11-07-2012, 11:25 PM | #71 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन अक्सर नगर की स्थिति का जायजा लेने के लिए निकल पड़ते थे, ताकि वे यह जान सकें कि शहर के लोगों को क्या-क्या परेशानियां हैं और वे उन परेशानियों को कैसे दूर कर सकते हैं। एक बार जॉर्ज वाशिंगटन हालात का जायजा लेने निकले। रास्ते में एक जगह भवन निर्माण कार्य चल रहा था। वे कुछ देर के लिए वहीं रुके और चल रहे कार्य को गौर से देखने लगे। उन्होंने देखा कि कई मजदूर एक बड़ा पत्थर उठा कर इमारत पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, किंतु पत्थर बहुत भारी था, इसलिए इतने मजदूरों के उठाने पर भी उठ नहीं रहा था। ठेकेदार उन मजदूरों को पत्थर न उठा पाने के कारण डांट रहा था, पर खुद किसी भी तरह उन्हें मदद को तैयार नहीं था। वाशिंगटन यह देखकर उस ठेकेदार के पास आकर बोले - इन मजदूरों की मदद करो। यदि एक आदमी और प्रयास करे, तो यह पत्थर आसानी से उठ जाएगा। ठेकेदार वाशिंगटन को पहचान नहीं पाया और रौब से बोला - मैं दूसरों से काम लेता हूं, मैं मजदूरी नहीं करता। यह जवाब सुनकर वाशिंगटन घोड़े से उतरे और पत्थर उठाने में मजदूरों की मदद करने लगे। उनके सहारा देते ही पत्थर उठ गया और आसानी से ऊपर चला गया। इसके बाद वह वापस अपने घोड़े पर आकर बैठ गए और बोले - सलाम ठेकेदार साहब, भविष्य में कभी तुम्हें एक व्यक्ति की कमी मालूम पड़े, तो वाशिंगटन भवन में आकर जॉर्ज वाशिंगटन को याद कर लेना। यह सुनते ही ठेकेदार उनके पैरों पर गिर पड़ा और अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगने लगा। ठेकेदार के माफी मांगने पर वाशिंगटन बोले - मेहनत करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। मजदूरों की मदद करने से तुम उनका सम्मान हासिल करोगे। याद रखो, मदद के लिए सदैव तैयार रहने वाले को ही समाज में प्रतिष्ठा हासिल होती है। इसलिए जीवन में ऊंचाइयां हासिल करने के लिए व्यवहार में नम्रता का होना बेहद जरूरी है। उस दिन से ठेकेदार का व्यवहार बिल्कुल बदल गया और वह सभी के साथ अत्यंत नम्रता से पेश आने लगा।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
12-07-2012, 02:53 AM | #72 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
संघर्ष का दूसरा नाम है जिंदगी
जिंदगी वाकई बहुत मुश्किल है। जीवन में अगर सब कुछ सरल और मखमली होता, तो जिंदगी से हमारा परिचय कैसे होता? अगर जिंदगी हमें आजमाती नहीं, तो हम विकास नहीं कर पाते, सीख नहीं पाते या खुद को बदल नहीं पाते। हमें खुद से ऊपर उठने का मौका नहीं मिल पाता। यह भी तय है कि अगर जिंदगी पूरी तरह अथवा कहें कि सिर्फ सुहानी होती, तो हम इससे बहुत जल्द ऊब जाते। अगर सब कुछ आसान होता, तो हम ज्यादा मजबूत नहीं बन पाते अर्थात हमें इस बात के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि जिंदगी कई बार संघर्ष जैसी लगती है। आप तो यह जान लें कि सिर्फ मरी हुई मछलियां ही धारा के साथ बहती हैं, जबकि इंसान को धारा के खिलाफ तैरना होता है। इंसान को तूफानों और तेज बहाव से जूझना होता है। उसके पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है। उसे तैरते रहना होगा, वरना धारा उसे दूर बहाकर ले जाएगी। इंसान जितना हाथ-पैर पटकेगा, वह उतना ही ज्यादा मजबूत और फिट बनेगा। एक सर्वे से पता चलता है कि बहुत से लोगों के लिए रिटायरमेंट बुरा होता है। बहुत सारे लोग रिटायरमेंट के कुछ ही समय बाद टूट से जाते हैं, क्योंकि उन्होंने धारा के खिलाफ तैरना छोड़ दिया और धारा उन्हें बहाकर ले गई। इसलिए तैरते रहो। हर विपत्ति को बेहतर अवसर के रूप में देखना चाहिए। विपत्ति आपको कमजोर नहीं मजबूत बनाती है। जाहिर है, परेशानियां कभी खत्म नहीं होती, लेकिन आप यह भी मान कर चलें कि बीच-बीच में राहत का दौर भी आता है। वह राहत का दौर ऐसा होता है कि हम कुछ वक्त आराम कर सकते हैं और उस पल का आनंद ले सकते हैं। इससे पहले कि हमारी राह में अगली मुश्किल आकर खड़ी हो जाए, हमें राहत का भी आनंद लेना चाहिए। जिंदगी इसी तरह चलती है। दुनिया बनाने वाले ने जिंदगी इसी तरह बनाई है। संघर्षों और राहतों की शृंखला। आप इस वक्त जिस भी स्थिति में हों, यह तय मानिए कि यह भी बदलने वाली है। इसलिए हर बदलने वाली स्थिति के लिए तैयार रहें। आखिर इसी का नाम तो जिंदगी है।
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12-07-2012, 02:57 AM | #73 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
प्रसन्न रहने का गुर
एक संत सदा प्रसन्न रहते थे। उनसे मिलने जब भी कोई जाता, वे उसे सदा प्रसन्न रहने के बारे में ही प्रवचन दिया करते थे। दूर दराज से लोग उन संत से जीवन को सुखमय रखने की शिक्षा ग्रहण करने पहुंचते थे। संत को कोई लालच नहीं था और वे प्रसन्नता के साथ लोगों को उपदेश दिया करते थे। जब भी कोई अच्छी बात होती, वे जोरदार ठहाके लगाते रहते थे। उस इलाके में घूमने वाले कुछ चोरों को संत की हमेशा हंसते रहने वाली बात अजीब सी लगती थी। वह समझ नही पाते थे कि कोई व्यक्ति हर समय इतना खुश कैसे रह सकता है। उन्हें बस, यही शंका रहती थी कि इन संत के पास अपार धन है, इसलिए वे हमेशा मौज में रहते हैं और हंसते रहते हैं। चोरों ने संत के पास भरपूर धन की शंका के चलते उनका अपहरण कर लिया । वे उन्हें दूर जंगल में ले गए और बोले - संतजी, सुना है कि तुम्हारे पास काफी धन है, तभी इतने प्रसन्न रहते हो। अब सारा धन हमारे हवाले कर दो वरना तुम्हारी जान की खैर नहीं। संत एक बार तो हैरत में पड़ गए कि क्या करें। फिर कुछ देर सोच विचार कर एक-एक कर हर चोर को अलग-अलग अपने पास बुलाया और कहा मेरे पास सुखदा मणि है, मगर मैंने उसे तुम चोरों के डर से जमीन में दबा दिया है। यहां से कुछ दूर पर वह स्थान है। अपनी खोपड़ी के नीचे चन्द्रमा की छाया में वह जगह खोदना। शायद मिल जाए। यह कहकर संत एक पेड़ के नीचे सो गए। सभी चोर अलग-अलग दिशा में जाकर खोदने लगे। जरा सा उठते या चलते तो छाया भी हिल जाती और उन्हें जहां-तहां खुदाई करनी पड़ती। रात भर में सैकड़ों छोटे-बड़े गढ्ढे बन गए, पर कहीं भी मणि का पता नहीं चला। चोर हताश होकर लौट आए और संत को बुरा-भला कहने लगे। संत हंस कर बोले - मूर्खो, मेरे कहने का अर्थ समझो। खोपड़ी तले सुखदा मणि छिपी है अर्थात श्रेष्ठ विचारों के कारण मनुष्य प्रसन्न रह सकता है । तुम भी अपना दृष्टिकोण बदलो और जीना सीखो। चोरों को यथार्थ का बोध हुआ। वे भी अपनी आदतें सुधार कर प्रसन्न रहने की कला सीखने लगे।
