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Old 05-09-2014, 10:31 PM   #61
bindujain
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Default Re: लघुकथाएँ


प्राणी रक्षक
पवित्रा अग्रवाल

सपेरा रामू लुटा पिटा सा घर पहुँचा ।उसे देखते ही उसका बेटा चहका - "अरे बाबा आज तो नाग पंचमी हैं खूब कमाई हुई होगी ...आज तो पेट भर अच्छा खाना मिलेगा न ?'
सपेरा चुप रहा ।
"बाबा आप चुप क्यों हैं ? ...साँप की पिटारी भी आपके हाथ में नहीं है,क्या हुआ बाबा ?'
"आज का दिन बहुत खराब गया बेटा ।साँप की पिटारी प्राणी रक्षक समिति के सदस्यों ने छीन ली ।'
"क्यों बाबा ....वो उसका क्या करेंगे ?'
"वो सांपों को जंगल में ले जा कर छोड़ देंगे ।वो कह रहे थे हम अपने धंधे के लिये सांपों को कष्ट देते हैं, जो गलत है ।'
"उनकी यह बात तो गलत है बाबा।आपने उनसे कहा नहीं कि जानवरों पर इतनी दया आती है तो बकरीद पर कटने वाले उन लाखों निरीह बकरों को कटने से रोक कर दिखायें जिन्हें उस दिन काटा जाता है ।...सांप तो फिर भी काट कर आदमी की जान ले लेता है पर ये बकरे तो ..।'
"क्या कहता बेटा उन्हों ने कुछ बोलने ही नहीं दिया वो तो पुलिस बुलाने की धमकी दे रहे थे "



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Old 05-09-2014, 10:40 PM   #62
bindujain
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Default Re: लघुकथाएँ



झापड़
पवित्रा अग्रवाल

मैके आयी रंजना का अपनी भाभी चंदा से किसी बात पर झगड़ा हो गया।दोनो ने एक दूसरे को खरी खोटी सुनाई । विधवा माँ ने दोनो को शान्त करने की कई बार कोशिश की किन्तु दोनो ही उलझती रहीं ।''
शाम को पति गिरीश के घर लौटने पर चंदा ने रो-रो कर उस से रंजना की शिकायत की।
गिरीश को बहुत गुस्सा आया -"अच्छा ,कहाँ है रंजना ...उसे यहाँ बुला कर ला ।''
- "पर वह तो वापस चली गई ।'
गुस्से में भुनभुनाता हुआ वह माँ के पास गया -"माँ तुम्हारे सामने, तुम्हारी बेटी ने चंदा को इतना उल्टा सीधा कहा... उस की इंसल्ट की और तुम चुपचाप देखती रहीं ?'
-" तो मैं क्या करती ?''
" भाभी से इस तरह बोलने की उस की हिम्मत कैसे हुई....तुमने उस को एक झापड़ क्यों नही मारा ?'
"चंदा ने भी उस से कुछ कम नही कहा...फिर बेटी को ही झापड़ क्यों मारती ?'
"घर में छोटे-बड़े का भी कुछ लिहाज करना चाहिए कि नहीं ? चंदा उसकी बड़ी भाभी है, कुछ कह भी दिया तो क्या लौट कर जवाब देना जरूरी था ?'
"चंदा उस से बड़ी थी पर मैं तो शायद इस घर में तुम सब से छोटी हूँ ... तभी चंदा की तरफ ले कर मुझ से इस तरह बोल रहा है और अक्सर बोलता है,तेरी इस बद्तमीजी के लिये तुझे झापड़ मारने को किस से कहूँ ?...''

