06-02-2011, 08:27 AM | #61 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
ज्वेल थीफ विनय नाम के एक ऐसे लड़के की कहानी है जो हीरो जवाहरातो का पारखी है. विनय के पिता बम्बई के कमिश्नर हैं. विनय अपने एक हम्सकल की साजिश का शिकार हो जाता है जिसे लोग प्रिंस अमर के नाम से जानते हैं. प्रिंस अमर एक चोर है और कीमती हीरो की चोरी करता है. ऐसी ही एक चोरी के बाद देश भर की पुलिस विनय को प्रिंस अमर समझकर उसके पीछे पर जाती है. आखिरकार तमाम मुसीबतों को झेलते हुए विनय ना खुद को बेगुनाह साबित करता है बल्कि ज्वेल थीफ के पुरे रैकेट का पर्दाफाश करता है.
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05-03-2011, 10:54 AM | #62 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
आज जो मैं अपनी एक और पसंदीदा फिल्म ले कर आया हूँ, उसका नाम है
नदिया के पार
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05-03-2011, 10:57 AM | #63 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
नदिया के पार १९८२ में रिलीज़ हुई थी. राजश्री के बैनर तले इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन, साधना सिंह, इन्दर ठाकुर, मिताली, सविता बजाज, शीला डेविड, लीला मिश्र और सोनी राठोड.
मेरे शहर मुजफ्फरपुर में यह फिल्म करीब १ साल से ज्यादा चली थी. बाद में इस फिल्म को दुबारा "हम आपके है कौन" के नाम से बनाया गया, इसने भी सफलता का नया इतिहास रचा था.
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05-03-2011, 11:00 AM | #64 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
“नदिया के पार” ने हिंदी सिनेमा के इतिहास में वो मकाम प्राप्त किया है जो बहुत ही कम फिल्मो को नसीब होता है.
ग्रामीण परिवेश में फिल्माई गयी इस फिल्म की ख़ास बातें थी, इसकी रोचक कहानी, कासी हुई पटकथा, मधुर गीत संगीत, नया कलाकारों द्वारा किया गया शानदार अभिनय, दर्शक के दिल में उतर जाने वाले दृश्य.
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05-03-2011, 11:02 AM | #65 | |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
Quote:
पुरानी फिल्मो के बारे में काफी जानकारी रखते हो
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05-03-2011, 11:05 AM | #66 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से थी.
पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक किसान अपने २ बेटो के साथ रहता था. एक बार वो बीमार पर गया. फिर उसके छोटे बेटे चन्दन (सचिन) पास के गाँव से एक वैद को लेने जाता है. और वो वैद इलाज़ करता है और फीस के बदले अपनी बड़ी बेटी रूपा की शादी का प्रस्ताव उस किसान के बड़े लड़के ओमकार (इन्द्र ठाकुर) से रखता है. फिर दोनों की शादी हो जाती है.
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14-03-2011, 06:33 PM | #67 |
Exclusive Member
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
अभि जी कृप्या इस सुत्र को आगे बढाए
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
19-03-2011, 09:12 PM | #68 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
खालिद जी खास माँग पर चलिए आज इस सूत्र को आगे बढाया जाये. नदिया के पार की पूरी कहानी के लिए फिल्म देखे. उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगा.
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19-03-2011, 09:16 PM | #69 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
आज जो मैं फिल्म ले कर आया हूँ उसका नाम है प्यासा.
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19-03-2011, 09:29 PM | #70 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
साहित्य समाज का दर्पण होता है| इसी प्रकार फ़िल्में भी समकालीन परिस्तिथियों से प्रभावित होती हैं| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की यह फिल्म भी तत्कालिक प्रभावों से अछूती नहीं रही है| समाज के विद्रूप, छल और कपट से आक्रोशित नायक द्वारा अपना मौलिक अस्तित्व को ही अस्वीकार कर देना चरम सीमा ही कहा जा सकता है| कुछ इसी हताशा को गुरुदत्त ने बेहतरीन तरीके से परदे पर दिखाया है|
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