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Old 11-01-2013, 04:06 PM   #61
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

कभी किसी को जज करने की कोशिश न करें

एक डॉक्टर ने बड़ी तेजी से अस्पताल में प्रवेश किया. कुछ देर पहले ही उसके पास सर्जरी के लिए एक अर्जेट फ़ोन आया था. कॉल का जवाब देने के बाद उसने तुरंत अपने कपड़े बदले और सीधा सर्जरी ब्लॉक पहुंच गया. उसने देखा कि लड़के का पिता हॉल में गुस्से में डॉक्टर का इंतजार कर रहा है. डॉक्टर के आते ही उसने कहना शुरू कर दिया- इतना समय क्यों लिया? क्या आपको पता नहीं है कि मेरे बेटे की जिंदगी खतरे में है? क्या अपने दायित्वों का जरा भी ख्याल नहीं है.

डॉक्टर बिना झल्लाये उनकी बातों को सुनने के बाद मुस्कुराते हुए बोला- मुझे माफ़ करें. मैं अस्पताल में नहीं था. कॉल आने के बाद मैं जितनी जल्दी आ सकता था, आया. अब आपसे यही गुजारिश है कि आप कृपया शांत हो जायें, ताकि मैं अपना काम कर सकूं.

उस व्यक्ति का गुस्सा शांत नहीं हुआ था, उसने गुस्से में ही कहा- शांत हो जाऊं? अगर इस समय आपका बेटा सर्जरी रूम में होता, तो क्या आप शांत रहते? अगर अभी आपके बेटे की मौत हो जाये, तो आप क्या करेंगे?

डॉक्टर ने फ़िर उसकी बातों का मुस्कुराते हुए जवाब दिया- मैं वही कहूंगा, जो पवित्र पुस्तक में लिखा है- हम धूल से आये हैं और हमें धूल में ही मिल जाना है. बस, ईश्वर की कृपा बनी रहे. डॉक्टर जिंदगी नहीं दे सकता. जाइये और अपने बेटे के लिए प्रार्थना करें. भगवान की कृपा से हम अपना बेस्ट देने की कोशिश करेंगे. उस व्यक्ति ने भुनभुनाते हुए कहा- जब किसी मामले से हम जुड़े नहीं हों तो सलाह देना आसान होता है.

सर्जरी कुछ घंटे तक चलती रही. सर्जरी रूम से निकलते हुए डॉक्टर के चेहरे पर खुशी थी. उसने उस व्यक्ति की ओर मुखातिब होकर कहा- भगवान का शुक्र है, आपके बेटे की जान बच गयी. व्यक्ति के जवाब का इंतजार किये बगैर डॉक्टर तेजी से वहां से यह कहते हुए चला गया कि अगर कोई सवाल हो, तो आप नर्स से पूछ सकते हैं.

वह व्यक्ति डॉक्टर के जाने के बाद नर्स से मुखातिब हो कहा- यह डॉक्टर इतना जल्दबाजी में क्यों था? क्या वह कुछ मिनट रुक नहीं सकता था, ताकि मैं उससे अपने बेटे के बारे में कुछ बातें पूछ सकता. नर्स की आंखों में आंसू थे. उसने कहा- कल रात उनके बेटे की मौत सड़क दुर्घटना में हो गयी. जब आपके बेटे की सर्जरी के लिए उसके पास फ़ोन गया, वह दाह संस्कार में ही थे.

कभी भी किसी को जज करने की कोशिश न करें. क्योंकि यह आप शायद ही जान पायें कि उसकी जिंदगी कैसी चल रही है और वह किन परिस्थितियों से गुजर रहा है. इसलिए रिएक्ट करने के पहले परिस्थितियों को एक बार समझने की कोशिश जरूर करें.

- बात पते की
* हर किसी की परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं और हर व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ही कदम उठाता है.
* रिएक्ट करने के पहले सामनेवाले की परिस्थितियों को एक बार समझने की कोशिश जरूर करें.
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Old 11-01-2013, 04:09 PM   #62
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

हालात बदले तो बदलते हुए हालात पर रोना..

एक मशहूर शायर की गजल का एक शेर है-हालात न बदले तो इस बात पे रोना, बदले तो बदलते हुए हालात पे रोना..हालात खराब हैं और उनमें मन-मुताबिक परिवर्तन नहीं हो रहा है, तो शिकायत करना जायज है, लेकिन कोई परिवर्तन हो रहा है, उसके लिए भी अगर हम शिकायत करें, तो यह ठीक नहीं है.

