकार की लोगों से जो अपेक्षाएं हैं, उन पर तो लोगों को ही खरा उतरना होगा। स्व हित देखना कोई बुरा नहीं है, लेकिन केवल अपने हित को देख कर देश हित की तरफ ध्यान न देना भी कोई अच्छा संकेत नहीं होता। ऐसे में प्रधानमंत्री के सुझाव पर भी हमें गौर तरना चाहिए, ताकि हमें भी एक जिम्मेदार नागरिक का अहसास हो सके।
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08-07-2012, 05:39 AM | #68 |
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Re: कुतुबनुमा
बागियों के इशारे पर नाच रही है भाजपा
बागी नेता भाजपा में किस कदर हावी हैं और वे पार्टी को अपने इशारे पर कैसे नचाते रहते हैं, इसका एक और उदाहरण कर्नाटक में सामने आया है। भाजपा आलाकमान ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा को हटा कर उनकी जगह पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा के करीबी जगदीश शेट्टर को आसीन करने का फैसला किया है जो यह साबित करता है कि पार्टी में अब वही हो रहा है, जो बागी नेता करवाना चाहते हैं। पार्टी के लिए इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि उसे चार साल के शासन में तीसरा मुख्यमंत्री चुनना पड़ा है। दरअसल येदियुरप्पा को लेकर पिछले कई महिनो से भाजपा काफी परेशान थी क्योंकि येदियुरप्पा के समर्थन में भाजपा के आधे से भी अधिक विधायकों ने बगावत का बिगुल फूंक रखा था। खुद येदियुरप्पा भी कई बार यह सार्वजनिक बयान दे चुके थे उन्हे इस पद पर फिर से आसीन किया जाए क्योंकि पिछले साल अगस्त में येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा आलाकमान ने जब मुख्यमंत्री पद से हटाया था तो उन्हे भरोसा दिलाया था कि आरोप मुक्त होने पर उन्हे वापस मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी जाएगी। हालांकि येदियुरप्पा उस आरोप से तो मुक्त होकर जेल से बाहर आ गए है लेकिन अब भी उन पर घोटाले के मामले विचाराधीन हैं और भाजपा कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती इसलिए उसने येदियुरप्पा को फिर से सत्तासीन करने से इनकार कर दिया था। इस पर येदियुरप्पा ने लिंगायत समुदाय के नेता जगदीश शेट्टर को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की और दबाव बढ़ाने के लिए पिछले सप्ताह नौ मंत्रियों ने सदानंद गौड़ा मंत्रिमंडल से इस्तीफे की घोषणा भी कर दी। इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि खुद को पार्टी विद डिफरेंट बताने वाली भाजपा का आला नेतृत्व अब पूरी तरह से नाकाम हो चुका है और पार्टी में उन्ही की चल रही है जो धोंस और धमकी के दम पर अपना मतलब साध रहे हैं। चार साल में तीन मुख्यमंत्री बदल कर भाजपा ने यह भी जता दिया कि वह केवल अपने अंदरूनी झगड़ों में ही उलझती रही है और इस दौरान उसका कर्नाटक के विकास से कोई सरोकार नहीं है। कर्नाटक में हुए नाटक के बाद तो अब उन नेताओं के हौंसले और बुलन्द हो जाएंगे जो बगावत का झंडा लेकर अन्य राज्यों में घूम रहे हैं।
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11-07-2012, 11:14 PM | #69 |
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Re: कुतुबनुमा
पाकिस्तान के झूठ का एक और पर्दाफाश
पाकिस्तान अपनी करतूतों के चलते रोज किसी न किसी नए विवाद में फंसता जाता है और ताज्जुब की बात तो यह होती है कि वह बड़ी आसानी से उस विवाद से पल्ला झाड़ने की कोशिश से भी बाज नहीं आता। अब ताजा विवाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख जनरल जियाउद्दीन बट्ट के बयान को लेकर पैदा हुआ है। बट्ट ने दावा किया है कि एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने ओसामा बिन लादेन को संरक्षण दे रखा था और इसकी पूरी जानकारी पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को थी। एक साक्षात्कार में यह चौंकाने वाली बात कहते हुए बट्ट ने कहा कि ब्रिगेडियर एजाज शाह के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ से नजदीकी रिश्ते थे और मुशर्रफ शासन में यह ब्रिगेडियर बेहद ताकतवर हुआ करता था। एजाज ने ही ऐबटाबाद में ओसामा को पनाह दी थी। शाह मुशर्रफ के कार्यकाल