01-03-2011, 04:10 PM | #61 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
03-03-2011, 05:46 PM | #62 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
देखो गदहे की औलाद पेशाब कर रहा है – गदहे के पूत यहां मत मूत – जो भी यहां पेशाब करते पाये गये, सौ रुपये जुर्माना जैसे निर्देश एक जमाने में यहां पेशाब करना सख्त मना है का ही विस्तार है। जैसे-जैसे कहीं भी कभी भी की तर्ज पर पेशाब करनेवालों की जमात ढीठ होती चली गयी वैसे-वैसे इन निर्देशों में सख्ती आती चली गयी। शुरुआती दौर में जो निर्देश अपील का असर पैदा करती थी, एक किस्म का अनुरोध किया जाता था, धीरे-धीरे उसमें आदेश, हिदायत, जुर्माना और अपमानित करने के भाव समाते चले गये। लेकिन इन सबसे भी पेशाब करने का सिलसिला नहीं थमा और इन निर्देशों के आगे बर्बर तरीके के पेशाब अड्डे बनते चले गये। एक बार जिस बाउंडरी वॉल, खाली जगहों, गलियों के आगे कुछ लोगों ने धार बहायी कि समझदार हिंदुस्तानी समाज जो कि महाजनो येन गतः सः पंथः की धारणा पर भरोसा करता है, उसे ताल का रूप देने में लग गये। फिर लाख निर्देश लिखे जाएं, जुर्माने की बात की जाए, कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ जैसे शहरों में मैंने देखा है कि कई लोग ऐसी जगहों पर देवी-देवतओं की तस्वीर लगा देते हैं। तस्वीर लगाने का ये काम दिल्ली में भी खूब होता है। मैंने देखा है कि जहां सारे निर्देश बेअसर हो जाते हैं, वहां गणेश मार्का, हनुमान या शिव छाप कोई फोटो या टूटी हुई तस्वीर लगा दो तो फिर लोग वहां अपने आप पेशाब करना बंद कर देते हैं। ये देवी-देवता एक अदनी सी मूर्ति में अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए भी असर पैदा करते हैं। घरों, दुकानों के लिए बेकार हो गयी ये मूर्तियां और तस्वीरें हजारों रुपये की लागत से बनी साईनबोर्डों की ड्यूटी बजाते हैं। पेशाब करने और लोगों को थूकने से मना करने के लिए तस्वीर वाला ये काम रामबाण जैसा असर करता है। इसी क्रम में कई जगहों पर लोगों का पेशाब करना बंद भी हुआ है। इसलिए अब तक जिन लोगों को इस बात की दुविधा रही है कि देवी-देवताओं ने इस देश को क्या दिया है, उन्हें यहां पेशाब न करो अभियान के असर को समझना चाहिए। सफाई अभियान में इन देवी-देवताओं के आगे सारे प्रयास बेकार हैं।
लेकिन पेशाब अड्डों की शर्तों पर लगी इन मूर्तियों और तस्वीरों के आगे की कार्यवाही को समझना कम दिलचस्प नहीं है। जहां-तहां धार बहाते हुए, रेड एफएम के लोगों को लाइन पर लाइन लाने और कंट्रोल कर लोगे जैसे फीलर जनहित में जारी विज्ञापनों से बेपरवाह हम भूल जाते हैं कि हम पेशाब करते हुए इस शहर में, इस देश में मंदिर बनने की भूमिका तय कर रहे हैं। इस देश में पेशाब करने का मतलब है कि आप मंदिर बनाने की नींव तैयार कर रहे हैं। यहां ऐसे शुभचिंतकों, सफाई के महत्व को समझनेवाले और अव्वल दर्जे के धार्मिक लोगों की कमी नहीं है। दर्जन भर लोगों ने भी जहां कहीं लगातार धार बहानी शुरू की और उन्हें वहां स्थायी तौर पर पेशाब किये जाने के चिन्ह मिल गये कि समझिए वहां मंदिर बनाने और शिलान्यास का काम जरूरी हो गया। इस देश में जितने भी मंदिर हैं, उनके पीछे कोई न कोई मिथ, पौराणिक कथा या फिर दावे के साथ इतिहास जुड़ा हुआ है। कहीं बैठकर राम सुस्ताने