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Old 05-11-2011, 06:11 PM   #61
Dark Saint Alaick
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मूली में मौजूद एंटी आक्सीडेंट कैंसर के इलाज में फायदेमंद


आगरा ! कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से बचाव के लिये औषधीय पौधों की ग्रीन नैनो टेक्नोलाजी काफी कारगर साबित हो रही है। दयालबाग शिक्षण संस्थान के रसायन विभाग में कल यहां शुर हुयी तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में हरित पौधों की उपयोगिता पर प्रांस और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कैंसर की रोकथाम पर चर्चा करते हुये कहा कि नैनो कणों से समय रहते कैंसर के सेल का पता लगाया जा सकता है। इन कणों की एंटी बैक्टीरियल प्रापर्टी कैंसर को शरीर के अन्दर खत्म करने में सहायक हैं। केमिस्ट्री आफ फाइटोपोटेंशियल्स हेल्थ एनर्जी एन्ड एन्वायरमेंट के सम्मेलन में अमेरिका के मिसूरी विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर कैटेश कैरी ने कहा कि ग्रीन टैक्नोलाजी तकनीक से मनुष्य के शरीर में व्याप्त गंभीर बीमारियों से लडा जा सकता है तथा मोरपंखी के नैनो कणों से महिलाओं के स्तन के कैंसर का इलाज किया जा सकता है। इटली के बोलगोना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लूका वाल्गीमिली ने अपने शोध के माध्यम से यह निष्कर्ष निकाला है कि मूली में मौजूद एंटी आक्सीडेंट कैंसर को दूर करने में सहायक हैं इसलिए मूली का सेवन अधिक से अधिक किया जाना चाहिये। अमेरिका के ब्राउन विवि के प्रोफेसर के सी अग्रवाल ने फफूंदी और सूक्ष्म जीवों से होने वाली बीमारियों से बचने के उपाय सुझाये वहीं प्रोफेसर जार्ज ने नैनो तकनीक का पेड पौधा एवं मनुष्य के जीवन पर पडने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला। आयोजन सचिव प्रोफेसर एम.एम. श्रीवास्तव ने कहा कि यह सेमीनार छात्रों के लिए मील का पत्थर साबित होगा । मिसूरी विश्वविद्यालय के साथ करार होने से यहां के छात्र अमेरिका जाकर अपना शोध कार्य पूरा कर सकेंगे। सेमीनार में आज इस विषय पर वृहद चर्चा होगी कि कैंसर की रोकथाम के लिये औषधीय पौधों की ग्रीन नैनो टैक्नोलाजी को प्रयोग में लाया जाय और डायबिटीज और किडनी फेल आदि बीमारियों से बचाने के लिये प्रयोग में आने वाली एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव से कैसे बचा जाये।
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Old 05-11-2011, 06:52 PM   #62
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भारत आ सकती है ‘उड़ने वाली कार’


पणजी ! ‘उड़ने वाली कार’ डिजाइन कर उसका परीक्षण करने वाली एक अमेरिकी कंपनी भावी बाजार के तौर पर भारत, ब्राजील और चीन में संभावनायें तलाश रही है। उड़ने वाली कार विकसित करने वाली अमेरिकी कंपनी टेराफुगिया के सह संस्थापक कार्ल डिएट्रिक ने प्रेट्र को बताया कि कंपनी अगले साल के अंत तक इस कार की व्यावसायिक लांचिंग करेगी। इस कार की खासियत है कि जब यह सड़क पर होती है तो इसमें लगे डैने मुड़कर अंदर हो जाते हैं और इस तरह से इसे घर के गैराज में खड़ा किया जा सकता है। वहीं सड़क पर दौड़ते समय यह 30 सेकेंड के भीतर हवा में उड़ान भर सकती है। उन्होंने बताया कि 2,79,000 (करीब 1.40 करोड़ रुपये) डालर की कीमत वाली इस कार के लिए पहले ही करीब एक सौ लोग बुकिंग करा चुके हैं। पेट्रोल की टंकी फुल करने पर यह कार 110 मील प्रति घंटे की रफ्तार से 460 मील तक उड़कर जा सकती है। उन्होंने बताया, ‘‘ अमेरिका में लांचिंग के बाद हम यूरोप में इसकी बिक्री करेंगे। भारत, ब्राजील और चीन भावी बाजार होंगे।’’ डिएट्रिक यहां ‘गोवा थिंक फेस्ट 2011’ में भाग लेने आए हुए हैं।
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Old 05-11-2011, 06:56 PM   #63
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जल्दी पेश होगा चाय से बना शीतल पेय