कुछ लोगों की यह आदत होती है कि वे हर बदलाव का विरोध करेंगे, चाहे उसमें उन्हें कितना ही लाभ क्यों न होता हो. वे किसी न किसी बहाने परिवर्तन से बचना चाहेंगे. उसमें कमियां निकालने की कोशिश करेंगे.

जब आप किसी जगह बहुत दिनों तक रहते हैं, तो आपको उस जगह की आदत-सी पड़ जाती है और जब वहां से दूर रहना पड़ता है या उस जगह को छोड़ना पड़ता है, तो ऐसा लगता है जैसे हम अपना एक हिस्सा छोड़ रहे हैं. लोगों की यह आदत है कि वह अपने आसपास की चीजों से इतना जुड़ जाते हैं कि उनसे दूर होने का गम इतना होता है कि वो अपना लक्ष्य और रास्ते से भी भटक
जाते हैं.

हमारे ऑफिस में उस समय रजनीश नया-नया ट्रांसफर होकर आया था. उसे अपने काम में मन ही नहीं लगता था. वह घंटों अकेले न जाने क्या सोचा करता था. लंच के समय तो अक्सर कैंटीन में वह अकेला बैठा रहता था. तीन महीने तक यही स्थिति रही. वह बदलाव को स्वीकर नहीं कर पा रहा था.

जब उससे बातचीत शुरू हुई तो उसने बताया कि अपने शहर इंदौर की तो बात ही अलग है. वहां मुङो कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. सब कुछ तो मेरा वहीं है. हर समय इंदौर की ही बातें करता. मेरा साथ मिला, कुछ और दोस्त मिले, ऑफिस में भी धीरे-धीरे बाकी लोगों से उसकी दोस्ती हो गयी. छह माह बाद जब वह इंदौर गया, तो छुट्टी से दो दिन पहले ही आ गया. कहने लगा, अब यह शहर अपना-सा लगता है.

ग्लोबलाइजेशन के दौर में बदलाव की रफ्तार और तेज हो गयी है. हमें हर पल नया सोचना है, नया करना है. हमें बदलाव की उपयोगिता समझनी होगी. होनेवाले बदलाव को सकारात्मक सोच के साथ स्वीकार करना होगा.

बात पते की

हर परिवर्तन की शिकायत करना ठीक नहीं.
परिवर्तन से बचने या उसकी कमी निकालने की कोशिश न करें.
हम पर नया सोचने और नया करने का दबाव हर पल है, इसलिए सकारात्मक सोच के साथ बदलाव की उपयोगिता समझे.
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Old 11-01-2013, 04:15 PM   #63
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

जाता हुआ अवसर पीछे से नहीं पकड़ा जा सकता

रविवार के दिन शहर के एक आर्ट गैलरी में प्रदशनी लगी हुई थी. वहां कई तरह के चित्र प्रदर्शनी में लोगों के लिए रखे गये थे. उनमें से एक चित्र के पास काफी ज्यादा भीड़ थी. चित्र में एक ऐसी आकृति बनी हुई थी, जिसका चेहरा बालों से पूरी तरह ढका हुआ था. सिर के पीछे से वह गंजा था. उसके पैरों में पंख लगे हुए थे. चित्र से प्रभावित रजनीश ने उस चित्र के पास ही खड़े चित्रकार से पूछा- यह किस चीज का चित्र है?

रजनीश का सवाल सुन कर चित्रकार बोला, यह अवसर का चित्र है. रजनीश बोला, आपको कैसे पता कि अवसर का रूप ऐसा होता है. चित्रकार बोले, अवसर का यह रूप सिर्फ मैं नहीं कई लोग जानते हैं. आप भी जानते होंगे. वहां खड़े एक दर्शक का सवाल था- अवसर का चेहरा ढका हुआ क्यों है? चित्रकार ने कहा, अवसर का मुंह ढका हुआ इसलिए है, क्योंकि अधिकतम लोग सामने आये हुए अवसर को पहचान नहीं पाते.

रजनीश ने फिर सवाल किया- इसके पैरों में पंख क्यों लगा है? चित्रकार बोला, इसके पैरों में पंख इसलिए लगे हुए हैं, क्योंकि वह आता है और फुर्र से उड़ जाता है. यदि अवसर को आपने सही समय पर नहीं पकड़ा तो फिर वह आपके दरवाजे से लौट जाता है.