लगे थे, तो कहीं रावण लगातार शू शू करता जा रहा था सो देवघर बन गया। कहीं पार्वती जली थी… वगैरह, वगैरह। वो तमाम कहानियां मंदिरों के बनने के तर्क को मजबूत करते हैं जो उल्टे आप ही से सवाल करे कि अब वहां मंदिर नहीं बनाते तो क्या करते? मैंने तो यहां तक देखा है कि मेनरोड पर कोई बंदर करंट लगकर मर गया तो लोगों ने उसे साक्षात हनुमान का अवतार मानकर आनन-फानन में मंदिर बना दिया। नतीजा अब वो रोड दिनभर जाम रहता है। बहरहाल आप देशभर के मंदिरों के केयरटेकर पंडों से उसके बनने का इतिहास पूछें तो हरेक के पास कोई न कोई अलग किस्म की कथा होगी। लेकिन अपनी आंखों के सामने जो दर्जनों मंदिर मैंने बनते देखे हैं, अगर उन मंदिरों के पंडों ने ईमानदारी से जबाव देने शुरू किये तो सबों का जवाब लगभग एक होगा कि यहां पर आज से चार / पांच / छह / सात / आठ साल पहले लोग बहुत पेशाब करते थे। रास्ते से गुजरती हुई माताओं-बहनों को बहुत परेशानी होती थी। दिनभर भभका उठता था इसलिए स्थानीय भक्तजनों ने तय किया कि यहां मंदिर बना दिया जाए। देशभर में ऐसे दर्जनों मंदिर हैं जहां कभी किसी देवी-देवता ने अवतार नहीं लिया (वैसे अवतार लेते कब हैं) और सिर्फ पेशाब करने से रोकने के लिए उन जगहों पर मंदिर बने हैं। अब असल सवाल है कि ये मंदिर किस हद तक जनहित का काम करते हैं। तमाम इलाकों में इस अभियान के तहत जितने भी मंदिर बने हैं, वो पहले के बर्बर पेशाब अड्डों से कहीं ज्यादा गंदगी फैला रहे हैं। पेशाबघर तो छोड़िए, दड़बेनुमा इन मंदिरों में पंडों के लिए पखाने से लेकर किचन तक की जो स्थायी/अस्थायी सुविधा जुटायी गयी है, उससे किस हद तक की गंदगी निकलती है – उसे आप खुद मेन रोड पर बहती गंदगियों को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। अवैध पेशाब के अड्डे सिर्फ बदबू पैदा करते हैं लेकिन ये मंदिर कभी माता जागरण तो कभी रामलला के नाम पर नियमित शोर। पेशाब अड्डों की बदबू फिर भी बर्दाश्त कर लें लेकिन जीना हराम कर देनेवाले हो-हल्लों का क्या किया जाए। ये पूरे महौल का सत्यानाश कर रहे हैं, उसे कैसे रोका जाए? लोगों के आने-जाने और इस्तेमाल की जानेवाली चीजों से जो गंदगी बढ़ती है वो तो अलग है। पॉश इलाके के लोगों ने तो अपनी हैसियत से, स्पॉन्सर कराकर फाइव स्टार टाइप के मंदिर जरूर बना लिये, ये मंदिर भी टनों में कचरा पैदा करने के अड्डे बने लेकिन ये खोमचेनुमा सैकड़ों मंदिर जिस गंदगी को बढ़ा रहे हैं, उस पर कहीं कोई बात नहीं होती। ऐसे में आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि अवैध तरीके से बनाये गये मंदिरों के मुकाबले इस देश को कहीं ज्यादा मूत्राशय और पखाने की जरूरत है। सीधे शब्दों में कहूं, तो वैसे तो ये पूरा देश ही शौचालय है लेकिन अफसोस कि यहां शौचालय नहीं है, इसे लेकर बहुत दिक्कत है। मन का मैल तो इन खोंमचेनुमा मंदिरों में पाखंड के रास्ते निकलकर डंप हो जाता है – लेकिन शरीर से जो मल निकल रहा है, उसका क्या? अगर इस देश में मूत्राशय से होड़ करके ही मंदिर बनना है तो – प्लीज आप ही कुछ पहल कीजिए।
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
03-03-2011, 08:34 PM | #63 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