गुवाहाटी ! जोरहाट में इस महीने के अंत में आयोजित होने वाले ‘विश्व चाय विज्ञान सम्मेलन में चाय से बना शीतलपेय पेश किया जाएगा। यह अपनी तरह का पहला शीतलपेय होगा। अनुसंधान केन्द्र के निर्देशक एम. हजारिका ने संवाददाताओं को बताया कि इस पेय को असम के ‘तोकलाई एक्सपेरिमेंटल स्टेशन’ में विकसित किया गया है। इसका जीवन काल छह महीने का होगा तथा इसका प्रचार ‘स्वास्थ्यवर्धक पेय’ के रूप में किया जाएगा। इसमें स्वीकृत फ्लेवर डाले जाएंगे। उन्होंने बताया, ‘‘युवा पीढी को ध्यान में रखकर विकसित किए गए चाय से बने इस काबर्नडाईआक्साइड रहित पेय को जोरहाट में 22 से 24 नवंबर तक आयोजित ‘विश्व चाय विज्ञान सम्मेलन में लांच किया जाएगा।’’ ‘विश्व चाय विज्ञान सम्मेलन का आयोजन देश के प्रमुख चाय अनुसंधान संस्थान के शताब्दी समारोह के समापन के अवसर पर किया जा रहा है। संस्थान के शताब्दी वर्ष में चाय उद्योग को एक विशेष तोहफा देने के लिए अनुसंधान केन्द्र पिछले 10 वर्षों से इस पेय पर काम कर रहा है।
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Old 05-11-2011, 07:14 PM   #64
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पराबैंगनी किरणों से बचाव की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकती है सनक्रीम


लंदन ! यदि आपको लगता है कि सनक्रीम सूर्य की पराबैंगनी किरणों से आपका बचाव कर सकती है तो इस बारे में एक बार फिर सोचिए, क्योंकि एक नए शोध के मुताबिक वास्तव में यह त्वचा की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकती है। ब्राउन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि मानव की त्वचा में संवेदक पाए जाते हैं जो सूर्य की किरणों की पहचान करते हैं। ऐसे ही तीन प्रकाश संवेदक आंख की रेटीना में भी पाए जाते हैं जो सूर्य की किरणों से बचाव के लिए शरीर को तत्काल मेलेनिन के उत्सर्जन के लिए प्रेरित करते हैं। संभवत: यह पराबैंगनी किरणों से त्वचा के झुलसने से पहले जल्द से जल्द सुरक्षा प्रदान करने की प्रणाली है। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं का मानना है कि सनक्रीम से धूप को पूरी तरह से रोकना सही नहीं है क्योंकि वे कुछ तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को रोकती हैं जो शरीर की प्राकृतिक रक्षा के लिए जरूरी है। यह शोध ‘करेंट बायोलॉजी’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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Old 05-11-2011, 09:51 PM   #65
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बड़े औद्योगिक घरानों में महिलाओं के शोषण की शिकायतें बढीं

जयपुर ! राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने कहा कि बडे औद्योगिक घरानों में कार्यरत महिलाओं के शोषण की शिकायतें बढ रही हैं। शर्मा ने आज यहां कहा कि आयोग को बडे औद्योगिक घरानों में कार्यरत महिलाओं की ओर से शोषण और उन्हें परेशान करने की शिकायतें मिल रही हैं । आयोग कुछ शिकायतों की वरीयता से जांच करा रहा है । उन्होंने कहा कि महिलाओं को तरक्की देने के नाम पर शोषण की शिकायतें मिल रही हैं। आयोग ने शोषण करने वाले औद्योगिक घरानों के बारे में शिकायत करने के लिए टोल फ्री सेवा भी शुरू की है। शर्मा ने कहा कि आयोग की ओर से 'महिला अधिकार अभियान' शुरु किया जायेगा। उन्होंने बताया कि प्रथम चरण में राजस्थान, पंजाब, केरल एवं उत्तराखण्ड में अभियान शुरू किया जोयगा। राजस्थान में इसकी शुरुआत कोटा, उदयपुर एवं बूंदी जिलों से की जायेगी।
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Old 06-11-2011, 04:06 PM   #66
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जीनोम के मानचित्र की कामयाबी से देश में अरहर उत्पादन हो सकता है तीन गुना