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Old 05-09-2014, 10:41 PM   #63
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Default Re: लघुकथाएँ



जन्नत

पवित्रा अग्रवाल


"सलीम भाई इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हो ?'
"साहब से छुट्टी लेने जा रहा हूँ।'
"कोई खास बात ?'
"हाँ अभी घर से फोन आया है,हमारी सास का इंतकाल हो गया है।'
"बीमार थीं ?'
"नहीं बीमार तो नहीं थीं,पेगनेन्ट थीं।बच्चा बच गया, सास की मौत हो गई।'
"तुम्हारी बीबी भी पेगनेन्ट है न ?'
"हाँ माँ-बेटी दोनो पेगनेन्ट थीं।'
"तुम्हारी बीबी के कितने बहन-भाई हैं ?'
"हमारी बीबी को मिला कर तेरह बहन भाई हैं ।हमारी बीबी सब से बड़ी है और अभी सब कुवाँरे हैं।..अल्ला जाने उन बच्चों का क्या होगा अब ।'
"मतलब ये चौदवाँ बच्चा पैदा हुआ है ?...इस जमाने में इतने साधन होते हुए भी ..
"हाँ मैडम,हमारे ससुर बहुत पुराने ख्यालात के हैं,पिछली दो जच्चगी में भी हमारी सास बहुत मुश्किल से बची थीं फिर भी उनको अक्ल नहीं आई,बोलते थे जच्चगी में मौत हुई तो सीधे जन्नत मिलेगी।'

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Old 05-09-2014, 10:45 PM   #64
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Default Re: लघुकथाएँ


लघुकथा- ईमानदार



रोज शाम बगीचे में घूमने जाना मेरी आदत में शामिल था | फाटक के पास ही शर्माजी मिल गए |
वहां रुक कर कुछ देर उनसे बतियाने लगा | सावन का पहला सोमवार था | आज कुछ विशेष रौनक थी | कुछ एक गुब्बारे-कुल्फी वाले भी आ जुटे थे |
शर्माजी से जैरामजी कर आगे बढ़ने लगा तो पास में खड़े कुल्फी वाले ने कुरते की बाह पकड़ कर कहा : "बाबूजी पैसे" ?
मैं हतप्रभ: "कैसे पैसे" ?
उसने पास खड़े कुल्फी खाते एक बच्चे की तरफ़ इशारा कर के कहा : "आपका नाम ले कुल्फी ले गया है, पैसे तो आपको देने ही पड़ेंगे" |
मुझे गुस्सा आ गया बच्चे के पास गया और दो थप्पड़ जड़ दिए और कहा "मुफ्त की कुल्फी खाते शर्म नही आती" ?
वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?


--विनय के जोशी




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Old 05-09-2014, 11:56 PM   #65
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Default Re: लघुकथाएँ

प्राणी रक्षक
पवित्रा अग्रवाल

झापड़
पवित्रा अग्रवाल

जन्नत
पवित्रा अग्रवाल

लघुकथा- ईमानदार
--विनय के जोशी
......
और कहा "मुफ्त की कुल्फी खाते शर्म नही आती" ?
वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?


उपरोक्त कघु कथाएं रोचक भी है और शिक्षाप्रद भी. साथ ही मानव प्रकृति के बारे में बहुत कुछ कहने में सक्षम हैं.
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Old 31-10-2014, 03:18 PM   #66
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Default Re: लघुकथाएँ

बोध कथा

एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक

थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या

करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये । अगले दिन सभी लोग

आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम

लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे । अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव

अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें । शिष्यों को कुछ

समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया

। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे,


वे बडे कष्ट में थे । जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली । महात्मा ने कहा,

अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली । महात्माजी ने पूछा – विगत

सात दिनों का अनुभव कैसा रहा ? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया,

आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है…

महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था… जब मात्र सात दिनों में ही

आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका

कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, सोचिये

कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी ? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर

अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह….

इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम

नफ़रत मत करो, तभी तुम्हारा मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते

तुम्हारा मन भी बीमार हो जायेगा ।
__________________


Disclaimer......!
"The Forum has given me all the entries are not my personal opinion .....! Copy and paste all of the amazing ..."
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Old 29-01-2016, 04:32 PM   #67
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Default Re: लघुकथाएँ