बहुत ही विस्फोटक बात बताई आपने ! वास्तव में धार्मिक अंधविश्वास के कारण इसके विपरीत जाने की सोची ही नहीं कभी , परन्तु एक बात तो हमेशा रही की कोई भी कार्य सिर्फ यूँ या ऐसे ही नहीं किया गया ! हो सकता हो की अधिकतर यही कारण हो !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
05-03-2011, 08:57 AM | #64 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
पर आपने अपना विचार नहीं रखा
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
29-03-2011, 04:31 PM | #65 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
कल ही अखबार में पढ़ा की , '२५ साल से पकिस्तान की जेल में बंद गोपाल दास को माफ़ी !'
बहुत अच्छा लगा इसे पढकर ! परन्तु एक विषय ने तो चौका ही दिया , गोपाल दास की सजा का यह अंतिम वर्ष था ! अगर यह उपाकर उस पर न किया जाता तो वह वैसे भी इस साल छूट जाता ! प्रश्न उठता है गलती का ! दास को पाक सैनिको ने गलती से सीमा पार करने पर गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें इस मानवीय छोटी सी भूल के लिए १९८६ में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई ! क्या बात है .. कितनी तेज़ी है कानूनों में ! गिलानी को भारत आमंत्रण मिला तो उन्होंने यह तोहफा दिया ! परन्तु गोपाल दास की मनोदशा का क्या? २५ साल से क्यों सुध नहीं ली गई उसकी? हर बार कोई न कोई ऐसे ही उपकार के साहरे क्या जताना चाहता है हमारा पड़ोसी मुल्क ? क्या हुआ हमारे देश के अगुवाईओ को? किसे फ़िक्र रही है उसकी ? कौन जान पाया इस चूक की इतनी बड़ी सजा को ? अब तो शायद उसे कारावास में ही अच्छा लगता होगा ! सच तो यह है सब रोटी सेंक रहे हैं !धन्यवाद गिलानी जी इस उपकार के लिए !
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29-03-2011, 05:07 PM | #66 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
विनायक जी आनन्द आ गया
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Gaurav kumar Gaurav |
28-11-2011, 10:38 AM | #67 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
किस्सा कुर्सी का।
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28-11-2011, 10:51 AM | #68 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
आज का "किस्सा कुर्सी का"
पी एम की कुर्सी के लिए, जब सब जोर लगाय । अटल बिहारी दूर बैठकर, मंद मंद मुस्काय ॥ सोनिया जी पी एम सेट करे, आडवानी जी वेट करे, मनमोहन का मोह छोड़कर, लालू उसको अपसेट करे । लाल कृष्ण की आँखों में भी, चमक उभरकर आये । नींद से जागे, मनमोहन भी मीठी तान सुनाये ॥ माया कहे मै ही बनूँगी, शरद कहे मै भी बनूँगा, कुर्सी से हम ही दूर रहे क्यों, वाम कहे हम ही बनेंगे । गाँधी के इस देश में गाँधी, गाँधी से टकराय । राहुल लगे नरम - नरम से, वरुण गरम हो जाय ॥ |
28-11-2011, 05:08 PM | #69 |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
arvind ji yeh kissa kuri ka wahi 1978 ki film hai jise indira gandhi je ban kar diya tha.
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
28-11-2011, 05:15 PM | #70 | |
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Re: चर्चा पर खर्चा।
Quote:
Ban is a just part of promotion my friend
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