नयी दिल्ली ! अरहर की एक महत्वपूर्ण किस्म के जीनोम का मानचित्र तैयार किए जाने के बाद उन्नत किस्म की अरहर के विकास और खेती के जरिए देश में अरहर-उत्पादन तीन गुना किया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिक नागेंद्र कुमार सिंह ने प्रेट्र से कहा, ‘‘ नई किस्म की खेती से अरहर का उत्पादन बढकर दो टन प्रति हेक्टेयर हो सकता है, जो फिलहाल 650 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।’’ सिंह की अगुवाई में 31 वैज्ञानिकों ने अरहर के जीनोम का मानचित्र तैयार किया है। भारत को 1.80 करोड़ टन के रिकार्ड उत्पादन के बावजूद 2010-11 में 30 लाख टन दालों का आयात करना पड़ा। 2010-11 में देश में अरहर का उत्पादन 28.9 लाख टन रहा था। सिंह ने कहा कि इसके व्यावसायिक इस्तेमाल से पहले 4-5 साल तक विभिन्न क्षेत्रों में नई किस्मों का परीक्षण किया जाएगा। आईसीएआर के वैज्ञानिक ने कहा कि सभी राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में यह परीक्षण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह परीक्षण कानपुर के दलहन अनुसंधान संस्थान के संयोजन से किया जाएगा।
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Old 06-11-2011, 04:41 PM   #67
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महिलाओं को ज्यादा भाता है कारोबार के लिए यात्रा करना

नई दिल्ली ! आम धारणा है कि पुरुषों को कारोबार और कामकाज के लिए यात्रा करना ज्यादा पसंद है, लेकिन एक ताजा अध्ययन के अनुसार भारत में 94 फीसद महिलाकर्मीं कामकाज के लिए यात्रा और दौरों पर जाना पसंद करती हैं। खास बात यह है कि कामकाजी महिलाएं इस यात्राओं के दौरान अपनी निजी कार्य भी निपटाती हैं। ट्रैवल साइट ट्रिपएडवाइजर के एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार, 90 फीसद का कहना है कि उन्हें आधिकारिक कामकाज के लिए यात्रा करना पसंद है। 94 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे कामकाज के लिए यात्रा करना पसंद करती हैं, वहीं 87 फीसद पुरुषों ने इसी तरह की राय जाहिर की। सर्वेक्षण में सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों के अलावा बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्वरोजगार में लगे 2,500 ऐसे लोगों को शामिल किया गया, जिन्हें काम के सिलसिले में यात्रा करनी पड़ती है। ट्रिपएडवाइजर (भारत) के भारत में प्रबंधक निखिल गंजू ने कहा, ‘‘सर्वेक्षण में कामकाजी महिलाओं के व्यवहार और प्राथमिकताओं को लेकर कुछ दिलचस्प पहलू सामने आए हैं, जो परंपरागत धारणा के उलट हैं।’’ ‘बिजनेस ट्रैवल सर्वे’ के अनुसार कारोबारी उद्देश्य से विदेशी गंतव्यों की संख्या में इस साल इजाफा हुआ है। 73 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वे कामकाज के सिलसिले में कई बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। सर्वेक्षण में बताया गया है कि महिलाएं आमतौर पर अपनी कारोबारी यात्रा को बढाकर उसी दौरान छुट्टियों भी लेती हैं। 54 फीसद महिलाओं ने कहा कि वे कारोबारी यात्रा के दौरान अपनी निजी काम भी करती हैं। वहीं सिर्फ 9 प्रतिशत पुरुष ही कारोबारी यात्रा के दौरान निजी काम भी करते हैं। इसमें कहा गया है कि 50 प्रतिशत महिलाएं किसी दूसरे शहर में अपनी निजी काम को पूरा करने के लिए बिजनेस ट्रिप बनवा लेती हैं। सिर्फ 20 प्रतिशत पुरुष ही ऐसा करते हैं। सर्वेक्षण में बताया गया है कि कर्मचारी कारोबार के सिलसिले में यात्राएं कम करने के लिए अब ज्यादा से ज्यादा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं। करीब 50 फीसद सरकारी अधिकारी प्रौद्योगिकी के जरिये कामकाज निपटाना पसंद करते हैं। सर्वेक्षण में एक और रोचक तथ्य सामने आया है। आमतौर पर माना जाता है कि पुरुषों के प्रौद्योगिकी ज्यादा आसान है। पर इसके उलट 84 फीसद महिलाओं ने कहा कि प्रौद्योगिकी की वजह से उनकी कामकाज के लिए यात्राएं कम हुई हैं। वहीं 63 प्रतिशत पुरुषों ने इसी तरह की राय जाहिर की। हालांकि, कंपनियां बिजनेस यात्रा को कम करने का प्रयास कर रही हैं। सर्वेक्षण में शामिल 65 प्रतिशत लोगों का कहना है कि 2010 से उनकी कारोबारी यात्रा में इजाफा नहीं हुआ है और यदि कहीं इजाफा हुआ भी है, तो काफी मामूली है।
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Old 06-11-2011, 05:26 PM   #68
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आवर्त सारणी में शामिल हुए तीन नए सदस्य