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14-07-2012, 07:09 AM | #74 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
खुद बनें अपने सलाहकार
जब आप कोई बुरा काम करते हैं, तो आपको अपने दिल की गहराई में पता चल जाता है। आप जान जाते हैं कि आपको कब माफी मांगनी चाहिए, भूल सुधारनी चाहिए, चीजों को पटरी पर लाना चाहिए। एक बार जब आप अपने भीतर की उस आवाज को सुनना या भावना को महसूस करना शुरू कर देते हैं, तो आप पाएंगे कि इससे आपको काफी मदद मिल सकती है। कोई काम करने से पहले उसके विचार को अपने दिल से फिल्टर करके देखें कि आपको कैसी प्रतिक्रिया मिलती है। जब आप ऐसा करने के आदी हो जाएंगे, तो यह आसान लगने लगेगा। आप यह कल्पना करें कि कोई छोटा बच्चा आपके पास खड़ा है और आपको उसे समझाना है। अब कल्पना करें कि वह बच्चा आपसे सवाल पूछ रहा है कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? सही और गलत क्या है? क्या हमें ऐसा करना चाहिए? आपको इन सवालों के जवाब देने हैं। बहरहाल इस स्थिति में आप ही सवाल पूछते हैं और आप ही जवाब देते हैं। इस प्रक्रिया में आप पाएंगे कि आप पहले से ही वह हर चीज जानते हैं, जिसे जानने की जरूरत है या जरूरत पड़ेगी। समझदारी तो इसमें है कि अपने सलाहकार आप खुद बनें, क्योंकि आपके पास ही सारे तथ्य हैं, सारा अनुभव है और उंगलियों पर सारा ज्ञान है। किसी दूसरे के पास यह सब नहीं है। कोई दूसरा आपके भीतर नहीं जा सकता और ठीक-ठीक यह नहीं देख सकता कि वहां क्या चल रहा है। बहरहाल एक चीज साफ है। सुनने से मतलब वह सब सुनने से नहीं है, जो आपके दिमाग के भीतर चल रहा है। वहां तो उल्टी-सीधी बातें भरी रहती हैं। यहां मतलब शांत, धीमी आवाज से है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि हम जो करने जा रहे हैं, हमें जो बड़े निर्णय लेने हैं, उनमें हम किस तरह से काम करें; यह हमको खुद ही तय करना पड़ेगा। अपना लक्ष्य खुद ही बनाना होगा और गहराई में उतर कर हमें यह भी पता लगाना होगा कि हम जो कर रहे हैं, वह सही है या गलत । तय मानिए, एक बार आपने यह फैसला कर लिया, तो आपकी कामयाबी कोई नहीं रोक सकता।
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14-07-2012, 07:13 AM | #75 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
चित्त को रखें साफ
एक शिष्य अपने गुरू के पास पहुंचा और उनसे कहा कि विचारों का प्रवाह उसे बहुत परेशान कर रहा है। उस गुरू ने उसे निदान और चिकित्सा के लिए अपने एक मित्र साधु के पास भेजा और उससे कहा - जाओ और उसकी समग्र जीवन-चर्या ध्यान से देखो। उससे ही तुम्हें मार्ग मिल जाएगा। वह शिष्य गुरू के आदेश की पालना करते हुए साधु से मिलने चल पड़ा। जिस साधु के पास उसे भेजा गया था, वह सराय में रखवाला था। उसने वहां जाकर कुछ दिन तक उसकी दिनचर्या देखी, लेकिन उसे