अब मेरी बारी थी. मैंने चित्रकार से सवाल किया कि यह पीछे से गंजा क्यों है? चित्रकार ने मुस्कुराते हुए कहा- जाते हुए अवसर को कोई पीछे से नहीं पकड़ सकता. सामने बाल हैं, चेहरे पर बिखरे को पकड़ कर आप अवसर को अपने काबू में कर सकते हैं, पर जब अवसर जानेवाला हो और तब आप उसे पकड़ने की कोशिश करो, तो वह फिसल जाता है. हम न केवल चित्रकार की बात से संतुष्ट थे, बल्कि आश्चर्यचकित भी थे कि कैसे एक चित्र के माध्यम से अवसर को खूबसूरती के साथ चित्रित किया गया है.

- बात पते की त्नत्नत्न
* अगर अवसर को आपने सही समय पर नहीं पकड़ा तो वह आपके दरवाजे से लौट जाता है.
* अवसर जानेवाला हो और तब आप उसको पकड़ने की कोशिश करें, तो वह फिसल जाता है.
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Old 11-01-2013, 04:25 PM   #64
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

भेदभाव करेंगे, तो लक्ष्य प्राप्ति में कमजोर पड़ेंगे

नियम-कानून सभी के लिए बराबर होते हैं. अगर आपने अपने अधीनस्थों के लिए नियम-कानून बनाये हैं और चाहते हैं कि वे फॉलो करें, तो सबसे पहले आपको फॉलो करना होगा. इतना ही नहीं जब सजा देने की बारी आये, तो यह न सोचें कि अमुक सीनियर है तो उसे कम सजा मिलेगी और जूनियर को बड़ी सजा. एक ही तरह की गलती के लिए अलग-अलग तरह की सजा न दें. अगर आप चाहते हैं कि ऑफिस में अनुशासन बना रहे, तो भेदभाव कतई न करें. भेदभाव करेंगे, तो लक्ष्य प्राप्ति में कमजोर पड़ सकते हैं.

मुनि विश्वामित्र के यज्ञ में विध्न डालना राक्षसों का दैनिक खेल बन गया था. समस्या के समाधान के लिए विश्वामित्र राजा दशरथ के पुत्र राम लक्ष्मण को वन में ले आये. श्री राम तथा लक्ष्मण आश्रम की रक्षा कर रहे थे, तभी मारीच तथा राक्षसी ताड़का ने उपद्रव मचा दिया और आक्रमण कर दिया. राम उनसे युद्ध के लिए तत्पर हो गये. इस पर मुनि विश्वामित्र बोले- आप दोनों राजकुमार क्षत्रिय हैं. प्रथम तो क्षत्रिय स्त्रियों पर प्रहार नहीं करते, विशेषकर ध्येय के शुभ आरंभ में. दूसरे आप पहली बार किसी राक्षस का वध करेंगे, वह भी एक स्त्री का?

राम ने उत्तर दिया- प्रश्न यह नहीं है कि वह स्त्री है या पुरुष. प्रश्न है कि बुराई किसमें है. हमें बुराई के मूल पर प्रहार करना है. गुरुदेव ने कहा- तुम एक वीर योद्धा हो..कहीं भ्रमित हो गये?
राम ने उत्तर दिया- गुरुदेव, एक योद्धा को किस से लड़ना है, इसमें भेद नहीं करना चाहिए. यदि पारंपरिक बातों की आड़ में ठीक से व्याख्या नहीं की गयी तो परिणाम अनापेक्षित होंगे.

मुनिवर गदगद हो गये.- राम, तुमने एक योद्धा की मर्यादा की सही व्याख्या की. तुम धन्य हो. इस कहानी का यही संदेश है कि अपराध किसी ने भी किया हो, दंड देते समय भेदभाव करना अनुचित है. इससे एक तो आपके अधीनस्थों के बीच गलत संदेश जायेगा और दूसरा आप लक्ष्य प्राप्ति में भी कमजोर पड़ जायेंगे.
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Old 11-01-2013, 04:28 PM   #65
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

एक सीमा में प्रभावशाली लोगों का साथ जरूरी है

जरा एक नजर अपने ऑफिस में दौड़ाइये. आपको ऐसे कई लोग मिल जायेंगे, जो प्रभावशाली लोगों के साथ अक्सर नजर आते होंगे. कभी आपको उनसे कुछ जरूरी बात भी करना हुआ, तो पता चलेगा कि वह महाशय तो उनके साथ ही हैं. ऐसा करनेवाले लोग दो तरह के होते हैं.

