04-04-2014, 07:36 AM | #61 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
04-04-2014, 11:29 PM | #62 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
अपनी राय से अवगत कराने के लिये धन्यवाद, मित्र.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
04-04-2014, 11:35 PM | #63 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
भोजपुरी लोककथा
सेर को सवा सेर एक गाँव में सेर सिंह नाम का एक ठग रहता था । लोगों को ठगना उसके बाएँ हाथ का खेल था ।एक बार वह अपने गाँव के बाहर बैठकर शिकार की प्रतिक्षा कर रहा था । अचानक थोड़ी दूर पर उसे एक आदमी आता हुआ दिखाई पड़ा । सेर सिंह उस आदमी के पास पहुँचा और उसका परिचय पूछने लगा । उस आदमी ने कहा, "मेरा नाम सवासेर सिंह है और मैं शहर जा रहा हूँ ।" सेर सिंह ने उससे शहर जाने का कारण पूछा । सवासेर सिंह ने कहा, "मेरे पास एक बहूमूल्य हीरा है और उसी को बेचने शहर जा रहा हूँ ।" इसके साथ ही सवासेर सिंह ने अपने पाकेट से हीरा निकालकर सेर सिंह को दिखाया । सेर सिंह ने कहा,"शहर के कई जौहरी मेरे मित्र हैं । तुम मेरे साथ चलोगे तो ठगे नहीं जाओगे ।" सवासेर सिंह उसके साथ शहर जाने के लिए तैयार हो गया । सेर सिंह सवासेर सिंह को लेकर पहले अपने घर आया और उसकी बहुत आवभगत की । सवासेर सिंह ने कहा, "मित्र ! क्या मैं कुछ दिन तुम्हारे साथ बिता सकता हूँ ?" सेर सिंह सहर्ष तैयार हो गया क्योंकि उसकी योजना सफल होती नजर आई । रात को जब सवासेर सिंह सो गया तो सेर सिंह ने उसके कपड़ों की अच्छी तरह से तलाशी ली पर हीरा नहीं मिला । ऐसे ही दिन पर दिन बीतने लगे । रात को खाने-पीने के बाद सवासेर सिंह खर्राटे भरने लगता और सेर सिंह रातभर जगकर उसकी तथा उसके कपड़ों की तलाशी लेता रहता । सेर सिंह को बहुत अचंभा होता क्योंकि प्रतिदिन सोने से पहले उसे सवासेर सिंह के हाथ में वह हीरा दिखाई देता था । एक दिन आजिज होकर सेर सिंह ने सवासेर सिंह से पूछ ही लिया, "मित्र! तुम रात को हीरा कहाँ रख देते हो?" सवासेर सिंह ने कहा, "सोने से पहले मैं चुपके से इस हीरे को तुम्हारे पाकेट में डाल देता हूँ औरसुबह में निकाल लेता हूँ ।" सेर सिंह सवासेर सिंह के पैरों पर गिर पड़ा और कहा, "गुरुजी! मैं तो ठग हूँ पर आप हैं ठगाधिराज ।सेर कासवासेर।" (कथा श्रेय: प्रभाकर पाण्डेय)
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04-04-2014, 11:51 PM | #64 | |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
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यह लोककथा हमे शांतमन से हर वस्तुओं को सूक्ष्मता से निरीक्षण करने की सुंदर सीख देती हैं, और हमे भी करोड़ बुद्धि बनने की प्रेरणा देती हैं.....