लंदन ! आवर्त सारणी में तीन नए सदस्य जुड़े हैं इनमें से एक का नाम मशहूर खगोलविद निकोलस कॉपरनिकस के नाम पर रखा गया है। इंटरनेशनल यूनियन आफ प्योर एण्ड एप्लाइड फिजिक्स (आईयूपीएपी) की महासभा ने परमाणु क्रमांक संख्या 110, 111 और 112 वाले नए तत्वों के नामों को मंजूरी दे दी है। इनके नाम है डर्मस्टैडटियम (डीएस), रोंटेजेनियम (आरजी) और कॉपरनिशियम (सीएन)। डेली मेल की खबर के मुताबिक, महासभा में शामिल विभिन्न देशों के 60 सदस्यों ने लंदन के ‘इंस्टिट्यूट आफ फिजिक्स (आईओपी)’ में हुई बैठक में नए नामों को मंजूरी दी। आईओपी के मुख्य कार्यकारी और आईयूपीएपी के महासचिव डॉक्टर रॉबर्ट किर्बी-हैरिस ने कहा, ‘‘इन तत्वों के नामों को पूरी दुनिया के विभिन्न भौतिकविदों से विमर्श के बाद मंजूरी दी गई है और हम इनके आवर्त सारणी में शामिल होने से प्रसन्न हैं।’’ इन्हें अब आवर्त सारणी में स्थान मिला है मगर इनकी खोज बहुत पहले हो गयी थी। लेकिन वैज्ञानिकों संस्थाओं द्वारा औपचारिक तौर पर इनका नामकरण जरूरी था। सामान्य तौर पर तत्व का नाम उसके खोजकर्ता के नाम पर रखा जाता है। यूनिवर्स टूडे के मुताबिक कॉपरनिशियम की खोज नौ फरवरी 1996 को हुई थी। इसका वास्तविक नाम उनूनबियम था। आईयूपीएपी ने इसके नाम और संकेत को कॉपरनिकस की 537वीं जयंति पर 19 फरवरी 2010 को मंजूरी दी। कॉपरनिकस पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि पृथ्वी सूर्य के ईर्द-गिर्द चक्कर लगाती है। उनकी मृत्यु वर्ष 1543 में हुई।
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Old 06-11-2011, 05:31 PM   #69
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पंखों से अपने पार्टनर को रिझाते थे डायनोसोर


लंदन ! वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि पक्षी की तरह दिखने वाले डायनोसोर अपने साथी को रिझाने के लिए शोख अदाओं के रूप में अपनी पूंछ के पंखों को हिलाया करते थे। डेली मेल की खबर के मुताबिक, यूनिवर्सिटी आॅफ अलबेर्टा के जीवाश्म विज्ञानियों ने पाया है कि ‘ओविराप्टर’ नामक डायनोसोर अपनी मादाओं की इस अदा पर जान छिड़कते थे। पूंछ से जुड़े पंख उनकी कमजोरी थी। उन्होंने पाया कि 7.5 करोड़ वर्ष पहले मौजूद ओविराप्टर आज के मोर या लास वेगास की शो-गर्ल्स की तरह ही अपने साथी का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी पूंछ पर लगे पंख हिलाया करते थे। उनकी पूंछ की बनावट में हड्डियों का जटिल संरचना मिली है। दल का नेतृत्व करने वाले स्कॉट प्रेसन्स ने कहा कि उनकी पूंछ में हड्डियों की गहन संरचना ने उसे लचीला बना दिया।
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Old 07-11-2011, 07:24 PM   #70
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पहले रॉन्टजेन रे के नाम से जानी जाती थी एक्स रे

