13-10-2011, 11:16 PM | #691 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
कहाँ-कहाँ से अभी कारवाँ गुज़रता है। हम वहाँ हैं जहाँ अब अपने सिवा, एक भी आदमी बहुत है |
13-10-2011, 11:33 PM | #692 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली। जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौग़ात मिली।। जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी। जैसे कोई कहता हो, लो फिर तुमको अब मात मिली।। बातें कैसी ? घातें क्या ? चलते रहना आठ पहर। दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली।। |
13-10-2011, 11:36 PM | #693 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये |
13-10-2011, 11:36 PM | #694 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
हमने इक शाम चराग़ों से सजा रक्खी है
शर्त लोगों ने हवाओं से लगा रक्खी है |
13-10-2011, 11:38 PM | #695 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
क्या पता था, दोस्त ऐसे भी दगा दे जाएगा ,
अपने दुश्मन को मेरे घर का पता दे जाएगा.... |
13-10-2011, 11:50 PM | #696 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
हम है की अरसो से सोये ही नहीं ..
पलकों के किनारे हमने भिगोये ही नहीं . वो समझते है के हम उन्हें याद कर के रोये ही नहीं .. पूछते है की ख्वाबो में आता है कौन ?*
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13-10-2011, 11:51 PM | #697 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
लफ्जो की तरह दिल की किताबो में मिलेंगे
या बन के महक गुलाबो में मिलेंगे मिलने के लिए ऐ दोस्त जरा जल्दी सोना आज हम तुमसे तुम्हारे ख्वाबो में मिलेगे
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14-10-2011, 08:40 AM | #698 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
हर कोई साथ हो ये जरुरी नहीं होता ! |
14-10-2011, 01:23 PM | #699 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
बड़ा बेचैन होता जा रहा हूं,
न जाने क्यूं नहीं लिख पा रहा हूं तुम्हे ये भी लिखूं वो भी बताऊं, मगर अल्फ़ाज़ ढूंढे जा रहा हूं मोहब्बत का यही आ़गाज़ होगा, जिधर देखूं तुम्ही को पा रहा हूं कभी सूखी ज़मीं हस्ती थी मेरी, ज़रा देखो मैं बरसा जा रहा हूं किसी दिन इत्तेफ़ाकन ही मिलेंगे, पुराने ख्वाब हैं दोहरा रहा हूं मुझे आगोश में ले लो हवाओं, गुलों से बोतलों में जा रहा हूं शरारत का नया अंदाज़ होगा, मैं शायद बेवजह घबरा रहा हूं किसे परवाह है अब मंज़िलों की, मोहब्बत के सफ़र पर जा रहा हूं दिलों की नाज़ुकी समझे हैं कब वो, दिमागों को मगर समझा रहा हूं शब-ए-फ़ुरकत की बेबस हिचकियों से, तसल्ली है कि मैं याद आ रहा हूं मोहब्बत थी कहां हिस्से में , गज़ल से यूं ही दिल बहला रहा हूं..
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
14-10-2011, 01:45 PM | #700 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
अपने लिए भी वक्त नही जब पास किसी के
क्या आएगा शख्स कोई फिर काम किसी के करता है सो भरता है अब नही जरूरी दुनिया में करता है कोई और आ जाते इल्जाम किसी पे गिरते गिरते किस हद तक देखो गिर गये लोग कासिद है किसी का और पहुंचे पैगाम किसी के हर हाथ में है आईना तो दूजो को दिखाने की खातिर खुद को देखे बिन बीते कितने सुबह शाम किसी के थी प्यास समुन्द्र पीने की, दो घूँट पिला टाला तूने अब तुम ही कहो हम क्या माने अहसान किसी के मयखाने तेरे में रहे तो प्यास बुझाने जाते कहाँ क्यों जीभ फेरते होंठो पे बीते फिर सुबह शाम किसीके किसको तमन्ना थी साकी तेरा मयखाना छोड़ने की मज़बूरी में ही ढूंढे हमने सुराही जाम किसी के इस मयखाने में आने से कुछ भी नही होना हासिल साकी ही प्यासा है तो क्या भर पायेगा जाम किसी के |
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