उसमें कोई खास बात सीखने जैसी दिखाई नहीं पड़ी। वह साधु अत्यंत सामान्य और साधारण व्यक्ति था। उसमें कोई ज्ञान के लक्षण भी दिखाई नहीं पड़ते थे। हां, बहुत सरल था और शिशुओं जैसा निर्दोष मालूम होता था, लेकिन उसकी दिनचर्या में तो कुछ भी न था। उस व्यक्ति ने साधु की पूरी दैनिक चर्या देखी थी, केवल रात्रि में सोने के पहले और सुबह जागने के बाद वह क्या करता था, वही उसे ज्ञात नहीं हुआ था। उसने उससे ही पूछा। सराय के रखवाले साधु ने कहा - कुछ भी नहीं करता। रात्रि को मैं सारे बर्तन मांजता हूं और चूंकि रात भर में उन पर थोड़ी बहुत धूल जम जाती है, इसलिए सुबह उन्हें फिर धोता हूं। बरतन गंदे और धूल भरे न हों, यह ध्यान रखना आवश्यक है। मैं इस सराय का रखवाला जो हूं। वह व्यक्ति साधु की बात से निराश हो अपने गुरु के पास लौटा। उसने साधु की दैनिक चर्या और उससे हुई बातचीत गुरु को बताई। गुरु ने कहा - जो जानने योग्य था, वह तुम सुन और देख आए हो, लेकिन समझ नहीं सके। रात को तुम भी अपने मन को मांजो और सुबह उसे धो डालो। धीरे-धीरे चित्त निर्मल हो जाएगा। सराय के रखवाले को इस सबका ध्यान रखना आवश्यक है। चित्त की नित्य सफाई अत्यंत आवश्यक है। उसके स्वच्छ होने पर ही समग्र जीवन की स्वच्छता या अस्वच्छता निर्भर है। जो उसे विस्मरण कर देते हैं, वे अपने हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। शिष्य को सारी बात समझ आ गई। वह गुरू को प्रणाम कर चला गया।
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16-07-2012, 10:05 AM | #76 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
कुछ करने की ठान लें
कभी-कभी हम यह सोचते हैं कि काश मैंने यह किया होता। इसमें तीन तरह की परिस्थितियां होती है। पहली तो तब जब हमको सचमुच महसूस हो कि हमने किसी अवसर का फायदा नहीं उठाया या कोई मौका चूक गए। दूसरी तब, जब हम किसी महान काम करने वाले व्यक्ति को देखते हैं और मन ही मन में सोचते हैं कि काश उसकी जगह पर मैं होता। तीसरी और आखिरी प्रकार की परिस्थिति में निश्चित रूप से हम नहीं, बल्कि दूसरे होते हैं, जो स्थाई रूप से ‘मैं भी प्रतिस्पर्धा कर सकता था’ मानसिकता ओढ़े रखते हैं। जो सोचते हैं कि काश मुझे मौके, खुशकिस्मती के वरदान, सुनहरे अवसर मिले होते। बहरहाल, इस आखिरी समूह के लिए बुरी खबर यह है कि अगर खुशनसीबी आकर उनकी गोद में भी बैठ जाए, तब भी वे उसे नहीं देख पाएंगे। दूसरों की सफलता देखने के बारे में यह दुनिया दो हिस्सों में विभाजित है। कुछ लोग दूसरों को ईर्ष्या से देखते हैं और कुछ प्रेरणा के साधन के रूप में। अगर आप मन ही मन यह कहें, काश मैंने वह किया होता, काश मैंने वह सोचा होता, काश मैं वहां गया होता,काश मैंने वह देखा होता, काश मैंने वह समझा होता। इसके बाद आपको यह कहना भी सीखना चाहिए - अब मैं उसे करूंगा। ज्यादातर मामलों में जिस चीज को न करने का आपको अफसोस होता है, उसे आप अब भी कर सकते हैं। हो सकता है कि यह उस तरह न हो पाए जिस तरह आप पहले कर सकते थे। जाहिर है, अगर आपको 34 साल की उम्र में इस बात का अफसोस हो कि 14 साल की उम्र में एथलेटिक्स छोड़ने के कारण आप ओलिंपिक की 400 मीटर रेस में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाए, तो यह अब नहीं होने वाला। ऐसी स्थिति में आप सिर्फ यह संकल्प कर सकते हैं कि अपने पास से ऐसे अन्य अवसरों को यूं ही नहीं जाने देंगे। इसके बाद आप डाइविंग का प्रशिक्षण ले सकते हैं, ताकि आपको आज से 20 साल बाद यह अफसोस न हो कि काश मैंने डाइविंग सीखी होती।
