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Old 12-02-2011, 09:13 AM   #71
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Post Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!

मुश्किलें आती रही, हादिसे बढ़ते गये ।
मंज़ि़लों की राह में, क़ाफ़िले बढ़ते गये ।

दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर नज़दीक़ थे
पास ज्यूँ-ज्यूँ आये हम, फ़ासले बढ़ते गये ।

राहरवों का होंसला, टूटता देखा नहीं
ग़रचे दौराने-सफ़र, हादिसे बढ़ते गये ।

साथ रह कर भी बहम हो न पाई ग़ुफ़्तग़ू
ख़ामशी के दम ब दम, सिलसिले बढ़ते गये ।

हम थे मंज़िल के क़रीब, और सफ़र आसान था
यक-ब-यक तूफ़ां उठा, वस्वसे बढ़ते गये ।

किस्सा-ए-ग़म से मेरे कुछ न आँच आई कभी
मेरे दुख और उनके 'पुरु' क़हक़हे बढ़ते गये ।
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Old 12-02-2011, 09:13 AM   #72
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Post Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!

गजल
अनमोल रहा हूँ......
है
दिल की बात तुझसे मगर खोल रहा हूँ
मैं
चुप्पियों में आज बहुत बोल रहा हूँ
सांसों
में मुझे तुझसे जो एक रोज मिली थी
वो
खुश्बूयें हवाओं में अब घोल रहा हूँ
अब
तेरी हिचकियों ने भी ये बात कही है
मैं
तेरी याद साथ लिये डोल रहा हूँ
सोने
की और न चांदी की मैं बात करुंगा
मैं
दिल की ही तराजू पे दिल तोल रहा हूँ
चाहो
तो मुहब्बत से मुझे मुफ्त ही ले लो
वैसे
तो शुरु से ही मैं अनमोल रहा हूँ
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Old 12-02-2011, 09:14 AM   #73
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Post Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!

वो झुकी झुकी सी आँखें उसकी और लबों पे मुस्कान का खिल आना,
बस मेरी एक छुअन से उसका ख़ुद में सिमट जाना,
फिर हौले से खोलना झील सी आँखें और मेरा उनमें डूब जाना,
शरारत भरी निगाहों से फिर मेरे दिल में उसका उतर जाना,
रखना फिर मेरे कांधे पे सर अपना और उसका वो ग़ज़ल गुनगुनाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......

वो पायल की झंकार और उसकी चूड़ियों का खनखनाना,
चाल में मस्ती और उसका आँचल को लहराना,
सुनकर मेरी बातों को उसका हौले से मुस्कुराना,
मेरी हंसी मैं ढूँढना खुशी और मेरी उदासी मैं उदास हो जाना,
जो लगे चोट मुझे तो रो-रो के उसका बेहाल हो जाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......

वो करना शाम ढले तक बातें और थाम के हाथ मेरा सपने सजाना,
बहुत मासूमियत से उसका मुझे ज़िन्दगी का फलसफा समझाना,
जब हो लम्हा उदासी भरा तो उसका मुझे गले लगाना,
छाये जब अँधेरा गम का तो खुशी की किरन बन जाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना,
मुहब्बत है क्या बस ऐसे ही एक पल में मैंने है जाना.......
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Old 12-02-2011, 09:18 AM   #74
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Post Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!

जब भी निदाघ में उठी है हवा, तुम याद आई हो
श्वास में जब भरी कोई सुगंधि, तुम याद आई हो


यूँ तो मंदिरों मंदिरों न कभी घूमा किया अभागा
जब भी ये सर कहीं झुका, तुम याद आई हो


फूल दैवी उपवनों के भू पर खिले हैं घर-घर में
जब भी दिखा निश्छल कोई शिशु, तुम याद आई हो


संगीत-सी ललित कविता-सी कोमल अयि कामिनी
किसी लय पर जो थिरकी हवा, तुम याद आई हो


जो तुम वियुक्त तो हर धड़कन लिथड़ी रक्ताक्त अश्रु में
कभी औचक जो मुस्कराया, तुम याद आई हो


जलती आग सी सीने में, है धुआँ-धुआँ साँसों का राज
जब फैली कहीं भी उजास, तुम याद आई हो


मरुस्थली सा जीवन, वसंत मात्र स्वप्न है सुजीत का
जब भी कूकी कोई कोकिला, तुम याद आई हो

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Old 12-02-2011, 09:21 AM   #75
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बेवज़ह बातों ही बातों में सुनाना क्या सही है
भूला-बिसरा याद अफसाना दिलाना क्या सही है

कुछ न कुछ तो काम लें संजींदगी से हम ए जानम
पल ही पल में रूठ जाना और मनाना क्या सही है

मुस्करा ऐसे कि जैसे मुस्कराती हैं बहारें
चार दिन की ज़िन्दगी घुट कर बिताना क्या सही है

ख्वाब में आकर मुझे आवाज़ कोई दे रहा है
बेरुखी दिखला के उसका दिल दुखाना क्या सही है

तुम इन्हें सहला नहीं पाए मेरे हमदर्द साथी
छेड़ कर सारी खरोचें दिल दुखाना क्या सही है

अब बड़े अनजान बनते हो हमारी ज़िन्दगी से
फूल जैसी ज़िन्दगी को यूँ सताना क्या सही है