मन की शांति
महात्मा बुद्ध एक शिष्य के साथ वन में कहीं जा रहे थे। काफी चलने से वे दोनों थक गए और दोपहर में एक पेड़ के नीचे आराम के लिए रुके। उन्हें प्यास भी लग रही थी। वहां पास ही एक पहाड़ी थी, जहां झरना भी था। शिष्य झरने के पास पानी लेने के लिए गया। जब शिष्य झरने तक पहुंचा तो उसने देखा कि अभी-अभी कुछ जानवर दौड़कर पानी से निकले हैं, जिनसे पानी गंदा हो गया है। झरने के पानी में कीचड़ और कचरा ऊपर आ गया है। पानी पीने लायक नहीं दिख रहा था।
गंदा पानी देखकर शिष्य पानी लिए बिना ही बुद्ध के पास वापस आ गया। शिष्य ने बुद्ध को पूरी बात बताई और कहा कि वह अब नदी से पानी लेकर आएगा। नदी वहां से काफी दूर थी, इसलिए बुद्ध ने कहा कि उसी झरने से पानी ले आओ।
शिष्य वापस झरने के पास गया तो उसने देखा कि पानी में अभी भी गंदगी है। वह वापस बुद्ध के पास लौट आया। महात्मा बुद्ध ने शिष्य को फिर से उसी झरने से पानी लाने के लिए कहा।
एक बार फिर शिष्य झरने के पास गया तो उसने देखा कि अब पानी एकदम शांत और साफ हो चुका है। शुद्ध पानी लेकर वह बुद्ध के पास लौट आया। महात्मा बुद्ध ने इस प्रसंग के जरिए शिष्य को समझाया कि जीवन की भाग-दौड़ से हमारा मन भी झरने के पानी की तरह अशांत हो जाता है, जिससे क्रोध, मानसिक तनाव बढ़ता है। यदि शांति चाहते हैं तो हमें भी कुछ देर मन को एकांत में छोड़ देना चाहिए यानी हर रोज ध्यान करना चाहिए। ध्यान करते समय किसी प्रकार के विचार और सुख-दुख का स्मरण न करें। जब रोज ध्यान करेंगे तो कुछ समय बाद हमें भी मन की शांति महसूस होने लगेगी।
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Old 29-01-2016, 04:32 PM   #68
vijaysr76
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सबसे बड़ा मूर्ख
बादशाह अकबर घुड़सवारी के इतने शौकीन थे कि पसंद आने पर घोड़े का मुंहमांगा दाम देने को तैयार रहते थे। दूर-दराज के मुल्कों, जैसे अरब, पर्शिया आदि से घोड़ों के विक्रेता मजबूत व आकर्षक घोड़े लेकर दरबार में आया करते थे। बादशाह अपने इस्तेमाल के लिए चुने गए घोड़े की अच्छी कीमत दिया करते थे। जो घोड़े बादशाह की रुचि के नहीं होते थे उन्हें सेना के लिए खरीद लिया जाता था।
अकबर के दरबार में घोड़े के विक्रेताओं का अच्छा व्यापार होता था। एक दिन घोड़ों का एक नया विक्रेता दरबार में आया। अन्य व्यापारी भी उसे नहीं जानते थे। उसने दो बेहद आकर्षक घोड़े बादशाह को बेचे और कहा कि वह ठीक ऐसे ही सौ घोड़े और लाकर दे सकता है, बशर्ते उसे आधी कीमत पेशगी दे दी जाए।
बादशाह को चूंकि घोड़े बहुत पसंद आए थे, सो वैसे ही सौ और घोड़े लेने का तुरंत मन बना लिया।बादशाह ने अपने खजांची को बुलाकर व्यापारी को आधी रकम अदा करने को कहा। खजांची उस व्यापारी को लेकर खजाने की ओर चल दिया, लेकिन किसी को भी यह उचित नहीं लगा कि बादशाह ने एक अनजान व्यापारी को इतनी बड़ी रकम बतौर पेशगी दे दी, लेकिन विरोध जताने की हिम्मत किसी के पास न थी।
सभी चाहते थे कि बीरबल यह मामला उठाए। बीरबल भी इस सौदे से खुश न था। वह बोला, हुजूर कल मुझे आपने शहर भर के मूर्खों की सूची बनाने को कहा था। मुझे खेद है कि उस सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है। बादशाह अकबर का चेहरा मारे गुस्से के सुर्ख हो गया। उन्हें लगा कि बीरबल ने भरे दरबार में विदेशी मेहमानों के सामने उनका अपमान किया है।
गुस्से से भरे बादशाह चिल्लाए, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमें मूर्ख बताने की, क्षमा करें बादशाह सलामत।बीरबल अपना सिर झुकाते हुए सम्मानित लहजे में बोला आप चाहें तो मेरा सर कलम करवा दें। यदि आप के कहने पर तैयार की गई मूर्खों की फेहरिस्त में आपका नाम सबसे ऊपर रखना आपको गलत लगे।
दरबार में ऐसा सन्नाटा छा गया कि सुई गिरे तो आवाज सुनाई दे जाए। अब बादशाह अकबर अपना सीधा हाथ उठाए, तर्जनी को बीरबल की ओर ताने आगे बढ़े। दरबार में मौजूद सभी लोगों की सांस जैसे थम सी गई थी। उत्सुक्ता व उत्तेजना सभी के चेहरों पर नृत्य कर रही थी। उन्हें लगा कि बादशाह सलामत बीरबल का सिर धड़ से अलग कर देंगे। इससे पहले किसी की इतनी हिम्मत न हुई थी कि बादशाह को मूर्ख कहे।
लेकिन बादशाह ने अपना हाथ बीरबल के कंधे पर रख दिया। वह कारण जानना चाहते थे। बीरबल समझ गया कि बादशाह क्या चाहते हैं। वह बोला, आपने घोड़ों के ऐसे व्यापारी को बिना सोचे-समझे एक मोटी रकम पेशगी दे दी, जिसका अता-पता भी कोई नहीं जानता। वह आपको धोखा भी दे सकता है। इसलिए मूर्खों की सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है। हो सकता है कि अब वह व्यापारी वापस ही न लौटे। वह किसी अन्य देश में जाकर बस जाएगा और आपको ढूढ़े नहीं मिलेगा। किसी से कोई भी सौदा करने के पूर्व उसके बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिए। उस व्यापारी ने आपको मात्र दो घोड़े बेचे और आप इतने मोहित हो गए कि मोटी रकम बिना उसको जाने-पहचाने ही दे दी। यही कारण है बस।