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13-04-2014, 11:43 PM | #65 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
चीनी कथा
हुंगशान पर्वत की कहानी मध्य दक्षिण चीन में खड़ा हुंगशान पर्वत चीन का एक विश्वविख्यात दर्शनीय क्षेत्र हैं और विश्व प्राकृतिक धरोहर सूची में शामिल एक रमणिक स्थल भी है । हुंगशान पर्वत का नाम पहले यीशान था , बाद में उस का नाम बदल कर हुंगशान रखा गया , इस का क्या कारण है? चीनी प्राचीन कथा के अनुसार हुंगती चीनी राष्ट्र का पूर्वज था , वह राजा के आसन पर सौ साल बैठे और उसे प्रजा से बड़ा स्वागत और समर्थन मिला था । आयु अधिक होने के कारण उस ने राजा की गद्दी कम उम्र वाले श्योहो के हवाले कर दी । लेकिन हुंगती जीवन से गहरा प्यार करता था , वह यो बेकार बैठे मरना नहीं चाहता , अतः उस ने अमर रहने के रहस्य की खोज करने का निश्चय किया । वह ताओ धर्म के आचार्य यङछङची और फुछ्योकुंग को अपना गुरू बना कर उन से संजीवन दवा बनाने की कला सीखने लगा। ताओ धर्म चीन का अपना देशी धर्म है, इस के विकास के प्रारंभिक काल में संजीवनी परम्परा के अनुसार संजीवन दवा बनाने की निंरतर कोशिश की जाती थी। संजीवन दवा बनाने के लिए एक शांत और सुन्दर पहाड़ी क्षेत्र चुनना अवश्यक था, जीवन शक्ति से ओतप्रोत स्थल में दवा बनाई जा सकती थी। इसलिए हुंगती अपने दोनों गुरू के साथ ऐसा रमणीक स्थान तलाशने निकले। >>>
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13-04-2014, 11:49 PM | #66 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
उन्हों ने अनेक पहाड़ों और नदियों को पार कर देश की जगह जगह पग पग छांटी ।अंत में वे मध्य दक्षिण चीन के यी शान पहाड़ आ पहुंचे , इस पहाड़ में बहुत सी ऊंची ऊंची पर्वत चोटियां हैं, जो आकाश से बातें करती हुई जान पड़ती है , पहाड़ी चोटियों के बीच सफेद बादलरेशमी कपड़े की भांति तिर रहा है , पहाड़ी घाटियां गहरी और सीधी है; पहाड़ी वादियों में कोहरा फैल रहा है । इस प्रकार के प्राकृतिक सौंदर्य से हुंगती एकदम मुग्ध हो गया और तीनों लोग इस जगह को संजीवन दवा बनाने वाला वांछित स्थान मान गए।
वे यीशान में बस कर रोज लकड़ी काटने, जड़ी बूटी तोड़ने तथा खनिज खोजने में जुटे रहे और संजीवनी देने वाली दवा बनाने की कोशिश करते रहे । कहा जाता थाकि संजीवन दवा बनाने में नौ बार उसे तेज आंच से ताप दी जाने की आवश्यकता थी । यह एक अत्यन्क कठोर और लंबे समय का काम था, असाधारण कठिन काम के सामने भी हुंगती का संकल्प कभी हिला नहीं हुआ , लगातार चार सौ अस्सी साल के अथक प्रयास के बाद चमकदार स्वर्णिम दवा की गोली अखिरकार तैयार हो गई । एक गोली के सेवन से हुंगती को अनुभव हुआ कि उस का शरीर अद्भुत हल्का बन गया और पक्षी की भांति हवा में घूमने फिरने में सक्षम हो गया है। हुंगती के सफेद बाल पुनः काले हो गये। लेकिन वृद्ध होने के कारण जो त्वचा की झुर्रियां पड़ी थी, वह नहीं बदलीं। >>>
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13-04-2014, 11:52 PM | #67 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