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16-07-2012, 10:08 AM | #77 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
छोटा काम, बड़ा इनाम
एक राजा था। वह बेहद न्यायप्रिय, दयालु और विनम्र था। उसके तीन बेटे थे। जब राजा बूढ़ा हुआ, तो उसने किसी एक बेटे को राजगद्दी सौंपने का निर्णय किया। इसके लिए उसने तीनों की परीक्षा लेनी चाही। उसने तीनों राजकुमारों को अपने पास बुलाया और कहा - मैं आप तीनों को एक छोटा सा काम सौंप रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि आप सभी इस काम को अपने सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने की कोशिश करेंगे। राजा के कहने पर राजकुमारों ने हाथ जोड़कर कहा - पिताजी, आप आदेश दीजिए। हम अपनी ओर से कार्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने का भरपूर प्रयास करेंगे। राजा ने प्रसन्न होकर उन तीनों को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दीं और कहा कि इन मुद्राओं से कोई ऐसी चीज खरीद कर लाओ, जिससे कि पूरा कमरा भर जाए और वह वस्तु काम में आने वाली भी हो। यह सुनकर तीनों राजकुमार स्वर्ण मुद्राएं लेकर अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े। बड़ा राजकुमार बड़ी देर तक माथापच्ची करता रहा। उसने सोचा कि इसके लिए रूई उपयुक्त रहेगी। उसने उन स्वर्ण मुद्राओं से काफी सारी रूई खरीद कर कमरे में भर दी और सोचा कि इससे कमरा भी भर गया और रूई बाद में रजाई भरने के काम आ जाएगी। मंझले राजकुमार ने ढेर सारी घास से कमरा भर दिया। उसे लगा कि बाद में घास गाय और घोड़ों के खाने के काम आ जाएगी। उधर छोटे राजकुमार ने तीन दीपक खरीदे। पहला दीपक उसने कमरे में जलाकर रख दिया। इससे पूरे कमरे में रोशनी भर गई। दूसरा दीपक उसने अंधेरे चौराहे पर रख दिया, जिससे वहां भी रोशनी हो गई और तीसरा दीपक उसने अंधेरी चौखट पर रख दिया, जिससे वह हिस्सा भी जगमगा उठा। बची हुई स्वर्ण मुद्राओं से उसने गरीबों को भोजन करा दिया। राजा ने तीनों राजकुमारों की वस्तुओं का निरीक्षण किया। अंत में छोटे राजकुमार के सूझबूझ भरे निर्णय को देखकर वह बेहद प्रभावित हुआ और उसे ही राजगद्दी सौंप दी। अत: व्यक्ति की योग्यता उसके सूझ-बुझ और उन कार्यों से आंकी जाती है, जो ज्यादा से ज्यादा जनहित में हों।
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17-07-2012, 01:15 AM | #78 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अपनी अंतरात्मा का सम्मान करें