एक तो वे जो उन प्रभावशाली लोगों के साथ रह कर उनसे बहुत कुछ सीखने की कोशिश करते हैं, ताकि वे उनके जैसा बन सकें और दूसरा वे लोग जो क्षणिक लाभ के लिए उनकी चापलूसी करते रहते हैं. फायदा तो दोनों ही तरह के लोगों को मिलता है, लेकिन जहां पहले तरह के लोगों को लांग टर्म फायदा होता है, वहीं दूसरे तरह के लोग को क्षणिक.
प्राचीन काल की बात है. एक बुद्धिमान ब्राह्मण था. उसे किसी कारण से दूसरे शहर जाना पड़ा. चोरी के डर से उसने अपनी जमा पूंजी 50 स्वर्ण मुद्राएं एक सेठ के यहां अमानत के रूप में रख दीं. सोचा, लौटने पर ले लूंगा.

शहर से लौटने पर ब्राह्मण ने अपनी स्वर्ण मुद्राएं मांगीं, तो सेठ की नीयत खराब हो गयी. उसने कहा- कैसी स्वर्ण मुद्राएं, कब दी थी, कोई प्रमाण या गवाह?
ब्राह्मण ठगा-सा रह गया. उसके पास कोई प्रमाण न था. उसे एक युक्ति सूझी. उसने राजा से अनुनय विनय की कि जब कल उनका राज्य भ्रमण हो तो वे कुछ देर के लिए उसे अपने साथ ले लें. अगले दिन जब राजा की सवारी शहर में निकली, तब राजा ने ब्राह्मण को अपने साथ बिठा लिया. बाजार से गुजरते हुए सेठ ने भी यह दृश्य देखा कि महाराज बड़े आत्मीयता के साथ ब्राह्मण से बातें कर रहे हैं. वह घबरा गया. उसने मन ही मन कहा- कहीं ब्राह्मण मेरी शिकायत राजा से न कर दे और मुङो कठोर दंड भुगतना पड़े.

शाम को दिन ढलते ही चुपचाप वह ब्राह्मण के घर गया और क्षमा मांगते हुए पचास स्वर्ण मुद्राएं लौटा दीं. ब्राह्मण खुश हो गया क्योंकि राजा के कुछ देर के साथ ने उसकी समस्या का समाधान कर दिया था. इसिलए प्रभावशाली लोगों के सानिध्य में रहना चाहिए. उनका साथ न केवल आपको परोक्ष रूप से बल्कि अपरोक्ष रूप से भी लाभ पहुंचाता है.
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Old 11-01-2013, 04:31 PM   #66
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

सकारात्मक सोचवालों के साथ रहना फायदेमंद

रजनीश अपने प्रिय मित्र से जब भी मिलता है, तो उसे एक बात जरूर कहता है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, तुम्हारी वजह से. असल में जब रजनीश चारों तरफ से निराश हो गया था, तो उसी मित्र ने उसे मोटिवेट करना शुरू किया. वह हमेशा यही कहता कि तुम कर सकते हो, तुममें क्षमता है. रजनीश ने उसकी बातों से उत्साहित होकर प्रयास किया और आज वह एक बेहतर जगह काम कर रहा है.

मेढकों का एक समूह राह में चला जा रहा था. चलते-चलते दो मेढक एक गहरे गड्ढे में गिर पड़े. शेष सभी मेढक घबरा गये और गड्ढे की अधिक गहराई देख निराशा से भर गये. उन दोनों मेढकों से कहने लगे- अब प्रयत्न करने का कोई लाभ नहीं..बाहर आना असंभव है. मेढकों की जान पर बनी थी. दोनों मेढकों ने जोर-जोर से उछल कर बाहर छलांग लगाना शुरू कर दिया. इस प्रयास में एक मेढक ऊंचाई से टकरा कर गिरा और मर गया. सभी मेढक अपने जीवित बचे साथी से कहने लगे. अरे जब मरना ही है तो प्रयत्न करने का क्या लाभ..वहीं पड़े-पड़े शांति से सांसें पूरी कर लो.