ज़िन्दगी का बांकपन खो सा गया जाने कहाँ अब
सोचती हूँ ,तुम बिना महफ़िल सजाना क्या सही है .
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Old 12-02-2011, 09:23 AM   #76
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ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |


जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |


नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |


चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |


या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ , ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |


है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||

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Old 12-02-2011, 09:26 AM   #77
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यार पुराने छूट गए तो छूट गए

कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए

सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं

तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए

शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे

मेरे सपने टूट गए तो टूट गए

इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये

भाग किसी के फूट गए तो फूट गए

छोड़ो रोना धोना रिष्ते नातों पर

कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए

अब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’

हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए
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Old 13-02-2011, 11:46 AM   #78
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थरथरी सी है आसमानों में
जोर कुछ तो है नातवानों में

कितना खामोश है जहां लेकिन
इक सदा आ रही है कानों में

कोई सोचे तो फ़र्क कितना है
हुस्न और इश्क के फ़सानों में

मौत के भी उडे हैं अक्सर होश
ज़िन्दगी के शराबखानों में

जिन की तामीर इश्क करता है
कौन रहता है उन मकानों में

इन्ही तिनकों में देख ऐ बुलबुल
बिजलियां भी हैं आशियानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 13-02-2011, 11:48 AM   #79
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की वफ़ा हम से तो ग़ैर उस को जफ़ा कह्*ते हैं
होती आई है कि अच्*छों को बुरा कह्*ते हैं

आज हम अप्*नी परेशानी-ए ख़ातिर उन से
कह्*ने जाते तो हैं पर देखिये क्*या कह्*ते हैं

अग्*ले वक़्*तों के हैं यह लोग उंहें कुछ न कहो
जो मै-ओ-नग़्*मह को अन्*दोह-रुबा कह्*ते हैं

दिल में आ जाए है होती है जो फ़ुर्*सत ग़श से
और फिर कौन-से नाले को रसा कह्*ते हैं

है परे सर्*हद-ए इद्*राक से अप्*ना मस्*जूद
क़िब्*ले को अह्*ल-ए नज़र क़िब्*लह-नुमा कह्*ते हैं

पा-ए अफ़्*गार पह जब से तुझे रह्*म आया है
ख़ार-ए रह को तिरे हम मिह्*र-गिया कह्*ते हैं

इक शरर दिल में है उस से कोई घब्*राएगा क्*या
आग मत्*लूब है हम को जो हवा कह्*ते हैं

देखिये लाती है उस शोख़ की नख़्*वत क्*या रन्*ग
उस की हर बात पह हम नाम-ए ख़ुदा कह्*ते हैं

वह्*शत-ओ-शेफ़्*तह अब मर्*सियह कह्*वें शायद
मर गया ग़ालिब-ए आशुफ़्*तह-नवा कह्*ते हैं

मिर्ज़ा ग़ालिब
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Old 13-02-2011, 11:51 AM   #80
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है दुनिया जिस का नाम मियाँ ये और तरह की बस्ती है।
जो महँगों को तो महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है।
याँ हरदम झगड़े उठते हैं, हर आन अदालत बस्ती है।
गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।

जो और किसी का मन रक्खे, तो उसको भी अरमान मिले।
जो पान खिलावे पान मिले, जो रोटी दे तो नान मिले।
नुक़सान करे नुक़सान मिले, एहसान करे एहसान मिले।
जो जैसा जिसके साथ करे, फिर वैसा उसको आन मिले।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।

जो और किसी की जाँ बख़्शे तो उसकी भी हक़ जान रखे।
जो और किसी की आन रखे तो, उसकी भी हक़ आन रखे।
जो याँ का रहने वाला है, ये दिल में अपने जान रखे।
ये तुरत-फुरत का नक़्शा है, इस नक़्शे को पहचान रखे।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदलपरस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।

जो पार उतारे औरों को, उसकी भी पार उतरनी है।
जो ग़र्क़ करे फिर उसको भी, याँ डुबकूं-डुबकूं करनी है।
शमशीर, तीर, बन्दूक़, सिना और नश्तर तीर, नहरनी है।
याँ जैसी जैसी करनी है, फिर वैसी वैसी भरनी है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।

जो और का ऊँचा बोल करे तो उसका भी बोल बाला है।
और दे पटके तो उसको भी, कोई और पटकने वाला है।
बे ज़ुल्मा ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़िबह कर डाला है।
उस ज़ालिम के भी लोहू का फिर बहता नद्दी नाला है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।

जो और किसी को नाहक़ में कोई झूठी बात लगाता है।
और कोई ग़रीब और बेचारा हक़ नाहक़ में लुट जाता है।
वो आप भी लूटा जाता है और लाठी-पाठी खाता है।
जो जैसा जैसा करता है, वो वैसा वैसा पाता है।
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।

है खटका उसके हाथ लगा, जो और किसी को दे खटका।
और ग़ैब से झटका खाता है, जो और किसी को दे झटका।
चीरे के बीच में चीरा है, और पटके बीच जो है पटका।
क्या कहिए और 'नज़ीर' आगे, है ज़ोर तमाशा झट पटका।
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इसहाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब बदस्ती है।।

नज़ीर अकबराबादी
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