हमारी अपनी भावनाएं ही हकीकत में हमारी सच्ची प्रेरक होती हैं और वे ही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। अपनी अंतरात्मा का सम्मान करने पर हमें सफलता अपने आप मिलेगी यह तय है। आखिर सफलता का पैमाना क्या है? क्या खूब पैसा कमाना ही कामयाबी है? शायद नहीं। पैसा अच्छी चीज है। सभी को पैसा कमाना अच्छा लगता है। पैसे से ढेर सारा सामान तो खरीदा जा सकता है, लेकिन ढेर सारा पैसा कमाने मात्र से आप सफल इंसान नहीं बन जाते। पैसा कमाने के साथ नेक मकसद भी तो होना चाहिए। एक अच्छा मकसद ही आपको हकीकत में अमीर बना सकता है। आप सच्चे तो अमीर तभी बनते हैं, जब लोग आपका सम्मान करते हैं और आप पर भरोसा करते हैं। अहम सवाल यह है कि सच्ची खुशी कैसे मिले? इसका जवाब है दूसरों की मदद करके। अगर आप खुद कोई दर्द भोग रहे हैं या भोग चुके हैं, तो ऐसे लोगों की सहायता जरूर करें, जो आपकी तरह ही दर्द से जूझ रहे हैं। अगर आपके पास खूब पैसा है, तो उससे दूसरों की मदद करें। समाज को वापस लौटाना सबसे बड़ी बात है। मार्टिन लूथर किंग ने एक बार कहा था - हर कोई मशहूर नहीं बन सकता, लेकिन हर कोई महान जरूर बन सकता है, क्योंकि महानता सेवा से आती है। खास बात तो यह है कि सेवा के लिए किसी योग्यता की जरूरत नहीं होती। सेवा के लिए आपके अंदर सिर्फ मदद की इच्छा होनी चाहिए। यकीन मानिए, लोगों की मदद करके आपको अच्छा ही लगेगा और सच्ची खुशी भी मिलेगी। हमारा जीवन हमको कई सबक सिखाता है। कई बार ये सबक कठिनाइयों के रूप में भी हमारे सामने आते हैं। जीवन हमेशा हमको दबे स्वर में संकेत भर देता है। ऐसे में बेहतर है कि कठिनाइयों का संकेत मिलते ही हम अलर्ट हो जाएं। चुनौतियों से निपटने के दौरान ही हमें समस्या के हल मिल जाते हैं। सीखने का बेहतर तरीका है खुद में सुधार। खुद को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए खुद में सुधार करना होगा।
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17-07-2012, 01:20 AM | #79 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
चांद बनें, प्रतिबिम्ब नहीं
एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध संत के पास गया। वह व्यक्ति था तो काफी विद्वान, लेकिन एक अजीब सी उलझन को वह चाह कर भी नहीं सुलझा पा रहा था। पहले तो उसने अपनी तरफ से प्रयास किए कि वह अपनी उलझन को खुद ही सुलझा ले, लेकिन जब कोई हल नहीं सूझा, तो संत के आश्रम में जा पहुंचा। वहां जाकर वह संत से बोला - गुरुदेव, मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है। मैंने अनेक शास्त्रों का भी काफी ध्यान से अध्ययन किया है। उन शास्त्रों के दम पर मैंने कई अच्छे कामों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करने का भरपूर प्रयास किया, फिर भी मेरा मन किसी काम में नही लगता। जब भी कोई काम करने के लिए बैठता हूं, तो मन न जाने क्यों भटकने लगता है और फिर मैं उस काम को ही छोड़ देता हूं। इस अस्थिरता का कारण मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं। आप कृपया मेरी इस समस्या का समाधान कीजिए। संत ने उसे जवाब के लिए रात तक इंतजार करने के लिए कहा। रात होने पर संत उसे एक झील के पास ले गए और झील के अन्दर चांद का प्रतिबिम्ब दिखा कर बोले - एक चांद आकाश में