कुछ ने निरुत्साहित किया. सबको एक दिन मरना है..व्यर्थ फजीहत क्यों करते हो. कोशिश मत करो. लेकिन दूसरा मेढक और जोर से बाहर निकलने का प्रयास करता रहा. बार-बार छलांगें लगाता और गिर जाता. अतत: एक अविश्वसनीय छलांग से वह गड्ढे के बाहर निकल गया.
सभी साथी बहुत खुश हुए और कहा- हम सब तो मृत्यु के भय से तुम्हें लगातार छलांग न लगाने के लिए कह रहे थे, तब भी तुम छलांग लगाते रहे. क्यों?

मेढक ने उत्तर दिया- जब आप चिल्ला-चिल्ला कर मना कर रहे थे, तब मैंने समझा कि आप मेरा उत्साहवर्धन कर रहे हैं. उसी से मुङो गजब की प्रेरणा मिली. वास्तव में बात यह है कि मुङो गजब की प्रेरणा मिली. मुङो ऊंचा सुनायी देता है, इसलिए मैं यह नहीं समझ सका कि आपलोग क्या कह रहे हैं.

हमेशा सकारात्मक सोच वालों के बीच रहें. नकारात्मक बातों को अनसुनी कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें.
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Old 11-01-2013, 04:33 PM   #67
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विवेकपूर्ण माहौल में ही सही है तर्क करना

एक नदी के किनारे लगे हुए लकड़ी के तख्ते पर चार मेढक बैठे हुए थे, तभी एक लहर आयी और वह तख्ता नदी की धारा में बह चला. मेढक खुश हो गये, क्योंकि ऐसी जलयात्रा उन्होंने अपने जीवन में कभी नही की थी. कुछ देर बाद पहला मेढक बोला, सचमुच यह बड़ा अजीब लकड़ी का तख्ता है. यह तो जिंदा लोगों की तरह चल रहा है.

ऐसा तख्ता मैंने अपनी जिंदगी में न कभी देखा था और न ही कभी सुना था. तब दूसरा मेढक बोला - नहीं दोस्त! यह तख्त और तख्तों जैसा ही है. यह नहीं चल रहा है, चल तो नदी रही है समुंदर की ओर, और इस तख्त को भी अपने साथ लिये जा रही है. इस पर तीसरा मेढक बोला - न तो तख्ता चल रहा है और न हीं नदी. गति तो हमारे विचारों में है, क्योंकि विचार के बगैर कोई चीज नही चलती, इसलिए चल तो हमारे विचार रहे हैं. तीनों मेढक इसी बात पर झगड़ने लगे कि आखिर कौन-सी चीज चल रही है. बात बढ़ती गयी, पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा था. अंत में उनका ध्यान चौथे मेढक पर गया, जो कि सब सुन रहा था, फिर भी शांत बैठा था. उनलोंगो ने उसकी राय मांगी.

चौथा मेंढक बोला - तुममें से हर एक की बात सही है. गलत कोई नहीं है. गति तख्ते में भी है. नदी में भी है और हमारे विचारों में भी है. इस बात पर तीनों मेंढकों को बड़ा गुस्सा आया, क्योंकि कोई भी यह बात मानने के लिए तैयार नही था कि उसकी बात पूरी तरह से सही नहीं है और बाकी दोनों की बात पूरी तरह से गलत नहीं है.

तभी अजीब घटना हुई. तीनों मेंढक मिल गये और मिल कर चौथे को नदी में धकेल कर गिरा दिया. यह ध्यान रखें कि यदि तीन लोगों के विचार समान हों, तो वे चौथे को भी नष्ट कर सकते हैं. तीन गलत विचार मिल कर एक सही विचार को मार सकते हैं. इसलिए तर्क विवेकपूर्ण माहौल में ही संभव है. जहां माहौल विवेकपूर्ण न हो, वहां चुप रहकर सुनना ही बेहतर होता है.
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Old 11-01-2013, 04:36 PM   #68
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दिमाग पर अनावश्यक बातों का बोझ न डालें

अक्सर हम एक साथ कई चीजों पर विचार करते हैं. हम ऑफिस का भी कोई काम कर रहे हों, तो हमारे दिमाग में कई तरह की चीजें चलती रहती हैं. इनमें से ज्यादा चीजें अनावश्यक ही होती हैं. जैसे अगर हम कोई प्रोजेक्ट बना रहे हैं, तो हमारा ध्यान प्रोजेक्ट के प्रजेंटेशन में किन-किन चीजों को शामिल किया जाये, इस पर कम रहता है और इस पर ज्यादा रहता है कि अगर कोई गलती हो गयी, तो बॉस को क्या जवाब देंगे, इससे भविष्य पर असर तो नहीं पड़ेगा.