इसी वक्त एक पहाड़ी चोटी के दरार में से अचानक लाल रंग के चश्मे से गर्म फव्वारा फूटा, पानी गर्म-गर्म और सुगंधित था, जिस में से महकती भाप उठ रही थी। हुंगती के गुरू फुछ्योकुंग ने हुंगती को लाल रंग के चश्मे में नहाने को कहा , हुंगती ने चश्मे में सात दिन सात रात अपने को डूबो कर रखा , उसकी बूढ़ी त्वचा पानी के बहाव के साथ चली गई, उस की जगह नई चमड़ात्वचा पैदा हो गई। वह देखने में बहुत जवान और तरोताजा हो गया। उस में नव जीवन का संचार आया और वह मौत से मुक्त होने वाला देवता बन गया । चुंकि यी शान हुंगती का संजीवनी पा कर देवता बनने की जगह था, इसलिए उस का नाम भी बदल कर हुंगशान हो गया।
हुंगशान पर्वत में एक अत्यन्त मशहूर दर्शनीय स्थल है , जहां गहरी घाटी में एक गगनचुंबी पर्वत चोटी सीधी खड़ी नजर आती है , पर्वत चोटी का सीधा खड़ा भाग गोलाकार और पतला लम्बा सीधा होता है , देखने में वह कलम जैसा लगता है , चोटी का सब से उपरी अंग सुपारी सा लगता है, पूरी पर्वत चोटी परम्परागत चीनी ब्रुश वाला कलम सरीखा मालूम होती है । इस चोटी पर देवदार का एक प्राचीन पेड़ उगा है , दूर से देखने में लगता है , मानो एक विराट कलम पर एक फूल खिला हो । इसलिए इस पर्वत चोटी का नाम पड़ा कलम का पुष्प। >>>
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13-04-2014, 11:54 PM | #68 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
“कलम का पुष्प” पर्वत के बारे में एक रुचिकर लोक कथा प्रचलित है । कहते है कि चीन के थांग राजकाल के महान कवि ली पाई ने एक रात सपने में देखा कि वह हवा के एक झोंके के साथ समुद्र में खड़े एक देव पहाड़ पर आ पहुंचा , समुद्री पहाड़बादलों के धुंध में झांक रहा है , पहाड़ पर फुल पौधों का बहार खिला हुआ है । कुदरती सुमन से मोहित हो कर काव्य की सोच में जब ली पाई डूबा कि इसी क्षण में एक विराट ब्रुश का कलम समुद्री जल राशि में से निकल कर दर्जनों गज लम्बा सीधा खड़ा हो गया , जैसा एक पत्थर का डंडा सीधा खड़ा हुआ हो । ली पाई ने सोचा कि काश , मैं इसी प्रकार के एक विराट कलम का स्वामी बनूं , तो मैं विशाल धरती को स्याही पात्र बनाऊं , समुद्री जल राशि की स्याहीले लूं और नीला आकाश को कागज के रूप में इस्तेमाल करूं और कुदरत के सभी सौंदर्यों को काव्य में बदल लूं।
जब ली पाई अपनी सोच व कल्पना में घूम रहा था कि उसे अनायास अनूठे संगीत की सुरीली धुन सुनाई देने लगी, उसकी विराट कलम के मुंह से पंचरंगों की रोशनी निकली, वहां लाल रंग का एक खूबसूरत फूल खिल उठा, फूल वाला कलम ली पाई की ओर उड़ते हुए निकट आ रहा था, फूल वाला कलम निकट आते आते देख कर ला पाई ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ना चाहा, अभी उस की ऊंगलीकलम को छूने को ही थी कि उस का सपना टूट गया और फूल का कलम अदृश्य हो गया। सपने से जागने के बाद ली पाई ने फूल का कलम वाली जगह पहचानने की लाख कोशिश की , पर उस का उत्तर नहीं मिल पाया। तो वह देश के विभिन्न मशहूर पहाड़ों और नदियों का दौरा करने निकला और फूल का कलम वाला स्थान ढूंढ़ता रहा । अंत में ली पाई हुंगशान पर्वत आया, पर्वत घाटी में सीधा खड़ी उस कलम रूपी चोटी देख कर ली पाई के मुंह से यह शब्द निकलाः वाह , यही वहीफूल का कलम है, जो मैं ने सपने में देखा था। कहते थे कि फूल का कलमवाला पर्वत देखने के बाद ली पाई की कविताओं में जीवन की नई शक्ति का संचार हुआ, उस के कलम से हजारों मशहूर कविताएं निकलीं। ***
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18-04-2014, 06:07 PM | #69 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
गरीब ब्राह्मण, बाघ और सियार