और एक झील में। तुम्हारा मन इस झील की तरह है। तुम्हारे पास ज्ञान तो है, लेकिन तुम उसको इस्तेमाल करने की बजाय सिर्फ उसे अपने मन में लाकर बैठे हो। ठीक उसी तरह जैसे झील असली चांद का प्रतिबिम्ब लेकर बैठी है। तुम्हारा ज्ञान तभी सार्थक हो सकता है, जब तुम उसे व्यवहार में एकाग्रता और संयम के साथ अपनाने की कोशिश करो। झील का चांद तो मात्र एक भ्रम है। तुम्हें अपने काम में मन लगाने के लिए आकाश के चंद्रमा की तरह बनना है। झील का चांद पानी में पत्थर गिराने पर हिलाने लगता है, उसी तरह तुम्हारा मन जरा-जरा सी बात पर डोलने लगता है। तुम्हें अपने ज्ञान और विवेक को जीवन में नियमपूर्वक लाना होगा और अपने जीवन को सार्थक और लक्ष्य हासिल करने में लगाना होगा। खुद को आकाश के चांद के बराबर बनाओ। शुरू में थोड़ी परेशानी आएगी, पर कुछ समय बाद ही तुम्हें इसकी आदत हो जाएगी।
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17-07-2012, 10:20 PM | #80 |
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Re: डार्क सेंट की पाठशाला
जज्बा है तो जीत भी तय
हर कोई झटपट मंजिल पाना चाहता है। दरअसल मंजिल से ज्यादा अहम है यात्रा। यात्रा का मजा लो। जरूरी नहीं है कि आप जो कुछ करना चाहते हैं, उसे आप तुरंत पा लें। मंजिल की राह में तमाम मुश्किलें आएंगी। बेहतर है कि हम मुश्किलों से घबराने की बजाय उनसे मुकाबला करना सीखें। अगर बिना नाकामी के मंजिल मिल गई, तो जिंदगी के अहम अनुभव कैसे हासिल होंगे ? यकीनन संघर्ष का रास्ता कठिन है, लेकिन जीवन में संघर्ष का अपना मजा है। संघर्ष से आपको अहम सीख मिलती है। यह समझना जरूरी है। मंजिल को पाने की चाहत और डटे रहने की जिद आपको तमाम बातें सिखाती हैं। इस अनुभव का मजा लो और आगे बढ़ो। खुद पर भरोसा रखो। अपनी ताकत और अपनी क्षमता को पहचानो। दूसरे को बेवजह अपने से ज्यादा अहमियत देना गलत है। अपनी क्षमताओं को नजरअंदाज मत करो। आप किसी से कम नहीं हैं। यह भाव अपने अंदर होना चाहिए। जाने माने फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने एक बार अनुभव बांटे और बताया कि वे बहुत साधारण परिवार से थे। पिता वन विभाग में क्लर्क थे और चाहते थे कि वे भी साधारण सी सरकारी नौकरी कर लें, लेकिन वे कुछ अलग करना चाहते थे। उन्हें कभी नहीं लगा कि वे किसी से कम हैं । कभी नहीं लगा कि वे एक्टिंग नहीं कर सकते। सबसे अहम यह है कि हम अपनी क्षमताओं को पहचानें। तमाम दबावों के बावजूद उन्होंने नौकरी नहीं की। एक्टिंग की ट्रेनिंग ली और तय किया कि एक्टर ही बनना है। आज वे किस मुकाम पर हैं, सभी जानते हैं। कुछ लोग अपनी हार के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं। उन्हें हार पर शर्म महसूस होती है, लेकिन अगर कामयाब होना है, तो अपनी हार के बारे में भी लोगों से चर्चा करनी चाहिए। खुद पर भरोसा होना जरूरी है। कितनी भी मुश्किलें आएं, यह मत सोचो कि मैं यह नहीं कर सकता। जिस दिन आपके मन में यह ख्याल आया, आप वाकई हार जाएंगे। जब तक जज्बा है, जीत का रास्ता खुला है।
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