कहीं इस प्रोजेक्ट में मेरी सारी मेहनत का फायदा कोई और तो नहीं उठा लेगा आदि आदि. इसकी बजाय अगर सिर्फ इस बात पर ध्यान दिया जाये कि कैसे इस प्रोजेक्ट को बेस्ट किया जा सकता है, तो ज्यादा अच्छा होगा. क्योंकि प्रैक्टिकल एप्रोच यही है कि जिसे फायदा लेना होगा, वह आपके सोचने भर से फायदा लेना छोड़ नहीं देगा (मैनेजमेंट को यह पता रहता है कि काम कौन कर रहा है और फायदा कौन ले रहा है.) और जिसे डांटना होगा, वह आपके सोचने भर से नहीं डांटेगा, ऐसा नहीं हो सकता. फिर बिना मतलब दिमाग पर उन चीजों का प्रेशर देने का कोई मतलब नहीं है. यह हमेशा ध्यान रखें कि सौ फीसदी का मतलब होता है कि आपने उस काम में अपना सौ फीसदी दिया है, उस काम को करने के दौरान एक फीसदी भी उस काम से अलग खर्च नहीं किया.

गुरु ने शिष्य को हाथ में एक तेल से भरा कटोरा पकड़ा दिया और कहा, यह तुम्हारी परीक्षा है इसे पकड़ कर पूरे उपवन में घूमो और फिर मुङो बताओ कि वहां खिला हुआ सबसे सुंदर फूल कौन-सा है. ध्यान रखना इस कटोरे से एक बूंद भी तेल गिरने न पाये. शिष्य ने पूरे उपवन के कई चक्कर लगाये. जब वह वापस आया तो गुरु ने पूछा, अब बताओ सुंदर फूल का रंग क्या है?

शिष्य ने कहा, मैं सच कहता हूं, उपवन के फूलों को तो मैं ठीक से देख ही नहीं सका. मेरा पूरा ध्यान इसी में लगा रहा कि तेल की एक भी बूंद कहीं जमीं पर गिर ना जाये. तब गुरु ने कहा- यह तुम्हारी परीक्षा नहीं थी. यह तुम्हारी दीक्षा थी.
जो अपने साथ अनावश्यक भार लेकर चलता है. वह कुछ भी सीख-समझ नहीं पाता.
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Old 11-01-2013, 04:38 PM   #69
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अपनी कमजोरी में भी मजबूती ढूंढ़ें

एक भिश्ती (पानी भरनेवाला) के पास दो घड़े थे. उन घड़ों को उसने एक लंबे डंडे के दो किनारों से बांधा हुआ था. एक घड़ा तो मजबूत और सुंदर था, परंतु दूसरे घड़े में दरार थी.
भिश्ती हर सुबह नदी के तट पर जाकर दोनों घड़ों में पानी भरता और फिर शुरू होता लंबा सफर. जब तक वह मालिक के घर तक पहुंचता, टूटे हुए घड़े में से आधा पानी रास्ते में ही बह चुका होता, जबकि अच्छे घड़े में पूरा पानी होता. दरार वाला घड़ा उदास और दुखी रहता, क्योंकि वह अधूरा था. उसे अपनी कमी का एहसास था.

एक दिन टूटा हुआ घड़ा अपनी नाकामयाबी को और सहन नहीं कर पाया और वह भिश्ती से बोला. मुझे अपने पर शर्म आती है, मैं अधूरा हूं. मैं आपसे क्षमा मांगना चाहता हूं. भिश्ती ने उससे पूछा, तुम्हें किस बात की शर्म है. दरार वाला घड़ा बोला, आप इतनी मेहनत से पानी लाते हैं और मैं उसे पूरा नहीं रोक पाता. आधे रास्ते में ही गिर जाता है. मेरी कमी के कारण मालिक को आप पूरा पानी नहीं दे पाते हैं.