तुरंत खजाने में जाओ और रकम की अदायगी रुकवा दो।अकबर ने तुरंत अपने एक सेवक को दौड़ाया। बीरबल बोला, अब आपका नाम उस सूची में नहीं रहेगा। बादशाह अकबर कुछ क्षण तो बीरबल को घूरते रहे, फिर अपनी दृष्टि दरबारियों पर केंद्रित कर ठहाका लगाकर हंस पड़े। सभी लोगों ने राहत की सांस ली कि बादशाह को अपनी गलती का अहसास हो गया था। हंसी में दरबारियों ने भी साथ दिया और बीरबल की तारीफ की।
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Old 08-02-2016, 04:48 PM   #69
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Default Re: लघुकथाएँ

सकारात्मक सोच

सुख पाने के लिए सभी तरह-तरह के प्रयास करते हैं। कुछ लोग धन, सुविधाएं आने से सुखी हो जाते हैं और इनके जाने से दुखी हो जाते हैं। यदि हम दोनों ही परिस्थितयों के अनुसार अपनी सोच बदल लें तो धन न होने पर भी सुखी रह सकते हैं।
इस किस्से से समझे सुखी रहने का सीधा तरीका...
एक आश्रम में संत अपने शिष्य के साथ रहते थे। एक दिन शिष्य ने संत से कहा कि गुरुजी एक भक्त ने आश्रम के लिए गाय दान की है।
संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज ताजा दूध पीने के लिए मिलेगा। संत और शिष्य ने गाय के दूध का सेवन करने लगे।
कुछ दिन बाद शिष्य ने संत के कहा कि गुरुजी जिस भक्त ने गाय दी थी, वह अपनी गाय वापस ले गया है।
संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज-रोज गोबर उठाने की परेशानी खत्म हो गई।
इस किस्से की सीख यही है कि परिस्थितयों के अनुसार हमें अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए। यही सुखी रहने का सीधा तरीका है।
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Old 10-02-2016, 11:32 PM   #70
rajnish manga
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Default Re: लघुकथाएँ

उक्त तीनों प्रसंग रोचक भी हैं और प्रेरक भी हैं. धन्यवाद, विजय जी.


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