नयी दिल्ली ! चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नयी क्रांति लाने वाली एक्स रे किरणों को पहले रॉन्टजेन रे के नाम से जाना जाता था। एक्स रे किरणों का नामकरण पहले इसके अविष्कारक विलहेल्म कोनराड रॉन्टजेन के नाम पर किया गया था, बाद में इसे एक्स रे नाम दिया गया। आज विज्ञान के इस वरदान रूपी चमत्कार का अविष्कार हुए 130 साल से ज्यादा समय हो गया है लेकिन समय के साथ चिकित्सा विज्ञान में इसकी प्रासंगिकता और योगदान बढता ही चला गया। एक्स रे किरणों की बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज के शिक्षक प्रोफेसर अगम कुमार झा ने कहा, ‘‘एक्सरे कम तरंगदैध्य का विद्युत चुंबकीय विकिरण है जिसका प्रयोग विज्ञान की अगल अलग शाखाओं में होता है। इसका प्रयोग फेफड़े के कैंसर, निमोनिया, आंत की बिमारियों, किडनी की बीमारियों आदि का पता लगाने में किया जाता है। इसका प्रयोग कैंसर की बीमारी के इलाज के लिए भी किया जाता है। कैंसर के इलाज में एक्सय रे का प्रयोग रेडियोथैरेपी कहलाता है।’’ प्रोफेसर झा ने कहा, ‘‘एक्स रे का अविष्कार आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को रॉन्टजेन की एक अनुपम भेंट है। इस खोज के लिए रॉन्टजेन को 1901 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक्स रे किरणें विज्ञान के विद्यार्थियों की पढाई में भी काफी मददगार होती हैं। इसका प्रयोग कर चिकित्सा विज्ञान के छात्र मानव शरीर के अंगों का अध्ययन करते हैं। एक्स रे फोटोइलेक्ट्रॉन स्पेक्ट्रोस्कोपी का प्रयोग कर भौतिक विज्ञान के छात्रों को सतह विज्ञान के अध्ययन में मदद मिलती है।’’ एक्स रे का प्रयोग विज्ञान की कई शाखाओं में किया जाता है। इनमें चिकित्सा विज्ञान, भौतिक विज्ञान, खगोलीय विज्ञान आदि शामिल हैं। इसने विज्ञान को एक नया आधार दिया और मानव जीवन को सरल बनाया। एक्स रे के प्रयोग पर बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय से एक्स रे किरणों के विषय पर शोध कर रहे अभिनंदन राय ने कहा,‘‘ एक्स रे का प्रयोग चिकित्सा विज्ञान के अलावा कई दूसरे क्षेत्रों में भी किया जाता है। इसका प्रयोग हवाई अड्डों, मेट्रो और रेलवे स्टेशनों आदि पर यात्रियों के सामान की सुरक्षा जांच में किया जाता है। इसका प्रयोग फाइन आर्ट फोटोग्राफी में भी किया जाता है। चित्रकारी में भी एक्स रे किरणों की जरूरत पड़ती है। इसका प्रयोग चित्रों के रंगद्रव्यों या पिगमेंट्स के अध्ययन के लिए किया जाता है।’’ राय ने कहा, ‘‘ एक्स रे का प्रयोग इंडस्ट्रीयल रेडियोग्राफी के लिए भी किया जाता है। वहां इसका प्रयोग कलपुर्जों आदि की जांच के लिए किया जाता है। सीमा सुरक्षाकर्मी एक्स रे का प्रयोग कर ट्रकों, दूसरे भारी वाहनों के आंतरिक भागों का निरीक्षण करते हैं।’’ एक्स रे पर रॉन्टजेन के अलावा और भी कई वैज्ञानिकों ने शोध किए। इनमें निकोला टेस्ला, फिलिप लेनार्ड, थॉमस एडिसन, रसेल रेनॉल्ड्स जैसे कई वैज्ञानिक शामिल हैं। आज एक्स रे किरणों के प्रयोग से जो भी क्रांति संभव हुई है उसमें इन वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा योगदान है। इन वैज्ञानिकों ने एक्स के स्वरूप, अलग-अगल प्रयोगों आदि से विज्ञान जगत को रूबरू कराया जिसके लिए इन वैज्ञानिकों को आने वाली पीढियां भी याद करेंगी।
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