भिश्ती को टूटे हुए घड़े पर बहुत तरस आया. उसने प्यार से टूटे हुए घड़े से कहा, आज जब हम पानी लेकर वापस आयेंगे, तब तुम रास्ते में खूबसूरत फूलों को ध्यान से देखना. उस दिन टूटे हुए घड़े ने देखा कि रास्ते के किनारे बहुत ही सुंदर रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे. इधर मालिक के घर पहुंचते ही वह फिर उदास हो गया. उसे बुरा लगा कि फिर इतना पानी टपक गया था. भिश्ती टूटे हुए घड़े से बोला- क्या तुमने ध्यान दिया कि रास्ते में वह सुंदर फूल केवल तुम्हारी तरफवाले रास्ते पर ही खिले हुए थे.

मैंने फूलों के बीज केवल तुम्हारी तरफ ही बोये थे और हर सुबह जब हम इस रास्ते से गुजरते तो इन पौधों को तुम्हारे टपकते हुए घड़े से पानी मिल जाता था, वर्ना मैं इन्हें कहां पानी देता था. तुम जैसे भी हो बहुत काम के हो. अगर तुम न होते तो मालिक का घर इन सुंदर फूलों से सुसज्जित न होता.

हम सभी में कुछ न कुछ कमियां हैं. हम चाहें, तो अपनी कमजोरियों पर काबू पा सकते हैं. अपनी कमी में मजबूती ढूंढ़ सकते हैं. कोशिश करके तो देखिए.
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Old 11-01-2013, 04:42 PM   #70
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अपने शब्द और आचरण नरम रखें

गुस्सा किसे नहीं आता, सामनेवाले की कई बातें आपको भी खराब लगती होंगी, कुछ के आचरण से आप दुखी भी होंगे. हो सकता है कभी-कभी आप व्यवस्था से भी परेशान हो जाते होंगे. लेकिन इन परेशानियों के कारण अगर आपने अपने शब्द और आचरण को कठोर बना लिया है, तो जाने-अंजाने आप अपने लिए मुश्किलें ही खड़ी कर रहे हैं.

लगभग आठ साल पहले की बात है. उस समय मैं उत्तर प्रदेश के एक शहर में नौकरी करता था. कंपनी नयी थी, जिसे चलाने का दारोमदार ग्रुप हेड पर था. पहली बार उनसे मिल कर टीम के सभी लोग काफी उत्साहित हुए.

उनके पास कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए एक से एक आइडियाज थे. उन्हें यह भी पता था कि कैसे काम को आगे बढ़ाना है. अनुभव भी काफी था. जब काम शुरू हुआ, तो हमलोगों ने उनका एक नया रूप देखा. छोटी-छोटी बातों को लेकर कर्मचारियों को जलील करना, मीटिंग में छोटी-सी गलती करनेवालों के साथ बुरी तरह बर्ताव करना रोज की बात हो गयी.

हाल यह हो गया कि उनके बोलचाल और आचरण के कारण पहले दो महीने में ही सात अच्छे लोग कंपनी छोड़ कर चले गये. मैनेजमेंट को भी समझ आ गया था कि उसने उन्हें लाकर गलती की है. तीसरे महीने ही उनसे इस्तीफा मांग लिया गया.

भगवान बुद्ध अपने शरीर की आखिरी सांसे गिन रहे थे. उनके सारे शिष्य और अनुयायी उनके चारों ओर एकित्रत थे. ऐसे में उन्होंने भगवान से आखिरी संदेश देने का अनुरोध किया. बुद्ध अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य की तरफ मुख करके बोले, मेरे मुख में देखो, क्या दिख रहा है.

बुद्ध के खुले मुख की तरफ देख कर वह बोला, भगवान, इसमें एक जीभ दिखाई दे रही है. बुद्ध बोले, बहुत अच्छा, लेकिन कोई दांत भी है क्या?

शिष्य ने बुद्ध के मुख के और पास जाकर देखा और बोला, नहीं भगवान, एक भी दांत नहीं है. बुद्ध बोले, दांत कठोर होते हैं, इसलिए टूट जाते हैं. जीभ नरम होती है, इसलिए बनी रहती है. अपने शब्द और आचरण नरम रखो, तुम भी बने रहोगे. यह कह कर बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया.

बात पते की

- अगर आपने अपने शब्द और आचरण को कठोर बना लिया है, तो जाने-अंजाने आप अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं.
- अगर संस्थान में लंबा और सफल कैरियर बनाने के साथ ही एक अच्छा टीम लीडर बनना है, तो अपने शब्द और आचरण नरम रखें.
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