में गुप्तचर ब्यूरो प्रमुख था। बट्ट का यह बयान पूर्व में व्यक्त की जा रही इस आशंका को पुष्ट करता है कि बगैर पाकिस्तानी सरकार की शह के ओसामा वहां संरक्षण पा ही नहीं सकता था। बट्ट ने तो यह दावा भी किया है कि ऐबटाबाद के जिस परिसर में ओसामा ने पनाह ले रखी थी उसे ब्रिगेडियर एजाज के आदेश पर बनाया गया था। दरअसल बट्ट के इस आरोप में काफी सच्चाई भी दिखती है क्योंकि काफी पहले पूर्व प्रधानमंत्री बेगम बेनजीर भुट्टो ने यह आशंका जताई थी कि ब्रिगेडियर एजाज आतंकवादियों के साथ मिलकर उनकी हत्या की साजिश रच रहा है। एजाज 2007 में उस रात को बेनजीर के सुरक्षा मामलों का प्रभारी भी था जब बेनजीर की हत्या कर दी गई थी। 2004 में एजाज को मुशर्रफ ने ही आस्ट्रेलिया में उच्चायुक्त नामित किया था जो बट्ट के इस बयान की पुष्टि करता है कि एजाज के मुशर्रफ से नजदीकी रिश्ते थे हालाकि बाद में आस्ट्रेलियाई सरकार ने शाह की नियुक्ति को स्वीकार नहीं था क्योंकि माना जाता था कि शाह के आतंकवादियों के साथ भी रिश्ते हैं। अब भले ही बट्ट के आरोपों को एजाज नकार रहा हो लेकिन यह तय है कि आग वहीं लगती है जहां चिंगारी हो। बट्ट के बयानो को शत प्रतिशत सही ना भी माना जाए तो कुछ आधार तो ऐसा होगा ही कि बट्ट इतना बड़ा बयान दे रहे हैं। पाकिस्तान लाख बचने की कोशिश करे लेकिन उसके झूठ का पर्दाफाश रोज-ब-रोज हो रहा है।
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14-07-2012, 02:33 AM | #70 |
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Re: कुतुबनुमा
दूरस्थ चिकित्सा की नई तकनीक मील का पत्थर
भारत जैसे विशाल देश में चिकित्सा सुविधा के विस्तार और इस सुविधा को दूरदराज के गांवों तक पहुंचाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती का काम है। ऐसे में गांवों और अन्य सुदूर इलाकों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान ने अपनी दूरस्थ चिकित्सा तकनीक को व्यवसायिक रूप देने का जो फैसला किया है वह वास्तव में आने वाले समय में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस तकनीक के जरिए दुनिया के किसी एक कोने में बैठे विशेषज्ञ से किसी बीमारी या चोट आदि के इलाज के बारे में जानने के लिए संपर्क किया जा सकता है। दरअसल गांवों और सुदूर इलाकों में डॉक्टरों की तैनाती बहुत कम होती है। ऐसे में वहां यह तकनीक खास तौर पर मददगार होगी। इसमें एक ऐसा सिस्टम लगाया जाएगा जो मरीज के ईसीजी, खून के दबाव, सांस लेने की गति, धड़कन की दर, शरीर का ताप आदि की जानकारी लैपटॉप की मदद से उपग्रह के जरिए स्वास्थ्य केंद्र तक भेज देगा। इन्हें देखकर डॉक्टर मरीज के लिए जरूरी निर्देश दे सकेंगे। हांलाकि सैन्य शिविरों में रहने वाले सैनिकों के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल अभी हो रहा है और यह काफी कामयाब भी रहा है। इसी कामयाबी को देखते हुए अब इसे गांवों और जन स्वास्थ्य केंद्र्रों में इस्तेमाल का निर्णय किया गया है। दूरस्थ चिकित्सा तकनीक के इस पोर्टेबल तंत्र का विकास बंगलुरू के डिफेंस बायो इंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रोमेडिकल लैबोरेट्री में किया गया था। इस पोर्टेबल तंत्र को किसी भी सुदूर इलाके में लगाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बना हुआ यह तंत्र शून्य से नीचे के तापमानों पर भी कार्य कर सकता है। इसे ऐसे इलाकों में लगाया जा सकता है जहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच नहीं है। इस तकनीक को सुदूर इलाकों तक पहुंचाने में आने वाला खर्च हांलाकि शुरूआती दौर में कुछ ज्यादा होगा लेकिन जब ज्यादा संख्या में यह सिस्टम बनाए जाएंगे तो उसकी लागत में अपने आप कमी होने लगेगी। याने आने वाले वर्षों में भारत के छोटे से छोटे गांव और दूरदराज इलाकों में रहने वाली जनता को भी स्वास्थ्य सम्बंधी छोटी-छोटी परेशानियों के लिए इधर उधर भागना नहीं पड़ेगा और उनकी प्रारंभिक परेशानियां वहीं हल हो जाएंगी जो उनके लिए वरदान साबित होंगी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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