एक बाघ किसी प्रकार जंगल में रखे हुये पिंजरे में फंस गया और निकलने के लिये छटपटाने लगा. कुछ देर बाद उस स्थान से एक गरीब ब्राह्मण गुज़रा. बाघ ने बड़े दयनीय स्वर में ब्राह्मण को पुकार कर प्रार्थना की कि उसे पिंजरे से निकाल दे. ब्राह्मण ने कहा कि यदि मैं तुम्हें पिंजरे से निकाल दूंगा तो सबसे पहले तुम मुझे ही खा जाओगे. इस पर बाघ ने कहा कि यदि तुम मुझे पिंजरे के बाहर निकालोगे तो यह मुझ पर तुम्हारा बहुत बड़ा एहसान होगा. मैं जीवन भर इसे नहीं भूलूंगा. मैं तुम्हें कैसे खा सकता हूँ? मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि तुम्हे कुछ नहीं कहूँगा. ब्राह्मण को अभी भी उसकी बात पर संदेह था सो वह वहां से जाने लगा. इस पर बाघ जोर जोर से रोने लगा. बाघ का यह रूप देख कर अंततः ब्राह्मण का मन पसीज गया. उसने पिंजरे का द्वार खोल दिया. बाघ बाहर निकल आया. पिंजरे से बाहर आते ही बाघ का असली रूप सामने आ गया. उसने ब्राह्मण से कहा कि मैं देखता हूँ कि मुझे कौन रोकता है. मैं सबसे पहले तुम्हें ही खाऊंगा. वैसे भी मैं पिंजरे में काफी देर से बंद था इसलिए मुझे बड़ी भूख लगी है. ब्राह्मण ने उसे उसके वचन की याद दिलाई. बाघ ने उसकी बात की खिल्ली उड़ाते हुये कहा कि तू मूर्ख है जो तूने मेरी बात पर यकीन कर लिया. मैं अगर ऐसे ही वचन देता रहूँगा तो भूखा मर जाऊँगा. जब ब्राहमण ने देखा कि बाघ पर किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा तो हार कर उसने उसके सामने एक शर्त रखी. शर्त के अनुसार ब्राह्मण ने कहा कि वह सामने आने वाली तीन चीजों से पूछना चाहता है कि वह क्या करे. बाघ ने उसकी यह बात मान ली लेकिन उससे कहा कि वह जल्दी से पूछताछ कर वापिस आ जाए. >>>
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18-04-2014, 06:09 PM | #70 |
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Re: मनोरंजक लोककथायें
सबसे पहले रास्ते में एक पीपल का पेड़ मिला. उसने पेड़ से सब घटना कह सुनाई. पेड़ ने कहा कि मैं भी सब यात्रियों को कड़ी धूप में छाया देता हूँ, लेकिन इस पर भी यात्री अपने पशुओं को मेरे पत्ते तोड़ कर खिला देते हैं, मेरी छाल पर अपना नाम गोद देते हैं. मुझे पानी तक नहीं देते. अतः जो हो रहा है उसे स्वीकार कर लो.
आगे चल कर उसे रहट पर कुएं से पानी निकालती एक भैंस दिखाई दी. उसने भैंस को अपना दुखड़ा सुनाया. भैंस ने उससे कहा कि संसार का दस्तूर ही ऐसा है. मैं भी जब तक दूध देती रही मुझे हरी दूब और खल-चरी खिलाते रहे. अब मैं दूध नहीं देती तो मुझे पानी निकालने के काम पर लगा दिया गया है और खाने के लिये भी रूझा-सुखा ही दिया जाता है. इसलिये जो नियति है उसे स्वीकार कर लेना चाहिये. यही बात उसने अपने सामने आई सड़क से भी कही. सड़क ने भी अपनी सेवा भावना का ज़िक्र किया और कहा कि मानव अपने स्वार्थवश मेरा ध्यान नहीं रखता. इसी कारण हर समय मेरी दुर्दशा बनी रहती है. तुम भी अब अपनी होनी को स्वीकार कर लो. तीन जगह विचार विमर्श करने के बाद ब्राह्मण दुखी मन से बाघ के पास लौटने लगा. अब उसे विश्वास हो गया था कि उसके बचने का कोई उपाय नहीं है और बाघ उसे खा जायेगा. इसी उधेड़-बन में वह चला जा रहा था कि एक सियार ने उसे रोकते हुये पूछा, “भाई तुम क्यों उदास हो? क्या तुम्हारे ऊपर कोई पहाड़ टूट पड़ा है. ऐसा लगता है जैसे किसी मछली को जल से बाहर फेंक दिया गया हो.” >>>
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